Thursday, May 28, 2015

Daalaan Literature Festival : गाँव का भोज भात


गाँव का भोज - भात 
आजतक वाले अभी लालू के बेटी की शादी पे एक प्रोग्राम देखा रहे थे । पंडाल से लेके स्टेज से लेके घोड़ा-घोड़ी तक को कभर किया गया था । बट मेन अट्रेक्शन था खाने को लेके, जो रिपोर्टर थी ऊ सब मेहमान के मुँह में माइक ठूँस के पूछले थी तब "क्या-क्या था खाने में ?" एक अपने तरफ के गेस्ट साहब बोले " बहुते चीज था बहुते चीज ।" रिपोर्टर फेर पूछी "आप क्या-क्या खाए ?" गेस्ट साहब बोले "चौमिन खाए, मेंचूरियम खाए, बहुत चीज खाए । " हम सोंचे कहाँ से कहाँ भोज भी पहुँच गया है ना, बच्चा में याद है जिस दिन भोज होता था बड़ी एक्साइटमेंट रहता था कि रात में भोज खाने जाना है । नौता दुपहर तक आ जाता था, फेर बेट होता था रात में बिज्जै का । जइसे आठ बजते झिंझरी बजा दुआरी का अ अबाज आया " फलना बाबू के हियाँ से बिज्जै हो ।" बस फेर का हाँथ में लोटा गिलास लेके सब भाय रेडी, एगो हाँथ में एभररेडी टॉर्च दोसर में गिलास बस पप्पा जी या फेर बाबा के पीछे सोझ । भोज बाले जगह पे पहुँचे त देखे लोग खाइये रहे हैं, बेट कीजिये चौंकी पे बैठ के अप्पन बारी का। एक पंगत उठा अ बस अयन्टा नीचे सरका के पालथी मारके बैठ जाइये, पत्तल मिल गया अ गिलास में पानी भी भरा गया । बस तनी सुन पानी पत्तल पे छींट के उसको धो धाके रेडी । पूरी, आलू परबल का तरकारी, रतोबा सब परसा गया है,इभेन राम-रस भी सर्भ हो चुका है, फेर एक आदमी बोलेंगे "शुरू कइल जाय" बस मुरी गोंत के चाँपना चालू । कुछ देर बाद दोसर आदमी का उद्घोष " रसगुल्ला चलाहो महराज ।" खुसुर-फुसुर चालू "आय त भोला का सो गो रसगुल्ला अराम से ख़ैथुन....धुर्र सो गो से उनखरा कौची होतन आय तो डेढ़ सो टपथुन ।" भोला का का पत्तल साफ़ है ऊ खाली रसगुल्ले खाते हैं, एगो आदमी करका अ उजरका रसगुल्ला का बाल्टी लेके उनके बगले में खड़ा हो गया है । आदमी रसगुल्ला देले जा रहा है अ भोला का बिना शिकन के चाँपले जा रहे हैं । बासमती भात,बूँट के दाल जेक्कर ऊपर ढेर सारा पाबित्रि अ साथ में पापड़ से भोज का इति-श्री । फाइनली पानी देबे बाला आ गया है, आधा लोग अप्पन गिलास या लोटा के ऊपर हाँथ धइले हैं काहे कि उसके अंदर रसगुल्ला जे ठुंस्सल है, पानी गिर गया त कामे गड़बड़ा जायगा । खैर फेर एक बुजुर्ग का उद्घोष "उट्ठल जाय ।" और सब अपना पत्तल छोड़ के एक साथ उठ गए । बढ़िया से डकार मारते हुए घर के लिए सोझ हो जाने का । ना कोय मेंचुरियम ना कोय चौमिन, एकदम परम तृप्ति बाला खाना ।
~ परिमल प्रियदर्शी , बड़हिया , लखीसराय , बिहार


@RR

No comments: