Monday, September 29, 2014

चैत की सांझ .....


चैत के सांझ पर ...फागुन का साया होता है ...बेहद हल्की ठंडी बयार में ...मखमली दूभ पर ...देर तक नंगे पाँव टहलते रहना ...बत्तियां बुझी हों ...बेहद हल्की चांदनी में ...दूर से बस एक एहसास हो ...कोई टहल रहा है ...और जब थक जाए ...बेंत वाली कुर्सी को अपने बालकोनी में लगा ...देर रात तक ...पिघलते चाँद को निहारे ...दूर से बस एक एहसास हो ...जैसे कोई बैठा है ...चैत की मखमली बयार में ...:)) 

@RR - २२ मार्च २०१४


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