Saturday, June 10, 2017

प्रोजेक्ट मैनेजमेंट , पार्ट 1

ठीक पंद्रह साल पहले की बात है ! इसी जून के महीने एक शाम प्रमोद महाजन दिल्ली एअरपोर्ट पर ए पी जे अब्दुल कलाम का हाथ पकडे बाहर की तरफ निकल रहे थे ! भावी राष्ट्रपति की घोषणा होने वाली थी ! मुर्ख मिडिया ने अब्दुल कलाम साहब पर सवालों के गोले दागने शुरू कर दिए - " आप तो गैर राजनीति और प्रायोगिक विज्ञानं से हैं ...कैसे देश को संभालेंगे इत्यादि इत्यादि " ! इंसान कोई भी हो - एक उम्र बाद जब उसके काबलियत पर कोई शक करे , इंसान का तिलमिलाना स्वाभाविक है ! अब्दुल कलाम साहब ने जबाब दिया था - ' आजीवन मै प्रोजेक्ट मैनेजर रहा हूँ और एक प्रोजेक्ट मैनेजर से बढ़िया नेतृत्व की क्षमता किसी के पास नहीं होती है , बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर मुझे न जाने कितने रिसोर्स को मैनेज करना पड़ता है  " ! मालूम नहीं मुर्ख मिडिया को उनकी बात कितनी समझ में आई लेकिन मै मुस्कुरा रहा था :))
खैर .....
बात वर्षों पुरानी है  ! मैंने पीजी में एडमिशन ले लिया था ! अभी तक तो कभी पढ़ाई लिखाई किया नहीं था ! सो सोचा  कुछ पढ लिया जाए - अनपढ़ का बोझ कब तक लिए फिरें :)  ! लाइब्रेरी जाने की आदत पड़ गयी ! मेरे साथ वाले भी लाइब्रेरी जाते थे लेकिन वो सिलेबस तक ही पढ़ते थे ! मै अपने स्वभाव से पीड़ित था ! सिलेबस छोड़ सब कुछ पढने की बिमारी बचपन से थी ! पढ़ गया - इंजीनियरिंग मैनेजमेंट , प्रोजेक्ट मैनेजमेंट इत्यादि इत्यादि ! 
खैर ...एक किताब हाथ लगी जिसमे बताया गया की कैसे बड़े बड़े प्रोजेक्ट फेल हो जाते हैं ! प्रोजेक्ट की कई कहानी पढने के बाद - निष्कर्ष यही निकला की 'Requirement Analysis' को तवज्जो दिया ही नहीं गया ! अरबों खरबों के प्रोजेक्ट बंद हो गए ! हालांकि प्रोजेक्ट फेल होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन 'Requirement Analysis' उनमे से एक प्रमुख होता है !
एक उदाहरण देता हूँ - नॉएडा आया तो मुझे किराया का मकान लेना था ! वहां के सेक्टर 62 के एक पीएसयु कम्पनी PDIL की नयी बनी सोसाइटी में दो कमरों का फ़्लैट लिया ! इस कंपनी के बारे में बताता चलूँ - यह रांची के इंजीनियरिंग डिजाईन कंपनी मेकॉन की तरह भारत सरकार की कंपनी है - जो बड़े बड़े प्रोजेक्ट की डिजाईन करती है - ख़ासकर रिफाईन और खाद कारखानों की ! मेरे साथ पढ़े कॉलेज के कुछ एक मित्र भी यहाँ काम कर रहे थे ! शत प्रतिशत इंजिनियर की कंपनी !चपरासी भी शायद इंजिनियर ही होगा ! लेकिन इसी कंपनी के इंजिनियर जब खुद के सोसाइटी डिजाईन किये तो वहां ' कार पार्किंग' की जगह ही नहीं दिए ! डिजाईन करते वक़्त फ़्लैट तो बेहतरीन बनाए लेकिन कुछ एक एकड़ में बसे इस सोसाइटी में उन्होंने कार पार्किंग की जगह नहीं बनायी ! जब नॉएडा से जमीन मिला तब भारत सरकार के इस कंपनी में तनखाह कम थी ! अधिकतर इंजिनियर स्कूटर झुका के स्टार्ट करने वाले मुद्रा में थे ! किसी ने कभी यह नहीं सोचा की कल को कार भी चढ़ सकते है ! बना दिया एक सोसाइटी - बिना कार पार्किंग की ! पांचवां / छठा वेतनमान आया, हज़ार कमाने वाले लाख में तनखाह उठाने लगे ! बाल बच्चे बड़े हुए ! कार खरीदी गयी और अब रोज कार पार्किंग को लेकर 'माई - बहिन' ! मेरी जगह पर उसने कार लगा दी तो उसकी जगह पर किसी और ने कार पार्क कर दी ! सारा शहर कार पर घूम रहा है और इंजिनियर की बस्ती में कार पार्किंग की कोई जगह ही नहीं ! क्योंकि आपने सोचा - अभी मेरी तनखाह कम है और कार बड़े लोगों की सवारी है ! पलक झपकते हर घर तीन कार हो गयी ! अब आप अपना पूरा स्ट्रक्चर तोड़ भी नहीं सकते ! 
अजीब है ..न ! पूर्ण रूपेण इंजिनियर की कंपनी , मकान  आयु सौ साल और कार पार्किंग की जगह नहीं ! और शहर देश का बेहतरीन - नॉएडा !
यहं पुर्णतः Requirement Engineering की फेल्युअर है !
जब खुद का फ़्लैट इंदिरापुरम में खरीदना था - करीब छः महीने 28 बिल्डर के यहाँ घुमा ! मुझे अपनी जरूरतें पता थी ! मै बजट का इंतज़ार किया लेकिन अपनी जरूरतों से कोई समझौता नहीं ! सिविल इंजीनियरिंग / इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट हर दो साल पर सॉफ्टवेयर की तरह बदलने की चीज नहीं है ! एक मकान की आयु सौ साल और एक सड़क पांच सौ - हज़ार साल जिंदा रहती है !
कई दफा खुद क्लाइंट को अपनी जरूरतें समझ में नहीं आती है ! उस वक़्त कंसल्टेंट / एजेंसी को आगे बढ़ कर क्लाइंट को पढ़ाना / बताना पड़ता है ! कई दफा जरूरतें पैदा भी करनी पड़ती है ! 
इसी वर्ष ११ जून को बिहार सरकार पटना - सोनपुर एक ब्रिज देश को समर्पित करेगा ! इस ब्रिज में मोकामा - बेगुसराय 'राजेंद्र ब्रिज' की तरह रेल और सड़क यातायात दोनों है ! वर्तमान गंगा सेतु टूटने के कगार पर है या वहां चार पांच घंटे जाम लगा रहता है ! लेकिन इस नए ब्रिज की चौड़ाई महज 18 मीटर है ! मतलब आज के जमाने में भी सिर्फ दो लेन ही हैं ! एक उधर से आने को और एक इधर से जाने को ! और तब जब बिहार से बने दो रेल मंत्री का यह ख़ास प्रोजेक्ट था ! इतने संकरे ब्रिज को बनाने का जड़ मै नहीं लिख सकता - मुझे सामंतवाद ठहरा सोशल मिडिया पर गाली मिलेगी ! लेकिन यही स्थिति है "प्रोजेक्ट मैनेजमेंट" की  ! मालूम नहीं - सरकार में बहाल बड़े बड़े अधिकारी और इंजिनियर - Requirement Ananlysis को लेकर इतने ढीले क्यों है ? सन 2002 में शिलन्यास हुए इस पूल को बन कर तैयार होने में 15 साल लग गए ! 
1976  में नॉएडा का जन्म हुआ ! इस विशाल शहर में सेक्टर 11 के बगल में सेक्टर 22  है ! कोई बिहार से आया  तो अपने सम्बन्धी का पता खोजने के चक्कर में भूखा मर जाएगा ! क्योंकि ब्लाक B के बगल में ब्लाक J है ! खोजते रहिये - रंजन ऋतुराज का पता ! ऑटो वाला बीच रास्ता सामान उतार वापस दिल्ली स्टेशन चल देगा !
संभवतः ओल्ड बंगलौर विश्वसरैया जी का डिजाईन किया हुआ है ! मै मल्लेश्वरम मोहल्ले में रहा हूँ ! सड़क और मोहल्ला "क्रॉस और मेन" सड़क में बंटा हुआ है ! आपको कोई भी घर खोजने में भी दिक्कत नहीं होगी ! 
यह सिविल इंजीयरिंग की उदहारण मैंने दी है ! दिक्कतें बाकी की सभी इंजीनियरिंग विभाग में है ! कोई भी इंजिनियर टीम - Requirement Analysis को लेकर सीरियस नहीं है ! फेसबुक इसी लिए सफल रहा की वो मानव स्वभाव के Requirement को समझा !
अमरीका की पूरी सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री वहां की मिलिट्री की देन है ! मिलिट्री के पास बजट की कमी नहीं होती थी और वो नए प्रयोग करते थे ! सत्तर और अस्सी के दसक में कई ख़रब डॉलर के प्रोजेक्ट कमज़ोर Requirement Engineering की वजह से या तो बीच में लटक गए या फिर किसी काम के नहीं रहे ! अमरीका मिलिट्री के साथ  वहां की सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री का पेट - जेनेरल इलेक्ट्रिक भरता था / है ! एक ही प्रोजेक्ट वो तीन अलग अलग कंपनी से करवाता था / है !
इंजीनियरिंग के छोटे से छोटे प्रोजेक्ट की भी आयु तीन साल होती है और तीन साल में जरूरतें बदल जाती है ! तकनीक / रहन सहन में बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है ! लोगों की मूल जरूरतों और बदलाव को समझिये ! 
अंत में एक उदाहरण देता हूँ - नॉएडा और इंदिरापुरम जैसे बड़े शहर में सरकार की तरफ से एक भी लाइब्रेरी की व्यस्था नहीं है ! हजारों फ्लैट के बीच कर चार कदम पर एक शौपिंग मॉल है लेकिन एक भी लाइब्रेरी नहीं है !
हम कैसा शहर / समाज बना रहे हैं , जहाँ सिर्फ और सिर्फ पढ़े लिखे लोग ही बस रहे हैं और एक लाइब्रेरी तक नहीं ! इससे शर्मनाक और क्या बात हो सकती है ! 
करीब दस साल पहले भारत सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री चिदंबरम साहब ने कहा था - कई छोटी मोटी शुरूआती  गलतिओं की वजह से भारत जैसे देश में लग भाग दो लाख करोड़ के प्रोजेक्ट दिशाहीन हो जाते हैं !
शुरूआती दौर की एक गलती अपने अंतिम फेज़ में पहुँचते वक़्त - कई गुना बढ़ चुकी होती है !
हालांकि पिछले पंद्रह साल में भारत में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को लेकर सजगता बढ़ी है लेकिन वह सजगता प्रोजेक्ट कंट्रोल पर ज्यादा है ! अभी भी Requirement Analysis / Engineering ठन्डे बसते में ही है ! जिस रफ़्तार से टैक्स में बढ़ोतरी और कलेक्शन बढ़ रहा है , सेना के बाद सरकार के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा विभिन्न परियोजनायों / प्रोजेक्ट की तरफ ही जाएगा ! और जनता की गाढ़ी कमाई का यह पैसा भविष्य में जनता के हित को साधे , उसके लिए सरकार को अपने विभागों के इंजीनियरों के हाथ और कलेजा दोनों मजबूत करने होंगे !
मुझे कोई संकोच नहीं हैं की - भारत में नए युग का प्रवेश द्वार 'वाजपेयी सरकार' रही - जहाँ उन्होंने भारत सरकार के दो प्रमुख विभागों का सचिव 'टेक्नीकल लोगों' को बनाया ! श्री मंगला राय , वैज्ञानिक को कृषि शिक्षा और अनुसंधान का सचिव बनाया एवं श्री आर भी शाही को उर्जा सचिव बनाया ! यह कदम बहुत साहसी था ! सीतामढ़ी बिहार के रहने वाले श्री आर भी शाही को आज भी भारत के नए युग में उर्जा विस्तार को उन्हें सूत्रधार कहा जाता है !
आज ऑटोमोबाइल और आईटी क्षेत्र में सबसे ज्यादा Requirement Engineering पर बहस हो रही है , उनका स्वरुप भी ऐसा है की उन्हें दो तीन साल में बदल रही जरूरतों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट तो बीस / पचास / सौ साल के लिए होता है - वहां तो भविष्य की जरूरतों को ध्यान देना ही होगा !
कल्पना कीजिए - सम्राट अशोक के बाद शेरशाह सूरी के जमाने का ग्रैंड ट्रंक रोड ...क्या जबरदस्त Requirement Engineering / Analysis रही होगी की आज भी यह सड़क हमारी जरूरतों को मुखातिब है !

हावड़ा का ब्रिज देखा है , क्या ? 1943 में बन कर तैयार यह ब्रिज , हाल फिलहाल तक बगैर किसी सड़क जाम के कलकत्ता को हावड़ा से कनेक्ट किये हुए था ! मेरे पटना का गंगा सेतु तो बस बीस साल में ही दम तोड़ दिया !

कहाँ दिक्कत है ?

~ रंजन / पटना