Monday, September 29, 2014

बिदेसिया .....


बात दस साल पुरानी है - मैंने इंदिरापुरम में जान पहचान के ही एक बिल्डर के यहाँ अपना फ़्लैट बुक करवाया - हम सभी कई जान पहचान वाले लोग भी वहीँ फ़्लैट बुक करवाए ! एक मेरे करीबी मित्र के संबंधी जो कई वर्षों से अमरीका में रह रहे थे - उन्होंने ने भी वहीँ फ़्लैट बुक करवाया - कुछ महीने बाद वो अमरीका से आये - सपरिवार - वहीँ साईट ओफ्फिस में मुलाकात हुई - बातों बातों में मैंने उन्हें टोका - सर ..आप अमरीका में तीस साल से हैं पर आपकी हिंदी बोल चाल की भाषा में आपके गृह जिला 'पूर्णिया' की झलक और खुशबू है - वो हंसने लगे - कहे - मैट्रीक गाँव से किया - इंटर पूर्णिया से - फिर इंजीनियरिंग आईआईटी से करने और टॉप करके तुरंत - अमरीका निकल गया - तीस साल से वहीँ हूँ पर हिंदी तो वही रह गयी जो बचपन में सिखा ! फिर मैंने पूछा - ये अचानक - यहाँ फ़्लैट ! वो थोड़े खामोश हो गए ..बोले ...सैन फ्रांसिस्को पहुंचा ..इंटेल में नौकरी मिली ...कैरियर रॉकेट की तरह उड़ा ...कंपनी में प्रोमोशन दर प्रोमोशन ...इसोप से करोड़ों रुपैये हुए ....जब सैन फ्रांसिस्को के इलीट कक्षा / वर्ग / ऑर्बिट में मेरे कैरियर का रॉकेट रूका ...तब वहां इस बात की पूछ नहीं थी ...मैंने कितने पैसे बनाए या विश्वविख्यात इंटेल कंपनी के शीर्ष पर हूँ ...बे एरिया में आठ कोठी है ...सब गौण हो गए ....अब वहां पहचान और बात का जरिया हो गया - " मै कौन हूँ / मेरी जड़ें कहाँ हैं / मेरा खून कैसा है " - 
पढ़ाई / लिखाई / पद - प्रतिष्ठा / पैसा - कौड़ी आते जाते रहता है पर सभ्यता संस्कृति ही आपकी असल पहचान होती है - वही आपके जड़ को बताती है ...उसको ज़िंदा रखना आसान नहीं होता ! फुर्सत मिले तो इस गीत को सुनिए ....कई दसक पहले ....फिजी में बसे लोग ...कैसे अपने इतिहास को ...इस गीत के माध्यम से गा रहे हैं ...उनका दर्द आपको भी महसूस हो सकता है ....कल्पना कीजिए ...एक पनिया जहाज में मजदूर बन ...निकल गए ...न जाने किस दिशा में ...महीनों उस पानी के जहाज में ....मालूम नहीं कहाँ रुके ....

@RR - १६ जुलाई - २०१४ 

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