Friday, October 18, 2013

चाँद है ....तुम हो ....ये धरती है ...और मै हूँ ...:))

सोलह कलाओं से परिपूर्ण ...चाँद ...आज की रात ...अपने धरती से बेहद करीब ...और चांदनी इस कदर ....धरती पर बिखरे ..जैसे 'अमृत वर्षा' ....:)) और श्री कृष्ण ...अपनी राधा के संग ...आधी रात ...यमुना तट पर ....रास ....गोपियाँ घेर लें ...और तमन्ना करें....हर रात ...ऐसी हो हो ....पर हर रात ऐसी कहाँ आती है ...बरस में सिर्फ एक बार ही तो आती है ....जब चाँद अपनी घूँघट से बाहर निकल ...खुद को परिपूर्ण बताये ...और कल्पना कीजिए ...धरती की ...चांदनी में नहाई ...वो चांदनी अमृत ही तो है ....तभी तो ..दोनों ने इस अमृत प्रेम को चख ...अमर हैं ...श्रीकृष्ण और राधा की तरह ...:)) 



रंजन ऋतुराज - पटना 

Thursday, October 17, 2013

तेरी रूह ....:))

मंदिर तो वहीँ हैं ...जहाँ तेरी रूह बसती है ...जलती है ...उस कमरे को रौशन करती है ...सुगन्धित करती है ...इस जहान में ...सबकुछ तो पत्थर ही है ...बस तेरी 'केफी' की इबाबत ने ...उस आवारे पत्थर को खुदा बना दिया ...
मंदिर तो वहीँ हैं ...जहाँ तेरी रूह बसती है ...
~ RR

चाँद डूबा है ....:))

कब समुन्दर में चाँद डूबा है 
कब बेचैन लहरों को चाँद मिला है 
आसमां का मुसाफिर है 
आसमां में ही जागता है 
आसमां में ही सोता है 

समुन्दर की लहरों की आगोश 
ज्वारभाटा है 
जो पूनम की रात आती हैं 
अमावास की रात खुद में ही बह जाती हैं 

यह खेल सदीओं पुराना है
प्रकृती को कौन जीत पाया है
कब चाँद पृथ्वी में समाया है

फिर भी उसकी जिद है
यही उसकी प्रकृती है
ना कल थका था
ना कल थकेगा
हर पूनम की रात
अपनी चांदनी के साथ
अपनी पृथ्वी के करीब आएगा
ना कुछ बोलेगा
ना कोई ख़त लिखेगा
सारी रात यूँ ही जागेगा
फिर सुबह होते ही
न जाने किस आसमां में
अगली रात तक के लिए
खो जायेगा ...
धीरे धीरे मध्यम होता जायेगा ..
अमावास की रात
दीपक के हवाले पृथ्वी को छोड़ जायेगा ..
थका हारा ..फिर एक एक रात
धीरे धीरे जागेगा ...

यही उसकी प्रकृती है
यही उसकी जिद है ...
"जिद के आगे प्रकृती भी झुकती है"
एक रात चुपके से
पृथ्वी भी अपने चाँद से मिलती है ...
और
उसके संग
उसकी चांदनी में नहाती है....:))
~ RR



रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Wednesday, October 16, 2013

चित्त तो चंचल है ....:))

बकरीद की शुभकामनाएं ...:)) 
अल्लाह को प्यारी है ..कुर्बानी ! 
कोई भी धर्म हमें यही कहता है ..हम ईश्वर से प्रेम करें ! और प्रेम ..बिना त्याग / समर्पण / कुर्बानी के सफल नहीं होता - चित्त चंचल है - कई तरह के विश्वासों और अविश्वासों के बीच चित्त अपनी चंचलता नहीं छोड़ता और चंचल चित्त से प्रेम कभी सफल नहीं होता - फिर कुर्बानी / त्याग / समर्पण हमें एक शांत चित्त की तरफ ले जाता है ! 
इंसान अपने आप में अतृप्त है ! वह भौतिक दुनिया का बेताज बादशाह है ! एक इंसान दुसरे इंसान को ही प्रेम करे और उससे ही प्रेम पाए - यही कामना उसके अन्दर होती है - पर यह आसान नहीं होता - गुलर के फूल की तरह या मृगमरीचिका ! इंसान इंसान से प्रेम करेगा ..उसकी चाहतें / अपेक्षायें बढेंगी ..फिर वो टूटेंगी - यह इंसान की प्रकृती है !
फिर ईश्वर आता है ...हमें जिस तरह से पाला पोषा गया है ...जो हमें सिखाया गया है ...वहां हम ईश्वर को सिर्फ प्रेम करते हैं ..उससे कोई अपेक्षा नहीं रख पाते ...सुख दुःख ..पाप पुण्य ..जो कुछ ईश्वर हमें देता है ...हम उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लेते हैं ...शायद यही प्रेम है ! इंसान इंसान से कई शिकायतें रखता है ...ईश्वर से कभी कोई शिकायत नहीं रखता ..:)) जैसे एक माँ अपने बच्चे से ..कभी कोई शिकायत नहीं रखती ...वो बस प्रेम करती है ...!
पर क्या ...इंसान इस ईश्वरीय प्रेम से खुद को तृप्त कर पाता है ..? थोडा ..ध्यान से सोचियेगा ...
इंसान को इंसान से ही प्रेम चाहिए ...और जिद यही की ..उस प्रेम में उसे ईश्वरीय आनंद की अनुभूती हो ...:)) मृगमरीचिका ..:))
पल भर के लिए ...यह आनंद मिल सकता है ..बशर्ते ...वह प्रेम एक त्याग / समर्पण / कुर्बानी के आधार पर खडा हो ...और उस त्याग / समर्पण / कुर्बानी की महता हो ...!
जैसे हम ईश्वर के सामने बिलकुल अपनी नंगी आत्मा लेकर खड़े होते हैं ...ठीक उसी प्रकार ..एक इंसान दुसरे इंसान के सामने ..अपने अहंकार की कुर्बानी देना चाहता है ...और जब वो अपने अहंकार की कुर्बानी देकर ..आपके सामने खड़ा हो ...ईद मिलन की तरह ..एक बार प्रेम से गला मिल के देखिये ...उसकी 'कुर्बानी' सफल हो जायेगी ..:))
फिर से एक बार ...बकरीद की शुभकामनाएं ..:))