Tuesday, October 18, 2016

नवरात्र 2015


आज से नवरात्र शुरू हो गया ! देवी के न जाने कितने रूप - जितने शक्ती के श्रोत - उतने ही देवी के रूप ! एक नर किस किस रूप की आराधना करे - किस किस रूप पर खुद को सम्मोहित करे - किस किस रूप की पूजा करे ...:)) थक हार कर एक नर देवी के तीन रूप - लक्ष्मी , सरस्वती और काली के इर्द गिर्द खुद को सौंप देता है ! और इन तीनो रूप में एक बनी - दुर्गा के चरणों में - नवरात्र शुरू हो जाता है ...:)) 
बगैर शक्ती तो इस संसार में एक पल भी रहना मुश्किल है ! शक्ती की क्या विवेचना की जाए? शक्ती है तभी तो कलम चल रही है - शक्ती है तभी तो आँखें खुली है - शक्ती है तभी तो दुनिया झुकी है ..:)) शक्ती के जितने रूप उतनी चाहतें ! अब यह आपके व्यक्तित्व पर निर्भर करेगा - आपको शक्ती का कौन सा रूप अपने अन्दर समाहित कर के खुद को पूर्ण करना है ! ज़िंदगी तो यही है न - खुद को पूर्णता के तरफ ले चलना ! खुद को खाली करना और हमेशा खुद को भरते रहना - पग पग / डेग डेग - हर पल एक कदम !
शक्ती अकेले नहीं आती - अपने साथ एक अहंकार को पीछे पीछे लाती है ! जब तक वह अहंकार पीछे पीछे घूमता है - शक्ती आपके अन्दर समाहित रहती है - जिस दिन वह अहंकार शक्ती के आगे खडा हो जाता है - दुर्गा उसी दिन आपके अन्दर से निकल जाती है ! शक्ती की शोभा तभी है जब अहंकार पीछे खडा हो ! अहंकार के बगैर भी शक्ती अपूर्ण है ! लेकिन पीछे खडा - शक्ती की सुरक्षा में ..:)) अहंकार को पीछे जीवित रखना और शक्ती के साथ इस जीवन को आनंदित रखना एक कला है या एक समझ है !
फिलहाल ...मै आनंदित हूँ ...जब जब फुर्सत मिलेगा ...कुछ लिखूंगा ...आपको भी फुर्सत मिले ...पढ़ते रहिएगा ...अपने अन्दर के शक्ती को जागृत किये हुए - इस नवरात्र ...:))
~ रंजन , 13 अक्टूबर - 2015

स्कूल के दिनों की एक बात याद आ रही है ! हम चार दोस्त एक बेंच पर बैठते थे - तीस साल पुरानी बात है ! मै , मृत्युंजय , दीपक अगरवाल , वर्मा और एक कक्कड़ ! कक्कड़ के पैरों में पोलियो की बीमारी थी ! वो बैसाखी के सहारे चलता था ! एकदम दिवार से सटे बैठता था ! पर उसकी भुजाओं में बहुत ताकत थी ! हाथ मिलाने वाले खेल में हम सभी उससे हार जाते थे ! चंद सेकेण्ड में परास्त कर देता था ..:)) काफी चौड़ा कन्धा भी था ! ईश्वर का खेल - जहाँ पैरों में कोई शक्ती नहीं वहीँ भुजाओं में असीम शक्ती ! शायद बैसाखी के सहारे चलने से उसकी भुजाओं में ताकत आ गयी थी ! जो भी हो - पर मुझे उसका ताकतवर होना बढ़िया लगता था !
शायद यही कुछ हमारे साथ भी होता है ! जीवन के इस उम्र में - मैंने यही पाया है की - कई मोड़ पर / कई जगह मै खुद को शक्तीविहीन पाता हूँ - बिलकुल असहाय ! वहीँ कई दुसरे जगह असीम ऊर्जा और शक्ती के साथ रहता हूँ - जैसे इस ब्रह्माण्ड में मेरे जैसा कोई नहीं !
ये क्या है ? ऐसा क्यों है ? वही इंसान एक जगह काफी कमज़ोर और दूसरी जगह बेहद मजबूत ! अब दिक्कत तब होती है - जब जीवन लगातार उन्ही रास्तों पर आपको धकेल दे - जहाँ आप खुद को कमज़ोर पाते हैं ! धीरे - धीरे आप खुद को शक्तीविहीन पाने लगते हैं ! इन्सान भूल जाता है - उसका एक और पक्ष भी है - जहाँ उसके जैसा कोई नहीं !
तब शायद अन्दर से एक आवाज़ उठती है या कोई इंसान मिलता है - जो आपके दुसरे मजबूत पक्ष को बताता है ! अन्दर से आवाज़ उठना या किसी ऐसे मित्र का मिल जाना - नियती भी हो सकता है ! तब आप अपना रास्ता बदलते हैं और अपने शक्ती को पहचानते हैं और वहीँ से ऊर्जा से ओत प्रोत एक सूरज आपके जीवन में सवेरा लेकर आता है !
मैंने हमेशा कहा है - शब्दों में बहुत ताकत होती है ! पर यह भी अचरज है - जो इंसान एक के लिए सकरात्मक ऊर्जा से भरपूर शब्द बोलता है - वही इंसान किसी दुसरे के लिए नकरात्मक शब्द बोलता है ! पर जो भी हो - शब्द में असीम शक्ती है - नकरात्मक और सकरात्मक दोनों ! सीता और गीता / राम और श्याम सिनेमा तो देखे ही होंगे - गौर से देखिएगा - शब्दों के ताकत का प्रभाव व्यक्तित्व पर नज़र आएगा ...:))
यूँ ही कुछ लिख दिया ...फुर्सत में ...दो बार पढियेगा ..:))
~ रंजन , 14 अक्टूबर 2015 

बचपन की बात है ! हमारे मुजफ्फरपुर घर / डेरा के ठीक बगल में कुम्हार 'रामानंद पंडित' का घर था ! वो बड़े बाबा के उम्र के थे और उनके लडके पापा - चाचा के उम्र के ! अक्सर उनके दरवाजे जाया करता था - उनको चाक चलाते देख बहुत बढ़िया लगता था ! 
पूजा के कुछ महिना पहले उनके लडके पापा के पास आते थे - शायद मूर्ती बनाने के लिए पैसों के इंतजाम के वास्ते - क़र्ज़ के रूप में ! फिर वो मुजफ्फरपुर ज़िला स्कूल के ठीक बगल में बीस - पच्चीस मूर्ती बनाते ! स्कूल आते जाते या फिर शाम को उनके पास जाता था ! बांह मोड़ के उनके मूर्ती के पास खडा हो जाता ! लकड़ी के सपोर्ट से धान के पुआल से - फिर हर रोज थोडा चिकनी मिट्टी लगाते - हर एक रोज मूर्ती के स्वरुप में बदलाव आता था ! मुझे रामानंद पंडित के परिवार द्वारा बनाए हुए मूर्ती से एक अपनापन महसूस होता ! फिर एक दिन किसी ठेला पर मूर्ती को जाते हुए देखता और एक दो मूर्ती बच जाती - जो बच गयी उसका पूजन वह कुम्हार परिवार खुद से करता था ! वो पूरा दृश्य अभी मेरे आँखों के सामने से गुजर रहा है ...एक एक दिन का वह बदलाव !
जब तीन साल पहले २०१२ में दुर्गा पूजा को लेकर खुद की अभिरुची जबदस्त ढंग से जागी - तो गूगल पर ही पढ़ा - महालया की रात कुम्हार दुर्गा की मूर्ती के आँखों में 'रंग' भरते हैं - यह जानकारी मेरे लिए किसी रोमांच से कम नहीं थी ! मैंने कल्पना किया - उस क्षण का जब एक कुम्हार अपने हफ़्तों की मेहनत की मूर्ती के आँखों में रंग भर के उसमे प्राण डालता होगा ! वो अमावास के मध्य रात्री का क्षण !
क्या कुम्हार को उस जीवित दुर्गा से प्रेम नहीं हो जाता होगा ? :) अन्तोगत्वा तो वह कुम्हार एक पुरुष ही होता है - खुद के ही बनाए उस भव्य रूप को को देख वह मोहित नहीं हो जाता होगा ! कभी सप्तमी के दिन किसी पंडाल में जाकर दुर्गा की आँखों में झांकियेगा ...:)) सब समझ में आ जायेगा ...प्रेम भाव के किस हद तक जाकर उस कुम्हार ने देवी की आँखों में सारी शक्ती डाल दी है ...:))
फिर इसी तीन साल के दौरान - अलग अलग बड़े बड़े पुजारी की रचनाओं को पढने का मौक़ा मिला ! कभी ललिता सहस्रनाम पढियेगा ! देवी के हर एक अंग की प्रसंशा की गयी है - जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका का करता है ! एक नारी अपने जितने गुणों के लिए जानी जायेगी - उन सभी गुणों का वर्णन है ..:))
ये क्या है ? कहीं यह एक सम्पूर्ण स्त्री की कामना तो नहीं ? कहीं यह वो स्त्री तो नहीं जो एक पुरुष की कल्पना में बसती है ? जो उसे प्रेम और सुरक्षा के घेरे में बाँध के रखती है ...
बहुत कुछ है - लिखने को ...बहत कुछ है समझने को ...:))
~ 15 Oct / 2015 

प्लस टू में रहे होंगे ! रीडर्स डाईजेस्ट का शौक चढ़ा ! किसी एक अंक में 'स्टीफें हॉकिंग' के बारे में छपा था ! मै हैरान था - कोई इंसान जो बोल नहीं सकता है - जो चल नहीं सकता है वह 'फिजिक्स' में दुनिया का बेहतरीन गुरु है !
ये क्या है ? शक्ती का यह कैसा वरदान है ? गजब ! 
मालूम नहीं शक्ती के कितने रूप हैं और यह किस कदर आती है - ईश्वरीय देन है या कर्मो से शक्ती का आगमन - शायद दोनों है ! इस संसार में दोनों को इज्जत है ! अगर कर्मरूपेण शक्ती और ईश्वरीय वरदान शक्ती दोनों का मिलन एक जगह हो जाए फिर तो वह इंसान साक्षात 'शिव' है ..:))
पर शक्ती कहाँ विराजती है - जहाँ 'आनंद' है ! आप लाख पढ़ लिख ले - अगर आपको अपने किसी कर्म में आनंद महसूस नहीं हो रहा है - आप खुद को शक्तीविहीन पायेंगे ! सामाजिक प्लेटफार्म के बड़े से बड़े ओहदे पर पहुंह कर भी बगैर आनंद वाली शक्ती की कोई पूछ नहीं है ! प्रेम और रिश्ते में भी शक्ती होती है - मगर आप उसमे 'आनंद' नहीं महसूस कर रहे हैं फिर वो रिश्ता एक मृतक शरीर की तरह बदबू के साथ एक बोझ बन जाता है ! 'आनंद' शक्ती का प्राण होता है ! यह आनंद 'मन' से कंट्रोल होता है ! कई बार ऐसा देखा गया है - मन दुखी तो आनंद गायब और जैसे ही मन खुश वहां उसी जगह वापस से आनंद आया !
मन - आनंद - शक्ती ! यही सार है ! यह एक योग है ! यह एक साधना है ! स्टीफेन हॉकिंग एक दिन में स्टीफेन हॉकिंग नहीं बने होंगे - जीवन को एक साधना बना लिए होंगे - एक दिशा में लगातार बढ़ाते रहने से - अपने चंचल मन पर काबू पाते हुए - अपनी तमाम शारीरिक कमजोरी पर विजय पाते हुए - स्टीफेन हॉकिंग ...आज दुनिया में अनोखा नाम हैं ! पर बगैर देवी के आशीर्वाद के - शायद यह दिशा भी उनको नहीं मिली होगी ! या फिर उनके एकाग्र मन को देख 'देवी' उनके रास्ते को आसान बनाते चली होंगी !
अगर शक्ती का एहसास करना है - फिर आनंद को तलाशिये ! जैसे - मै लिखता हूँ - मुझे लिखते वक़्त आनंद महसूस होता है - और शायद आप में से कई यह मानेंगे की यही मेरी शक्ती है !
जैसा की मैंने पहले दिन लिखा था - शक्ती के ठीक पीछे 'अहंकार' खडा होता है ! शक्ती की मादकता इतनी तेज होती है - न जाने कम उस बेहोशी में 'अहंकार' सामने आ खडा होता है - फिर आप अहंकार को एन्जॉय करने लगते है - हमको यही लगता है की यही अहंकार मेरी शक्ती है - पर इस भ्रम में न जाने कब शक्ती चुपके से निकल जाती है !
कभी ध्यान से सोचियेगा ...बगैर शक्ती तो कोई इंसान इस धरती पर नहीं होता - कब और कैसे आपका अहंकार आपकी शक्ती को ख़त्म कर दिया - अपने जीवन के सफ़र को एक नज़र देखिएगा !
सफ़र जारी है - एक समझ हो जाने के बाद - खुद को नियंत्रीत करना ही - शक्ती को वश में रखना है ...शिव तो वही है ..न ..जो शक्ती को अपने अन्दर वश में रखे ...बाकी तो महिशाशुर हैं - जिनके विनाश के लिए दुर्गा का जन्म होता है ...:)
~ 16 Oct / 2015 

ठीक दो साल पहले अपने पारिवारिक मित्र पंकजा से बात हो रही थी ! वो उस वक़्त तुरंत 'सेंसर बोर्ड' के चीफ / सीईओ से अपने तीन साल के कार्यकाल को समाप्त कर के फुर्सत में थीं ! उसी समय मैंने परोक्ष राजनीति में जाने का फैसला लिया था ! बात राजनीति से शुरू हुई और अचानक से मेरा एक प्रश्न - 'पावर ..क्या है ? ' ! पंकजा कुछ सेकेण्ड के लिए चुप हो गयीं फिर बोली - पावर यह नहीं है ..जो नज़र आ रहा है - फिर वो चुप हो गयी - फिरबोली- ये कुर्सी/ ओहदा / वर्दी पावर के प्रतीक हो सकते हैं लेकिन पावर नहीं , वर्दी , कुर्सी , ओहदा ख़त्म हो जाए फिर भी आपके ऊपर या आपके व्यक्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़े - वही असल पावर है - उनका इशारा साफ़ था - वो आंतरिक व्यक्तित्व की ओर इशारा कर रही थी !
एक महिला जो हमारी आपकी बैकग्राउंड से आती हैं - शादी के बाद परीक्षा दे कर 'आईपीएस' ( IPS ) के लिए चुनी जाए - सैकड़ों लोग चुने जाते हैं - फिर वहां से वो राजस्व सेवा ( IRS ) ज्वाइन करती हैं - फिर ऐसा संयोग बनता है वो सेंसर बोर्ड की सीईओ और वातावरण ऐसा की सारा बोर्ड उनके इर्द गिर्द ! मै उन्हें उस वक़्त - 'बॉलीवुड क्वीन' कहा करता था ! मुझे लगता है
- अपने कार्यकाल में वो सैकड़ों क्रिएटीव लोगों से मिली होंगी और उस दौरान वो खुद के स्तर पर वैसे लोगों के लिए अपने मन में एक इज्जत पैदा की होंगी - जहाँ से उन्हें यह महसूस हुआ होगा की - शक्ती कहाँ बसती है !
दस साल पुरानी जान पहचान है श्री अभय आनंद सर से ! साल में एक दिन हम उनसे मिलते हैं - काफी लम्बी और घंटो और वन टू वन बात होती है ! उनकी धर्मपत्नी डॉ नूतन भी बैठी होती है ! जब वो डीजीपी से हटे - मै उनसे मिलने गया ! वो होमगार्ड के डीजी थे ! उनसे भी मेरा वही सवाल - 'पावर ..क्या है ? ' ! वो भी चुप हो गए - पंकजा जैसा ही जबाब - 'पावर ..यह नहीं है ' ! मैंने उनसे पूछा - पावर ..किसके पास है ? वो बोले - जिसके पास है - या तो उसे पता नहीं है या वो खुद में उस पावर के साथ विलीन है ! :) खुद के आनंद में है !
फिर वो बोले - राजनेता के पास तो पावर होता ही नहीं है ! मैंने बोला - राजनेता को पावर का भ्रम होता है ! हम दोनों हंसने लगे ! पावर तो जनता के पास होती है !
अभी उनके घर गया - बातों बात अभय आनंद सर से बात वही - कौन शक्तीशाली ? दोनों पति पत्नी बैठे हुए थे ! मैंने कहा मैडम ज्यादा शक्तीशाली ! जबाब का कारण यही था - मै एक पैथोलोजिस्ट का बेटा - आजीवन पिता को सर्जन /.फिजिसियन / गायीनोकोलोजिस्त के इर्द गिर्द घुमते देखा ! मैंने तो डॉक्टर समाज को ही बड़ा माना ! पुलिस को क्यों नहीं ? मेरा जबाब सरल था - मेरे बाबा राजनीति में थे - जिले का पुलिस कप्तान उनको देख कुर्सी से उठ जाता था ! चाईल्ड साइकोलोजी ! मन में बस गया - सामाजिक वर्ण व्यवस्था में - राजनेता का कद बड़ा ! हा हा हा ...
आज पूरा विश्व अभय आनंद सर को सुपर थर्टी के जनक के रूप में जानता है - पुरे देश में घूम घूम कर पढ़ाते हैं - शायद वही असल पावर है :)
बात वही है - आप किस कोण पर खडा है और चीज़ों को कैसे देख रहे हैं ! जो किसी और के लिए शक्तीशाली है -आपके लिए नहीं ...
यूँ ही कुछ - कुछ ...:))
~ 17 Oct / 2015 

शक्ति की चाहत तो हर नर को होती है ! पर शक्ति के अनुरूप आपको 'शिव' बनना होगा ! शक्ति के आने का कोई फंडा नहीं है की सिर्फ शिव को ही शक्ति मिलेगी ! जो शिव का भेष-भूसा रखेगा - शक्ती उसके पास भी चली आयेगी ! जो उपासना करेगा - शक्ति वहां भी आ जायेगी ! 
पर दिक्कत तब होती है जब शक्ति के अनुरूप 'शिव' का कद नहीं है ! शक्ति को अपने अन्दर समाहित तो कर लेंगे लेकिन शक्ति का दम घुटेगा ! जैसे ..मेरी भुजाओं में ताकत नहीं है और मुझे 'टीपू सुलतान' का भारी भरकम तलवार मिल जाए ! फिर क्या होगा ? वो तलवार कहीं से भी मेरी रक्षा नहीं कर पायेगा ! वो वरदान मेरे लिए श्राप बन जाएगा या फिर किसी के लिए भी !
अगर आपको इस संसार का अनुभव हो तो देखे होंगे - कई बार ऐसे लोग भी मिले होंगे - जिनके सर के ऊपर लक्ष्मी आयी और देखते देखते पैर से निकल गयी ! कहाँ दिक्कत रही होगी ? दिक्कत उस व्यक्तित्व के साथ है ! कई बार ऐसा भी होता है - शक्ति आयी कुछ देर रुकी और उनके रुकने के क्रम ही उस इंसान ने अपने व्यक्तित्व में विस्तार किया और शक्ति लम्बे समय के लिए रुकी रही !
ऐसे कई उदहारण आपको 'राजनीति' में मिल जायेंगे !
ये सारी बातें - शक्ति के किसी भी रूप पर लागू हो सकती है ! आप जिस रूप को शक्ति मानते हैं - वही इन बातों को लागू कर के देखिएगा !
जब शक्ति समाहित हो जाए फिर शक्ति प्रदर्शन कम से कम होना चाहिए ! शक्ति नज़र आनी चाहिए - संसार को दिखनी चाहिए लेकिन उसका प्रदर्शन नहीं होना चाहिए ! शक्ति अन्दर की दुनिया में शोभा देती है और शिव बाहर की दुनिया में होते हैं ! शक्ति प्रदर्शन में ही शक्ती 'चौखट' पार कर देती हैं - वहीँ से फिर सारी दिक्कत शुरू हो जाती है ! यहीं पर शक्ति के अनुरूप आपको शिव बनना होगा ! वरना भटकी हुई शक्ति ही आपके विनाश का कारण बन सकती है !
इसलिए शक्ति की पूजा कीजिए ! उनका आशीर्वाद लीजिये ! अपने अन्दर समाहित कीजिए ! जब तक वो साथ हैं - उनका आनंद लीजिये ! थोड़ा दुनिया को झमकायिये - थोडा दिखाईये पर खुलेआम प्रदर्शन से बचिए ! खुले मैदान में आपसे बढ़ कर भी कोई दूसरा शिव मिल सकता है ...:))
~ 18 Oct / 2015 

आज महासप्तमी है ! आज सुबह के पूजन के साथ देवी का पट खुल गया ! शाम के समय पंडाल में विहंगम दृश्य के साथ देवी के दर्शन होंगे ! अदभुत होगा वो नज़ारा ! अब देखना है - किस कुम्हार ने देवी के आँखों में सारी शक्ती प्रज्वल्लित की है ..किस पुजारी ने वातावरण को एकदम पवित्र बनाया है ..और कौन है वह नर जो देवी की आँखों से निकल रही शक्ती को पलभर में अपने अन्दर समाहित कर ले ..:) सारा खेल तो उस शक्ती के संचार का ही है ! बाकी तो ताम झाम है ! 
बात देवी के रूप और स्वरुप की हो रही है ! जैसी भावना वैसा रूप नज़र आएगा ! नारी तो एक ही है - किसी के लिए माँ है , किसी के लिए बेटी है , किसी के लिए पत्नी / प्रेमिका है तो किसी के लिए कुछ भी नहीं - महज एक खिलौना है ! सारा कुछ तो देखने के नज़र पर है ! 
तीन साल पहले इसी दुर्गा पूजा और इसी जगह मैंने लिखा था - नारी के हर एक रूप की पूजा होती है - शायद तभी देवी के निर्माण के दौरान कुम्हार एक मुठ्ठी मिटटी शहर / गाँव के नृत्यांगना से भी मांगता है ! तब मैंने लिखा था - अद्भुत है - हमारी परंपरा ! शायद देवदास सिनेमा में इसको दिखाया भी गया है ! 
अभी कुछ दिन पहले इसी विषय पर एक मित्र से बात हो रही थी - सम्पूर्ण नारी का ! उसने कहा - जब सम्पूर्ण नारी की बात करते हो - तब एक मुठ्ठी वो वाला तत्व भी होना चाहिए जो दुर्गा पूजा में नृत्यांगना के आँगन से आता है ! उस तत्व के बगैर एक सम्पूर्ण स्त्री की कल्पना कहाँ ! पर उसकी मात्रा महज एक मुठ्ठी ही होनी चाहिए , ना तो उसकी अनुपस्थिती होनी चाहिए और ना ही वो मात्र एक मुठ्ठी से ज्यादा होनी चाहिए - दोनों हाल में वो अपूर्ण है ! उसी दुर्गा के हाथों में शस्त्र भे होना चाहिए ! वही दुर्गा शेर पर सवार भी होनी चाहिए - उसी दुर्गा के हाथों महिशाशुर का वध भी होना चाहिए ! 
और वही दुर्गा शक्ती बन के शिव में समाहित होनी चाहिए ....:))

~ 19 Oct / 2015 

करीब 25-26 साल बाद , आज सुबह तड़के पटना घुमा :) मेरा भी मन था और अचानक से दो दिन पहले 'पापा' भी बोल दिए - तुम्हारी माँ थी तो हमलोग सुबह में सबको घुमाते थे - बात भावनात्मक हो गयी ! 
पापा सुबह तीन बजे ही ..रंजू ..रंजू ..शुरू हो गए ! जीवन में आज तक पढ़ाई / परीक्षा के लिए सुबह नींद नहीं खुली लेकिन आज पापा के एक आवाज़ पर नींद खुल गयी ! हम अपना भी 'चेंगा - चेंगी' को जगाने का प्रयास किये - नहीं जागा ! मॉल संस्कृति में जन्म लिए हुए को 'मेला घुमने' में क्या मन लगेगा :( 
सुबह साढ़े तीन बजे हम और पापा निकल गए ! डस्टर को फर्स्ट गेयर में डाल दिए..:)) हम दोनों बाप बेटा थोड़ा 'भकुआयील' थे ! सबसे पहले डाकबंगला - सुन्दर मूर्ती - गजब का भीड़ ! पापा का एक फोटो लिए ! फिर बेली रोड होते हुए - सगुना मोड़ / दानापुर तक ! रास्ता भर पापा से डांट सुनते हुए - गाडी चलाने नहीं आता है ..फलना ..ढेकना ! एक चक्कर बोरिंग रोड भी ! 
लौटते वक़्त पापा 'अशोक राज पथ / मछुआटोली / कालीबाड़ी के लिए 'अड़' गए ! हमको ना हंसते बन रहा था और ना ही रोते ! गाडी को उस भीड़ में - पटना के उस तरह की संकरी गली और मोहल्लों में मोड़ दिया ! 
सब जगह उनको घुमाए - बहुत बढ़िया लगा ..:)) 
अपना टीनएज दिन याद आ गया ! पापा की मारुती होती थी ! सारा खानदान लदा गया ! हॉर्न बज रहा है - मेरा जुता का फीता बंधा रहा है ..बंधा रहा है ..बंधा रहा है ! चेक बैगी ट्राउजर और पावर का कत्थई टी शर्ट ! हॉर्न बज रहा है ...मेरे जुता का फीता बंधा रहा है ...बंधा रहा है ! अचानक पापा का फरमान जारी हुआ - तुम यहीं रहो ...मेरा चेहरा ऊपर से मायूस ..और अन्दर खुशी का फव्वारा ..खुशी खुशी पुरे खानदान को उस मारुती में 'कोंचे' ! और उधर - गेट के पास ढेर सारा दोस्त मेरे इंतज़ार में - अपना अपना साईकिल पर :P 
क्या मजा आता था ...निकलते निकलते कंघी से चार बार बाल झडाया - जैसे पटना के मछुआटोली में कोई सिनेमा का डाईरेक्टर मेरा इंतज़ार कर रहा हो :) रास्ता से उस टोली में और अन्य दोस्तों को जोड़ते हुए - किसी एक दोस्त के यहाँ सभी साईकिल 'लगा' दिया गया ! सब यार एक साथ निकल पड़े ! 
सुबह का नज़ारा - एक से एक फिएट वाली सब - पीछे के गेट का सीसा आधा खुला हुआ - गमकऊआ तेल लगा के - उस जमाने में कहाँ डीओ / फीओ होता था - भर मुह पोंड्स ड्रीमफ्लावर पाउडर लगा के - झक झक गोर नार दुर्गा जी लोग :) 
एक से एक मूर्ती बनता था - नारियल का मूर्ती - अमूल स्प्रे का मूर्ती और उसका अनाऊंसमेंट - 'देखिये ..देखिये ..पहली बार 'नवदुर्गा पूजा समिति ' के तरफ से 'अमूल स्प्रे' का मूर्ती - नजदीक जा कर देखे तो पता चला - मूर्ती बना के ऊपर से अमूल स्प्रे छिट दिया है ..हा हा हा हा ! अपना टोली में - एक आध 'मुह्बक्का' टाईप लड़का का हाथ छुट गया - उ मुह्बक्का किसी का मुह ताक रहा है ..हा हा हा हा ! अब वो असल दुर्गा के फिराक में - कहीं किसी 'पूजा समिति' के वोलनटियर से दू - चार हाथ खा चुका होता था ! ऐसे मौके पर - हम दोस्त उसको पहचानने तक से इनकार कर देते थे ...हा हा हा हा ! 
धांग देते थे - पूरा पटना को ! उफ्फ्फ्फ़ ...एक आध दोस्त 'इलीट' टाईप होता था ..जो 'शास्त्रीय संगीत' कम ..अगला दिन हांकने के लिए कॉलेजीयेट स्कूल के प्रोग्राम का हिस्सा होता था ! एक रात प्रोग्राम क्या देख लेता था - अगला दिन हमलोगों को किस्सा सूना सूना के कान पका देता था ! असल दर्द तब होता था - जब उसके किस्से में 'तीन साल सीनियर से तीन साल जूनियर' तक के असल दुर्गाओं के उस प्रोग्राम में उपस्थिती की चर्चा होती थी - कलेजा फट के हाथ में आ जाता ! हा हा हा हा हा ...
वक़्त कहाँ रुकता है - अपने साथ बहुत चीज़ों को बदल देता है - तब मूर्ती देखने जाते थे - अब उस मूर्ती में जान देखने जाते हैं - अपनी आत्मा को उस मूर्ती में तलाशने जाते हैं ...:)) 
विजयादशमी की शुभकामनाएं ...:))

~ 22 Oct / 2015

@RR

Thursday, October 6, 2016

नवरात्र और मेरा अनुभव ...:))

हम लोग मूलतः एक किसान परिवार से आते हैं ! गाँव - शहर दोनों जगह रहना हुआ है ! बाबा राजनीति में सक्रीय थे ! मेरे बचपन का बहुत बड़ा हिस्सा गाँव में बिता है ! बाबा हर दोपहर नहाने के बाद दुर्गापाठ करते थे और दुर्गा को अगरबत्ती दिखाते थे ! दुर्गा का प्रथम प्रभाव वहीँ से शुरू हुआ ! दुर्गा पूजा के दौरान - कलश स्थापना होती थी , ब्राह्मण देवता आते थे ! नौ दिन पाठ और नवमी को हवन ! बस ! थोडा बहुत दशहरा के दिन मेला शेला !
मैं बारहवीं में था ! अचानक मुझे दुर्गा पाठ की सूझी ! मैंने अपने कमरे में नवरात्र के दौरान ही दुर्गा पाठ शुरू कर दिया ! सच बोलता हूँ - तीसरे दिन ऐसा लगा की जैसे मैंने अपने से बहुत ज्यादा भारी कोई तलवार उठा ली है जो मुझसे नहीं उठ रहा है ! और चौथे दिन आते आते मैंने पूजा बंद कर दी ! मेरी हिम्मत नहीं रही ! ऐसा लगा की मेरे अन्दर अब कोई शक्ति नहीं रही - कोई मेरी सारी शक्ति निचोड़ लिया है ! अफ़सोस हुआ - लेकिन मै आगे नहीं कर पाया !
फिर आगे के सालों में नवरात्र मेरे लिए कोई मायने नहीं रखा ! गाँव की परंपरा अब शहर में भी आ गयी - गाँव से ब्राह्मण देवता पटना आते और कलश स्थापना होती ! कभी मै रहता तो कभी नहीं रहता !
इसी बीच नॉएडा शिफ्ट हुआ ! और वहां की कालीवाडी मंदिर में जाने लगा ! कुछ ऐसा संयोग हुआ की जितने साल वहां गया - जिस वक़्त पहुंचा ठीक उसी वक़्त वहां आरती होते रहती थी ! उस धूप आरती के बीच साक्षात् दंडवत के बाद जब मै जमीन से उठता - मेरी नज़र उस दुर्गा प्रतिमा पर पड़ती थी - उस वक़्त मुझे उनकी ओर एक जबरदस्त खिंचाव होता ! एक जबरदस्त आकर्षण ! ना तो माँ रूप में  , ना बहन , ना बेटी और ना ही पत्नी के रूप में ! फिर बात ख़त्म और अगला साल पूजा आ जाता ! फिर से वही भावना ! 
बारहवीं में ही मुझे अपने पुरे जीवन का एक आभास हुआ की मेरा आने वाला पचास साल कैसा होगा - एकदम धुंधला आभास ! इस आभास से यह हुआ की - जीवन कई उतार चढ़ाव से गुजरा , परिवार बेचैन हुआ लेकिन मेरे अन्दर कोई बेचैनी नहीं हुई ! जीवन की बड़ी से बड़ी खाई को उस वक़्त के हिसाब से बड़े ही मैच्युरेटी से संभाला ! 
लेकिन २०१२ में कुछ ऐसा हुआ की मै अचानक से उस नवरात्र दुर्गा में तल्लीन हो गया ! ना तो कोई पूजा आती थी , ना ही कोई मंत्र और ना ही कोई तंत्र ! बहुत सोचा - सोचने के बाद यही समझ में आया की - सारा खेल मन का ही है - क्यों न मन को ही एकाग्र कर दो ! पुरे नौ दिन मन को एकाग्र कर दिया ! अब बात दूसरी आई - शक्ति के किस रूप की आराधना - वह पहले से निर्णय ले चूका था - वह था - रचनात्मक रूप ! कहते हैं - देवी बलि मांगती है ! यह बात क्लियर थी ! बारहवीं में देख चूका था ! वह एक साक्षात अनुभव था ! तब मै कमज़ोर था , नाबालिग़ था ! इस बार जबरदस्त निश्चय था ! हुआ - मेरे इर्द गिर्द उसी नवरात्र कुछ हुआ - जिसका वर्णन मैंने उस वक़्त के सबसे करीबी मित्र को बताया ! उसे मै दाल भात का कौर लगता था तो शायद उसने मेरी बातों को मेरा झूठ समझ इनकार कर दिया !
क्या खेल है - एकाग्रता का ...गजब ! नवमी आते आते खुद के चेहरे पर मोहित हो गया ! कोई पूजा पाठ नहीं किया - बस एक ख़ास जगह मन को एकाग्र कर दिया ! पूजा का प्लैटफॉर्म फेसबुक को बना दिया ! और क्रियेटिविटी इस कदर बढ़ी ...हालांकि उसके बीज पहले से मौजूद थे ...पर जैसे किसी ने उन बीजों को पानी खाद देकर पौधा बना दिया !
अगले साल फ़रवरी में माँ का देहांत हुआ ! एक बहुत बड़ा निर्णय लिया - पटना वापस लौटने का ! लोगों ने अपने अपने समझ से इसकी व्याख्या की ! मुझे अन्दर से कोई फर्क नहीं पडा !
इस साल भी दुर्गापूजा आया ! मै अपने इंदिरापुरम आवास पर - अकेले ! ना किसी से मिलना और और ना ही कोई अन्य काम ! फिर वही मन के एकाग्रता का खेल ! वही ढंग ! लेकिन इस बार दुर्गा के लिए इन्तेंसिटी बहुत बढ़ गयी ! और उसी नवरात्र मेरे मन में राजनीति में जाने का ख्याल आया - देवी की कृपा - कहीं कोई रुकावट नहीं हुई - हर एक स्टेप के बाद दरवाजा खुद ब खुद खुलने लगा ...नवरात्र ख़त्म होते ही पटना गया और विधिवत राजनीति ज्वाइन किया ! सब देवी की कृपा थी !
एक बात - इन नौ दिनों मेरे इर्द गिर्द से लेकर अन्दर तक कुछ न कुछ ऐसा होता रहा जिसके चलते मन को और एकाग्र करने की तमन्ना जागी ! उन कारकों की चर्चा नहीं कर सकता - बस समझ लीजिये - जैसे आप पूजा पर बैठे हों और असुर शक्ति आपको दिक्कत पैदा कर रही हों ! फिर नौवें दिन - जो चमक और ओजस्व चेहरे पर और वाणी में आती है - इसका वर्णन तो वही कर सकता है - जिसने देखा या सुना और बहुत समझा ! लेकिन इसका असर मैंने दूसरों पर देखा ..:))
एक गलती अगले साल हुई ! मै देवघर गया ! वह १०० किलोमीटर की यात्रा मेरे लिए अत्यंत कष्टदायक हुई ! कुछ ऐसा हुआ की पुरे रास्ता मै लगभग मानसिक रूप से व्यथित रहा ! शिव में कोई आकर्षण नज़र नहीं आया !
राजनीति को त्यागने का निर्णय लिया - श्री नितीश कुमार के साथ चार घंटे की लम्बी अकेली में वार्ता और सुनहरा अवसर - मैंने बहुत ही शांत मन से त्यागा ! मै समझ चूका था - राजनीति बहुत बड़ी शक्ति है और मै इसके भार को वहन करने को तैयार नहीं हूँ ! कुछ ऐसा ही एहसास - बारहवीं में हुआ था ! तब मैंने अपनी आधी अधूरी तपस्या किसी और को देकर - उठ गया था !
शक्ति के किसी भी रूप को उठाने के जब तक आप स्वयं में तैयार नहीं हों - नहीं उठायें वर्ना आप उस भार के निचे दब के ख़त्म हो जायेंगे ! यह बात शुरू से क्लियर थी !
पिछले साल - पटना में ही था - कलश स्थापना और नवमी ! कुछ कुछ होता रहा !
इस साल फ़रवरी में - एक मोड़ आया - पत्नी के लगातार जिद के बाद बनारस गया ! काशी विश्वनाथ के दर्शन हेतु ! पत्नी वहां काशी विश्वनाथ मंदिर गृह में - अन्दर ही अचानक से फूट फूट कर रोने लगी ! कभी इस कदर उनको रोते हुए नहीं देखा ! फिर उन्होंने रुद्राक्ष का माला ख़रीदा और पहना दिया ! होटल में मैंने पूछा - आप इस कदर क्यों रो रही थी ? उन्होंने कहा - ऐसा लगा जैसे मै अपने पिता से मिली ! शादी के ठीक पहले वो इसी काशी विश्वनाथ मंदिर में गयी थी - उस वक़्त वो मेरे दिए हुए कपड़ों में थी ! इस बार वो मेरे साथ थी ! १९ साल बाद ! इस बीच मेरे सास ससुर गुजर चुके थे !
मार्च में मैंने शिव आराधना शुरू कर दी और शक्ति के प्रति जो जिस रूप में आशक्त था - वह आकर्षण भी कम होने लगा !
मै चैत नवरात्र में पूजा नहीं करता लेकिन इस बार किसी ने कह दिया - कुछ लिखो ! मैंने लिखा ! जो समझ में आया ! तभी कुछ एह्साह हुआ ! उसी दौरान एक बहुत ही पुराना मित्र जो किसी कष्ट में था - उसने अपने कष्ट को बताया - हालाकि उसका कष्ट मुझे डेढ़ साल से पता था लेकिन नवरात्र - फिर से उसने चर्चा की और मेरे मुंह से निकला - जाओ  सब ठीक हो जाएगा ! अगले ही दिन सकरात्मक जबाब आया ! तभी यह लगा - पांच बार लगातार पूजा के बाद अब उठने का समय आ गया है !
आप किसी भी तरह की शक्ति की उपासना करते हैं ! तपस्या करते हैं ! एक दिन या नौ दिन या आजीवन ! लेकिन उस तप का फल - किसी और को देना होता है ! यह सच है ! उस तप का फल आप खुद खाने लगे उसी दिन से शक्ति  क्षीण होने लगती है ! यहीं लालच को रोकना होता है ! और इंसान यहीं फंसता है ! हो सकता है - तप का फल किसी और के लिए रखा , और मिला किसी और को ! लेकिन जिसे जो तप देना होता है - आप दे चुके होते हैं ! आपको कुछ न कुछ बलि चढ़ाना होता है ! आप खुद के लिए कभी नहीं माँगते !
इस बार नवरात्र के पहले मैंने एक महिला ज्योतिष से बात किया - खुल कर ! उसको सारी घटना बताई ! उसने कहा - दुर्गा को प्रेमिका के रूप में पूजते हो , पत्नी शिव को उन्हें पिता रूप में और क्योंकि पत्नी ने पूजा की  तो तुम भी छः महिना से शिव को पिता रूप में जप ! यह गड़बड़ झाला है - फंस जाओगे ! माँ के रूप में पूजो ! अब यह कैसे संभव की जिसे आप कभी प्रेमिका रूप में पूजे - उसे फिर से माँ रूप में ? उस ज्योतिष ने कुछ जबाब नहीं दिया  लेकिन मैं चुपके से शिव को प्रणाम कर - नवरात्र शुरू कर दिया ! गड़बड़ झाला तो चूका था ! प्रायश्चित का समय है .... :))
लेकिन ये जप और तप वाली बात क्रिस्टल क्लियर हो गयी ! बिलकुल गंगोत्री की तरह साफ़ !
अगर आप इसे व्यापक तौर पर सोचें तो - आपके किसी भी तरह के जप / तप का फल जब तक दूसरों को नहीं मिले - वह आराधना सफल नहीं होती ! वह विज्ञान हो , कला हो , राजनीति हो - कहीं भी !
एक बात और समझ में आई - शक्ति आती है और शक्ति जाती है ! रूप बदलते रहती है ! उदाहरण के लिए - बचपन में आपकी मासूमियत ही आपकी शक्ति होती है , मासूमियत खोते हैं तब जवानी आती है और जब जवानी जाती है तब आप एक अलग शक्ति को समझते हैं ! यह क्रम है ! इसको समझना जरुरी है !
जीवन में एक ख़ास समय आता है - जब आपकी तमन्ना होती है - बाहरी दुनिया से अन्दर की दुनिया में जाते हैं फिर आप अन्दर की दुनिया से बाहर की दुनिया में आते हैं - हर तरह के अनुभव के साथ ...:)) मूलतः जीवन का सबसे बड़ी पूंजी यह अनुभव ही है !
लेकिन यह पूरा खेल - मन की एकाग्रता का ही है - जैसे आप एकाग्र होकर परीक्षा में बैठते हैं ....ख़ुशी तब होती है ...जितना सोचा उससे ज्यादा प्रश्न आपने हल किये ...तीन घंटा बिना सर उठाये ! असल तसल्ली वहीँ हैं ! रिजल्ट बहुत मायने नहीं रखता ...
यह पांचवीं बार शारदीय नवरात्र है ...देवी के उस रूप को प्रणाम ...जिस रूप की आराधना मैंने की थी !
विशेष अगले किस्तों में ..:))



@RR

Wednesday, October 5, 2016

नवरात्र - 2012


देवताओं का भी अजीब हाल है :( महिषासुर के एकाग्र ध्यान से प्रसन्न होकर उसको वरदान दे दिए ...फिर सभी देवताओं को हेडेक होने लगा ..मालूम नहीं ई महिषासुर इतनी शक्ती से क्या क्या न कर बैठे ...फिर 'देवी' की पुकार ...खुद क्यों नहीं आगे आये ...देवता हो ...इंसान की तरह वर्ताव क्यों ? इंसान और राक्षस में जब पहचान ही नहीं ...फिर देवता किस बात के ? जब तुम बुरे समय में ...तुम देवता होकर भी ...देवी के पास गए ...फिर हम जब तुमको बाईपास कर के ...देवी को पुकारें ...इतनी कष्ट क्यों ? हम भी तो देवता बन सकते हैं ...
~ इंसान

आज नवरात्र के छठे दिन 'माँ कात्यायनी' की पूजा होती है ! कहते हैं - माँ अपने पिता के घर जन्म लेने के बाद ..पति की गोत्र को न अपना कर अपने पिता की गोत्र को अपनाया - संभवतः यह 'पिता पुत्री' के बीच के उस भावुक सम्बन्ध को दर्शाता है - जिसे सिर्फ एक पिता और पुत्री ही समझ सकते हैं ! 
आप हिन्दू धर्म की कथाओं को पढ़ें - तब भी एक समाज होता था - ऋषी - मुनि / राजा / देव / असुर ....कहीं न कहीं ..कई कथाओं में ...एक पिता भी होता था ...लाचार ..मूक ! मैंने बहुत पहले लिखा भी था ...जब 'सीता' की अग्नी परीक्षा हो रही होगी ...तब अगर जनक जिन्दा होंगे ..उनपर क्या गुज़री होगी ..मौन ..मूक ..लाचार ! 
ऋषि खरे ने तीन चार दिन पहले दालान पर एक कमेन्ट किया - 'लक्ष्मी / सरस्वती / दुर्गा' तीनो के रूप को देखना चाहते हैं - एक पुत्री को सर्वगुण संपन्न बना दीजिये - सारे रूप वहीँ मिल जायेंगे !

हिन्दू माइथोलोजी विचित्र है - कोई भी भक्ती से शक्ती पा सकता है - फिर क्या ? फिर महिषासुर ..रावण ..लड़िये ... लड़ाई ..जब तक की वो एक कहानी ना बन जाए ! समुद्र मंथन में जो मिला ...देवता और दानव दोनों आपस में बाँट लिए - इंसान रह गया बीच में ....उसके अन्दर दोनों समा गए ..फंस गया इंसान ! इंसान देवता बनने की चाह पैदा करे तो उसके अन्दर का दानव अपनी शक्ती दिखा देता है ...अवकात में रहो ..देवता मत बनो ! दानव बनता है ..तो देवता उसकी शक्ती छीन लेते हैं ...इसी लड़ाई में ...एक दिन इंसान दम तोड़ ...कुल मिलाकर ...सार यही है ...जब आपको शक्ती मिले ..उसको इज्ज़त देना सीखिए ...जुबां से नहीं ...मन से ..श्रद्धा से ..वर्ना जिस गति से शक्ती आयी ...उसी गति से वापस ..
और ..शक्ती स्त्रीलिंग शब्द है ...!!!! 
और....शक्ती शिव के इर्द गिर्द घुमती हैं ...अबोध ..जिसे शक्ती का एहसास भी नहीं .... :))) 
है ..न ..विचित्र ...:))

19 Oct 2012 

आज नवरात्र के छठे दिन 'माँ कात्यायनी' की पूजा होती है ! कहते हैं - माँ अपने पिता के घर जन्म लेने के बाद ..पति की गोत्र को न अपना कर अपने पिता की गोत्र को अपनाया - संभवतः यह 'पिता पुत्री' के बीच के उस भावुक सम्बन्ध को दर्शाता है - जिसे सिर्फ एक पिता और पुत्री ही समझ सकते हैं ! 
आप हिन्दू धर्म की कथाओं को पढ़ें - तब भी एक समाज होता था - ऋषी - मुनि / राजा / देव / असुर ....कहीं न कहीं ..कई कथाओं में ...एक पिता भी होता था ...लाचार ..मूक ! मैंने बहुत पहले लिखा भी था ...जब 'सीता' की अग्नी परीक्षा हो रही होगी ...तब अगर जनक जिन्दा होंगे ..उनपर क्या गुज़री होगी ..मौन ..मूक ..लाचार ! 
ऋषि खरे ने तीन चार दिन पहले दालान पर एक कमेन्ट किया - 'लक्ष्मी / सरस्वती / दुर्गा' तीनो के रूप को देखना चाहते हैं - एक पुत्री को सर्वगुण संपन्न बना दीजिये - सारे रूप वहीँ मिल जायेंगे !

20 Oct 2012 

आज महासप्तमी ....देवी का पट खुलेगा या खुल गया होगा !
विराट ! 
मनोरम ! 
श्रद्धा ! 
विशाल !
जैसे इस रूप का ही इंतज़ार था ! देखते ही ..खुशी से मन ...कोई भय नहीं ...आँखें ऐसी जहाँ आप क्षण मात्र भी ठहर नहीं सकते ! विशाल रूप ....जैसे सभी देव स्तुति में लग गए ...धुप की खुशबू से पूरा पंडाल भर गया होगा ...आरती के वक्त ...श्रद्धा से पुरे शरीर में सिहरन ! देवी को साष्टांग दंडवत ! 
"शक्ती का पट तो खुल गया ...पर इनका ये विशाल रूप में स्वागत कौन करेगा ...किसकी हिम्मत जो इनके पास जाए ...इन्ही का कोई रूप जायेगा ...माताएं ..बहने ..बेटियाँ ..निकल गयी होंगी ...देवी के स्वागत में ..उस भव्य रूप के स्वागत में " - हम तो बस दूर से ..उस रूप में मंत्रमुग्ध ...
धन्य हो वो कुम्हार ...जिसने महालया के दिन ही देवी की आँखों में रंग भर दिया ...इस भव्यता ..इस रूप ..की खुशबू ..कहाँ से आई ..पूछिये उस कुम्हार से ..जिसने 'जहाँ' से मिटटी लायी ....
देवी को पुजिये ....किसी भी रूप में ....वो निर्मल है !

21 Oct 2012 


आज महाष्टमी है ! महागौरी का दिन ! महामाया के रूप में ! गौर वर्ण ! शांत चित ! अबोध बालिका के रूप में ! कहते हैं नारी जब इस रूप में आ जाए फिर वो पूज्यनीय हो जाती हैं ! तभी आज के दिन 'कुमार कन्या' ( कुंवारी ) को पूजा जाता है ! इस रूप को / इस कुमार कन्या को नर सबसे ऊँचा मानता है ! 
एक छोटा सा उदहारण देता हूँ - हिन्दू धर्म के अनुसार - आप अपने से ऊँचे / सर्वश्रेष्ठ को अपने दाहिने तरफ बैठाते हैं - सिंदूरदान के पहले.. 'कन्या' को दाहिने तरफ बैठाया जाता है - क्योंकी उसका स्थान वर से ऊँचा है ! सिंदूरदान के बाद ...दाहिने तरफ से बाएं ! 
धर्म कोई डर नहीं है - यह जीवन जीने का एक फिलोसोफी है - सभी धर्म लगभग एक जैसा ही आचरण बताते है - हाँ , एक सुपर शक्ती तो जरुर है ...कहीं न कहीं ! मानव ...जिद पर अड़ा...तुम कौन हो ..कहाँ हो ..इसी खोज में वो कोई भी धर्म को श्रद्धा से अपनाकर ..उस सुपर शक्ती की तलाश करता है ! 
बहुत कुछ है ...समझने को ...लिखने को ....और इस नवरात्र से बढ़िया अवसर क्या हो सकता है .. :)) महामाया की तलाश कीजिए ..कहीं मिल जाएँ तो मंत्रमुग्ध हो जाईये ...पूज्यनीय बना लीजिये ..अपने अन्दर के असुर को दबा के रखिये ..वर्ना ..महिषासुरवर्दिनी रूप में ...देवी को आने में ..ज्यादा समय नहीं लगेगा :))

22 Oct 2012 


महानवमी !! सिद्धिदात्री !! 
तीनो लोक देवी की अराधना में - क्या शिव , क्या ऋषि , क्या मानव ...सभी के सभी ! नौ दिन की भक्ती और देवी के सभी रूप की आराधना के बाद ...जैसे आज की शुभ घड़ी का इंतज़ार ! 
संसार 'शक्ती' को ही पूजता आया है - हजारो साल से चली आ रही इस व्यवस्था को हम और आप यूँ ही नहीं तोड़ सकते - देव तभी तक देव हैं जब तक उनके पास शक्ती है - अगर शक्ती न हो - क्या आप और हम उनको पूजेंगे ? :)) 
आज शाम 'दुर्गा पंडाल' जाईयेगा - आज की रात आपको बाकी सभी रातों से अलग नज़र आएगा - जैसे देवी की महिमा / उनका रूप / उनका आशीर्वाद / उनकी शक्ती - सबसे अलग - यह कहने की बात नहीं है - खुद महसूस करने की बात है ! 
देवी पूजन कोई नया नहीं है - हमारे घर घर में - कुलदेवी होती हैं - मिटटी से लेकर स्वर्ण रूप - जिस परिवार की जितनी शक्ती / भक्ती ! पर ..एक बात है ...कुलदेवी का कोई रूप नहीं होता ..जहाँ तक मैंने गौर किया है और वो सिर्फ परिवार तक ही सिमित होती हैं - और उस कुलदेवी से बढ़कर कोई और नहीं होता ! 
प्रणाम !

23 Oct 2012 

आज देवी की विदाई है - यह शब्द अपने आप में अश्रु से भींगा है - परंपरा है - विदाई तो होनी ही है ! इसपर कुछ भी विशेष लिखने की हस्ती मेरी नहीं है !
अब चलिए - 'रामायण' का रिविजन कर लिया जाए :- 
१. प्रेम : रामायण में लिखा है - राम ने सीता के स्वयंवर में जनक के धनुष को तोड़ा - मामूली बात है - प्रेम में डूबा / अँधा / जागा प्रेमी चाँद तारे तक तोड़ लाता है - धनुष तोड़ना तो बहुत छोटा काम था ! दरअसल सच्चे प्रेम में इतनी शक्ती होती है की वो कुछ भी करवा दे ! 
२. दुष्ट : रावण बहुत बड़ा ज्ञानी - प्रकांड विद्वान - शिव भक्त - पर संस्कार लेस मात्र भी नहीं - अगर आप थोडा डीटेल में पढेंगे तो पाएंगे की सिर्फ सीता के साथ ही नहीं उनके पूर्व जन्म एवं अन्य नारीओं के साथ उसने ऐसा ही व्यवहार किया था - दरअसल अहंकार / घमंड व्यक्ती को अँधा बना देता है और सम्पूर्ण विश्व उसे 'भोग' नज़र आने लगता है - लेकिन लेकिन और लेकिन ..एक छल उसके मौत का कारन - सब ठीक ..पर सोचिये ..इतना बड़ा ज्ञानी ..एक छल के कारण ..हिन्दू धर्म में जन्मा कोई भी व्यक्ती - अपने जन्म से ही रावण को विलेन के रूप में देखता है - इससे बड़ी सजा किसी प्रचंड ज्ञानी के लिए क्या हो सकती है :( 
३. नारी ह्रदय : कोमल ह्रदय और जिद - जब देवर मना कर के गए - रेखा खिंच दिए - फिर 'एक्सपेरिमेंट' क्यों ? इसका लोजिक कोई नारी ही दे सकती है - हमारे आपके वश में नहीं है - बेहतर है - पुरुष धर्म अपनाईये - रावण कहीं मिले उसे मार डालिए ! सीता से मत पूछिये - तुने लक्ष्मण रेखा क्यों पार किया ! 
४. सीता अग्नी परीक्षा : राम का दरबार - दोनों तरफ से तर्क वितर्क - प्रजा और सीता दोनों के वकील अपने अपने दलील - राम कुर्सी पर ! सीता को वो अग्नी परीक्षा से रोक भी सकते थे - पर 'करियर' का बात था - रिलेशनशिप गया तेल लेने - राजा का धर्म पहले - पति का बाद में ! आज भी यही होता है ! 
५. अश्वमेघ : कहते हैं - लव कुश ने अपने पिता राम के अश्वमेघ को रोक दिया ! बहुत सिंपल लॉजिक है - कोई भी पुत्र / पुत्री यह नहीं बर्दास्त करेगा की - बाप राजा बना रहे और माँ जंगल जंगल भटके - उस गुस्से में कोई भी साधारण पुत्र भी अश्वमेघ को रोक सकता है ! याद रखिये - जब आप घर में अपनी पत्नी पर गुस्सा कर रहे हैं - घर में चुप चाप बैठा पुत्र / पुत्री सारे बातों को सुन समझ ..आपके लिए एक जबरदस्त नफरत पैदा कर रहा है ..हो सकता है ..लोक लिहाज में ..वो आपसे बदला नहीं ले ...पर ...किसी दिन मौका मिला ..आपके अस्वमेघ को वो रोक देगा ..आपका ही खून ..आपको अवकात दिखा देगा :)) 
हैप्पी दशहरा !
24 Oct 2012 


@RR