Monday, May 25, 2015

Daalaan Literature Festival / लघु कथा



मित्र से मुलाकात : मेरी लघु कथा
विगत दिल्ली प्रवास में आश्चर्यजनक रूप से एक स्कूली मित्र का फ़ोन आया/ वार्तालाप में कई पुराने मित्रों की चर्चा हुई और अचानक सत्येन्द्र की यादों में हमलोग अतीत को स्मरण करने लगें/ साधारण परिवार का अति तेजस्वी और होनहार युवक, कुछ कर गुजरने का जूनून रहता था उसमें/ सौभाग्य से उसका नया पता कुछ अन्य मित्रों से बात कर मिल गया लेकिन किसी ने विस्तार से कुछ और खुलासा न किया उसके बारे में/
दोस्त से कैसी औपचारिकता सोच मैं भी सुबह की सैर के बाद कैजुअल वस्त्रों में मित्र के पते की तरफ चला की अरसे बाद बैठ कर रविवार के नास्ते का साथ आनंद लिया जायेगा/ उसके पसंदीदा गुलाब जामुन और काजू बर्फी रास्ते में पैक कराते हुए बताये भव्य सोसाइटी में पहुंचा/मारुती अल्टो से आया देख सिक्योरिटी गार्ड ने बुरा सा मुंह बनाया और सत्येन्द्र नाम के किसी निवासी के नाम से इंकार भी/उसका सेलफ़ोन बंद आ रहा था सो पुनः पुराने मित्र से फिर बात कर मैंने कहा की भाई आज की तारीख में सत्येन्द्र का नाम बता दो, सैम सुनते ही गार्ड तन के सीधा हो गया और बोला की वो फ्रंट साइड वाला पैंट हाउस साहब का है/
फ़ोन से नाम और बाकि डिटेल कन्फर्म कर ऊपर जाने की अनुमति मिलने तक बीस मिनट बीत चुके थे और उत्साह का आवेग कम होने लगा था/ लॉबी तक पहुँचते हीं मित्र से मुलाकात हो गयी/लपक कर गले मिलने की मेरी आतुरता का प्रतिउत्तर हाथ मिला के मिला, संभवतः उसकी नजरें भांप चुकी थी की गार्ड और माली उत्सुकता से हमलोगों को ही देख रहे थे/"साहब" के आचरण से उनलोगों के चेहरे पर भी संतोष दिखा, की ऐसे ही कोई गाँव वाला टाइप आ गया होगा मिलने/
उधेरबुन में मुझे देख मित्र ने पहला प्रश्न किया : और कैसे आना हुआ? मेरा पता किसने दिया? कहाँ हो आजकल ? मैंने कहा सबकुछ लॉबी में ही पूछोगे ? अकचका कर उसने कहा ऐसा नहीं है, चलो कहीं चल के बात करते हैं, रात लेट पार्टी थी मैडम आराम कर रही हैं सो उनको जगाना मुसीबत मोल लेना है/पड़ोस से आती हुई कामवाली बाई को मेरे लाये मिठाई के डिब्बों को ऊपर रख आने का कह मित्र ने सिक्यूरिटी वालों को ये बता की टहल के आ रहा हूँ , मुझे ले चल पड़ा/ गार्ड्स के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी मानो मैं ताजमहल के दर्शन से वंचित हो गया घर न देख के/ 
आजकल की कमर तोर महंगाई में सोने की तीन भारी भरकम चेन और हाथ में महंगी अंगूठियाँ पहने मित्र को देख छिना झपटी की सम्भावना से मैंने कहा की टहलने से अच्छा है की कहीं कार से चलते हैं/ भावात्मक मुद्रा बना उसने कहा, यार दिल्ली के यातायात और रोड रेज़ के किस्से सुन मैडम ने बिना ड्राईवर के कार चलाने से मना किया हुआ है और आज उसकी छुट्टी है/ मैंने कहा, अल्टो से चलते हैं, तनिक आगे तक टहल के आजा ताकि तेरे सोसाइटी का कोई देख न ले/
कभी स्कूटर और साइकिल पे बरसों साथ चलने वाले को आज बहुत तकलीफ हो रही थी छोटी कार में/ बोला, पास ही बरिस्ता कॉफ़ी शॉप है वहीँ चलो/ हमने कहा भाई मेरे, देश-विदेश रह के भी मैं चाय-कॉफी, ध्रूमपान-मदिरा के व्यसन से दूर हूँ अब तक/चलो चांदनी चौक मेट्रो के नजदीक पार्क कर गौरी शंकर महादेव मंदिर और गुरुद्वारा शीशगंज के दर्शन के पश्चात पराठे वाली गली में नास्ता करेंगे/ तुमने पानी तक नहीं पूछा और सुबह के नौ बज चुके हैं/
तनिक सर्मिंदगी से वो बोला, अब क्या कहूं, पुराने मित्रों ने ऐसा लज्जित करवा दिया है की मैडम के सामने किसी को मिलवाने-ले जाने में भी संकोच होता है/ अब तुम से क्या छिपाना? अपना वो जतिन है न, जिसको सबकी फिकर रहती है जब देखो हँसता रहता है बेपरवाह/ पता नहीं कहाँ से ढूढ़ कर सबको जन्मदिन से लेकर विवाह के सालगिरह तक की बधाई देता फिरता है/ इधर कुछ बरसों से कभी स्कूल कभी कॉलेज के मित्रो की मिलन पार्टियाँ सबसे चंदा ले के करवाता है और जो जीवन में पिछर गये हैं उनको नौकरी या आर्थिक मदद के लिए बाकियों से मिलता रहता है/
बेवकूफ !! इतना वक़्त खुद पर देता तब सिर्फ मैनेजेर नहीं रहता/ - "घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने/" मैंने रोक के कहा, वह उन चुनिन्दा मित्रों में है जिसमें इंसानियत बाकि है अभी, किसी को खून की जरुरत हो या किसी चीज के, उसके पास हर चीज का जवाब हाजिर होता है/ मुझे पिछली मर्तबा भी एअरपोर्ट छोरने आया था रात में/
बात काट कर वो बोला, उसमें अभी भी दुनियादारी की बहुत कमी है, ऑरकुट और फेसबुक पर स्कूल-कॉलेज के ज़माने की तस्बीरों को टैग कर दिया/ क्या जरुरत थी? मैडम और कई नए दोस्तों ने मखौल बना दिया देख के/ वो जमाना और था अब और है आदमी को समय और हैसियत के हिसाब से व्यव्हार करना सही रहता है, क्या गलत कह रहा हूँ बोलो ? मैं सन्न !!
वो धुन में कहता रहा - एक दिन शुक्रवार संध्या को फ़ोन घुमा के अधिकार से बोला की आ रहा हूँ ४ दोस्त परिवार संग तुम्हारे घर रविवार रात्रि में, अरसे बाद मिलेंगे आनंद आयेगा/ किसी तरह मैडम को कुछ गहनों का वादा कर उसदिन की कित्ती पार्टी में जाने से रोका, भोजन बनाने वाली बाई १२ अतिथि का सुन सायंकाल संवाद भिजवा दी की तबियत नासाज है/
एक तो मेट्रो से उतर रिक्शा से सभी सोसाइटी द्वार तक आ गयें, फिर अरे अपने सतिंदर वही सत्तू से मिलना है टॉप फ्लोर पे कह "ईमेज" का बैरा-गर्क कर दिया/ उनकीं पत्नियाँ भी नासमझ निकलीं, कोई समौसा लायी थी, कोई लिट्टी, कोई ५ रूपये वाला लौलिपोप/भाई साहेब को पसंद था ये बोलते हैं कह एक पनीर पराठे लायी थी/ मेरी मैडम मुझे विचित्र नजरों से देख रही थीं और बोली की काम वाली आई नहीं सो चलते हैं सब लोग बाहर ५ स्टार होटल में खाने/ उसपर सभी ने महंगाई से लेकर खाने के ऊपर इतना उपदेश दिया की क्या कहूं/
रसोई महिलाओं ने संभाली और उनके बच्चों ने ३००० वर्गफुट का मेरा घर/अब क्या बताऊँ जो हाल मेरे रसोघर से लेकर बाथरूम और घर के दीवारों का हुआ/तक़रीबन एक महीने तक मैडम क्लास लेती रहीं मेरा और दुबारा से घर का आंतरिक सज्जा करवा के ही दम ली/ जब ये बात मैंने जतिन को कही तो लापरवाही से बोला, नए धनिक लोग बरी-बरी बातें/ अब मन में आया की बोल दूं "थोथा चना, बाजे घना" लेकिन चुप हो गया और तब से आजतक किसी पुराने दोस्त को घर बुलाने से तौबा कर ली/
~ सीए शिव शुक्ल ...मुजफ्फरपुर / इंदिरापुरम

@RR

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