Sunday, October 12, 2014

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो......


कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो जैसे एक लम्बे उम्र का इंतज़ार ...चंद लम्हों में मिलो ...
हां ...उसी रेस्तरां में ...जब तुम वेटर को एक कप और चाय की फरमाईश करते हो ...जैसे ...मै इतनी मासूम ....मुझे कुछ पता ही नहीं ...कुछ देर और रुकने का बहाना खोजते मिलो ...अपनी मंद मंद मुस्कान में बहुत प्यारे दिखते हो ....:)) 
वहीँ टेबल पर ....कभी अपने कार की चावी तो कभी मोबाईल को नचाते ...चुप चाप मेरे तमाम किस्से सुनते हो ...और फिर एक लम्बी सांस के साथ ...एक गहरी नज़र मेरी आँखों में डालते हो ...जैसे क़यामत को कोई पल नहीं चाहिए ....
हाँ ..कभी मिलो तो यूँ मिलो ...जैसे मेरी तमाम उलझनों को ..हौले हौले सुलझाते मिलो ..और मै अपने मन की सारी बातें कह ...खुद को खाली कर दूँ ....
..लौटते वक़्त ...रेस्तरां से कार पार्किंग तक के सफ़र में ...तुम्हारे हाथों से ...मेरे हाथों का स्पर्श ......धड़कने वहीँ पिघल के ...न जाने कब तुममे समा जाती है ...कह नहीं सकती ...पर कभी न मिटने वाली एक एहसास छोड़ जाते हो ...
कभी मिलो तो कुछ ऐसे ही मिलो ....:)) 

@RR - 12 October - 2014 

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