Sunday, July 9, 2017

प्रोजेक्ट मैनेजमेंट - भाग दो

बात पंद्रह साल पुरानी है ! मै नॉएडा आ चूका था ! शिक्षक बन चूका था ! तब हमारे हेड होते थे - कर्नल गुरुराज ! देश के सबसे बेहतरीन रीजनल कॉलेज 'त्रिची' से पास ! छोटा कद और बेहद कड़क ! तब वो कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल भी थे ! जिस दिन ज्वाइन करना था - उस पुरे दिन मै उनके कमरे के बाहर खड़ा रहा ! वो काफी व्यस्त थे ! तब हम सभी महज एक लेक्चरर थे और डिपार्टमेंट में एक ही असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थीं - श्रीमती कृष्णा अस्वा ! कृष्णा मुझसे उम्र में छोटी रही होंगी लेकिन पद में ऊपर थी ! सांवला रंग और खादी की साड़ी ! और मुझसे बेहद अदब से पेश आती थी !
अगले सेमेस्टर विषय निर्धारण का वक़्त आया ! प्रोजेक्ट मैनेजमेंट दो जगह पढ़ाने को था ! आंबेडकर यूनिवर्सिटी आगरा का फाइनल ईयर बैच निकलने को था और यूपी टेक्नीकल यूनिवर्सिटी का प्रथम बैच थर्ड ईयर में था ! दोनों जगह प्रोजेक्ट मैनेजमेंट था ! इस विषय को कोई भी शिक्षक छूने को तैयार नहीं था ! विष का प्याला -रंजन ऋतुराज आगे बढ़ गए ! श्रीमती कृष्णा अस्वा ने खखर कर पूछा भी - ' रंजन सर , आप इस विषय को पढ़ा लेंगे ..न ' ! हमने भी खखर कर जबाब दे दिया ! 
फाइनल ईयर और थर्ड ईयर को पढ़ाना था ! लाइब्रेरी चला गया ! तब लाइब्रेरी की आदत थी ! कुछ एक मोटी मोटी किताब लेकर आ गया ! विषय से परिचित था लेकिन पढ़ाने लायक कांफिडेंस नहीं था ! खैर ....एक दिन सुबह फाइनल ईयर के क्लास में घुस गया ! किताब लेकर क्लास लेने की आदत थी ! दो तीन मोटी मोटी विदेशी किताबें लेकर लेक्चर थियेटर में घुसा तो थोडा नर्वस था ! किताबों को पोडियम पर रख - खुद का परिचय दिया - मै फलना धिकना इत्यादि इत्यादि ! समय काटना था - फिर विद्यार्थी सब से उनका परिचय पूछा ! नए शिक्षक और फाइनल इयर के विद्यार्थी के बीच उम्र का फासला कम होता है ! 

कुछ एक बड़ी बड़ी कजरारी आँखें बड़े ही गौर से देखने लगी की यह नमूना कौन है ! तब कोई भी एक शिक्षक झुंझला जाता है ! अचानक से मैंने पूछा - " क्या आप सभी कभी जीवन में कोई प्रोजेक्ट देखे हैं या किसी प्रोजेक्ट के पार्ट रहे हैं ? " ! किसी ने कुछ जबाब नहीं दिया ! 
मैंने पूछा - क्या आपने कभी कोई शादी / विवाह देखी है ? सभी ने जबाब दिया - हाँ ! मै मुस्कुरा दिया ! बोला - घर परिवार में होने वाली शादी विवाह किसी भी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का बेहतरीन उदहारण होता है ! अगर आप इस उदहारण को समझ गए फिर आप कोई भी प्रोजेक्ट संभाल लेंगे ! छात्र थोड़े मुस्कुराए फिर मैंने इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को विवाह की तैयारी से जोड़ कर समझाया ! 
उसी सेमेस्टर यूनिवर्सिटी एक्सपर्ट मीटिंग में हमारी असिस्टेंट प्रोफ़ेसर श्रीमती कृष्णा अस्वा लखनऊ गयीं ! वहां उन्होंने मेरे बारे में क्या कहा , मुझे नहीं पता लेकिन पहली ही दफा में मुझे यूनिवर्सिटी का क्योश्चन पेपर सेट करने को मिला ! मै बहुत खुश था ! 

मैंने तीन सेट तैयार किये और अपनी पूरी आत्मा उन तीनो सेट में रख दिया ! पूरी क्रियेटिविटी रख दिया ! लेकिन मुझे नहीं पता था की वही पेपर परीक्षा में आयेंगे ! तब फाइनल यूनिवर्सिटी परीक्षा का होम सेंटर होता था ! जिस दिन परीक्षा था - बेचैने थी - पत्र बंटने के बाद - मुझे पता चला की मेरा ही सेट आया है ! परीक्षा ख़त्म होने के बाद हाथ फोल्ड कर एक खम्भे से टीक गया और परीक्षा कक्ष से बाहर निकल रहे विद्यार्थिओं के चेहरे की मुस्कान मेरे घमंड को और ऊँचा कर रही थी ! क्योस्चन पेपर में एक सवाल मेरे अंदाज़ को व्यक्त कर रहा था , जिससे मेरे छात्र को पकड़ लिए की यह रंजन सर का ही पेपर है ! अगले दो साल और यूनिवर्सिटी ने मेरा ही पेपर परीक्षा में दिया ! किसी भी शिक्षक के लिए यह बहुत गौरव की बात है और ऐसे अवसर शिक्षक के व्यक्तित्व में गंभीरता लाते हैं ! फिर अगले दो तीन साल बाद - यूनिवर्सिटी ने मुझे इसी विषय का डीपटी और फिर हेड येग्जाम्नर भी बनाया ! 

यहाँ मेरा कोई भी व्यक्तिगत योगदान कुछ नहीं था लेकिन एक बढ़िया संस्थान में काम करने के कारण मुझे ये अवसर मिले ! इसी विषय में मै आगे रिसर्च करना चाहता था ! मरद जात कुकुर - शायद तब के सबसे सुन्दर शिक्षिका जो आईआईटी - दिल्ली में थी - उनके पास रिसर्च करने पहुँच गया ! उनके पास इस विषय के सभी डिग्री मौजूद थी ! हमउम्र भी थी सो रिसर्च की गुंजाईश कम ही थी ! एक दो मुलाक़ात में ही बात समझ में आ गयी की ना तो वो मेरी गुरु बन सकती हैं और ना ही मै उनका चेला ! वो अमेरिका चली गयीं - रिसर्च एक ख्वाब बन के रह गया ! हा महा हा...... 
खैर , आज फिर से उसी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में वापस हूँ ! खुश हूँ ! देश के सबसे बेहतरीन ब्रांड "टाटा" के साथ दो साल के अनुबंध पर ! खूब पढता हूँ ! समझ रहा हूँ ! लेकिन अन्दर का एक शिक्षक वर्तमान है जो वक्त के साथ खुलेगा - और ज्ञान की कैसी सीमा ....:)) 
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएँ ......:))

~ रंजन ऋतुराज / दालान / पटना

प्रोजेक्ट मैनेजमेंट - भाग एक 

Saturday, July 8, 2017

"दालान" के दस वर्ष ....:))


:))
सोमवारी से सोमवारी ! सावन से सावन ! जुलाई से जुलाई - दस साल हो गए ...दालान के ! खुश हूँ ! समझ में ही नहीं आ रहा - ख़ुशी कैसे व्यक्त करूँ ! यह मेरा पुरजोर मानना है की कोई भी सजीव या निर्जीव चीज़ सिर्फ अपने बदौलत ऊपर तक नहीं पहुँच सकती - कई अन्य सजीव या निर्जीव उसे ऊंचाई पर पहुंचाते हैं ! अगर आप पढने वाले नहीं होते तो शायद यह दालान नहीं होता ! 
सबसे महतवपूर्ण है - विश्वास ! इंसान का खुद पर विश्वास होना तो प्रथम चरण है लेकिन अगर कोई गैर आप पर विश्वास करे - यह एक परमसुख है ! और शायद यहीं आप सभी मित्र और पाठक आते हैं ! और आप सभी ने मुझे मेरी क्षमता से ज्यादा सब कुछ दिया है ! या यूँ कहिये दालान शुरू होने के बाद से मेरे जीवन में जो कुछ भी है वो सब का सब इसी दालान / लेखनी की वजह से है ! अकल्पनीय है मेरे लिए , जो कुछ एक लोग मुझे नजदीक से जानते हैं वो जरुर ही अभी मुस्कुरा रहे होंगे :))
आज खुद को शब्द विहीन महसूस कर रहा हूँ - निःशब्द हूँ ! कोई शब्द नहीं है मेरे पास आप सभी के लिए ! हम क्या थे ? नॉएडा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में शिक्षक ! दालान नहीं होता तो मै उन्ही असंख्य शिक्षकों की तरह किसी गुमनाम ज़िन्दगी को बसर कर रहा होता ! गुमनामी से मुझे नफरत है तभी तो दालान अखबार , टीवी , रेडिओ सब जगह आया :))
पिछले दस साल आँखों के आसमान से गुजर रहे है !  मेघ की तरह ! कब बरस जाए कहना मुश्किल है ......:))
मै कोई कवी , लेखक या साहित्यकार नहीं था ! आज भी नहीं हूँ ! कहीं कोई ट्रेनिंग नहीं है ! मूलतः एक रचनात्मक इंसान हूँ ! घर - परिवार , संस्था में रचनात्मक प्रयोग की मनाही होती है तो लिखने को एक प्लेटफॉर्म मिल गया - मन की बात बहुत ईमानदारी से लिखा और आप सभी को पसंद आया !
आज दालान पेज फेसबुक पर पिछले ढाई साल में 18,000+ पाठक जुड़े ! करीब दो लाख से ऊपर हिट्स दालान ब्लॉग स्पॉट को मिल चूका है पिछले सात साल में !
कई यादें हैं - कई बातें हैं - खुलेंगे सब - हौले हौले - शब्दों के साथ ......बने रहिये इस सावन दालान ब्लॉग के साथ .....:)))
...उन्ही यादों के मेघ के साथ विचरण कर रहा हूँ ....बड़े प्यार से अपने दालान को देख रहा हूँ ...:))
शुक्रिया ....!!!
~ रंजन ऋतुराज / दालान / पटना