Monday, August 17, 2015

कॉलेज के दिन .....कुछ यादें !

शायद थर्ड इयर का अंतिम सप्ताह चल रहा था ! एक शाम क्लास ख़त्म होने के बाद दूसरी मंजिल से कोई गीत गुनगुनाते नीचे उतर रहा था तभी किसी ने कहा - फलाने हॉल में 'डीबेट' होने वाला है ! मन एकदम से ललच गया ! एक मित्र को कहा - यार , डीबेट में हिस्सा लेने का मन ! उसने तड़ाक से जबाब दिया - अंग्रेज़ी में होगा , सोच लो ! तब के दिनों या शायद आज भी उनदिनों के दोस्त मुझे 'नेता' ही कहते हैं ! नोटबुक को पीछे जींस में खोंसा और हॉल में प्रवेश किया ! कुछ दोस्तों ने उत्साह में जबाब दिया - 'नेता ..आ गया ' ! डर था - रवि कॉल से - जूनियर था - गजब का अंग्रेज़ी बोलता था - एकदम पटना के कॉन्वेंट की लड़की लोग जैसा पटर पटर ! तेज भी था ! पर मेरे बैच वाले साथ में थे - अब किस बात की देर - सीधे डायस पर ! माईक हाथ में ! हॉल ठसाठस भरा हुआ ! सबसे पीछे मेरे बैच के 'चौदह सरदार' ! लम्बे चौड़े ! सीटी मारने लगे ! मैंने उन्हें 'थम्स अप' इशारा किया  और शुरू हो गया :) क्या बोला और क्या नहीं बोला , कुछ नहीं पता लेकिन बोलते गया ! सरदार पीछे से सीटी और तेज़ आवाज़ ! दस मिनट बाद शांत हुआ !
रवि को प्रथम और सरदारों के हल्ला गुल्ला की वजह से मुझे द्वितीय ! सब दोस्त यार साथ में ढाबा गए - चाय सिगरेट ! उस झुण्ड में वैसे भी बैचमेट थे जो ताली बजाने के बजाए हाल से बाहर निकल गए थे ! हा हा हा हा !
फिर कभी रुका नहीं ! तविंदर बहुत मदद किया ! जहाँ जहाँ इंटर कॉलेज कुछ प्रोग्राम ! मुझे खोज के साथ ले जाता ! रास्ता भर समझाता - नेता , घबराना नहीं , नेचुरल रहना , तुम जैसा कोई नहीं ! उसके शब्द मेरे अन्दर गजब का कांफिडेंस पैदा करते ! एक बार फाईनल ईयर में, पास के एक बहुत नामी कॉलेज में जाना हुआ - खुद नहीं पता कितने प्राईज़ जीते ! बण्डल बन गया था ! अचानक से इतना फेमस हो गया - उसका अन्तिम दिन का अन्तिम प्रोग्राम मेरे नाम हो गया ! लडके पागल हो गए थे ! वेभ की तरह डेनिम का जैकेट लहरा रहे थे !
इंसान वही था , जो प्रथम वर्ष में कॉलेज प्रशासन के खिलाफ भाषण देकर रातों रात भूतो न भविष्यती जैसा स्ट्राईक करवा दे ! इंसान वही था जो अब बण्डल के बण्डल कल्चरल टूर्नामेंट के प्राईज़ जीत रहा था !
वो भी क्या दिन थे ! कभी सूर्योदय नहीं देखा था ! आराम से जागना ! तबतक सारे रूममेट नदारत - वैसे दोस्तों की अनुपस्थिती में उनको भरदम श्लोक सुनाना :)  आराम से नहाना ! घनी मूछें ! ब्लू बेसिक कलर डेनिम ! ढेर सारे पौकेट वाले शर्ट ! एक छोटा नोटबुक - पीछे खोंस के ! नुकीला तीन इंच हील वाला जूता ! टक - टक करते हुए पांच मिनट देर से क्लासरूम में घुसना ! ब्लैकबोर्ड को देखते हुए - सेकेण्डलास्ट बेंच पर जा कर बैठ जाना ! कलम नदारत ! क्लास की सखी - सहेली से - पेन प्लीज़ ...! और एक साथ पांच सखी लोग का अपना बैग से एक्स्ट्रा पेन निकालना और टॉपर की पेन को ले लेना और बाकी की तरेरती नज़रों को मुस्कुरा कर देखना ! फिर नोटबुक के पीछे - गुना भाग ...:))
कभी किसी शिक्षक के पास जाकर मार्क्स के लिए कोई अनुरोध नहीं ! कुछ दोस्त यार करते थे ! अजीब लगता था ! अगर पुरुष शिक्षक है तो - इगो क्लेश ! महिला शिक्षक खुद मेरी क्षमता से ज्यादा मार्क्स ! एकदम गाय की तरह सीधा मुह बना के उनके सामने नज़रें झुका लेता था ! करुना भाव में न जाने कितने बार उनलोगों का मुझपर उपकार :))
इन्टरनल / सेशनल परीक्षा के ठीक पहले - क्लास के फ्रंट बेंच वालों के रूम का चक्कर ! यार , सिलेबस बता दो ! यार नोट्स दे दो ! सेशनल / इन्टरनल परीक्षा के ठीक पहले क्लासरूम में ब्लेड के साथ - बेंच को साफ़ करना , खूब प्रेम से  ! फिर वहां सारे फोर्मुला लिखना ! फिर मैडम का आना और हमलोगों का जगह बदल देना ! हा हा हा हा !
फाईनल परीक्षा के एक रात पहले - विल्स का पूरा डब्बा ! सारी रात जागते हुए - अगली भोर परीक्षा हाल में ! अगर रात जाग गया तो पास और अगर सो गया तो फेल ! सेमेस्टर का यही वरदान और अभिशाप ! सारा सेमेस्टर एक तरफ और परीक्षा की रात एक तरफ ! परीक्षा हमेशा बढ़िया जाता था ! रिजल्ट ख़राब या बढ़िया ! फिर उधर से ही - सिनेमा ! पूरा सिनेमा हाल में पूरा बैचमेट ! सिगरेट के धुंआ से भरा हुआ ! सिनेमा में कोई गाना आ रहा है - डर का - जादू तेरी नज़र ! और मन में परीक्षा में गलत फोर्मुला यूज करने का टेंशन ! वो तीन घंटा - अजीब टेंशन से भरा हुआ ! जैसे ही पता चलता ...और भी दोस्त गलती कर के आये हैं ...मन एकदम शांत ...खुश ! हा हा हा हा ....
बस यूँ ही ....

@RR

1 comment:

Arun sathi said...

गजबे लिख दिए है ... माने नेताजी पह्लाही से थे...चलिए... जरी रखिये सर जी