Sunday, May 31, 2015

मेरी कहानी - मेरी ही ज़ुबानी - पार्ट वन

बात वर्षों पुरानी है ! धीरे धीरे कर के ,बंगलौर से सारे दोस्त विदेश या देश के दुसरे प्रांत जाने लगे थे ! हम अमित के साथ मल्लेश्वरम सर्किल पर रहते थे ! अमित को कलकत्ता में नौकरी लग गयी थी ! एक दोपहर उसको विदा करने बंगलौर स्टेशन पर जाना हुआ ! भारी मन से उसको विदा कर के प्लेटफार्म से बाहर निकला ही की नज़र पडी एक जानी पहचानी सूरत पर ! वो थे एक , बचपन के जान पहचान पर उम्र में एक दो साल छोटे , रिश्ते में चाचा / दादा कर के कुछ लगते थे लेकिन मै उनको नाम से ही पुकारता था ! गले मिले ! छोटा कद , काफी गोरा रंग और नीली आँखें , बेहद मीठी जुबान ! वहीँ भोजपुरी में ही बात चित शुरू हो गयी ! तुम कहाँ तो तुम कहाँ ! तुम कब से इस शहर में तो तुम कब से इस शहर में ! वो वहीँ के एक बेहतरीन विश्वविद्यालय में पढ़ते थे जो शहर से कुछ दूरी पर था ! 
अगले ही शाम महाशय मेरे डेरा / रूम पर पधार गए ! सुबह के बासी बचे अखबारों के पन्नों में उलझा हुआ था ! गप्प हुआ ! थोड़ा और शाम हुआ ! वो मेरे आगंतुक थे सो मैंने उन्हें डिनर पर इनवाईट किया ! उनको डिनर के लिए हाँ करने में माइक्रो सेकेण्ड भी नहीं लगा ! मैंने अपना नया चमचमाता बजाज चेतक निकाला और वो भी बड़े हक से पीछे बैठ गए ! उनदिनों , इन्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साईंस के जिमखाना का रेस्त्रां मेरा पसंदीदा डिनर स्थल था ! कलेजी फ्राई , मटन के साथ कुछ एक वहीँ के एमटेक के विद्यार्थी दोस्त होते थे ! महाशय भी मेरे दोस्तों से मिल खुश हुए ! मेरे साथ वो भी कलेजी फ्राई चांपे ! फिर वो बस पकड़ अपने विश्वविद्यालय के लिए निकल पड़े और मै अपने रूम / डेरा पर ! 
अब धीरे - धीरे उनकी फ्रीक्वेंसी बढ़ने लगी ! कभी किसी इतवार वो सुबह ही आ जाते ! इतना मधुर बोलते ! मेरी बडाई में कोई कोई कसर नहीं छोड़ते ! एक आध सप्ताह बाद - बड़े कॉन्फिडेंस से वो मेरा स्कूटर भी उधार मांग लेते - एक सुबह लेकर जाते तो देर शाम लौटाते frown emoticon

पर बोलते इतना मीठा थे की मुझे लगता की वो मेरा स्कूटर लेकर मुझ पर कोई उपकार किये हैं ! मै अपने स्कूटर की चावी उनके हाथ में देते हुए बहुत खुश हो जाता था , कोई तो इस अनजान शहर में है जो मुझे इतना भाव देता है ! 
मेरी तनखाह सात तारिख को मिलती थी , एक सात तारीख वो शाम पदार्पण लिए ! थोड़े मायूस थे ! अचानक से वो मुस्कुराने लगे और सीधे बड़े हक से मुझसे पांच हज़ार मांग दिए ! संकोच / लिहाज से परिपूर्ण मेरा व्यक्तित्व ना नहीं कह सका और और अगले दिन मैंने उनको बैंक में बुला लिया ! मेरी ज्यादा दिन की नौकरी नहीं थी , घर परिवार में लोगों को मदद करते देखा था ! मुझे ऐसा महसूस हुआ - मै भी दो पैसा का आदमी हो गया हूँ - कोई मुझसे भी मदद मांग रहा है - इसी भावना से ओत प्रोत होकर मैंने उस जमाने में उनके हाथ में पांच हज़ार पकड़ा दिए ! वो उस दिन फिर से मेरा स्कूटर भी मांग लिए ! मै ना नहीं कह सका ! तीन दिन बाद स्कूटर लौटाए ! frown emoticon


उनदिनों अपने कॉलेज के दोस्तों के अलावा मै किसी और से ज्यादा और जल्दी नहीं खुलता था ! फिर भी एक रोज मैंने उनसे कहा - आप दिखने में किसी हीरो से कम नहीं , क्यों नहीं मोडलिंग करते हैं - साथ ही अपनी कुछ गीत / ग़ज़ल / नाटक की कहानी सुनायी ! जबाब आया - पिछले साल ही 'फेमिना' में मेरी फोटो छप चुकी है ! मै और खुश हुआ - जिस आदमी का फेमिना में फोटो छपी वो इंसान मेरे रूम पर इतनी आसानी से आ जा रहा है ! पैसा और स्कूटर को लेकर जो हलचल मेरे मन में हो रही थी - वो सब एक पल में ख़त्म हो गया ! लगा धन्य हो गया , ऐसे मित्र को पाकर :) 
एक दो महीने बीते , मेरा पैसा वापस नहीं हुआ ! मन में हल्की बेचैनी लेकिन 'फेमिना' के मॉडल के नाम पर , मेरे मन के बुरे ख्याल ख़त्म हो जाते ! यही सोचता - इतना हाई प्रोफाईल नौजवान - कितना झुक कर मुझसे मिलता है , जरुर से व्यक्तित्व बहुत बड़ा होगा ! 
फिर वो अचानक से एक दिन बोल बैठे - तुम्हारा भी फोटो फेमिना में छपवा देंगे ! मै एकदम से हडबडा गया ! अचानक से कल्पना की दुनिया में खो गया ! मुझे पटना के कान्वेंट / एनडीए की अपने जमाने की लड़की लोग , सब के सब देहाती लगने लगी ! अब मेरी तस्वीर वेल्हम और मेयो के गर्ल्स होस्टल के दीवार पर लगेगी ! ऐसे न जाने कितने ख्याल , अब मै सड़क पर तन के चले लगा ! पटना की बड़ी बड़ी हवेली के बालकोनीओं को कल्पना में लाकर मैंने मन ही मन ही एक कुटील मुस्कान देने लगा  ! 'चल हट टाईप' एक्सप्रेशन मेरे चेहरे पर आ जाता ! 
फोटो सेशन का दिन तय हुआ ! उन्होंने कहा की पहले राऊंड में वो खुद मेरी तस्वीर खींचेंगे , दुसरे राऊंड में फेमिना  का  फोटोग्राफर खिंचेगा  ! कैमरा का इंतेज़ाम भी वही करेंगे , बस रील का खर्च मुझे देना होगा ! मै एकदम से अक्षय कुमार के पोज में डेनिम जैकेट और टाई पहन बंगलौर विधानसभा और एमजी रोड पर - अनगिनत फोटो खिंचवाया , गजब गजब का पोज , ब्रिगेड रोड के मॉल में - कैप्सूल लिफ्ट में , कभी गर्दन टेढ़ा तो कभी गर्दन सीधा , कभी रेलिंग पकड़ के तो कभी किसी को घूरते हुए , कभी टाई तो कभी शर्ट का दो बटन खुला हुआ ! उसी झोंक में मैंने एक नया रे बैन भी ले लिया , नौकरी के लिए निकलते वक़्त , माँ ने जो पैसे दिए थे वो रे बैन को भेंट चढ़ गया ! एक रेमंड का सूट का भी इंतजाम हुआ ! फोटो खिंचवाने के दिन सुबह चार बजे ही जाग गया था ! बूट पर - दे पॉलिश ...दे पॉलिश ...दे पॉलिश :) 
सुबह के वक़्त एमजी रोड पर फोटो खिंचवाते हुए , मुझे ऐसा लग रहा था जैसे की अब बस अगला साल सोनाली बेंद्रे मुझे प्रोपोज कर देगी ! तब वो बहुत बढ़िया लगती थी ! थोड़ा अलग सा क्लास नज़र आता था ! काल्पनिक व्यक्ती को और क्या चाहिए ! मन ही मन सोचता - वो महाशय मुझसे पांच हज़ार ही क्यों मांगे, मुझे लगा ऐसे महाशय के लिए तो दस बीस हज़ार भी कम हैं जो मुझे दुनिया की उस कक्ष में स्थापित करने को तैयार था - जो मेरी कल्पना से परे था ! अब वो मेरे लिए किसी भगवान् से कम नहीं थे ! 

अब वो रोज शाम आने लगे , हम भी थोड़े खुल गए ! हर शाम एक ठंडी बियर और चिकेन फ्राईड राईस और उनकी मीठी बोली ! हम हर वक़्त खुद को धन्य समझते जो इस अनजान शहर में , कोई तो मिला ! वरना दफ्तर में रोज मैनेजर की गाली ही मिलती ! रोज कल्पना करता - बड़ा मॉडल बन जाऊंगा तो एक दिन बड़ी गाडी से इसी दफ्तर में आऊँगा तो मेरा मेनेजर मुझे देख अपनी सीट खाली करेगा ! पटना जायेंगे तो घर में ही रहेंगे , कोई मोहल्ला - गली का चक्कर नहीं काटेंगे - जैसे ख्याल , ख्यालों की दुनिया ने मुझे अन्दर ही अन्दर वजनदार बना दिया था ! भगवान् की कृपा से नाक नक्श ठीक ही था , बस लम्बाई छः फीट वाली नहीं थी ! 
smile emoticon
माँ के मार्फ़त पिता जी को भी खबर भेजवा दिया - अभी कुछ दिन मेरी शादी की बात चीत रुकवा दिया जाए और कम से कम पटना / बिहार में तो कदापि नहीं :D ! ...कहाँ मेरा लीग / क्लास / स्टैण्डर्ड और कहाँ पटना के लोग ! पिछले दस ग्यारह साल से आँखों से सामने से गुज़री सारी लड़की लोग - एक नज़र में आ जाती , फिर मै कुटील मुस्कान देता , आईना में खुद को देखता और सोनाली बेंद्रे का गीत मेरे टू इन वन पर बजता - 'संभाला है मैंने - बहुत अपने दिल को - जुबाँ पर तेरा ही नाम आ रहा है ' :) अब बस मंजील एक ही नज़र आती ! 

अब कॉन्फिडेंस भी जाग गया था ! वीकएंड में , जिस एमजी रोड पर , माइक्रो और मिनी के तरफ देखने की चाहत ही धड़कन बढ़ा देती थी , अब मै किसी पब में घुस आँख में आँख डाल कर मुस्कुराता ! फेमिना मैगज़ीन खरीदाने लगा ! कबाड़ी के यहाँ से पुराने एडिशन भी , पर वो वाला एडिशन नहीं मिला जिसमे उस महाशय का फोटो छपा था ! कभी कुछ शंका आती तो लगता - ऐसा आदमी झूट थोड़े न बोलेगा , ऐसी सोच मेरे मन में ग्लानी ला देती ! जो इंसान मुझे इतना बड़ा अवसर दे रहा है उस इंसान के बारे में , मै इतना गलत कैसे सोच सकता हूँ :( 

रील साफ़ हुआ , कुछ फोटो ठीक आये , कुछ में कैमरा हील गया , कुछ में आधा काला और सामने से धुप frown emoticon

 मन दुखी हुआ , बहुत दुखी  ! संकोच से कुछ नहीं बोला और महाशय मेरा साफ़ किया हुआ रील लेकर निकल गए की फेमिना के लोकल फोटोग्राफर से बात करने ! 

फिर वो लौट कर कभी नहीं आये 21 साल पहले ...पांच हज़ार का कुछ तो महत्व रहा होगा ...कई ख्याल आये ! बाद में पता चला ...उनका मै ही सिर्फ अकेला शिकार नहीं था ...और लोग भी अलग अलग ढंग से हुए ...आज वो पांच हज़ार चक्रवृधी ब्याज की तरह ..मालूम नहीं कितना होता ...:) 
हा हा हा हा ....उसी दौर की एक तस्वीर ...बंगलौर विधानसभा के सामने से ...हा हा हा हा 
@RR


No comments: