Monday, September 29, 2014

ओशो का दर्शन ....


बात बहुत पुरानी है - नौवीं दसमी में था - सब कुछ पढ़ रहा था सो रजनीश / ओशो को भी थोडा बहुत पढ़ लिया ! उसके बाद भी जब मौक़ा मिला थोडा बहुत कभी कभार पढ़ लिया करता था - पर ज्यादा नहीं ! अध्यातम और फिलॉसफी में बहुत अंतर हमको नहीं समझ में आता है - और आधुनिक भारत के एक बेहतरीन फिलौस्फार थे - रजनीश ! 
भगवान् बुद्ध और गांधी के बाद - खुद को उसी दर्ज़ा में स्थापित करने कोशिश में ओशो / रजनीश पुरी दुनिया में मशहूर हुए ! पर एक बात समझ में नहीं आयी या मुझे इसकी समझ है - इतना गहरा फिलॉसफी - इतने सारे प्रशंसक - जीवन के सच को खुलेआम कहने की ताकत - फिर भी वो कैसे और कब मायाजाल में फंस खुद का ऐसा अंत करवा लिए - कहाँ चूक हो गयी ! 
अरबों रुपैये के हीरों से जड़ा टोपी / सौ के करीब रोल्स रॉयस - सैकड़ों एकड़ में आश्रम - अमरीका में ज़िंदगी ! फिर भी अपने स्तर से काफी निचे जा कर कुछ ऐसे कार्य जो उनकी सारी फिलॉसफी धो डाली ! 
कहीं न कहीं - चाईल्ड साईंकौलौजी - कुछ कमी का आभास - और सबको पूर्ण का एहसास दिलाने वाले - खुद एक कोने से अपूर्ण से दिखे और उस अपूर्णता को भरने की कोशिश में - कब कदम डगमगा गए और जेल तक जाना पडा ! 
सबके जड़ में है - चाईल्ड साइकौलौजी - बचपन में किसी चीज़ की कमी का एहसास होना - कमी तो हर किसी के बचपन में होती है - राजा का बेटा भी किसी न किसी तरह की कमी में जीता है - पर उस कमी का 'एहसास' होना - यह खतरनाक है ! भगौलिक दुनिया में - यही कमी आपको ऊपर तक भी ले जाती है - पर काफी ऊपर जाकर - वह एहसास - कमी का एहसास - पटाखा वाले रॉकेट की तरह फटता है - जोर से - और सब कुछ वहीँ ख़त्म हो जाता है ! 
और जो खुद अन्दर से अपूर्ण है - वो दूसरों की नब्ज़ पकड़ अपना खेल तो खेल सकता है - पर किसी गैर को पूर्ण नहीं कर सकता !

@RR - 23 July - 2014 

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