Sunday, September 28, 2014

'पूर्णता' को किस मेकअप की जरुरत ..??


'उर्वशी' की भूमिका में रामधारी सिंह 'दिनकर' लिखते हैं - 
"युक्ति तो यही कहती है कि नक़ाब पहन कर असली चेहरे को छिपा लेने से पुण्य नहीं बढ़ता होगा। फिर भी, हर आदमी नक़ाब लगाता है, क्योंकि नक़ाब पहने बिना घर से निकलने की, समाज की ओर से, मनाही है। " 
अब सवाल यह उठता है - क्या नकाब पहनकर ही 'अपनो' से भी मिला जाए ? यह सवाल कठिन है - नए और पुराने जमाने के बीच की खाई को भी दर्शाता है - मसलन नए जमाने के 'साइकोलोजिस्ट' कहते हैं - एक पुत्र को पिता से ज्यादा एक मित्र की जरुरत होती है - हालांकी हमारे समाज में आज से पचीस - तीस साल पहले यह मुमकिन नहीं था - उस दौर के पुत्र अपने पिता से एक दूरी रखते थे - एक नकाब में जीते थे - माँ किसी भी दौर में नकाब में नहीं जीती थी - क्योंकी वो माँ थी - प्रेम का विशुद्ध रूप ! 
जहाँ प्रेम होगा - वहां नकाब नहीं होगा - जहाँ नकाब होगा वहां प्रेम छल के रूप में होगा तभी तो समाज में बगैर नकाब जाने की इज़ाज़त नहीं और प्रेम नकाब के साथ नहीं हो सकता - कई बार व्यक्तित्व इतना बड़ा और उंचा हो जाता है - वो बगैर नकाब ही समाज में निकल जाता है - वो अपने आप पूर्ण होता है - और 'पूर्णता' को किस मेकअप की जरुरत ...:))

@RR - १६ जनवरी - २०१४ 

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