Friday, May 15, 2015

Bombay Velvet / सिनेमा


सुबह सुबह 'फिस्स-फिस्स' की आवाज़ से नींद खुली ! एक आँख बंद और दूसरी आँख खोल देखा तो 'पुत्र महोदय' चार किस्म के डियोड्रेंट 'फिसफिसा' रहे थे ! एक पिता का कर्तव्य निभाते हुए मुझे इस वक़्त एक डायलोग मारना जरुरी था सो मैंने आधे नींद में ही थोड़े गुस्से और थोड़े झुन्झुलाहट के साथ बोला - ' फिसफिसा क्यों रहे हो , पूरा का पूरा डियोड्रेंट ही उझल लो ' , बाय द वे - यह कहाँ की तैयारी है ? ' जबाब आया - ' बॉम्बे वेलवेट ' ! मेरे मुह से अचानक निकल गया - ' फर्स्ट डे , फर्स्ट शो ? टिकट कहाँ से जुगाड़े ? ' जबाब आया - ' कल रात आपके क्रेडिट कार्ड को यूज कर के ऑनलाईन कटवाया ' ! हम पूछे - ' मेरा कुछ जुगाड़ ? ' ! वह हौले से 'सौरी' कह के निकल गया ! हम भी थोड़ा जोर से बोले - ' अरे अनुष्का तुमसे डबल एज की है , थोड़ा ध्यान से ' ! 

अपना ज़माना याद आया ! कुछ दोस्त यार फर्स्ट डे - फर्स्ट शो वाले होते थे ! टिकट के चक्कर में उनके शर्ट का दो चार बटन हमेशा टूटा होता था ! उस दौर में जो टिकट वाली खिड़की होती थी , उसमे सिर्फ एक हाथ घुसने का गुंजाईश होता था , फिर भी एक साथ दो तीन हाथ घुसे होते थे ! जो उस भीड़ में भी टिकट कटा लिया , वह अपने आप में किसी हीरो से कम नहीं होता था ! वैसे दोस्तों को हम तहे दिल बहुत ही आदर भाव की नज़र से देखते थे ! वो टिकट वाला कितना बड़ा आदमी लगता था ! एक आध लोग लाईन में ऐसा होता था ' साईड से चार टिकट' ! हा हा हा ! ब्लैक से टिकट लेना , दो का चार , चार का आठ ! मुह में बीडी और कान में 'डीसी - बीसी' ! कुछ अलग से बोलते थे - 'डीसी - बीसी' ! सिनेमा हिट है तो कोई मोल भाव नहीं ! जिनका नया बियाह हुआ होता था और अगर अपने पुरे ससुराल / साली / सरहज के साथ आये हुए हैं तो 'ब्लैक' लेना ही लेना है ! इमेज बनाने का यह स्वर्णीम मौक़ा होता था ! हा हा हा ! 
बहुत बाद में 'एडवांस बुकिंग' का कांसेप्ट आया , वो भी रोमांटिक सिनेमा के लिए ! एक दिन पहले ही कटवा लीजिये , घर भर के अजिन कजिन को ढो के ले जाईये फिर वापस लाईये ! ऐसा काम घर में कोई 'झप्पू भईया' टाईप आइटम करता था ! इवनिंग शो ! फिएट वाला जेनेरेशन ! फिर वीसीआर / वीसीपी ने सब मजा किरकिरा कर दिया 
frown emoticon
सिनेमा में डायलोग बाज़ी होता था ! 'शराबी' आया था ! हर डायलोग पर , एक साथ 'रेज़की' / खुल्ला पैसा फेंकाता था ! पब्लिक 'भर पाकिट' रेज़की लेकर आता था ! पूरा सिनेमा झन्न - झन्न ! जो पैसा लुटाता था , वो आईटम भी अजीबो गरीब ! शायद वह अपनी छवी उन डायलोग में खोजता होगा ! जो जीवन वह जी नहीं पा रहा है , वैसा कुछ हीरो इमेज वह सिनेमा में खोजता होगा ! 
अब वैसा डायलोग भी नहीं लिखा जाता है , हेवी - हेवी ! क्रांती का डायलोग - ' शम्भू का दिमाग दो धारी तलवार की तरह है ' और मालूम नहीं ऐसे कितने सिनेमा और उनके डायलोग ! दीवार / त्रिशूल और न जाने कितने ऐसे सिनेमा और उनके डायलोग ...
smile emoticon

@RR

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