Wednesday, December 16, 2015

पटना पुस्तक मेला


कल पंद्रह दिसम्बर को पुस्तक मेला समाप्त हो जाएगा । आज शाम वहाँ कवि सम्मेलन था । टहलते - घुमते मेला में पहुँच गया । वहीं गेट के पास पत्रकार चंदन द्विवेदी अपने युवा साथीजन के साथ मिल गए । चाय ~ कॉफ़ी हुआ । 
फिर मेला के कर्ता धर्ता श्री रतनेश्वर जी मिल गए । मेला को लेकर उनसे कई सवाल मैंने किए । मेला का इतिहास और वर्तमान स्वरूप । बातों बातों में पता चला वो भी कुछ वर्ष मेरे स्कूल में पढ़े हैं । 
गेट से घुसते ही दाएँ - बाएँ दोनो तरफ़ साहित्य वाले प्रकाशन के स्टॉल लगे हैं । राजकमल और वाणी । ढेरों किताब । हिंदी साहित्य का कोई भी नाम लीजिए - किताब हाज़िर है । पहली नज़र में सभी किताबों को ख़रीदने का मन करेगा ...:)) 
वहीं राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर मेरे स्कूल सीनियर श्री विकास कुमार झा मिल गए । वो अपनी नयी किताब 'वर्षावन की रूपकथा' के साथ मौजूद थे । विकास भैया को हर बिहारी जानता होगा - माया नाम की मैगज़ीन के लिए वो बिहार से लिखते थे । हम तो बचपन से उनके फ़ैन । वो अपनी महिला प्रशंसकों से घिरे और हाथ पकड़ लिए - फ़ुर्सत में गप्प कर के जाओ । मेरे कई सवाल - पहला सवाल - आज के पत्रकार "पावर हाऊस" के आगे नतमस्तक क्यों ? फिर उनकी किताब की चर्चा । पहले भी वो मैस्कूलीगंज नाम की किताब छाप चुके हैं । वर्षावन की रूपकथा - कर्नाटक के शिमोगा ज़िले की कहानी है । पढ़ूँगा तो कुछ लिखूँगा । 
फिर अन्य स्टॉल पर घुमा । एक दो और किताब ख़रीदा । फिर मंच की तरफ़ बढ़ा - वहाँ पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर श्री नवल चौधरी जी का किसी पुस्तक पर समीक्षा चल रहा था । बढ़िया लगा - अपने भाषण में समाजवाद की धज्जी उड़ा रहे थे । बाद में पता चला - ख़ुद कम्युनिस्ट विचारधारा के हैं । 😮
फिर कवि सम्मेलन । विभिन्न समाचार पत्रों के लिए काम कर रहे युवा पत्रकारों की टोली थी । चंदन ने मुझे पहले ही ख़बर किया था । बहुत बढ़िया रहा । प्रेम - मुहब्बत से लेकर राजनीति वाया गाँव ...:)) 
इस बार पटना में लिट्रेचर फ़ेस्टिवल नहीं हुआ सो ये पुस्तक मेला कुछ कुछ लिट्रेचर फ़ेस्टिवल का स्वाद दे गया । पटना में भी बड़े बड़े साहित्यकारों का जमावड़ा होता है जिनके इर्द गिर्द सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके ही लोग बैठे होते हैं - कभी यह बात अखर जाती है तो कभी बढ़िया लगता है । 
लौटते वक़्त भूख लग गयी । सो वहीं अंत में ...एक फ़ूड स्टॉल पर "लिट्टी और चिकेन" खाया ...नज़रें बचा के ..:)) 
बाहर निकल - चनाजोड़ गरम खाया । दस रूपैया का । निम्बू डाल कर । काँख में - "मोहन राकेश की - आषाढ़ का एक दिन " को दबा के ....!!!

@RR

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