Monday, December 24, 2012

संगमरमर में तेरे... वो निशाँ मेरे हैं ...


तन्हाईओं में तेरे... अब सारे सवाल मेरे हैं ...

चाहतों में तेरे ...सारे ख्याल मेरे हैं ...
संगमरमर में तेरे... वो निशाँ मेरे हैं ...
पिघलते रूह के ...चश्म - ए - सैलाब में 
... जब तुम देखते हो...मुझे यकीन है....

...वहां सिर्फ हम ही हम हैं .........
 ~~ RR

१६ दिसंबर - २०१२
 
कभी पूछना चाँद से 
वो पिघलता क्यों है ...
कभी पूछना आसमान से 
वो झुकता क्यों है ..
कभी पूछना गुलाब से 
वो महकता क्यों है ...
कभी पूछना सूरज से 
वो तपता क्यों है ...
कभी पूछना रात से 
वो इतना जागता क्यों है ...

कभी पूछना अपने दिल से
उसमे बसता कौन है ..
कभी पूछना अपने ख्वाबों से
उसमे आता कौन है ...

कभी पूछना अपने खुदा से
वो रहता कहाँ है ... :))
~~ RR



१४-१५ अक्टूबर , २०१२
ऐरावत से न पूछना ....तुम इतने विशाल क्यों हो ...
शिव न पूछना ...तुम नीलकंठ क्यों हो ...
दुर्गा से न पूछना ...तेरी शक्ती कहाँ से आयी ...
मुझसे न पूछना ...मेरी भक्ती कहाँ से आयी ...
~~RR


१ अगस्त - २०१२

उस चाँद को कैसे आदाब करूँ ...
जो पास आकार भी बादलों की ओट में छुप गया ....
उस चांदनी में कैसे खुद को जगमगाऊं....
जो पास आकार भी बादलों में बिखर गयी .....
~~RR

१ अगस्त - २०१२ 

कब माँगा तुझको तुझसे 
कब माँगा तुझको रब से 
माँगा तो ...कुछ 
तेरे एहसास खुद के लिए 
तेरी धडकन खुद के लिए 
तेरी चाहत खुद के लिए 
कब माँगा तुझको तुझसे 
कब माँगा तुझको रब से 
माँगा तो ...कुछ 
तेरी वफाई खुद के लिए 
तेरा जागना खुद के लिए 
तेरे ख्याल खुद के लिए 
बोलो 
कब माँगा तुझको तुझसे 
कब माँगा तुझको रब से 
~~ RR




शब्द चोट देते हैं ! शब्द मरहम लगाते हैं ! शब्द तुम्हारे पास खिंच लाते हैं ! शब्द तुमसे दूर ले जाते हैं ! लाल सूरज से लेकर चमकते चाँद तक मेरे शब्द ....अमावास की रात सितारों से जगमाते हमारे शब्द ... ...जो शब्द तुम्हे पसंद हो खुद ही चुन लेना ..कुछ मैंने भी चुने हैं ...कुछ तुम भी चुन लो ...

~~ रंजन 

Friday, December 21, 2012

सारी रात मेरे शब्द जलते रहे ...तुम पत्थर से मोम बनते रहे


२२  फरवरी - २०१२ 

इश्क एक ख़ूबसूरत एहसास है ! मन एक शांत झील की तरह है – तुम्हारी खुबसूरत निगाहें उस पत्थर की तरह हैं जो झील में जाते ही ‘इश्क’ की तरंग पैदा करती है – मै झील के किनारे से उन तरगों को देख खुश हो जाता हूँ – फिर वो तरंग खुद ब खुद शांत हो जाती है – फिर झील के दूसरे किनारे से किसी और ने एक पत्थर फेंक दिया ..ये क्या हुआ ..कह कर झील से दूर चला जाता हूँ .....बहुत दूर ..उस पर्वत पर् ..जहाँ से कोई झील नज़र ना आये ....

२३ फरवरी - २०१२

किसी सुनसान जगह पर् बनी एक मंदिर के बड़े चबूतरे पर् सो जाने को मन करता है ! नीचे से हल्की ठण्ड मिलती रहे और ऊपर से सूरज की गर्मी ! धूप जब आँखों को बर्दास्त न् हो फिर बगल के बरगद के नीचे बेफिक्र होकर सुस्ताने को जी चाहता है ! फिर अचानक उठ उन खेतों की हरियाली के बीच बिना किसी सफर के भी चलते जाने को मन करता है ! 
इस् अन्जान शहर में अन्जान चेहरों के बीच अपनी एक पहचान बनाते बनाते थक गया हूँ ! अजीब शहर है ! सुबह से शाम हो जाती है - उन अन्जान लोगों से एक रिश्ता बनाने में - फिर अगली सुबह वो फिर से अन्जान नज़र आते हैं ! यह खेल रोज का हो गया है - अब इस् खेल से मन घबराता है !

२३ फरवरी - २०१२ 

सारी रात मेरे शब्द जलते रहे ...तुम पत्थर से मोम बनते रहे .....

२५ फरवरी - २०१२ 

जाओ ..सितारों से कह दो ..आज पूनम की रात है ...

२५ फरवरी - २०१२

चमकते चाँद के घमंड को देख - सूरज रात में क्या सोचता होगा ?? करवटें बदल बदल सुबह का इंतज़ार करता होगा :-)

७ मार्च - २०१२

आज चाँद बेहद ख़ूबसूरत नज़र आ रहा है - एक बार देखा तो देखता ही रह गया ! सफ़ेद - सफ़ेद ! दिल कहता है - उस सफ़ेद चाँद को रंग में भिंगों दूँ ...हरा - नीला - पीला - लाल - गुलाबी ..कल होली है ...कल चाँद सतरंगी हो जायेगा ..

११ मार्च - २०१२

बहुत कुछ लिखने को दिल करता है - पर् मालूम नहीं कब वो शब्द आपस में मिलकर तुम्हारी तस्वीर बना देते है -जैसे मेरे शब्दों को सब कुछ पता है - फिर मेरे शब्दों से बनी तुम्हारी तस्वीर बोंल उठती हो ..कहती हो  ..कुछ देर और मुझे चादर में ही रहने दो ..
१२ मार्च - २०१२ 
ए उम्र थोडा धीरे चलो ना ...तुम्हारे साथ दौड़ते - दौड़ते थक गया हूँ ..तेरी तेज रफ़्तार मुझे बेदम कर देती हैं ..देखो ना ..जीवन के इस् खूबसूरत मोड़ पर् कितना बढ़िया नज़ारा ..तू आगे बढ़ ..मै यहीं थोडा रुक जाता हूँ ..मालूम नहीं तू कब बोंल दे ...सफर अब खत्म हुआ ..ए उम्र थोडा रुक ..न् !

१५ मार्च - २०१२ 

बर्फ पर् वो तस्वीर बनाने चला था ..........पिघल गयी ....

२४ मार्च - २०१२

आदमी विचित्र जानवर है ! जिस प्रकृति ने उसको जन्म दिया - वो ताउम्र उसी प्रकृति से लड़ता है - खुद को खुद में ही कैद कर लेता है - फिर खुद से लड़ता है - फिर एक दिन इसी प्रकृति को खुद को सौंप - विदा हो जाता है - पर् लड़ता जरुर है - बिना लड़े उसे चैन नहीं - लड़ते लड़ते जब दम घूंटने लगता है तो वो अपनी प्रकृति को खोजता है - पर् वो भी क्षण भर के लिये-फिर उस क्षण के लिये अपना सब कुछ दाँव पर् लगा देता है - इस् लड़ाई में जो कुछ जीता - वो एक तरफ और वो क्षण एक तरफ - फिर हर एक क्षण के लिये तरसता है - प्रकृति हँसती है - हँस के आदमी को अपने गोद सुला लेती है - कहती है - आदमी हो - ये लड़ाई तुम्हारे वश का नहीं - आओ ..फिर से उसी प्रकृति में समा जाओ -
कभी आपने जाना ? आपकी प्रकृति क्या कहती है ? :))
~ RR

२५ मार्च - २०१२

पत्थरों को सिर्फ कागजों पर् ही पिघलते देखा है ....
~ RR

" जब हम सितारों से मिलेंगे ...उस तन्हा चाँद को भी याद करेंगे ...." 
~ RR

२९ मार्च - २०१२

यादों के कब्र पर् ....अब तेरे नाम का भी एक दीया जला करेगा ....
~ RR
३१ मार्च - २०१२

"तेरे रूह की खुशबू से तरबतर इस् कलम पर् कुछ हक तो तेरा भी बनता है "
~ RR
८ अप्रैल -२०१२ 
जब कभी जी भर के देखना चाहा ...
एहसास - ए - जुर्म हुआ ..
~ RR

१६ अप्रैल - २०१२ 

एक जागती "भोर" से ज्यादा ताजगी कहीं नहीं है .....और एक ढलती 'सांझ' से खुबसूरत कोई नहीं है ...
~ RR

२२ अप्रैल - २०१२ 

तेरे दिए हुए ..दर्द की स्याही सूख चली है ..अब कलम कुछ और ही लिखते हैं ..
~ RR
२० मई - २०१२ 
एक दीवार कमज़ोर दिखता है ! दरार आ गयी है ! हर सुबह उस दरार पर् नज़र पड़ जाती है ! फिर दिन भर काम धंधे में इतना व्यस्त हो जाता हूँ - उस दरार को भूल जाता हूँ ! फिर शाम वही दरार फिर से नज़र आ जाती है ! उस दरार और दीवार को देखते देखते रात गुजर जाती है !
इस् दीवार पर् एक इमारत खड़ी है और इमारत के छत के नीचे मेरी जिंदगी बसर करती है !

२८ जून - २०१२

पत्थर तो पिघल जायेगा ..लेकिन मोम सा मेरा दिल ..तेरे सीने में जल के राख हो जायेगा ..
@RR

९ जुलाई - २०१२
फकीरी से बड़ी बादशाहत क्या होगी ? 
@RR

१० जुलाई - २०१२
आज भी याद है ...बस की खिडकी से आती ...बारिश की तेज बुँदे ...तुम्हारा खिडकी से हाथ निकाल उन बूदों को महसूस करना ...फिर एक तिरछी नज़र ..और फिर मेरी झुकी नज़र ..जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं ....बस उन बूदों को तुम्हारे साथ मैंने भी महसूस किया था !
आज फिर बारिश हुई है ...जब मैंने अपने तलहटी को बालकोनी से बाहर किया ...दो बूँद टपक पड़े थे ...शायद तुमने भी महसूस किया होगा ..!
@ RR
१० जुलाई - २०१२
जब अपनी मिट्टी पुकारती है ....जब अपना लहू बुलाता है ....दूर ...दूर कहीं बैठा आदमी सारे बंधन तोड़ चला आता है !
@RR


Sunday, July 22, 2012

धन्यवाद ...आप सभी का !

आजकल फेसबुक पर लिखने लगा हूँ ! वहाँ बहुत कम शब्दों में ही लिखना पड़ता है - लोगों के पास समय कम है - उन्हें कुछ क्रिस्पी चाहिए - पढ़े - लाइक बटन दबाये और चल दिए ! मालूम नहीं मेरे शब्द कितनो को याद रहता है - पर मुझे लिखना पसंद है - शब्दकोष कमज़ोर है - इसलिए थोड़ी दिक्कत होती है !

अब सोचा हूँ - अगर इतवार को फुर्सत रहा तो - यहीं ब्लॉग पर लिखूंगा - कम शब्दों में लोग बातों को समझ नहीं पाते हैं - जिसको फुर्सत होगा वो यहाँ आकर पढ़ लेगा !

हिंदी साहित्य एक बचपन से ही पसंद है ! रांची में रहता था - कभी कभी मौसी के साथ इटकी चला जाता लौटते वक्त फिरायालाल चौक पर एक पोप्पिंस और एक पराग ! अम्पक - चम्पक / चाचा चौधरी लगभग नहीं पढ़ा - उम्र सात - आठ साल रही होगी !

ननिहाल में साहित्य का चलन था - प्लस टू में था तो करीब आठ - दस साल बाद एक मामूजान के यामाहा मोटरसाइकिल पर लटक कर - ननिहाल गया था - गाँव - हैरान था - माँ के बचपन का 'पराग' और ढेर सारी पत्रिकाएं - माँ ने खुद हिंदी साहित्य से हैं और संगीत से भी उनका जुडाव रहा है - तानपुरा बजाती थी -  बड़ा तानपुरा देखा है मैंने - ननिहाल के खंडहर में ! पर माँ ने मुझे कोई ट्रेनिंग नहीं दिया - कुछ आया होगा उनसे तो वो 'खून' से ही आया होगा ! ननिहाल बुरी तरह बर्बाद / खत्म हो चुका है - लिख नहीं सकता - किसी से कह नहीं सकता - दर्द और दुःख दोनों है ! मेरे जेनेरेशन में कुछ पढ़ लिख कर - देश विदेश में नाम कमा रहे हैं - पर उन बच्चों से मेरा अपना कोई व्यक्तिगत लगाव नहीं है - ननिहाल / ममहर - तभी तक जब तक नाना - नानी / मामा ! बस ! पर आधा खून तो वहीँ का है ..न ...वो तो बोलेगा ही ! खून नहीं बोलेगा तो क्या पानी बोलेगा ?? :))

मुजफ्फरपुर में रहने के दौरान - बाबु जी एक बहुत बढ़िया काम किये - ढेर सारी मैग्जीन ! उसमे से एक था  - सारिका - आजभी उस साहित्य मैग्जीन की याद है ! बाबु जी भी पढते थे और हम भी ! बहुत ही कम उम्र में बड़े ही परिपक्व कहानीओं से पाला पड़ा ! छठी - सातवीं क्लास में खूब पढ़ा ! धर्मयुग / साप्ताहिक हिन्दुस्तान की कहानी / कादम्बिनी ! कुछ ऐसा ही पढ़ने का शौक मेरी बहन को भी है - दस साल पहले वो अमरीका गयी तो वहाँ कादम्बिनी खोजी - याद है - फोन पर बोली थी - भईया ..यहाँ कादम्बिनी मिल गयी ! :))

मैट्रीक की परीक्षा पास करने के बाद - याद है - बाबू जी बोले थे - पटना कॉलेज में एडमिशन ले लो - एक दिन वो काउंसेलिंग भी किये - हम कहाँ मानने वाले थे - जब आदमी जिद पर अडा हो - पाँव पर कुल्हाड़ी मारने के लिए - फिर कौन रोक सकता है ! फिर ..प्लस टू को बुरी तरह तहस नहस करने के बाद - एक मौक़ा और था - वापस आर्ट्स पढ़ने के लिए - पर नसीब में कुछ और लिखा था - जीवन के सफर को लेकर बुरी तरह डर चुका था ...इस डर में ही न जाने कितने साल सोया रहा ....जागा तब तक ...शाम हो चली है ....अब रात का भय सताता है ...!

प्लस टू में था तो एक मामा जान हैं / थे - यामहा मोटर साइकिल और हाथ में रीडर्स डाइजेस्ट ! हमको भी शौक हुआ - ताज्जुब है ..अंग्रेज़ी गोल होते हुए भी ..रीडर्स डाइजेस्ट से आज तक प्यार है ! खुशी तब होती है - जब आज के दिन रीडर्स डाइजेस्ट आता है - पुत्र महोदय भी उसी चाव से पढते हैं !

कॉलेज के जमाने पास - फेल में ही व्यस्त रहा ! अंतिम वर्ष में 'निखरने' का मौका मिला - एक गीत खुद से लिखा - बाबा सहगल का प्रभाव था - वो भी इंजिनियर थे - फिर क्या 'धूम' ! अत्लाफ असलम को देख वो सारे दृश्य याद आते हैं ! वो एक स्टारडम था - कुछ पल का - शोर - वन्स मोर का - आप सफ़ेद फ्लोपी शर्ट - काला जींस - काला वेस्ट कोट पहन स्टेज से कूदते हैं - जिससे आज तक कभी नैनो को छोड़ बात नहीं किया - उसका जुबान पहली और अंतिम दफा खुलता है - वन्स मोर ..मेरे लिए ! कहानी समाप्त !

शादी विवाह / नौकरी छोड़ भगोरा / बिजनेस डूब जाना - परेशान हो गया था - पिता जी का प्रेशर - उनका इज्जत - दस साल पहले नॉएडा आ गया ! उस साल एक बढ़िया काम हुआ - एक नया कंप्यूटर मेरे केबिन में लग गया - मालूम नहीं मेरे तब के एच ओ डी मुझे क्यूँ बहुत मानते थे - किसी से उनको कहते सुना था - रंजन इज अ हम्बल गाई ..वेरी सोबर ...! :( नो आइडिया ! इंटरनेट से जुडा था - पर यहाँ तब ढेर सारे याहूग्रुप से जुड गया ! कुछ बदमाशी सूझी = मैंने अपना आईडी "मुखिया जी" रखा ! फिर ..धडाम ..धडाम मेल लिखने लगा ...मेरे गहरे मित्र 'सर्वेश उपाध्याय' ने एक दिन मुझसे कहा ....रंजन जी ..उस दौर में ..आपके मेल पढ़ने के पहले ..लोग हनुमान चालीसा पढ़ लिया करते थे ! हा हा हा ...सर्वेश खुद कई ग्रुप के मोडरेटर होते थे ...मुझे ब्लोक करते करते थक चुके थे ...पर दोस्ती और एक दूसरे के लिए बहुत आदर और स्नेह ..टचवूड !

इसी बीच ..मैंने 'लोहा सिंह - रामेश्वर सिंह कश्यप' से मिलाता जुलता कुछ लिखा - रोमन लिपि में - हिंदी में - संजीव कुमार राय भैया बहुत पसंद किये - पीठ ठोक दिए ! वो खुद साहित्य के प्रेमी हैं ...! फिर मैंने एक कहानी लिखी - 'विजय बाबु की कहानी' जो  अमरीका के सुलेखा डॉट कौम पर आया - पर रोमन लिपि में ही था - कितनो को पसंद आया - पता नहीं ! फिर दूसरी कहानी - टूनटून बाबु की कहानी - फिर संजीव भैया पीठ थपथपा दिए ! फिर होली दीपावली छठ को लेकर लिखने लगा - याहूग्रुप पर - एक दिन लिखा - मैट्रीक परीक्षा पर - संजीव भैया को भेज दिया - उधर से जबाब आया - देवनागिरी में लिखो - ब्लॉग खुल गया :))

ब्लॉग खुलने के बाद - सर्वेश जी और संजय शर्मा भैया जी तोड़ मेहनत किये - कैसे इसकी लोकप्रियता बढाई जाए :)) सच में - दालान उनलोगों का कर्ज़दार है - संजय भैया खुद भी बहुत बढ़िया लिखते हैं - सहारा में काम करते हैं - साहित्य को बहुत पढ़े हैं !

फेसबुक को समझते - समझते में ही दो आईडी बर्बाद हो गए :( जब समझ में आया - सावधान हो गया ! दो साल पहले मैने  एक सीरीज शुरू की - 'मेरा गाँव - मेरा देस' ! पहला पोस्ट में ही देश के विख्यात पत्रकार 'विनोद दुआ' साहब फेसबुक पर कमेन्ट कर गए - बहुत बढ़िया लिखते हो - खूब लिखो ! यह कमेन्ट एक जादू था - आप अपने परिवार के बारे में लिख रहे हैं और आपका पीठ ऐसा आदमी थपथपा रहा है - जिसको टीवी पर देख आप बड़े हुए हैं ! आज भी मेरी नज़र में वो टीवी के हिंदी में सबसे बढ़िया पत्रकार हैं - पर दुर्भाग्य वश - मै उनसे उलझ गया - दुःख है पर मेरे पास कोई और चारा नहीं था ! पर सर मै आज भी आपकी बहुत इज्जत करता हूँ !

फिर पटना के हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र ने पटना में एक परिचर्चा की - वहाँ के पत्रकार 'प्रशांत कक्कर ' जी ने मुझे भी न्योता भेजा - कमलेश वर्मा सर ने मेरी बातों को छाप दिया - मेरा शहर मुझे लौटा दो :)) पुरे एक पेज में !

यह एक आम आदमी की सोच है - कोई भी आम इंसान खुद को अखबार में देख खुश होना लाजिमी है - जब तक उस परिचर्चा में शहर के नामी गिरामी लोगों के साथ बैठे हों और संपादक आपके शब्दों को ऊपर उठा दे - अजीब सी अनुभूती होती है !

रवीश कुमार उनदिनो दिल्ली हिंदुस्तान के लिए लिखते थे - एक दिन वो भी छाप दिए ! गौरव की बात थी ! फिर एक दिन - कमलेश सर का फोन आया मुझसे दालान के बारे में कुछ पूछे - अगले दिन पटना के प्रथम पृष्ठ पर - दालान की चर्चा - रवीश कुमार के ब्लॉग के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय ! अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था - लिखता गया - आम लोगों की कहानी - लोग खुद को मेरे शब्दों में खोजने लगे !

छठ पूजा के दौरान - मैंने छठ पूजा पर लिखा - लिखते - लिखते रोने लगा - लिखता गया ! फिर शांत मन से पोस्ट किया - शैलेन्द्र भारद्वाज सर का कमेन्ट आया - साक्षात सरस्वती आपके कलम पर हैं ! यह एक ऐसा कमेन्ट था - जिसे किसी भी मेरे जैसे आम आदमी के लिए भूलना मुश्किल है - शैलेन्द्र भारद्वाज सर खुद हिंदी के जानकार हैं और हिंदी में ही यूपीएससी कम्पीट किये ! बेहद शालीन व्यक्तित्व ! छठ वाले पोस्ट को पढ़ - पत्नी भी रोने लगी थी - तब मुझे समझ में आया था - शब्द कहाँ तक पहुँच सकते हैं !

'मेरा गाँव - मेरा देस' को लेकर कुछ नेगेटिव प्रतिक्रिया भी आई - फिर लिखना कम हो गया ! खुद के लिखे शब्दों को मशहूर करने का फेसबुक ही एक जरिया था / है - पर वहाँ लोग कम समय के कारण - लिंक कम खोलते हैं - सो छोटा - छोटा लिखने लगा ! कई बात समझने के लिए - लोगों के ऊपर ही छोड़ देता हूँ !

गाँव में घुमने वाले जोगी और उनकी माँ के दर्द को लेकर बहुत कम शब्दों में कुछ लिखा था - कई लोग पसंद किये - उसपर एक कहानी भी लिखी जा चुकी है - इस पर चर्चा बाद में ...पर बेहद खुशी हुई / है !

संकोची हूँ - बहुत कुछ खुल कर नहीं लिख पाता - सिवाय झगडा होने पर - एक पत्थर उठा के देखिये - अभी पत्थर आपके हाथ में ही रहेगा - इधर से इतनी बौछार होगी की ...आप भूल जायेंगे ..ये वही 'सोबर आदमी' है - संकोची ! इस चक्कर में कई बढ़िया रिश्ता खराब हो जाता है :((

खैर ..आदमी हर वक्त क्रिएटिव नहीं रह सकता ..सो कभी कभी बहुत बेकार लिखना पड़ता है - समाज है - समाज में हर तरह के लोग होते हैं - और 'दालान' का दायरा बहुत बड़ा है !

पर अन्तोगत्वा ..मेरे जैसे लेखक को ...टीआरपी चाहिए ...प्रशंशक चाहिए ....प्रसंशा / पैसा सबको पसंद है ....मै कोई अपवाद नहीं !


करीब चार महीनो बाद लंबा पोस्ट लिख रहा हूँ ..मालूम नहीं ...इन्स्टैंट राइटर हूँ ...बिना कुछ सोचे समझे ...एक सांस में लिख देता हूँ ...संडे है ..फुर्सत मिले तो ..एक लाइक / कमेन्ट :))


दालान - इंदिरापुरम !

Monday, March 5, 2012

मेरा गाँव - मेरा देस - होली पार्ट - २

सुबह सुबह किसी ने पूछ दिया - इंदिरापुरम में आप लोग होली कैसे मनाते हैं ? अब हम क्या बोलें - कुछ नहीं - सुबह से पत्नी - दही बड़ा , मलपुआ , मीट और पुलाव बनाती हैं ! दिन भर खाते हैं - ग्यारह बजे अपने फ़्लैट से नीचे उतर कुछ लोगों को रंग / अबीर लगाया - फोन पर् टून् - टून् फोन किया - एसएमएस किया और एसएमएस रिसीव किया - दोपहर में स्कूल - कॉलेज के बचपन / जवानी वाले दोस्तों की टीम आएगी - सभी के सभी बेहतरीन व्हिस्की की बोतल हाथ में लिये - घिघिआते हुए पत्नी की तरफ देखूंगा - वो आँख दिखायेगी - हम् निरीह प्राणी की तरह उससे परमिशन लेकर - दो घूँट पियेंगे - गला में तरावट के लिये - तब तक दोस्त महिम लोग 'मीट और पुआ' खायेगा - फिर लौटते वक्त - थोडा बहुत अबीर ! हो गया होली - बीन बैग पर् पसर के टीवी देखते रहिए ! 

मुह मारी अइसन होली के :( 

क्या सभ्यता है :) मदमस्त ऋतुराज वसंत में होली - बुढ्ढा भी जवाँ हो जाए - एकदम प्रकृति के हिसाब से पर्व - त्यौहार !  

होली बोले तो - ससुराल में ! जब तक भर दम 'सरहज - साली - जेठसर ' से होली नहीं खेला ..क्या खेला ? और तो और पहली होली तो ससुराल में ही मनानी चाहिए ! 'देवर - नंदोशी' से अपने गालों में रंग नहीं लगवाया - फिर तो जवानी छूछा ही बीत गया ! समाज के नियम को सलाम ! मौके के हिसाब से स्वतंत्रा मिली हुई है - मानव जाति एक ही बंधन में बंध के ऊब जाता है - शायद - तभी तो ऐसे रिश्ते बनाए गए ! एक से एक बुढ्ढा 'ससुराल' पहुंचाते ही रंगीन हो जाता है ;) 

दामाद जी अटैची लेकर ससुराल पहुँच गए - पत्नी पहले से ही वहाँ हैं - कनखिया के एक नज़र पत्नी को देखा - भरपूर देखा - सरहज साली मिठाई लेकर पहुँच गयी ! पत्नी बड़े हक से 'अटैची' को लेकर कमरे में रख दी !   तब तक टेढा बोलने वाला - हम उम्र 'साला' पहुँच गया - पूछ बैठेगा - का मेहमान ..बस से आयें हैं  की कार से  ..ससुर सामने बैठे हैं ..आपको उनका लिहाज भी करना है ..लिहाज करते हुए जबाब देना है ...दामाद बाबु कुछ जबाब देंगे ..जोर का ठहाका लगेगा ...तब तक रूह आफजा वाला शरबत लेकर 'सास' पहुँच जायेंगी - बड़ी ममता से आपको देखेंगी ...'सास - दामाद' का रिश्ता भी अजीब है .."घर और वर्" कभी मनलायक नहीं होता ..कैसा भी घर बनवा दीजिए ..कुछ कमी जरुर नज़र आयेगी ..बेटी के लिये कैसा भी वर् खोज लाईये ..कुछ कमी जरुर नज़र आयेगी ! 

होली कल है ! अब आप नहा धो कर 'झक - झक उज्जर गंजी और उज्जर लूंगी' में हैं - दक्षिण भारतीय सिनेमा के नायक की तरह ! छोटकी साली को बदमाशी सूझेगी - आपके सफ़ेद वस्त्रों को कैसे रंगीन किया जाए ..वो प्लान बना रही होगी ...बहन का प्यार देखिये ..वो अपना सारा प्लान अपनी बड़ी बहन यानी आपकी  पत्नी को बता देगी ..और आपकी पत्नी इशारों में ही आपको आगे का प्लान बता देगी ...बेतिया वाली नयकी सरहज भी उसके प्लान में शामिल हो जायेगी ...[ आगे का कहानी सेंसर है ] 

आज होली है ...बड़ी मुद्दत बाद आप देर रात सोये थे ;) ...सुबह देर से नींद खुली नहीं की ..सामने स्टील के प्लेट में पुआ - पकौड़ी तैयार है ...जितना महीन ससुराल ..उतने तरह के व्यंजन ...तिरहुत / मिथिला में तो पुरेगाओं से व्यंजन आता है ..'मेहमान' आयें हैं ..साड़ी के अंचरा में छुपा के ..व्यंजन आते हैं ..अदभुत है ये सभ्यता ! 

अभी आप व्यंजन के स्वाद ले ही रहे हैं ...तब तक आपका टीनएज साला ...स्टील वाला जग से एक जग रंग  फेंकेगा ...आप बस मुस्कुराइए ..उसको ससुर जी के तरफ से एक झिडक मिलेगी ..वो भाग जायेगा ..अब आप होली के मूड में हैं...तब तक आपका हमउम्र साला आपसे कारोबार का सवाल पूछने लगेगा ...आप अंदर अंदर उसको मंद बुध्धी बोलेंगे - साले को यही मौक़ा मिला था ..ऐसा सवाल पूछने का ..बियाह के पहले काहे नहीं पता किया था ..! हंसी मजाक का दौर ...खाते - पीते समय गुजरने लगेगा ...तब तक ..सुबह से गायब एक और साला जो थोड़ा ढीठ और मुहफट है ...आपको इशारा से एक कोना में बुलाएगा ..आप सफ़ेद लूंगी संभालते हुए उसके पास पहुंचेंगे ...वो धीरे से पूछेगा ...'मेहमान ..आपको 'चलता' है ? न् "...अब आपको यहाँ एकदम शरीफ जैसा व्यव्हार करना है ...पत्नी ने जैसा कल रात समझाया था ..वैसा ही ...आप उसको बोलेंगे ...'क्या "चलता" है ? ' वो गुस्सा के बोलेगा - अरे मेरे गाँव के राम टहल बाबु का बेटा आर्मी में है ...सबसे बढ़िया वाला लाया है ..कहियेगा तो इंतजाम हो जायेगा ...आप चुप चाप उसको एक शब्द में कुछ ऐसा जबाब दीजिए जिससे वो समझ जाए ..आप आज नहीं 'लेंगे' !

अचनाक से आपको युद्ध वाला माहौल नज़र आएगा - चारों तरफ से - छोटका साला , साली , सरहज आप पर् रंगों का बौछार करेंगे ..यहाँ तक की घर में काम करने वाली 'मेड' भी ! आप अपने स्वभानुसार प्रतिक्रिया देंगे ...अब देखिये ..अभी तक आपके ससुर जी जो आपके बगल में बैठे थे ...वो धीरे से उठ कर अपने कमरे में चले गए ....आपने पत्नी की तरफ एक शरारत भरी नज़र से देखा और .....होली शुरू :)))

[ यह पोस्ट एक कल्पना है ... पसंद आया हो तो एक लाईक / कमेन्ट ]

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, March 4, 2012

मेरा गाँव - मेरा देस - पटना की होली

छठ / होली में जो अपने गाँव - घर नहीं गया - वो अब 'पूर्वी / बिहारी' नहीं रहा ! मुजफ्फरपुर / पटना में रहते थे तो हम लोग भी अपने गाँव जाते थे - बस से , फिर जीप से , फिर कार से ! जैसे जैसे सुख सुविधा बढ़ने लगा - गाँव जाना बंद हो गया ! अब पटना / नॉएडा / इंदिरापुरम में ही 'होली' मन जाता है ! चलिए ..होली की कुछ यादें ताजा करते है ! 

चलिए आज पटना की होली याद करते हैं ! होली के दस दिन पहले से माँ को मेरे कुर्ता - पायजामा का टेंशन हो जाता था क्योंकी पिछला साल वाला कुर्ता पायजामा छोटा हो चुका होता ! मेरा अलग जिद - कुछ भी जाए - 'सब्जीबाग' वाला पैंतीस रुपैया वाला कुर्ता तो हम किसी भी हाल में नहीं पहनेंगे ! बाबु जी का अलग थेओरी - साल में एक ही दिन पहनना है ! बाबु जी उधर अपने काम धाम पर् निकले - हम लोग रिक्शा से सवार - हथुआ मार्केट - पटना मार्केट  ! घूम घाम के कुछ खरीदा गया ...सब बाज़ार में 'हैंगर में लटका के कुर्ता रखता था ..झक झक उजला कुर्ता ! पटना मार्केट के शुरुआत में ही एक दो छोकरा लोग खडा रहता - हाथ में पायजामा का डोरी लेकर ;) आठ आना में एक ;)

अब कुर्ता - पायजामा के बाद - मेरा टारगेट 'पिचकारी' पर् होता - गाँव में पीतल का बड़ा पिचकारी और शहर में प्लास्टिक :( 'सस्तऊआ प्लास्टिक का कुछ खरीदा गया - रंग के साथ - हम हरा रंग के लिये जिद करते - माँ कोई हल्का रंग - किसी तरह एक दो डिब्बा हरा रंग खरीद ही लेता था !

धीरे धीरे बड़ा होते गया ...पिता जी के सभी स्टाफ होली में अपने गाँव चले जाते सो होली के दिन 'मीट खरीदने' का जिम्मा मेरे माथे होता था ! एक दिन पहले जल्द सो जाना होता था ! भोरे भोरे मीट खरीदने 'बहादुरपुर गुमटी' ! जतरा भी अजीब ..स्कूटर स्टार्ट नहीं हो रहा ...टेंशन में साइकिल ही दौड़ा दिया ..हाँफते हुन्फाते हुए 'चिक' के पास पहुंचे तो देखे तो सौ लोग उसको घेरे हुए है ..देह में देह सटा के ..मेरा हार्ट बीट बढ़ गया ...होली के दिन 'खन्सी का मीट' नहीं खरीद पायेंगे ...जीना बेकार है वाला सेंटीमेंट हमको और घबरा देता था ...इधर उधर नज़र दौडाया ...डब्बू भईया नज़र आ गए ...एक कोना में सिगरेट धूकते हुए ...सुने थे ..डब्बू भईया का मीट वाला से बढ़िया जान पहचान है ...अब उनके पास हम सरक गए ...लाइए भईया ..एक कश हमको भी ..भारी हेडक है ..ई भीड़ देखिये ..लगता है हमको आज मीट नहीं मिलेगा ...डब्बू भईया टाईप आईटम बिहार के हर गली मोहल्ला में होता है ..हाफ पैंट पहने ..एक पोलो टी शर्ट ..आधा बाल गायब ...गला में ढेर सारा बध्धी ..हाथ में एक कड़ा ...स्कूटर पर् एक पैर रख के ..बड़े निश्चिन्त से बोले ...जब तक हम ज़िंदा है ..तुमको मीट का दिक्कत नहीं होगा ..उनका ई भारी डायलोग सुन ..दिल गदगद हो गया ...तब उधर से वो तेज आवाज़ दिए ....'सलीम भाई' ...डेढ़ किलो अलग से ..गर्दन / सीना और कलेजी ! तब तक डब्बू भईया दूसरा विल्स जला लिये ..अब वो फिलोसफर के मूड में आने लगे ..थैंक्स गोड..सलीम भाई उधर से चिल्लाया ...मीट तौला गया ! जितना डब्बू भईया बोले ...उतना पैसा हम दे दिए ...फिर वो बोले ..शाम को आना ...मोकामा वाली तुम्हारी भौजी बुलाई है ! डब्बू भईया उधर 'सचिवालय कॉलोनी' निकले ...हम इधर साइकिल पर् पेडल मारे ...अपने घर !
मोहल्ला में घुसे नहीं की ....देखे मेरे उमर से पांच साल बड़ा से लेकर पांच साल छोटा तक ...सब होली के मूड में है ! सबका मुह हरा रंग से पोताया हुआ ! साइकिल को सीढ़ी घर में लगाते लगाते ..सब यार दोस्त लोग मुह में हरा रंग पोत दिया ! घर पहुंचे तो पता चला - प्याज नहीं है ...अब आज होली के दिन कौन दूकान खुला होगा ...पड़ोस के साव जी का दूकान ..का किवाड आधा खुला नज़र आया ...एक सांस में बोले ...प्याज - लहसुन , गरम मसाला ..सब दे दीजिए ...! सब लेकर आये तो देखा ..मा 'पुआ' बना दी हैं ...प्याज खरीदने वक्त एक दो दोस्त को ले लिया था ...वो सब भी घर में घुस गए ...मस्त पुआ हम लोग चांपे ..फिर रंगों से खेले ! 

कंकरबाग रोड पर् एक प्रोफेशनल कॉलेज होता है - यह कहानी वहीँ के टीचर्स क्वाटर की है - हमलोग के क्वाटर के ठीक पीछे करीब दो बीघे के एक प्लाट में एक रिटायर इंजिनियर साहब का बंगलानुमा घर होता था ! हमारी टोली उनके घर पहुँची ! बिहार सरकार के इंजिनियर इन चीफ से रिटायर थे - क्या नहीं था - उनके घर ! जीवन में पहली दफा 36 कुर्सी वाला डाइनिंग टेबुल उनके घर ही देखा था ! एकदम साठ और सत्तर के दसक के हिन्दी सिनेमा में  दिखने वाला 'रईस' का घर ! पिता जी के प्रोफेशन से सम्बंधित कई बड़े लोगों के घर को देखा था - पर् वैसा कहीं नहीं देखा ! हर होली में मुझे वो घर और वो रईस अंदाज़ याद आता है ! 

देखते देखते दोपहर हो गया - मीट बन् के तैयार ! अब नहाना है ! रंग छूटे भी तो कैसे छूटे ...जो जिस बाथरूम में घुसा ..घुसा ही हुआ है :)

क्रमशः 




रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Monday, February 13, 2012

स्टेटस सिम्बल - पार्ट 4

राजेंद्रनगर ओवरब्रीज के पास कंकरबाग में 'चौरसिया पान दूकान' पर् शर्मा जी भेंटा गए ! शर्मा जी उम्र में काफी बड़े हैं पर् हम सभी उनको शर्मा जी ही कहते हैं ! पटना की एक मात्र इंडस्ट्री - ओल्ड सेक्रेटेरिएट में काम करते हैं - अब वो किस पोस्ट पर् हैं - मुझे नहीं पता ! मंकी कैप - एक बड़ा चादर लपेटे हुए अपने वेस्पा से वो थे ! आदतन हम पूछ दिए - तब ..शर्मा जी ...बेटी का बियाह तय हो गया ? मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले - हाँ , रंजू बाबु ..तय हो गया :) ! हम पूछे ..कहाँ किये ? वो अब शुरू हो गए - ' मेरे होने वाले समधी 'फलाना बाबु' इंजिनियर इन चीफ हैं - तीन बार तो सस्पेंड हुए हैं और एक बार 'इनकम टैक्स' का छापा भी पड़ा है ! आपका नॉएडा वाला बिल्डर भी इनके संपर्क में रहता है , बोरिंग रोड में दूकान है - इनकम टैक्स वाला का ताला लगा हुआ है - एक सुर से वो अपने समधी के 'सस्पेंसन और छापा' का कहानी एक सांस में सुना दिए ! हम भी सुन लिये ! अंत में हम बोले - चलिए ..बेटी को सुख होगा ! 

इंदिरापुरम में फ़्लैट ख़रीदे नहीं की - बिल्डर लोग के यहाँ 'छापा' पडने लगा ! हम त घबरा गए - लगता है - पईसवा डूबा ..का ?  छापा के दिन हम कितना परेशान थे - कॉलेज से भागे भागे आये - बजाज चेतक स्कूटर से पूरा इंदिरापुरम का चक्कर लगाए - दूर से सब देख रहे थे ! इनकम टैक्स वाला चला गया - भाई लोग से पूछे - क्या हुआ ? भाई लोग बोला - कुछ नहीं ..इनकम टैक्स कमिश्नर गिडगिडा रहा था - कुछ तो 'डीक्लेयर' कर दो - वरना वापस डिपार्टमेंट में क्या मुह दिखायेंगे ! बाद में पता चला - बिल्डर भाई को - बिल्डर समाज में इज्जत नहीं मिल रहा था - छापा पड़ने के बाद - इज्जत में भारी उछाल आया - पंजाबी बिरादरी के बिल्डर्स में अपना 'बिहारी भाई' भी शामिल हो गया - अब 'पार्टी' होता है तब अपना 'बिहारी बिल्डर्' को भी बुलाया जाता है ! फ़्लैट भी दनादन बिकने लगे - कस्टमर को कनफिडेंस आ गया - बिल्डर बड़ा पार्टी है - तब न इनकम टैक्स का छापा पड़ा है ! 

पटना में एक डाक्टर दम्पती होते हैं - अंतरजातीय विवाह किये हैं - नालंदा जिला के ! स्कूटर से घुमते नज़र आ जाते थे - हम तो सीधा मुह बात भी नहीं करते - मालूम नहीं कहाँ से पैसा आ गया - छापा पड गया ! छापा क्या पड़ा - अब वो बड़े डाक्टर के समाज में उठना - बैठना शुरू कर दिए - मुश्किल से एक एक्स रे चलाने वाले - अब सीटी स्कैन और एम आर् आई के मलिक हो गए ! मैडम मिल गयीं - हम पूछ बैठे - का मैडम ..इनकम टैक्स वाला कुछ लेकर गया है की ..कुछ देकर ? हद हाल है ! वैसे भी पटना का डाक्टर समाज पूर्णतः 'फयूडल सिस्टम' पर् आधारित है - अब इस् फयूडल सिस्टम में अपना जगह बनाने का एक ही रास्ता सुगम है - आपके यहाँ इनकम टैक्स का छापा पड़े ;) 

दिल्ली में कुछ बिजनेस मैन दोस्त हैं - छापा पड  गया - छापा पड़ते ही मुझे खबर आ गयी - हम सोच में पड़ गए - मुझे उन्हें सांत्वना देना चाहिए या बधाई - हम चुप रह गए - दो तीन दिन तक हम फोन नहीं किये - किसी तीसरे से खबर आई - वो मुझसे मुह फूला लिये हैं - बेवजह एक बढ़िया सम्बन्ध - नेवता पेहानी तक बंद हो गया :(  एक बचपन से मुझमे यह कमी है - समय पर् मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है :( 

पटना में ससुराल वाले हमेशा परेशान रहते हैं - जब तब कोई इनकम टैक्स कमिश्नर हड़का देता है ! दरअसल उसमे बहुत पेंच है - एक पेंच 'जात पात' वाला है !

एक मित्र हैं - दवा के कारोबारी ! उनके ससुर जी बिहार सरकार में हैं ! हर महीना में एक दिन वो 'छापा' वाला कहानी सूना देते हैं - पैसा वाले हैं ..सुनना पड़ता है ..कैसे अचानक इनकम टैक्स वाला उनके ससुर  जी के यहाँ आया ..कैसे सारा पैसा वो अपने घर में 'डाइनिंग' टेबुल पर् रखे ...फिर अचानक इनकम टैक्स वाला उनके घर आ गया ...सारा पैसा डाइनिंग टेबुल पर् ही मिल गया ...कैसे वो केस लड़े ..फिर कैसे जीत गए ..और कैसे उनका सारा ब्लैक ..बिना खर्च के व्हाईट हो गया ! सुनना पड़ता है ...हाथ ऊपर कर के ..जम्हाई लेते हुए ..उनका कहानी ! 

एक भैया हैं - बिहार के एक बहुत ही बड़े खानदानी परिवार से आते हैं - अलायड अफसर हैं - आई आर् एस अफसर की ट्रांसफर पोस्टिंग उनके जिम्मे थी ! एक बार घर पर् आये ..संभवतः मेरी बहुत इज्जत करते हैं ! हम बोले ..बढ़िया नौकरी है - बोले बस तीन साल के लिये ही मिनिस्ट्री ऑफ फाईनांस में हूँ - दो घंटा मेरे घर रुके - उस दो घंटा में बीस चीफ कमिश्नर और चार्टेड एकाउंटेंट का फोन आया - अंत में वो फोन बंद कर दिए ! हम बोले - चीफ कमिश्नर लोग का फोन तो ठीक है ...ई 'चार्टेड एकाउंटेंट लोग काहे फोन कर रहा है ?'  हंसने लगे ...बोले ..चुप चाप 'पढ़ने - पढाने का काम करो' ...ज्यादा दिमाग मत लगाओ ! हम भी चुप रह गए ! 

पूर्वी दिल्ली में एक मोहल्ला है 'लक्ष्मी नगर' ...जिस तरह कंकरबाग पटना में हर मकान में एक डाक्टर ..वैसे ही यहाँ हर एक मकान में 'चार्टेड एकाउंटेंट' ...दिन भर 'ब्लैक का व्हाईट' व्हाईट का ब्लैक' - मेरा अनुमान है - इस् मोहल्ले से प्रतिदिन करीब 'पांच सौ करोड़' रुपैये 'धुलाते' हैं ! दो प्रतिशत का खर्च है ..क्या दो कहता है ..सब ...'पैसा घुमा देना' ..हा हा हा हा हा हा ! इस् तरह का कहानी सुन के ..पैसा क्या घूमेगा ..मेरा दिमाग घूमने लगता है ....हा हा हा हा हा हा ....पुरे विश्व में आर्थिक मंदी आई ..भारत बच गया ...एक वरिष्ठ सज्जन ने कहा - भारत की इकोनोमी को 'ब्लैक मनी' 'टाने' हुए है..गिरने नहीं देता है ... ! 

कुछ भी कहिये ...समाज के अपने नियम कानून हैं ...इज्जत पाना है तो कम से कम एक बार 'इनकम टैक्स' का छापा तो होना ही चाहिए ...वरना ऐसा लगेगा ...ये जीवन छूछा ही गुजर गया ...



रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Monday, January 23, 2012

दलाली कहाँ नहीं है - पार्ट वन

दलाली कहाँ नहीं है ! किस धंधा - पेशा में नहीं है ! समाज ने इसको स्वीकार किया है ! हाँ , इस् दलाली में इतने जल्द पैसे बनते हैं - वो भी बहुत कम मेहनत में - जिसके कारण इसको इज्जत नहीं मिल पाती है ! चलिए ...कुछ कहानी सुनाता हूँ - आराम से पढियेगा - बिना किसी द्वेष के - मैंने भी दलाली दिया और कमाया है - सभी किस्से यहाँ मिलेंगे - :) 

दस साल पहले नोयडा आये थे - कुछ दिन बैचेलर दोस्तों के साथ रहते हुए - नौकरी करते हुए - किराया का मकान खोजने लगा - कॉलेज के आस पास ही ! एक दोस्त है - उनदिनो वो एक पब्लिक सेक्टर कंपनी में थी - कदमकुआं का खांटी पटनहिया ! कॉलेज में मेरा रूम पार्टनर भी होता था - उसका अपना फ़्लैट नॉएडा में था  - कार थी - पत्नी भी इंजिनियर ! सुखी संपन्न छोटा परिवार ! एक शाम उसके घर पहुंचे - बोले , भाई मेरे ..एक किराया का फ़्लैट खोज दो - अपने मोहल्ले में ही ! झल्ला गया - बोला , एक तुम ..ऊपर से भूमिहार ! हम रिस्क नहीं ले सकते .कब कहाँ 'मार्' करवा दोगे कोई ठीक नहीं - उसकी बातें सुन मुझे बहुत गुस्सा आया - पर् वो सही था ! फिर एक दूसरा दोस्त - बोला , काहे घबराता है - 'ब्रोकरेज दोगे ? तो एक चीफ इंजिनियर है - वो फ़्लैट के किराया का काम करते हैं - फलाना नंबर फ़्लैट में रहते हैं ! अंधा को और क्या चाहिए - मै भागा - भागा उस चीफ इंजिनियर के पास गया - उन्होंने मुझे एक फ़्लैट चार हज़ार  रुपैया महीना किराया पर् दिलवा दिया - रेंट अग्रीमेंट भी बनवा दिए - मै खुश था - अंत में उन्होंने मुझसे दो हज़ार रुपैये लिये ! मै हैरान और परेशान था ! चीफ इंजिनियर और किराया का काम और दलाली ! मैने तो पटना - कंकरबाग में कई चीफ इंजिनियर के मकान और गाड़ी देखे थे ! एक दोस्त जो उम्र में थोडा बड़ा था - बोला - नेता , पब्लिक सेक्टर का चीफ इंजिनियर है - बिहार सरकार का नहीं - और अगर वह ये सब नहीं करेगा तो ...फिर वो चुप हो गया ..मै समझ गया ! पर् मै आज तक उस चीफ इंजिनियर को शुक्रिया अदा करता हूँ ! 

नॉएडा आने के पहले - पटना - कंकरबाग में खुद का एक छोटा कंप्यूटर सेंटर होता था - जिसको मेरी पत्नी 'पान के दूकान' से ज्यादा दर्जा नहीं देती थी :( खैर ...शुरुआत तो मैंने सॉफ्टवेयर डेवेलोपमेंट से की थी - पर् बाद में वो इंस्टीच्युट बन् गया ! इग्नू के विद्यार्थी आते थे ! एक दिन जान पहचान एक हम उम्र लडकी का फोन आया - हमारे बैच की सर्वोत्तम और भारत के सबसे बेहतरीन संस्था से इंजिनियर फिर एमबीए ! फोन की - आर् आर् , क्या कर रहे हो ? बड़ी मुद्दत बाद बात हो रही थी - हम बोले - क्या करेंगे - 'पान का दूकान' चला रहे हैं - वो हंसने लगी - बोली - मुझे अमरीका जाना है - 'जावा' सिखा दो - हम पूछे कब जा रही हो ? बोली - देखो ...एक ब्रोकर से बात चल रही है ! 'ब्रोकर' सुन मेरा कान खडा हुआ ...माथा धर लिये ...देश के बेहतरीन संस्था से पढ़ कर अमरीका में नौकरी के लिये - ब्रोकर ? :( फिर वो समझाई - आई आई टी के बूढ़े - बूढ़े अलुम्नी आज कल यही काम कर रहे हैं - इसको 'बौडी शौपिंग' कहा जाता है ! फिर मैंने उसको पटना के एक बढ़िया कंप्यूटर इन्स्टिच्युट का पता बता दिया - बात शायद 1999 की है ! वो अमरीका गयी - और विश्व के बेहतरीन स्कूल से एमबीए की दूसरी डिग्री भी ली ! पर् ..अमरीका जाने के लिये उसको 'बौडी शॉपर' (( बुढा आई आई टी अलुम्नी ) का ही सहारा लेना पड़ा था ! 

नॉएडा में फ़्लैट लेने के एक महीना बाद मैंने परिवार को बुला लिया - जिस दिन मेरा परिवार नई दिल्ली स्टेशन पर् आया - सभी दोस्त वहाँ पहुंचे हुए थे - कॉलेज के दिनों में दोस्त' प्यार से मुझे 'नेता' कहते थे -  ठसक भी वही थी ! मैंने सभी फर्नीचर एक दिन में ही खरीद लिया ! पर् 'सोफा' पर् पत्नी से सहमती नहीं बन्  पाने के कारण - गुस्सा में प्लास्टिक की चार कुर्सीयां मैंने खरीद ली ! कुछ दिन बाद - मूड ठीक हुआ तो नॉएडा से ही एक ख़ूबसूरत सोफा खरीदा ! सर मुडाते - ओले पड़े ! सोफा खरीदने के कुछ दिन ही बाद - ससुराल से कुछ लोग आये - खांटी पटनहिया - सोफा पर् लेट कर ही 'टीवी' देखेंगे ! सोफा और सेंटर टेबल पर् ही खाना खायेंगे ! गेस्ट लोग चले गए ! एक दिन देखा तो - सोफा 'हिल' चूका था ! बहुत दुःख हुआ ! बजाज चेतक पर् सपरिवार दुकानदार के पास गए - क्या कहूँ ..गिडगिडा रहे थे ..पर् वो दुकानदार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं ! मात्र एक महीना में सोफा 'हिल' गया था ! बहुत कष्ट से पैसा जमा किये थे फिर सोफा  ख़रीदे थे ! मुह लटका के घर वापस हो गए ! बिहारी होने पर् बहुत गुस्सा आ रहा था - क्या मजाल की पटना के नाला रोड वाला कोई दुकानदार ऐसा कर पाता - पूरा सैदपुर होस्टल मेरे पीछे खडा होता ! फिर थोडा गुस्सा ससुराल वाले गेस्ट लोगों पर् भी आ रहा था - पत्नी के सामने खखर कर बोंल तो पाता नहीं हूँ - शिकायत तो बहुत दूर की बात है ! इसी बीच ..पत्नी ने कहा ...रुकिए ..'झब्बू चाचा' को फोन करती हूँ ! हम बोले - ई 'झब्बू चाचा' कौन हैं ? पत्नी बोली ..चाचा लगते हैं ..क्या काम करते हैं ..पता नहीं पर् ..पर् बहुत बड़ा - बड़ा गाड़ी से घुमते हैं ! झब्बू चाचा को फोन लगाया गया - झब्बू चाचा बोले - दोदिन बाद 'सोफा दुकानदार खुद फोन करेगा - मेहमान , आप घबराईये मत ! सच में ऐसा ही हुआ ..दो दिन बाद सोफा दुकानदार खुद फोन किया !इस् बार हम लोग फिर से बजाज स्कूटर पर् सवार - पर् बहुत ही कनफिडेंस के साथ - सोफा दूकान गए ! अपने बजट में जो सबसे बढ़िया सोफा था - उससे अपना पुराना सोफा बदले ! पर् ..मै हैरान था ...'झब्बू चाचा' कौन हैं ? हिम्मत कर के खुद ही फोन लगाया ...प्रणाम और थैंक्स बोला ..वो उधर से बोले ..मेहमान ..ई हमलोग का कर्तव्य है ..जब तक दिल्ली में हूँ ..आप निश्चिन्त रहिए ! बड़ी हिम्मत कर के मैंने उनसे पूछा - आप करते क्या है ? वो बोले - कुछ खास नहीं - 'आई आर् एस ' अफसर लोग के साथ उठना - बैठना है ..बस - इनकम टैक्स - सेन्ट्रल टैक्स कमिश्नर लोगों के साथ - आगे का कहानी मै समझ गया ! एक दो बार झब्बू चाचा से मुलाकात हुई - एक दिन टीवी में उनको शरद यादव के बगल में खडा देखा - मैंने सोचा - झब्बू चाचा का प्रोमोशन हो गया है ! खैर ..वो जब भी मिलते हैं ..मै उनको   पैर छू कर ही प्रणाम करता हूँ ! 

ये तीनो कहानी सच है ...उम्र के साथ मेमोरी कमज़ोर होने लगी है ...कैसी लगी ..बताएँगे ....

हाँ , दिल्ली और आस-पास के आधे लोग दलाली करते हैं और आधे झूठ बोलते हैं ;) 

क्रमशः ...





रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !