Monday, September 26, 2016

सच का सामना - भाग सात

सच का सामना - भाग सात 
बात वर्षों पुरानी है । अपने विवाह के तुरंत बाद हनिमून पर नहीं गया था - सास ने वीटो लगा दिया , कहीं लड़का किसी पहाड़ से उनकी नाजूक बेटी को ठेल न दे 😐 
एक महीने बाद घूमने गए । एक शहर में एक बेहतरीन रेस्तराँ में डिनर कर रहे थे । पत्नी बेहतरीन सिल्क साड़ी में । हम भी चमक रहे थे । डिनर कर के जैसे ही रेस्तराँ से निकले - एक परिचित परिवार मिला । वहाँ एक परिचित चेहरा भी । हम ख़ुश होकर उनके टेबल के पास गए और सबसे अपनी पत्नी का परिचय करवाने लगे । 
वहाँ भूतों न भविष्यति टाइप एक अत्यंत ही ख़ूबसूरत कम्प्यूटर इंजीनियरिंग टॉपर लड़की बैठी थी , जिनसे पूर्व में महज़ दो बार मेरी बात हुई थी , हेमामलिनी की ख़ूबसूरती और भाग्यश्री की आवाज़ । पिता डॉक्टर , बाबा डॉक्टर , चाचा डॉक्टर , फुआ डॉक्टर । अपने शहर में पूरी गली का सारा प्लॉट उसके परिवार के नाम । ख़ूबसूरत भी अत्यंत । बस कह दिया ...हेमामालिनी ...:)) 
अब देखिए । वो लड़की अचानक से अपने टेबल से बाहर की तरफ़ रोते हुए निकली । हम कुछ समझते की मेरी पत्नी और ज़ोर से अपना हाथ मेरी कमर पर । इन दोनो महिलाओं की उस वक़्त की अभिव्यक्ति मुझे समझ में नहीं आयी । 
हम भी रेस्तराँ से बाहर हो गए । लेकिन उसका रोते हुए बाहर जाना - मेरे मन को पोक कर दिया । पत्नी ने एक सवाल मुझसे नहीं पूछा । अगर ऐसा ही कुछ मेरी पत्नी के साथ होता तो - हम उनका जीना हराम कर देते , कौन था - कहाँ का था - कब से जानता है , इत्यादि इत्यादि ...लेकिन मेरी पत्नी ने एक सवाल नहीं पूछा । कुछ महीनो बाद , मैंने पत्नी से पूछा तुमने कोई सवाल या हंगामा क्यों नहीं किया और उस वक़्त बड़े ज़ोर से ढीठ की तरह मुझे क्यों पकड़ ली ? पत्नी मुस्कुरा दी और बोली - यह दो औरत के बीच का संवाद था । हम माथा ठोक लिए - बियाह हुआ नहीं कि सिनेमा 'अर्थ' चालू 😳 
 समाज में इंटरनेट आया । मरद जात - कूकुर - सबसे पहले उस मोहतरमा का ईमेल खोजे और धड़ाम से एक ईमेल ठोक दिए । जबाब आने लगा । एक साल । बीच में हमको बेटा हुआ - नाम क्या रखा जाए , यह सलाह उनके तरफ़ से आया 😬😝 एकदम सात्विक दोस्ती । सिर्फ़ होटमेल पर । तब आर्ची कार्ड का ज़माना - न्यू ईयर पर , एक नहीं पूरा पाँच हज़ार का भेज दिए , अपनी पत्नी के हस्ताक्षर के साथ । 
एक साल बाद - हमको बर्दाश्त नहीं हुआ - हम पूछ दिए - आप उस रेस्तराँ में रोते हुए क्यों बाहर गयी ? ऐसा कुछ था तो पहले ही बोलना था - आपका ही माँग टीक़ देते 😝 हालाँकि मैंने महज़ मज़ाक़ किया था । 
ये क्या हुआ  ...मेरी ये बात उनके तथाकथित सेल्फ़ स्टीम को चोट पहुँचा गयी । ईमेल बंद । 
इस सच्ची घटना का कोई विश्लेषण नहीं कर रहा । लेकिन पोक उधर से ही हुआ था । मरद जात के सामने कोई औरत रो दे - उसके बाद यही सब होता है 😐 
वो एक कम्प्यूटर इंजीनियर होते हुए भी किसी भी सोशल मीडिया पर नहीं हैं । लेकिन यह पूरा सच नहीं था - शायद एक ज़बरदस्त म्यूचूअल क़्रश रहा हो । आदततन मैंने कभी उनका पीछा नहीं किया था लेकिन उनके रोने वाली घटना के बाद - मैं उनके मुँह से सच सुनना चाहता था । जीत उनकी हुई - उनकी ज़ुबान बंद ही रही लेकिन जब कभी आमना सामना होता था उनकी आँखें बहुत कुछ कह जाती थी । शायद उन्होंने वो क़र्ज़ लौटा दिया - जब मेरी आँखें उनको संदेश देती और उनकी ज़ुबान मुस्कुरा देती , सबसे छुपा कर - सबसे बचा कर । 
पर मेरा एक सवाल - आजीवन वाली दोस्ती तोड़ दी । मैं भी लाचार था - सवाल नहीं पूछता तो बेचैन रहता और पूछ दिया तो सम्बंध ख़त्म । 
अँतोगत्वा ...हम ख़ुद के दिल के लिए जीते हैं - कई बग़ैर जवाबों वाले सवाल के साथ ...पर सवाल बेचैन करते हैं - और इंसान उन सवालों के जबाब में कई हदें पार कर बैठता है ! 
हर रिश्ते का एक पडाव होता है या उसकी एक आयु होती है - जो उनमे से कोई एक तय करता है ! दिक्कत तब होती है - जब सामने वाला अपने उस हमसफ़र का हाथ पकड़ एक अन्धकार में चलता है और अचानक पता चलता है की - हाथ तो छुटा ही साथ में वो रिश्ता भी पल भर में मर गया ! पर वो रिश्ता अपनी आयु पूर्ण कर के मरा है  , बस यह बात किसी एक को पता होती है ! 

और कई बार रिश्तों का गर्भपात भी हो जाता है ...जिसे हमारा संकोच , लिहाज , भय , अहंकार , चीटिंग - इनमे से कोई गर्भपात करवा देते हैं ...यूँ कहिये तो हर रिश्ते का गर्भपात ही होता है ...कोई भी रिश्ता पूर्ण नहीं है ...अगर नहीं हुआ तो ...वक़्त उस रिश्ते को अपंग बना देता है ...कई बार भावनात्मक डोरी कमज़ोर हुई तो ...मर्सी किलिंग ...
कभी किसी रिश्ते का मर्सी किलिंग देखा है ...? धीरे धीरे मर रहे रिश्ते को अचानक से मार देना ...ताकि बाकी के लोग शान्ति से रह सकें ...आईसीयु में भर्ती रिश्ते का ...एक झटके में ...ओक्सीजन पाईप खिंच देना ...और चुपके से बाहर निकल जाना ....:)) ऐसा भी होता है ...और वो भी इंसान ही करता है ....कभी हम तो कभी सामने वाला ...

सॉरी ...एक गरिमा के साथ लिखने की कोशिश की है ...पत्नी खुद के लिए नहीं बल्कि आपके लिए ज्यादा चिंचित हैं ...पत्नी का आपके लिए चिंता ...फिर से मुझे कन्फ्यूज कर दिया ...महिलायें सोचती कैसे हैं ...:)) 

Tuesday, September 13, 2016

सच का सामना - भाग पांच और छः

बात वर्षों पुरानी है ! मै पटना में अपने कंप्यूटर सेंटर में बैठा था ! एक सुबह  एक सज्जन आये ! सफ़ेद कुरता और पायजामा में ! मुझसे उम्र में पांच - छः साल बड़े ! मैंने हेलो कह उन्हें अपने केबिन में बैठाया ! उन्होंने कहा - मै शिपिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया में हूँ ! छुट्टी में अपने ससुराल आया हूँ  सोचा कंप्यूटर क्यों न सिख लिया जाए ! और भी बात हुई और बातों बातों में पता चला की उनका ससुराल मुझसे पूर्व परिचित है ! अगले दिन वो पति - पत्नी दोनों साथ आये ! बेहद स्मार्ट !
गप्पी हूँ ! फुर्सत में उनके साथ देश दुनिया की खबर पर चर्चा होने लगी ! बातों बातों में पता चला की वो भी मुजफ्फरपुर के रहने वाले हैं ! फिर मैंने अचानक से बोला - कहीं आप वो तो नहीं ................! वो सर झुका के बोले - हाँ , मै उसी परिवार से हूँ ! मैंने पूछा - क्या हुआ था , सच जानना है ! वो बोले - अगले इतवार फुर्सत में सब बताऊँगा !
" भैया इंजिनियर बना तो टाटा स्टील में नौकरी हुआ - शहर के सभी नामी लोग शादी के लिए आने लगे - जितने भी लोग आये - उसमे सबसे खुबसूरत मेरी भाभी थी - गोल्ड मेडलिस्ट और नामी डॉक्टर की बेटी ! भैया मुझसे भी हैंडसम था ! ऐसी जोड़ी कहीं नहीं देखी ! भईया का ससुराल भी शहर में ! तब मै नेतरहाट से टॉप करके - पटना के सायंस कॉलेज में था ! भैया , टाटा से आता जाता रहा ! भाभी कभी हमारे घर तो कभी अपने मायके तो कभी टाटा ! और एक दोपहर भाभी ने हमारे मुजफ्फरपुर आवास पर अपनी जिंदगी समाप्त कर ली ! दहेज़ कानून में भैया , माँ और पापा सभी जेल चले गए ! मै और छोटा भाई बच गए ! जग हंसाई अलग - बेहद खुश मिजाज भाभी का जाना अलग , पूरा परिवार जेल में ! भाभी के पिता जी और समाज हमारे परिवार के पीछे ! मै सायंस कॉलेज होस्टल में पढता रहा - उस हालात में भी आई आई टी और टी एस राजेंद्र दोनों जगह क्लियर किया ! लोगों ने कहा शिपिंग में जाओगे - जल्द पैसा मिलेगा - तभी परिवार को सहारा ! छोटे भाई का पढ़ाई डिस्टर्ब हो गया ! भईया हिम्मत नहीं हारा - जेल में रहकर भी वो गेट ( एम टेक प्रवेश परीक्षा ) में टॉप किया ! मै जल्द नौकरी में जाकर पैसा कमाने लगा ! इसी बीच पांच छ साल गुजर गए - सभी जेल में ! फिर किसी तरह कोर्ट कचहरी हुआ और अंत में पूरा परिवार बरी हुआ ! "
अब सवाल उठता है - हुआ क्या था ? उनकी भाभी ने आत्महत्या क्यों की - वो भी शादी के दो वर्षों बाद ? मै दिवंगत आत्मा पर कोई आरोप नहीं लगा रहा - जो परिवार वर्षों जेल में रहा - उसने भी उनकी इज्जत को बरक़रार रखा !
अक्सर खुबसूरत लड़किया - जवान होते ही - जिस किसी ने अप्रोच कर दिया - वो उसके साथ निभाती हैं - जबतक की परिवार वाले कहीं और शादी का न बोले ! लड़कियां प्रेम और शादी दोनों मामले में अलग ढंग से सोचती हैं - प्रेम एक लोफर सड़क छाप से भी हो सकता है पर शादी हमेशा सुरक्षित भविष्य को देख वो करती हैं ! कुछ ऐसा ही केस था ! संभवतः प्रेमी एक सड़क छाप था जिसके हाथ एक हीरा लग गया था ! हीरा हाथ से फिसल गया - वो बेचैन होकर लड़की की शादी के बाद तक उसका पीछा करता रहा ! अक्सर उसकी गली से गुजर जाता ! लड़की की नज़र पड़ी तो वो बेचैन ! और इसी बेचैनी में जब ग्लानी / गिल्ट हुई - घर अकेला - आत्महत्या का रूप ले लिया जिसमे एक परिवार झूलुस गया ! लड़का गीत गाता था - गली से गुजरते वक़्त वही तान छेड़ देता , जो लड़की माँ पसंदीदा ! उसने भी ख्वाब सजाये थे - बड़े घर की लड़की से बियाह और ऐशोआराम की ज़िन्दगी ! उसके सपने टूटे - उसने लड़की की लीला ही ख़त्म कर दी !
पुरुष ऐसे धोखे को 'कुंठा' में परिवर्तित कर देते हैं ! पुरुषों की कुंठा को एक दूसरा पुरुष ही समझ सकता है ! पुरुषों की कुंठा को समझ पाना - यह महिलाओं का वश नहीं ! छल उसी कुंठा का बाहरी रूप होता है ! मजबूरी और धोखा में अंतर होता है ! लड़की को एक दिन समाज को भी मुंह दिखाना है - अगर आप सक्षम नहीं है - प्रेम तो यही कहता है - चुपके से अपने प्रेम की सलामती का दुआ करते हुए - बाहर निकल जाईये ! पर ऐसा होता नहीं है ! ऐसे सम्बन्ध विच्छेद कहीं से धोखा नहीं है - यह एक सामाजिक मजबूरी है ! क्या वही इंसान अपने पचास के उम्र में - अपनी बेटी का वैसा सम्बन्ध स्वीकार करेगा ? कतई नहीं !

सच का सामना - भाग छः
अभी तीन साल पहले एक डॉक्टर मित्र ने एक सच्ची कहानी बताई ! बिहार के एक मेडिकल कॉलेज में - एक लड़का और एक लड़की पढ़ते थे ! दोनों हसीन और जवान ! लड़की कुछ ज्यादा ही सुन्दर थी ! पिता भी नामी डॉक्टर ! पर दोनों की शादी नहीं हुई ! लड़की की शादी दक्षिण भारत में पदस्थापित एक सिविल सर्वेंट से हुई ! प्रेमी शहर छोड़ विदेश चला गया ! लड़की अपने पति के साथ अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त ! बच्चे हुए ! बच्चे बड़े हुए ! इंटरनेट आया ! उस महिला को इंटरनेट पर पूर्व प्रेमी मिला ! 'हेलो ...ढक्कन ..कैसे हो' ! मस्त हूँ ! बीवी बच्चों का फोटो दिखाओ ! मैंने अभी तक शादी नहीं की ! महिला यह सुन ग्लानी / गिल्ट में चली गयीं ! अब रात दिन प्रेमी से बात का मन ! महिला डॉक्टर ने ठान ली ! वो एक ट्रेनिंग के बहाने विदेश गयीं ! वहां दोनों मिले ! यहाँ भारत में पति अपने बच्चे को संभालते हुए - अब पत्नी लौटेगी तो अब लौटेगी ! पत्नी नहीं लौटी ! बारहवीं के बच्चों की माँ नहीं लौटी ! विदेश में दोनों पूर्व प्रेमी पति पत्नी की तरह रहने लगे ! अब वादा निभाना था - मंगलसूत्र पहनना था ! छ महिना - एक साल हो चुके थे ! महिला को वहीँ नौकरी भी मिल गयी थी ! एक दिन अचानक वो प्रेमी महोदय गायब हो गए ! कुछ दिनों बाद पता चला - वो भारत लौट कहीं और भतीजी उम्र की लड़की से विवाह कर लिए !
और वो महिला डॉक्टर ? अपना मायके छोड़ दिया ! पति छुट गया ! बच्चे घृणा करने लगे ! पर वक़्त और फाइनेंसियल इंडीपेनड़ेंसी गजब की चीज़ होती है ! बड़े से बड़े जख्म को भर देती है ! मैं उस महिला का तस्वीर इंटरनेट पर देखा - चेहरे पर कोई ग्लानी नहीं थी - भले रातों को नींद नहीं आती होगी !
अब सवाल उठता है - वह इंसान इतने दिनों तक शादी क्यों नहीं किया ? क्या वह अपनी प्रेमिका का इंतज़ार कर रहा था ? शायद नहीं ! उसके पुरुष अहंकार को चोट लगी थी ! वह उस अहंकार को पाल पोश कर बड़ा किया - वक़्त ने भी उसके अहंकार को मदद किया ! जिस दिन उसके पुरुष अहंकार को शान्ति मिली - वह निकल पडा !
अजीब होता है - यह पुरुष अहंकार जो कुंठा में परिवर्तित हो जाता है ! बहुत करीब से देखने पर यह नज़र आता है ! बड़े से बड़े राजनेता और व्यापारी इसके रोगी होते हैं ! मैंने देखा है ! यही पुरुष अहंकार उन्हें चोटी तक ले जाता है ! पर यही कुंठा उनसे ऐसे घिनौने काम भी करवाता है !
प्रेम हर हाल में अपने प्रेम की सलामती चाहता है ! प्रेम कभी बदला ले ही नहीं सकता ! प्रेम कभी बदनाम नहीं कर सकता क्योंकि प्रेम में इतना ताकत होता है की वह कैसा भी दर्द बर्दास्त कर लेता है ! प्रसव पीड़ा कैसे कोई बर्दास्त कर लेता है - वह एक माँ का प्रेम होता है ...:))
प्रेम कीजिए ....लेकिन किसी के अहंकार और अहंकार से परिवर्तित कुंठा से बचिए ! ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा :))

@RR

Sunday, September 11, 2016

दो दुनिया - भाग दो

ईश्वर / प्रकृति जब इंसान का सृजन करती है - उसे दो हाथ , दो पैर , दो आँख इत्यादि के साथ इस धरती पर भेजती है ! लाख में किसी एक इंसान को ईश्वर दिव्यांग / विकलांग बना कर भेजता है ! लेकिन सभी इंसान एक जैसे ही होते हैं ! उसी में कोई लम्बा , कोई मोटा तो कोई दुबला ! 
यह तो है शारीरिक दुनिया जिसे हम बाहर की दुनिया कह सकते हैं ! ठीक इसी तरह हर एक इंसान की एक अन्दर की दुनिया होती है - जिसे हम मन या स्वभाव या उस इंसान की प्रकृति कह सकते हैं ! मैंने अपने इस उम्र तक यही पाया है की - स्वभाव के जितने गुण या अवगुण होते हैं - लगभग सभी गुण या अवगुण हर एक इंसान के अन्दर होता है ! हर एक इंसान के अन्दर प्रेम , छल , लालच , क्रोध , वासना , त्याग , भोग इत्यादि जितने भी गुण या अवगुण संसार में होते हैं - सभी के सभी एक इंसान के अन्दर होता है ! 
लेकिन दिक्कत तब होती है जब इन गुणों या अवगुणों के मिश्रण का अनुपात ज़माना या स्थान के हिसाब से  गड़बड़ा जाए ! उदहारण के लिए आपके कान जरुरत से ज्यादा बड़े हो जाएँ फिर आप भद्दे दिखेंगे और अगर कान नहीं हो तो भी आप अजीब दिखेंगे !
वैसा ही कुछ अन्दर की दुनिया या स्वभाव के साथ भी होता है ! आपके अन्दर क्रोध न हो - कई बार सामने वाले को बढ़िया लगेगा लेकिन कई बार आपके साथ वाले या आप स्वयं मुश्किल में फंस जायेंगे ! आपको सीमा पर लडाई लड़नी है और आपके अन्दर क्रोध नहीं पनप रहा - आप लड़ाई हार जायेंगे !
ठीक उसी तरह आपके अन्दर प्रेम नहीं है - या बहुत ज्यादा है - दोनों में मुश्किल है ! अगर नहीं है तो कोई करीब नहीं आएगा और अगर बहुत ज्यादा है तो वह छल का रूप ले लेगा क्योंकि ये सभी गुण या अवगुण बहुत एक्सक्लुसीव होते हैं - प्रेम हर किसी पर वर्षाने का चीज नहीं है ! क्रोध हर किसी को दिखाने का नहीं है - फिर आपके क्रोध का कोई महत्व ही नहीं देगा - आपका प्रेम किसी को सुख नहीं दे पायेगा !
आप खाना हाथ से ही खायेंगे - पैर से खायेंगे तो अजीब लगेगा ! जिसे आपको देखना है उसे आप सुन कर कोई निर्णय नहीं ले सकते ! कहाँ कान का महत्व है और कहाँ आँख का - यह समझना होगा  !
वासना को लेकर समाज हमेशा नकरात्मक रहा है लेकिन क्या हम वैसे लडके या लड़की से अपनी बेटी / बेटी की शादी कर सकते हैं जो बिलकुल वासनाविहीन हो ? कतई नहीं ! लेकिन यही वासना अनुपात से ज्यादा हो जाए फिर खुद को भी दिक्कत और समाज को भी दिक्कत !
समाज कहीं से भी किसी गुण या अवगुण को नकारता नहीं है बल्कि उन्हें नियंत्रण में रख सही जगह और सही समय पर - सही अनुपात में दिखाने या उपयोग करने को कहता है !
भय गुण है या अवगुण - कहना मुश्किल है ! भयमुक्त इंसान क्या क्या गलती कर बैठे - कहना मुश्किल है ! और भययुक्त इंसान के लिए एक कदम भी आगे बढ़ना मुश्किल है !
पूरी ज़िन्दगी इसी को सीखना है - कब और कैसे और किस अनुपात में हम अपने गुण या अवगुण का फायदा ना सिर्फ खुद के लिए या बल्कि परिवार और समाज के लिए उठायें ! जैसे हमें बचपन से ही प्रकृति / परिवार / समाज हमारे अंगों के सही इस्तेमाल को बताता है लेकिन कोई परिवार या समाज हमें अपने स्वभाव के गुण या अवगुण के इस्तेमाल को नहीं बताता है - कई बार हमें खुद के ज़िन्दगी से मिले फायदे या ठोकर से सीखना पड़ता है - कई बार सीखते सिखते देर हो जाती है तो कई बार बहुत जल्द आँखें खुल जाती है !
इस सामाजिक दुनिया में सबसे ज्यादा गाली 'अहंकार' को मिलती है क्योंकि इस अहंकार पर रिश्ते को बर्बाद करने का इलज़ाम लगता है ! लेकिन आप सभी लोग मुझे यह बताएं की - क्या बगैर अहंकार कोई जिंदा रह सकता है ? प्रेम का पहला शर्त ही है - अहंकार का पूर्ण समर्पण ! पर पूर्ण समर्पण के बाद इन्सान सामने वाले की नज़र में अपनी महत्व खो बैठता है - आकर्षण ख़त्म हो जाता है ! यह कैसी विडम्बना / पैराडॉक्स है की आपको रिश्ते में अहंकार नहीं चाहिए और जब कोई अपने अहंकार को ख़त्म कर दे तो आप उसकी महता खत्म कर दें - कुछ अजीब नहीं लगता ?
शायद यहीं से शुरू होता है - छल ! छल बिलकुल प्रेम सा दिखता है , वही आनंद देता है लेकिन छल पर आधारीत रिश्ते में एक झूठे अहंकार को समर्पित किया जाता है , जैसे ही मकसद पूरा हुआ - झूठे और झुके अहंकार की जगह असल अहंकार अपने फन से फुंफकारना शुरू कर देता है ! फिर हम शिकायत करते हैं - धोखा मिला ! धोखा तो प्रथम दिन से ही है बस सामने वाले इंसान के समझ का फेर है ! इसलिए कई बार लोग रिश्ते की बलिदान चढ़ा देते हैं लेकिन अपने अहंकार को झुकने नहीं देते ! कई बार यह अहंकार आत्म सम्मान का शक्ल ले लेता है !
क्या हम अपनी आत्मा के आईने के सामने अपने ह्रदय पर हाथ रख - यह कह सकते हैं की - हमने कभी किसी को धोखा नहीं दिया , हमारी वासना कभी नहीं जागी , हमारे अन्दर कोई लालच नहीं ! अगर हमारी आत्मा ऐसा कहती है तो इसका मतलब की हमरी अंतरात्मा मर चुकी है ! ऐसा हो ही नहीं सकता , क्योंकि ये सारे गुण या अवगुण ईश्वर ने हमें दिए हैं ! साथ में ईश्वर ने हमें अपनी समझ दी है - आप ज़िन्दगी में बगैर लालच किसी ट्रैप में नहीं फंस सकते - लालच अँधा बना देता है ! लेकिन क्या बगैर लालच हम किसी चीज को पा सकते हैं ? लालच भी जरुरी है ! पर सबका अनुपात ठीक होना चाहिए ! यह अनुपात आपका संघर्ष , अनुभव और समझ से ठीक होगा और जिस किसी इंसान के अन्दर यह अनुपात ठीक होगा - वही इंसान पूर्ण होगा ! अगर यह अनुपात गड़बड़ है - आप पूर्ण नहीं है ! एक गुण है - वफादारी ! अगर आप वफादारी से पूर्ण है तो भी यह गड़बड़ है - आप अपनी महता खो देंगे !
जिस तरह हम अपने शरीर की साफ़ सफाई करते हैं - आँखें कमज़ोर हो जाने पर चश्मा पहनते हैं ठीक उसी तरह अपने अपने अन्दर की दुनिया और सारे गुण / अवगुण का आत्म अवलोकन करना होता है ! कई गुण / अवगुण की जरुरत समय के हिसाब से ख़त्म हो जाती है - उन्हें बेवजह भी नहीं पालना चाहिए - जैसे जिद बचपन में शोभा देता है और बुढापा में रुसवाई ...:))
बहुत कुछ है लिखने को ...:))

क्रमशः 

@RR


Friday, September 2, 2016

सच का सामना



सच का सामना : 
बात वर्षों पुरानी है । मेरे गाँव घर पर कोई आयोजन था । बाबा ने हर किसी को न्योता भेजा था । आयोजन सफल रहा । 
कुछ दिनो बाद - मैं बाबा के साथ उनकी गाड़ी पर बैठ कहीं जा रहा था - अचानक उनकी कार के सामने एक महिला आयीं - उस वक़्त उनकी उम्र 40 रही होगी । बाबा अचानक से कार से निकले और हाथ जोड़ खड़े हो गए । उस महिला की शिकायत थी - सबको न्योता गया , आपने मुझे क्यों नहीं न्योता भेजा । बाबा हाथ जोड़ चुप थे । 
बाद में पता चला की वो हमारे इलाक़े की सबसे बड़े ख़ानदान की बिन ब्याही महिला थी । उनके पिता को ख़ुद की 800 एकड़ ज़मीन थी । अंग्रेज़ के ज़माने में मजिस्ट्रेट होते थे । विलासपूर्ण जीवन था । सब कुछ था पर मरने के पहले बेटी का बियाह नहीं कर पाए ।
इस घटना का मेरे ऊपर बहुत प्रभाव पड़ा । सर्वप्रथम वो ज़मींदार साहब मरने के बाद भी मेरी नज़र से गिर गए और दूसरी बात मैंने अपने जीवन में हर कार्य से ऊपर बेटी / बहन की शादी को माना । ख़ुद जब पीजी में था - परीक्षा के पहले वाले दिन भी बहन की शादी के लिए अकेले घुमा । कई ममेरी / फुफेरी / चचेरी बहनों की शादी में सारे मतभेद भुला आगे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । कई जगहों पर टूटते रिश्तों को बचाने के लिए ज़हर की तरह अपमान का घूँट पिया ।
अभी हाल में ही एक जानकारी मिली - बिहार के एक बड़े नामी परिवार में , पढ़े लिखे भाई ने अपने से आठ वर्ष छोटी बहन की शादी ही नहीं होने दिया क्योंकि 2005 के क़ानून के अनुसार बाप दादा की संपती में बहन का भी अधिकार हो जाता - वो बड़ा मकान दो हिस्सों में बँट जाता । बहन उम्र होते ही पगला गयी । समाज के सामने बोल दिया गया - इस पगली से कौन ब्याह करेगा ।
यह दोनो घटना सच है । दोनो परिवार मुझसे जुड़े हुए हैं । एक जगह बाप आजीवन शराब में डूबा रहा और दूसरी जगह भाई बड़े डिग्री और बड़ी कार में घूम अपनी ज़िम्मेदारी से बचता रहा ।
यह सच है । ईश्वर ऐसे सच से हम सबको बचाए ।


सच का सामना - भाग दो 
दुनिया का सबसे जटिल चीज़ है - इंसान का स्वभाव । लेकिन यह जटिलता भी एक फ़ोरम्युला पर आधारित है । जिसने इस जटिलता को समझ लिया वह विजेता है :)) 
एक उदाहरण देता हूँ - बिहार के जितने भी अपर मिडिल क्लास हैं - वहाँ हर एक घर में एक बूढ़ा और एक बुढ़िया मिल जाएगी । किसी के बच्चे साथ नहीं हैं । सबके बच्चे ख़ूब बढ़िया सेटल हैं । 
एक माँ बाप को अपने बच्चे को पैर पर खड़ा करने में कितना ताक़त लगाना पड़ता है वह एक माँ बाप ही समझता है । और चिड़िया को पर लग गए चिड़िया उड़ गयी । जिस माँ बाप ने जिस औलाद को मज़बूत किया वही औलाद एन वक़्त पर साथ छोड़ दी ...:))
यह दुनिया की रीत है । किसी भी रिश्ते में - आप जिस किसी इंसान को मज़बूत बनाते हैं वह इंसान सबसे पहले आपको ही धोखा देता हैं । वैवाहिक ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है - गोवा की राज्यपाल महोदया लिखती हैं - आएल बेटी गेल शृंगार , आएल सौत भेल शृंगार । मतलब की बेटी के आगमन के बाद शृंगार ख़त्म हो जाता है और उसी समय सौत प्रवेश करती है । वह औरत बेटी के लालन पालन से परिवार को मज़बूत कर रही होती है और उसी वक़्त उसे 'धोखा' मिलता है ..:)) बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने एक बयान दिया था - औरत भी तभी चिटिंग करती है जब मर्द परिवार के मज़बूती के लिए घर से बाहर कमाने जाता है ...:))
सीता भी रावण के चूँगल में तभी फँसी जब घर पर राम नहीं थे । आप रावण को भी दोष नहीं दे सकते - उसने अपने स्वभाव से अपना काम किया लेकिन राम की जवानी तो ख़त्म हो गयी । और हर पुरुष राम नहीं होता लेकिन हर पुरुष के अंदर एक रावण भी होता है ।
वैवाहिक चिटिंग को लेकर पुरुषों के ख़िलाफ़ कोरिया में बहुत ही कड़ा क़ानून था । लेकिन अब वो क़ानून हटा दिया गया । कारण टेक्नोलोजी के आने के बाद - शिक्षा और नौकरी ने महिलाओं को भी चिटिंग की आज़ादी दी । उनकी प्रतिशत पुरुषों के बराबर पहुँच गयी । क़ानून ही ख़त्म हो गया ।
लेकिन यहाँ प्रकृति सामने आती है । महिलाएँ चिटिंग को सम्भाल नहीं पाती हैं । क्योंकि पकड़ में आने के बाद पुरुष माफ़ नहीं कर पाते हालाँकि महिलाएँ माफ़ कर देती हैं । यहाँ भी दोनो की अलग अलग प्रकृति है - महिलाएँ अपने पुरुष के सेक्सुअल सम्बंध को माफ़ कर देती हैं लेकिन उनके भावनात्मक सम्बंध को लेकर भूल नहीं पाती - वहीं पुरुष अपनी महिला के भावनात्मक सम्बंध को तवज्जो नहीं देता है लेकिन शारीरिक सम्बन्ध को माफ़ नहीं कर पाता है । ऐसा जानवरों में भी देखा गया है ।
चिटिंग को पुरुष सम्भाल लेते हैं क्योंकि अधिकतर बार वो छल जैसा होता है लेकिन महिलाएँ एक जैसा प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही पुरुष से कर पाती हैं और वो फँस जाती हैं ।
लेकिन यह स्वभाव दोनो में पाया जाता है - रिश्ते ऊब लेकर साँस लेते हैं - शायद इसी वजह से समाज स्त्री और पुरुष दोनो के लिए कुछ मज़ाक़िया रिश्ता बनाया है - जैसे देवर भाभी , जीजा साली इत्यादि लेकिन वो भी परिवार समाज के नज़र के सामने ।
ख़ैर ....


सच का सामना - भाग तीन 
एक घटना याद है ! मेरे पटना में दो दोस्त होते थे ! जबरदस्त दोस्ती ! एक दुबई चला गया और दूसरा पटना में रह गया ! कुछ समय बाद दुबई वाले ने एक बिजनेस सोचा और कंप्यूटर एजुकेशन का फ्रेंचईजी लेने का सोचा और अपने जिगरी दोस्त को बताया ! 
वो वापस दुबई चला गया ! वहीँ से अपने पटनावाले दोस्त के एकाऊंट में पैसे भेजने लगा ! कंप्यूटर सेंटर शुरू हो गया ! दो तीन साल बाद जब हिसाब किताब की बात आई तो पटना वाला पैसे लौटाने लगा - दुबई वाले को पता चला की कंप्यूटर सेंटर तो उसके नाम से है ही नहीं ! वो उसी क्षण पगला गया ! पैसे का धोखा दिल के धोखे से बड़ा होता है ! ( पटना के कुछ लोग इस कहानी को जानते होंगे )
अजीब बात है ! जहाँ विश्वास है वहीँ धोखा छुपा होता है ! जो धोखा देता है उसकी अपनी दलील होती है और जो धोखा खाता है वह बौखलाया हुआ - उलुल जलूल बोलता है और गुस्सा में अपना ही केस कमज़ोर करता है !
पटना वाले का नियत बदल गया था , वह दुबई वाले को पैसा लौटाने को तैयार था लेकिन प्रॉफिट में शेयर को तैयार नहीं था ! दुबई वाला अर्धविछिप्त हो गया !
अजीब है ये - विश्वास और धोखा का खेल ! मेरे एक चचेरे मामा होते थे , मेरी उम्र के - बहुत बढ़िया दोस्ती - हर पल साथ लेकिन मै उन पर विश्वास नहीं करता था क्योंकि वो मेरे महंगे खिलौने या कलम चुरा लेते थे ! लेकिन यह विश्वास था की कहीं बीच बाज़ार मार पीट हुई तो वो बचाने जरुर आयेंगे  एक ही इंसान पर विश्वास और अविश्वास दोनों :))
किसी भी इंसान पर यह विश्वास और अविश्वास दोनों हम अपने उस रिश्ते में अपने हाव भाव से तैयार करते है ! वहीँ कोई मेरा दोस्त कलम चुरा लेता तो मै उसे धोखा कहता लेकिन मामा वाले केस में वह धोखा नहीं कहलाता !
कोई आजीवन झूठ बोलता है वह धोखा नहीं कहलाता है लेकिन कोई पहली बार झूठ बोलता है तो वह धोखा कहलाता है - यह बिलकुल छवि का खेल है ! आप रिश्तों में एक छवि बनाते हैं , उस छवि के विपरीत अगर आप गए तो वही धोखा है !
खैर ...दलील के सामने विश्वास की धज्जी उड़ जाती है धोखा अपनी पताका लहराता है...पर ब्रह्माण्ड का भी खेल अजीब है...वही धोखा लौट कर उसी के पास एक दिन आता है...ब्याज के साथ...पात्र / रोल बदल जाते हैं...खेल वही रहता है...:))
खैर....

सच का सामना - भाग 4 
लगभग हर जागृत आत्मा की ज़िंदगी एक टनेल / गुफ़ा से होकर गुज़रती है । इस गुफ़ा की लम्बाई - उसके नसीब / कर्म / स्वभाव इत्यादि पर निर्भर करती है । यह आंतरिक / बाहरी / रिलेशनशिप / कैरियर / मानसिक / शारीरिक - किसी भी क्षेत्र में हो सकता है । 
हमारा धर्म भी यही कहता है कि राम और पांडव दोनो को वनवास हुआ था । इन दोनो कहानी में हमें स्ट्रगल की सलाह दी गयी है । 
वही इंसान जो सारे युद्ध में विजयी होता है - वही इंसान आगे का हर युद्ध हारते चला जाता है । हो सकता है - किसी की ज़िंदगी में यह गुफ़ा आए ही नहीं या फिर उसकी ज़िंदगी गुफ़ाओं से भरी पड़ी हो । अब वो इन गुफ़ाओं को कैसे महसूस करता है - यह उसके आंतरिक स्वभाव पर निर्भर करेगा । 
कई बार लोग इसी दौर में डिप्रेशन / अवसाद के शिकार होते हुए आध्यात्मिक हो जाते है । मूलतः प्रेम / छल भी इसी दौर का शिकारी होता है - क्योंकि अध्यात्म में हम किसी आत्मा से जुड़ते हैं । ज़्यादातर केस में इस दौर में महिला और पुरुष दोनो अलग अलग स्वभाव से गुज़रते है - महिलाओं का रिलेशनशिप और पुरुष का कैरियर कारक हो जाता है । महिलाओं को जैसे ही कोई प्रेमी मिल जाता है - उनके चेहरे की रौनक़ लौट आती है वहीं पुरुष को कुछ कमाने खाने को मिल गया तो वह इस गुफ़ा में सुबह की रौशनी देखने लगता है । 
मैंने कई लोगों को इस गुफ़ा में देखा है - गुफ़ा में सिसकते वक़्त उनकी फ़िलोसोफ़ी अलग होती है और गुफ़ा से बाहर निकलते ही एक यू टर्न । हैरान हो जाता हूँ । 
लेकिन मैं अपने बुरे समय को अपने तकिए के नीचे रखता हूँ जिससे वो समय मेरे अंदर Compassion / Empathy बरक़रार रखे । शायद यही वजह है - बहुत ज्ञानी नहीं होते हुये भी - मैं एक बढ़िया शिक्षक रहा । 
जो लोग गुफ़ा से बाहर आते ही अपनी फ़िलोसोफ़ी बदल लेते - उनसे मेरा एक सवाल है - तब आप क्या कहेंगे - जब फिर से कोई एक गुफ़ा आ गया ? 
😳


@RR