Tuesday, October 25, 2011

टीए - डीए का खेला ...

बचपन याद है ! बाबा सहकारिता आंदोलन के अपने क्षेत्र के अग्रणी नेता थे - सो - बिहार स्तर के कई सहकारी संस्थाओं में प्रतिनिधि थे ! साल में दो तीन बार सबकी मीटिंग होती थी - बिस्कोमान , सहकारी बैंक , भूमि विकास बैक इत्यादी ! बाबा की लाल बत्ती वाली गाड़ी में मै भी बैठ कर इन मीटिंग में पहुँच जाता था ! वहाँ एक लंबा लाईन लगा होता था - सामने एक आदमी बैठ होता था - जो एक अटैची और एक पैकेट देता था ! अटैची में कागज पत्र होते थे और पैकेट में कुछ सौ रुपये ! अटैची मै लेकर कार में रख देता था और पैकेट बाबा अपने पॉकेट में ! बाद में अन्य जिला से आये लोगों से उनको बात करते सुनता था - टीए कम दिया है ! डीए एक दिन और का मिलना चाहिए था - ब्ला..ब्ला ! हम ज्यादा माथा नहीं लगाते - दोपहर को पसंदीदा मुर्गा भात खाने को मिलता - तपेश्वर बाबु हर टेबल पर् पहुंचते और सबसे हाल समाचार पूछते ! इन्ही एक मीटिंग में बिस्कोमान भवन के निर्माण के मंजूरी मेरे आँखों से मिली थी ! इन्ही मीटिंग में एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व० बिन्देश्वरी दुबे को मुर्गा का टांग दोनों हाथ और दांत में दबाये हुए अखबार में फोटो छाप दिया था ! :) सब याद है - हमको ! वो मेरा स्वर्णीम काल था ! अब गदहा काल है :( खट रहे हैं :( 

हाँ तो बात हो रही थी - टीए डीए पर् ! बाबु जी वर्तमान में पटना के एक कॉलेज में विभागाध्यक्ष हैं - प्रैकटीकल परीक्षा में एग्जामिनर बाहर से आते हैं ! बिहार सरकार / कॉलेज / विश्वविद्यालय का जो हाल है वो किसी से छुपा नहीं है ! वैसे परीक्षक जाते वक्त 'टीए - डीए' को लेकर कुछ हल्ला नहीं मचाये सो बाबूजी को अपने पॉकेट से ही देना पड़ता है ! 

हम भी शिक्षक हैं ! दूसरे कॉलेज में प्रैक्टिकल परीक्षा लेने जाना पड़ता है ! परीक्षा खत्म होने के बाद - भारी हंगामा होता है ! टीए - डीए को लेकर हम तो चुप ही रहते हैं लेकिन बाकी लोग तो ऐसा करते हैं - जैसे उनका कोई हक मारा जा रहा है ! आयेंगे मोटरसाइकिल से टीए मांगेंगे - कार का ! एकाउंटेंट पूछ बैठेगा - कार नंबर दीजिए - बाहर पाकिंग से किसी का नंबर लिख देते हैं लोग ! एकॉन्टेंट हडकाता है - सरकार का पैसा है - जेल चले जाईयेगा ..ब्ला ब्ला...कौन उसकी बात सुनता है ! 

यही हाल कॉपी जांचते वक्त होता है ! उपरवाले की मेहरबानी से बड़ी कम उम्र में हेड एग्जामिनर बनने का मौका मिला ! बाकी के परीक्षक माथा नोच लेते थे - सर , एकॉन्टेंट बहुत बदमाश है - दो दिन का का डीए काट लिया ! सेन्ट्रलाईज कॉपी चेकिंग होती हैं ! भारी हेडक हो जाता है ! प्रोफ़ेसर को लेक्चरर वाला डीए मिल गया - हुआ हंगामा - बोला - इज्ज़त चला गया ! हम बोले भाई - दस - बीस रुपैया से क्या बिगड जायेगा ! प्रोफ़ेसर बोलेगा - आप नहीं समझियेगा ..ब्ला ..ब्ला ! 

कुल मिलाकर मेरी समझ में यही आया की - नौकरी करने वाला - टीए डीए को जन्मसिद्ध अधिकार समझता है - होना भी चाहिए - कंपनी / सरकार के काम से आप जा रहे हैं तो खर्चा पानी तो लगेगा ही ! हम भी गाँव में अपना नौकर को कहीं काम से भेजते हैं तो खर्चा देते ही थे ! लेकिन जब वो नौकर खर्चा में से कुछ बचा कर वापस कर देता था - मन एकदम से गद गद् हो जाता ! 


अब आईये - किरण आंटी पर् ! एक एनजीओ से पैसा उठाकर दूसरे एनजीओ को पैसा देना - गलत है ! सीधे  चंदा मांग लेती ! दरअसल आदत खराब है ! यह विशुध्ध पाकिटमारी है ! आप इतनी ईमानदार थी फिर 'मिजोरम' से क्यों भागना पड़ा ? आप सभी मीडिया की देन हैं और याद रखिये यही मीडिया आपके चमक  को  खत्म भी करेगा ! आपके जैसे हर स्टेट में दस आई पी एस अफसर हैं ! मीडिया मैनेज ही सब कुछ होता तो - भाजपा के रविशंकर प्रसाद को राज्यसभा में नहीं जाना पड़ता - लोकसभा में जाते ! आपने क्या काम किया जिसके लिये - आप खुद को राष्ट्रिय स्तर की नेता खुद को समझाने लगीं ! बस 'अन्ना' मिल गए - सब कूद गए ! 

जिस लोकसभा को आपसभी रामलीला मैदान में नौटंकी कर के क्या क्या नहीं कहा - आज उसी लोकसभा में बैठने के लिये - सबकुछ मंजूर है ! टीवी पर् देश के प्रधानमंत्री का मजाक उडाना कहाँ तक सही था ! उनकी मीमीकरी करना ! क्या यह सब एक पूर्व आईपीएस को शोभा देता है ! अवकात में रहिए ! हम भी बिहार से आते हैं जहाँ हर मोहल्ले से दो सिविल सर्वेंट होते हैं ! पर् आप जैसा किसी को नहीं देखा ! हाँ , कॉंग्रेस गलत है ! पर् देश का संविधान उसको पांच साल शासन का अधिकार दिया है - कोई गलत नहीं है ! मैडम , बहुत आसान है - दिल्ली के किसी क्षेत्र को रिप्रेजेंट करना ! देहाती क्षेत्र में बुखार छूट जायेगा ! बेटी की शादी में दो क्विंटल चीनी मांगेगा ! कोई अपने बेटा को नौकरी के लिये कहेगा ! कोई भूख मर जायेगा ! 

हिम्मत और अवकात है तो - देश का कोई पिछड़ा क्षेत्र से खुद को लोकसभा का उम्मीदवार घोषित कीजिए - चुनाव जीतिए और वहाँ की जनता के दर्द को समझिए ! टीवी पर् बोलना बहुत आसान है ! चार एंकर / न्यूज रीडर से दोस्ती कर - किसी चैनल पर् बोंल लेना आसान है ! असली जनता के बीच रहना आसान नहीं है , मैडम ! 

और आप केजरीवाल जी , याद है ..रँजन ऋतुराज का नाम ? नहीं याद होगा ! सत्येन्द्र दुबे हत्या कांड के बाद के जन्मे ग्रुप में ही आपका जन्म हुआ था ,ज्यादा नहीं लिखूंगा क्योंकी आपका भी इज्जत दो पैसा का हो गया है ! आई आई टी का सीट आपने खराब  किया - फिर सिविल सर्वेंट भी सही ढंग से काम नहीं किये - अब फ्लाईंग शर्ट को ऊपर से पहन - देश के सबसे ईमानदार बन् गए ! हद्द हाल देश की मिडिल क्लास का ! 

लोकपाल क्या कर लेगा ? दस लाख जनता से आप एक एम पी को चुनते हैं ! कभी किसी एम पी के घर गए हैं ? जितना आपके तनखाह है उतना का लोग उसके घर चाय पी जाता है ! कहाँ से लाएगा वो पैसा ? हर लगन में लाखों रुपैये के नेवता बंट जाता है ! कौन देगा ? 

देश के सबसे बेहतरीन दीमाग को आप सिविल सर्वेंट बनाते हैं - देते क्या है - उसको ? पांचवे वेतनमान में - तनखाह थी - आठ हज़ार बेसिक ! अब है पन्द्रह हज़ार बेसिक ! उसका बच्चा भूख रहे और आपलोग ? दो महीना जावा सीख लिये और पचास हज़ार कमाने लगे ! 

जितना लोग हल्ला करता है - इंटरनेट की दुनिया में - सबसे ज्यादा ट्रैफिक रुल वही तोडता है ! सुबह में ट्रैफिक रुल तोडेगा और शाम को इंटरनेट पर् 'अन्ना - अन्ना' चिल्लाएगा ! गजब का चमड़ी है ! मै गुस्सा में हूँ - मुझे तीन किलोमीटर का सफर ऐसे कार वालों के कारण एक घंटा लगाना पड़ता है ! हद्द हाल है ! 

दिन में फेसबुक पर् 'अन्ना - अन्ना' चिल्लाएगा और शाम को बेटा बेटी के एडमिशन के लिये स्कूल के दलाल के घर जायेगा ! मत जाओ ..ना ! सेना की नौकरी सबसे बढ़िया - पर् वहाँ जायेगा - कौन ? पड़ोसी का बेटा ! हाय रे ...मिडिल क्लास ! 

एल पी जी में सब्सीडी क्यों ? डीजल में सब्सीडी क्यों ? शर्म नहीं आती ? - डीजल कार खरीदते वक्त ! आज दिल्ली - मुंबई जैसे शहर में डीजल कार पर् आठ आठ महीना का लाईन है ! डीजल का सब्सीडी किसके लिये है - मेरी जान - मिडिल क्लास ? 

भारत में भ्रष्टाचार खून में है ! हीरा चोर - खीरा चोर को पिटता है ! कई ईमानदार लोग भी कई गलत काम कर बैठते हैं - हक समझ कर ! 

अब कितना लिखा जाए ! कानून भी दोषी है ! 

माथा खराब है !

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Tuesday, October 18, 2011

दूसरी आज़ादी के साइड इफेक्ट्स – भाग दो

 ऋतुराज सर का लिखा यह लेख ! ऋतुराज सर बिहार राज्य के नालंदा जिला के रहने वाले हैं ! विश्व प्रख्यात नेतरहाट विद्यालय , पटना कॉलेज और जेएनयू से शिक्षा ग्रहण करने के बाद सन 1983 में भारतीय आरक्षी सेवा के अधिकारी बने और अपने गृह राज्य बिहार को सन 2005 तक सेवा दिया और स्वेच्छा से अवकाश ग्रहण  किया  ! फिर उसके बाद कुछ वर्षों के लिये टाटा स्टील के साथ जुड़े रहे और पिछले दो साल से फुर्सत के क्षण अपने गृह जिला में बिता रहे हैं ! इनकी फोटोग्राफी भी कमाल की है !

वे पटना के एक नामचीन डाक्टर हैं. उनकी ख्याति पूरे राज्य में है और उनके क्लीनिक में मरीजों की लंबी लाइनें लगी रहती हैं. वे डाक्टरी के विज्ञान के साथ साथ मैनेजमेंट की कला में भी पारंगत हैं. बिहार का हर धनपशु उनका मरीज है. धनपशुओं से डाक्टर साहब के गहरे निजी सम्बन्ध भी हैं क्योंकि वे इनसे कोई फीस नहीं लेते हैं. धनपशुओं से फीस नहीं लेने की प्रक्रिया को डाक्टर साहब communication initiative की संज्ञा देते हैं और कहते हैं कि ये धनपशु ही उनके विजिटिंग कार्ड हैं. डाक्टर साहब की बात में दम भी है, क्योंकि इन धनपशुओं की बदौलत पूरे बिहार के मरीज डाक्टर साहब को साक्षात धन्वंतरि का अवतार समझते हैं. ऐसे आम मरीजों से डाक्टर साहब फीस लेने में कोई कोताही नहीं करते हैं क्योंकि उनके अनुसार, “घोड़ा यदि घास से दोस्ती कर लेगा, तो खायेगा क्या?”
लेकिन, डाक्टर साहब बहुत भावुक भी हैं और गरीबों के दुःख से पीड़ित हो कर वे प्रतिदिन 20 मरीजों का न केवल मुफ्त इलाज करते हैं बल्कि उन्हें “Physician’s Sample. Not for sale.” वाली दवाएं भी मुफ्त देते हैं. डाक्टर साहब की इस सदाशयता की अखबारों और टी वी चैनलों में जम पर प्रशंसा होती है क्योंकि हर संपादक और संवाददाता भी डाक्टर साहब का मरीज है. डाक्टर साहब अपनी इस सदाशयता को मैनेजमेंट की भाषा में ‘outreach programme’  कहते हैं. इस ‘outreach programme’ से न केवल डाक्टर साहब की दरियादिली का डंका बजता है बल्कि दवा कंपनियों को भी खूब फायदा मिलता है क्योंकि डाक्टर साहब सिर्फ दो दिन की खुराक मुफ्त देते हैं और बाद में यही दवाएं खरीद कर खाने की ताकीद कर देते हैं. लिहाजा, डाक्टर साहब दवा कंपनियों के चहेते हैं. उनके यहाँ medical representatives की भीड़ लगी रहती है जिनसे डाक्टर साहब सिर्फ रात के 10 से 11 बजे के बीच ही मिलते हैं. दवा कंपनियों के सौजन्य से डाक्टर साहब साल में सिर्फ दो बार सपरिवार छुटियाँ बिताने विदेश चले जाते हैं. लालच तो उन्हें छू तक नहीं गया है. उनके दिल में लक्ष्मी नहीं गांधीजी का वास है.
 अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में डाक्टर साहब देश के बड़े बड़े औद्योगिक घरानों के Corporate Social Responsibility Initiatives से भी आगे हैं.  नकली दवाओं के कहर से मरीजों को बचाने के उद्देश्य से डाक्टर साहब ने क्लीनिक के बगल में ही दवा की एक दुकान खोल दी है. उसी दुकान से दवा खरीदने की सख्त हिदायत डाक्टर साहब के कारिंदे हर मरीज को देते हैं और लगे हाथ यह गंभीर चेतावनी भी दे देते हैं कि किसी दूसरी दुकान से दवाएं खरीदने से जान जाने का भी खतरा है. लिहाजा, डाक्टर साहब की दवा दुकान में भीड़ लगी रहती है और अच्छा ख़ासा मुनाफा भी हो जाता है. यद्यपि उनकी पत्नी को दवा दुकान के कारोबार से कोई लेना देना नहीं है तथापि सरकारी तौर पर वे ही इसकी मालकिन हैं क्योंकि डाक्टर साहब टैक्स मैनेजमेंट में भी उस्ताद हैं.
हर आम भारतीय की तरह डाक्टर साहब आयकर को एक अनावश्यक बोझ मानते हैं; और आयकर के इस बोझ को सही-गलत किसी भी तरीके से कम करना अपना नैतिक कर्तव्य मानते हैं. अस्तु, वे मरीजों की संख्या का कोई लेखा जोखा नहीं रखते हैं, अपनी वास्तविक आय का एक दशांश ही अपने रिटर्न में दर्शाते हैं और अपने घर के बिजली-पानी, दाई-नौकर, रसोईया-खानसामा, ड्राइवर-माली इन सब पर होने वाले खर्च को भी अपनी आय में से मिन्हा कर देते हैं. वह तो दुष्ट सरकार ने ऐसा कोई प्रावधान नहीं बनाया वर्ना वे अपने घर के चावल-दाल, नून-हल्दी, सब्जी-भाजी का खर्च भी अपनी आय में से मिन्हा कर देते !! आयकर विभाग वाले उन्हें अनावश्यक तंग नहीं करें इस निमित्त डाक्टर साहब न केवल उनकी मुफ्त चिकित्सा करते हैं बल्कि हर दीपावली और नववर्ष के पावन अवसर पर आयकर विभाग के चपरासी से लेकर चीफ कमिश्नर तक को नियमित सौगात भी भेजते हैं. साथ ही साथ अपने चार्टर्ड अकाउन्टेंट (सी. ए.) को उन्होंने स्पष्ट हिदायत भी दे रखी है कि ‘खर्चा-पानी’ करने में कभी कोई कोताही ना करे.
डाक्टर साहब की इस चतुरंगी प्रतिभा के फलस्वरूप हर वर्ष उनके दो नंबर के बैंक खाते में एक मोटी रकम जमा हो जाती है. डाक्टर साहब अपने पूर्वजों का बहुत भी सम्मान करते हैं!  अतः उनसे प्रेरणा लेकर वे इस धन को जमीन में गाड़ देते हैं; और नियमित रूप से भूखंड / मकान / फ़्लैट का बेनामी क्रय कर लेते हैं.
अचल संपत्तियों के पंजीकरण की प्रक्रिया को डाक्टर साहब अत्यंत जटिल और कठोर मानते हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में उन्हें स्टैम्प ड्यूटी अदा करनी पड़ती है. वे हमेशा न्यूनतम स्टैम्प ड्यूटी ही अदा करते हैं और अचल संपत्तियों का वास्तविक मूल्य कभी नहीं दर्शाते हैं. इस प्रयोजन हेतु डाक्टर साहब ने पंजीकरण कार्यालय के हर कारिंदे से ‘लेन-देन’ का एक पवित्र रिश्ता स्थापित कर लिया है.
सम्पूर्णता में देखा जाए तो डाक्टर साहब एक सच्चे भारतीय हैं !!!
और हर सच्चे भारतीय की तरह वे दूसरों के भ्रष्टाचार की सख्त खिलाफत करते हैं. भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी का नाम सुनते ही उनका चेहरा गुस्से से तमतमा जाता है, भृकुटी तन जाती है, नथुने फड़कने लगते हैं और आँखों से अंगारे बरसने लगते हैं. उनके इस रौद्ररूप को देखकर लगता है कि यदि कहीं कोई भ्रष्टाचारी उनके सामने पड़ गया तो वे उसका टेंटुआ ही दबा देंगे !!
हर सच्चे भारतीय की तरह डाक्टर साहब भी भ्रष्टाचार को देश का सबसे बड़ा कोढ़ मानते हैं; इसके उन्मूलन के लिए कड़े से कड़ा क़ानून बनाए जाने की पुरजोर वकालत करते हैं और मानते हैं कि जन लोकपाल कानून बनते ही भ्रष्टाचार का सर्वनाश हो जाएगा.
‘आज़ादी की दूसरी लड़ाई’ से वे इतने प्रभावित हुए कि अपने वातानुकूलित क्लीनिक से कूदकर सड़क पर आ गए तथा अन्य नामचीन और ख्यातिप्राप्त डाक्टरों के साथ ‘अन्ना टोपी’ और ‘अन्ना तख्ती’ से लैस होकर कड़ी धूप में पूरे आधे घंटे तक प्रदर्शन करते रहे !! उनके इस अप्रतिम बलिदान से सभी टी वी चैनल मंत्रमुग्ध हो गए और आधे घंटे के इस महान प्रदर्शन का ‘लाइव कवरेज’ 12 घंटे तक करते रहे!!!   
डाक्टर साहब ने उसी दिन फेसबुक प्रोफाइल से अपनी तस्वीर उखाड़ फेंकी और अन्नाजी को वहाँ चिपका दिया, अपने क्लीनिक को अन्नाजी की तस्वीरों से पाट दिया, ‘अन्ना टोपी’ को अपने वस्त्र-विन्यास का अभिन्न अंग बना लिया और अपने दिल में गांधीजी के साथ साथ अन्नाजी को भी एडजस्ट कर लिया. ‘दूसरी आज़ादी’ के आंदोलन ने उन्हें देशभक्त से अन्नाभक्त बना दिया !!! 
लेकिन अन्ना जी का अनशन समाप्त होने के कुछ दिनों बाद ही डाक्टर साहब के व्यक्तित्व में एक आमूलचूल परिवर्तन आ गया. उनके चेहरे से रौनक और सर से ‘अन्ना टोपी’ गायब हो गयी ! भ्रष्टाचार का नाम सुनने पर उनकी आँखों से अब अंगारे नहीं आंसू टपकते और अन्नाजी का नाम सुनते ही डाक्टर साहब दांत किटकिटाने लगते !!!
डाक्टर साहब के व्यक्तित्व के इस आमूलचूल परिवर्तन का कारण एक खौफनाक हादसा था. हुआ कुछ यूँ कि :-
एक दिन डाक्टर साहब ‘अन्ना टोपी’ लगाए मरीजों से मुखातिब थे. मरीजों का भारी हुजूम बाहर वोटिंग रूम में जमा था. एक मरीज अंदर आया. अपनी आदत के मुताबिक़ डाक्टर साहब ने उससे पूछा, “क्या तकलीफ है?” मरीज बोला, “आप आयकर की चोरी करते हैं, यही मेरी तकलीफ है.” डाक्टर साहब सकपका से गए. यह कैसा मरीज है जो उन्हें ही ताने दे रहा है!! पर, वे अन्ना रस में सराबोर थे, उनके सर पर ‘अन्ना टोपी’ थी. दिल में अन्ना भक्ति का ज्वार और ‘दूसरी आज़ादी’ प्राप्त हो जाने का गुरूर था. सो तैश में बोले, “इतनी ओछी बात करते आपको शर्म नहीं आती?” मरीज ने संजीदगी से कहा, “जी नहीं. आपको आयकर चोर कहने में मुझे तनिक भी शर्म नहीं आ रही है.”
मरीज की संजीदगी का असर डाक्टर साहब पर भी पड़ा, वे कुछ संयमित हुए और संजीदा लहजे में उन्होंने कहा, “माफ कीजियेगा, मैंने आपको पहचाना नहीं.” मरीज विनम्रता से फरमाया, “मैं इस एरिया का आयकर इन्स्पेक्टर हूँ.” डाक्टर साहब चौंके, यह कौन सा आयकर इन्स्पेक्टर आ गया जिसे वे पहचानते तक नहीं हैं? उन्होंने कुछ झेंपते हुए कहा, “यहाँ के इन्स्पेक्टर तो फलां जी हैं. मैं तो उन्हें बहुत अच्छे से जानता हूँ.” मरीज बोला, “उनका तबादला हो गया है और अभी दो महीने पहले ही मैंने यहाँ योगदान दिया है.”
डाक्टर साहब की जान में जान आ गयी, उनकी साँसे फिर से सामान्य हो गयी और दिल की धडकन 103 से घट कर पुनः 72 पर स्थिर हो गयी !!. वे समझ गए कि चिंता करने का कोई सबब है ही नहीं ... यह नया इन्स्पेक्टर अपनी उपस्थिति भर दर्ज करा रहा है. वे मुस्कुराते हुए बोले, “अच्छा, इसीलिए पहचान नहीं पाया आपको. मैं अपने सी.ए. को बोल देता हूँ वह मिल लेगा आपसे.” इन्स्पेक्टर ने भी मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “जी जानता हूँ मैं आपके सी. ए. को.”
डाक्टर साहब की पैनी बुद्धि ने तुरंत ताड़ लिया कि इन्स्पेक्टर सिर्फ अपनी खुराकी बढ़ाना चाह रहा है; और चाहे भी क्यूँ नहीं? मंहगाई भी तो आखिर आसमान छू रही है !! वे पुनः अपने प्रसन्नचित्त स्वरूप को प्राप्त हो गए और गदगद भाव से बोले, “वह मिल लेगा आपसे और जो भी आप चाहते हैं वह दे देगा.” इन्स्पेक्टर ने विनम्रता से उत्तर दिया, “लेकिन मुझे तो आप से ही चाहिए.”
डाक्टर साहब को इंस्पेक्टर की बात बहुत अटपटी लगी. क्या चाहता है यह इन्स्पेक्टर? क्या उन्हें अपने हाथों से इसे घूस देना पड़ेगा?? क्या यह दुर्दिन भी देखना पड़ेगा उन्हें? राम, राम ... अन्ना, अन्ना ... !! इतनी धृष्टता, इतनी निर्लज्जता?? डाक्टर साहब को लगा कि वह इन्स्पेक्टर नहीं साक्षात् दुश्शासन है जो मरीजों से भरी क्लीनिक में उनका चीर-हरण कर रहा है ! संकट की इस घडी में उन्होंने अन्ना को याद किया. अन्ना का स्मरण करते ही डाक्टर साहब के शरीर में एक नयी स्फूर्ति का संचार होने लगा, उनके अन्नाभक्त रक्त में उफान आने लगा और सहसा उन्हें यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया कि वे ‘अन्ना टोपी’ रुपी कवच से सुरक्षित हैं !! उन्होंने ऐंठते हुए इन्स्पेक्टर को धमकाया, “मैं आपकी शिकायत आपके कमिश्नर साहब से करूँगा और तब आपको पता चलेगा कि आप किस से उलझ रहे हैं. अरे, आप मुझे कोई ऐरा-गैरा-नत्थूखैरा समझ रहे हैं क्या? मैं अन्ना-भक्त हूँ और भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ हूँ.”
डाक्टर साहब के इस प्रलाप का इन्स्पेक्टर पर लेशमात्र भी असर नहीं हुआ. उसने अपना फटीचर सा ब्रीफकेस खोला और कुछ कागजातों के साथ-साथ एक टोपी निकाली. कागजातों को टेबल पर रख उसने टोपी को शिरोधार्य कर लिया. डाक्टर साहब को मानो सांप सूंघ गया. उनकी बोलती बंद हो गयी और विस्फारित नयनों से एकटक वे उस टोपी और टोपी धारक को ताकते रहे. वह इन्स्पेक्टर भी अब उनकी ही तरह ‘अन्ना टोपी’ से सुसज्जित हो गया था. ‘अन्ना टोपी’ को अपने सर पर सही ढंग से व्यवस्थित कर इन्स्पेक्टर डाक्टर साहब से मुखातिब हुआ और बोला, “आपको कमिश्नर साहब से बात करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनके निर्देशन में ही मैं पिछले एक महीने से आपका समस्त लेखा जोखा खंगाल रहा हूँ और उनके द्वारा हस्ताक्षरित ये नोटिसें आपको तामील करने आया हूँ. कृपया इन्हें हस्तगत करें और प्रमाणस्वरूप अपने हस्ताक्षर अंकित कर दें.” कांपते हाथों से डाक्टर साहब ने हस्ताक्षर किये.
इन्स्पेक्टर ने ‘अन्ना टोपी’ को पुनः ब्रीफ्केसस्थ किया और यह कहते हुए बाहर निकल गया, “मैं अन्नाभक्त नहीं सिर्फ ईमानदार हूँ! यह ‘अन्ना टोपी’ तो सिर्फ दिखावा है. होने को तो आप की ‘अन्ना टोपी’ भी वैसे दिखावा ही है, क्यूँ?” इन्स्पेक्टर के जाने के बाद डाक्टर साहब काफी देर तक ‘कारवाँ गुज़र गया ... गुबार देखते रहे’ की तर्ज़ पर नोटिसों को देखते और ‘दूसरी आज़ादी’ के इस साइड इफेक्ट पर सर धुनते रहे.
और उसी पल से डाक्टर साहब के चेहरे से रौनक और सर से ‘अन्ना टोपी’ गायब हो गयी !!

नोट : इस कथा के सभी पात्र और स्थान पूर्णतः काल्पनिक हैं और एक ‘सच्चे भारतीय’ के चरित्र को उजागर करने के लिए मात्र रूपक के तौर पर हैं. 


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रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !