Monday, September 29, 2014

खिलौने .....


खिलौने से हम सभी खेले हैं ! तरह तरह के खिलौने ! पर कोई कोई खिलौना तो इतना प्यारा की उसके बगैर नींद नहीं आये - तिपहिया था / लकड़ी वाला घोडा था - ऐसा लगता था - उसमे प्राण प्रतिष्ठा कर दिया गया है ! वैसे ही एक खिलौना था मेरे पास - एक संपेरा बीन बजाता हुआ - मुलायम रबर का था - गाँव के आलमीरा में रखा हुआ रहता था - उसको साथ लिए नींद नहीं आती थी - बचपन में कई फोटो मैंने उसके साथ खिंचवाए - मेरे बड़े हो जाने के बाद तक दादी उसको संभाल कर रखी थी ! दादी जब बीमार पड़ीं - तब से वो न जाने कहाँ गम हो गया ! 
कोई कलकत्ता गया तो वहाँ से कुछ लेते आया - चावी वाला - चौबीस घंटा के अंदर पुर्जा पुर्जा अलग - फिर रोना धोना - कभी चाचा के पास तो कभी बाबा के पास - बना दो - फिर से उस टूटे हुए खिलौने को चला दो - बाबा क्या नहीं करते - बनाने का कोशिश करते - नहीं बनता - बोल देते - नया आ जायेगा - पर नए वाले में वो 'प्राण' कहाँ से आएगा - वो अपनापन कहाँ से आएगा ! 
थोडा बड़ा हुए तो 'चाकू' - गाँव में हाट लगता था - हर हाट वाले दिन - एक छोटा चाकू - जिसको हम छूरी भी कहते थे - बाज़ार से घर आते आते - हाथ कट जाता - रोना नहीं है - घर पर बड़ी मार पड़ेगी - रास्ते में एक जंगल जैसा होता था वहाँ से कुछ हरे पत्तियां तोड़ कटी हुई उंगली में लगा लेना - फिर रात में उस 'छुरी' को मसनद के निचे प्यार से रख - बड़े होने का एहसास ! 
खैर ..जो भी हो ..आदमी को तमाम उम्र ..उम्र के हिसाब से खिलौना चाहिए ...कोई खास खिलौना भी ...जिसमे उसका प्राण बसता हो :))


@RR - ३० जुलाई - २०१२ 

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