Tuesday, October 7, 2014

जलन .....


'जलन' एक स्वाभाविक प्रक्रिया है - हालांकी जैसा हर कोई खुद के बारे में बोलता है - वैसा ही मुझे भी हक है बोलने का - मुझे जलन नहीं होता  
बचपन का एक कहानी याद है - बात करीब तीस - एकतीस साल पहले की है - तब के जमाने में हमारे बिहार में 'नेतरहाट विद्यालय' का जोर होता था - वहां एडमिशन मिल पाना अपने आप में बहुत बड़ी बात होती थी ! अब उस उम्र में सभी वहां का एडमिशन टेस्ट देते थे - हमने भी तैयारी की - बढ़िया - बिना मास्टर साहब के :)) 
तब एक लोकल स्कूल में पढ़ते थे - वहां पिता जी के एक जस्ट सीनियर के दो बेटे भी पढ़ते थे - दोनों मुझसे बड़े थे पर छोटा वाला मेरी क्लास में था और टॉप करता था :(( एक बार किसी शिक्षक ने मेरी भी बड़ाई कर दी थी - तब से हमदोनो में थोडा कोल्ड वार जैसा था ! खैर...
नेतरहाट विद्यालय एडमिशन टेस्ट वाले दिन - सुबह सुबह नहा धो ..रिक्शा पकड़ ..हम चल दिए एडमिशन टेस्ट सेंटर - एकदम साफ़ सुथर लईका जैसा ! अभी रिक्शा कुछ दूर गया ही - बगल से एक लैम्ब्रेटा गुजरा - धीमे रफ़्तार में - रिस्क्षा से नज़र उधर किया तो - लह ...वही दोनों भाई ..और अंकल ! दोनों भाई हमको हाथ हिला के कुछ बोले - अब तो मेरे पुरे शरीर में आग लग गयी ! 
हम उसी वक़्त 'ईश्वर' को पुकारे - हे ..ईश्वर ..अगर सच में तुम हो ..तो आज मेरी आवाज़ सुनो - "मेरा भले ही नेतरहाट विद्यालय में हो या न हो - इन दोनों भाईओं का तो कतई नहीं होना चाहिए - अब तुमसे इस जीवन में कुछ नहीं चाहिए - बस यही मेरी पहली और अंतिम आरजू - जिस मंदिर में कहोगे - वहीँ सवा किलो लड्डू चढाऊंगा" - फिर रास्ता भर हम हनुमान चालीसा पढ़ते हुए - एडमिशन सेंटर पहुंचे - पुरे शरीर में आग लगा हुआ था - परीक्षा तो खराब हुआ ही - रिजल्ट के दिन अखबार में अपना रोल नंबर से पहले उन दोनों भाईओं का देखा - जश्न मनाया - मेरा तो नहीं ही हुआ था - उन दोनों तेज़ तरार का भी नहीं ....वैसी खुशी की रात ...फिर कभी नहीं आयी ... 


@RR  - 10 April - 2013 

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