Tuesday, September 6, 2011

दूसरी आज़ादी के साइड इफेक्ट्स - भाग एक

 ऋतुराज सर का लिखा यह लेख ! ऋतुराज सर बिहार राज्य के नालंदा जिला के रहने वाले हैं ! विश्व प्रख्यात नेतरहाट विद्यालय , पटना कॉलेज और जेएनयू से शिक्षा ग्रहण करने के बाद सन 1983 में भारतीय आरक्षी सेवा के अधिकारी बने और अपने गृह राज्य बिहार को सन 2005 तक सेवा दिया और स्वेच्छा से अवकाश ग्रहण  किया  ! फिर उसके बाद कुछ वर्षों के लिये टाटा स्टील के साथ जुड़े रहे और पिछले दो साल से फुर्सत के क्षण अपने गृह जिला में बिता रहे हैं ! इनकी फोटोग्राफी भी कमाल की है ! 

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मेरे एक पुराने मित्र हैं. हम दोनों कालेज और विश्वविद्यालय के दिनों से ही मित्र रहे हैं और यह मित्रता अब तक बरकरार है. सार्वजनिक रूप से उनका नाम बताने में संकोच है इसलिए उन्हें ‘राजा’ के छद्मनाम से ही संबोधित करूँगा. मूल बिंदु पर आने के पहले ‘राजा’ का एक संक्षिप्त परिचय समीचीन होगा.
मेरी ही तरह ‘राजा’ के जीवन के समापन की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है अर्थात 50 वर्ष की सीमारेखा के पार खड़ा है वह भी. सही उम्र का पता तो खैर उसे भी नहीं है, क्योंकि उसके दूरदर्शी और कंजूस पिता ने विद्यालय में नामांकन के समय ही अपनी कंजूस प्रवृति के अनुरूप ‘राजा’ की उम्र अंकित करने में भी कंजूसी दिखा दी थी.
      ‘राजा’ अपनी युवावस्था से ही काफी जुझारू किस्म का इंसान रहा है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति में उसने सम्पूर्णता से भाग लिया था. आपातकाल में पुलिस की लाठियां भी खाई थीं और जेल भी गया था. लिहाजा ‘राजा’ मुझसे दो साल बाद स्नातक बना. स्नातकोत्तर हेतु वह दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय आया और तब से संघर्ष के साथ-साथ उसने दिल्ली को भी सीने से लगा लिया. संघर्ष और दिल्ली ने उसके दिल में डेरा डाल दिया और इस चक्कर में प्रणय के लिए उसके दिल में कोई स्थान ही नहीं बचा. नतीजा यह हुआ कि 40 वसंत देखने के बाद ही वह प्रणय निवेदन कर सका. सम्प्रति ‘राजा’ अपने परिवार (पत्नी और दो छोटे बच्चों) के साथ दिल्ली में ही रहता है. लेकिन, दिल्ली की रौनक भी उसकी जुझारू प्रकृति के पैनेपन को कुंद नहीं कर पायी है और अभी भी वह हर संघर्ष में बढ़ चढ कर हिस्सा लेता है. ‘राजा’ की मैं बहुत कद्र करता हूँ क्योंकि तीन दशक से दिल्ली में रहने के बावजूद वह अब तक बुद्धिजीवी है.
      ‘राजा’ ने अपनी आदत के मुताबिक़ अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में ‘दूसरी आज़ादी की अगस्त क्रान्ति’ में भी सम्पूर्णता से भाग लिया. इस दौरान एक दिन मैंने उसे टी वी पर देखा. बिलकुल शिव स्वरूप दीख रहा था ... गले में सर्प माला की जगह भ्रष्टाचार विरोध की तख्ती थी और सर पर जटा की जगह ‘मैं अन्ना हूँ’ की टोपी. बच्चों को भी उसने अन्ना टोपी से संवार दिया था और अपनी धर्मपत्नी के चेहरे पर तिरंगा का लेप लगवा दिया था. ‘राजा’ और ‘रानी’ दोनों एक एक बच्चे का हाथ थामे हुए थे और पूरा परिवार जोर जोर से ‘वंदे मातरम’ ... ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे लगा रहा था. मैं मंत्रमुग्ध हो इस अविस्मरणीय दृश्य तो तब तक देखता रहा जब तक मुए टी वी वालों ने दृश्य बदल नहीं दिया. दूसरे दिन ‘राजा’ को मैंने फोन किया और बताया कि मैंने उसे टी वी पर देखा था सपरिवार. वह खुशी से झूम उठा, और पूछा ‘बढ़िया लग रहा था न?’ मैंने कहा, ‘अत्यंत मोहक दृश्य था ... पूरे के पूरे जोकर लग रहे थे तुम सब!’ वह कुछ खिसिया सा गया लेकिन भडका नहीं. बहुत ही संजीदा इंसान है मेरा मित्र.
      कल जब अन्ना हजारे जी के अनशन का समापन हो गया और पूरा देश ‘दूसरी आज़ादी’ के जश्न टी वी पर मनाने लगा तो मैंने ‘राजा’ को बधाई देने के निमित्त फोन किया. परेशानी से सराबोर एक रुआंसी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने पूछा, ‘क्या हुआ, खैरियत तो है न?’ ‘राजा’ ने कहा, ‘अरे क्या बताऊँ यार, भारी मुश्किल खड़ी हो गयी है. बाद में फोन करता हूँ तुम्हें.’
      मैं चिंताग्रस्त हो उसके फोन का इंतज़ार करने लगा. मन में तरह तरह बातें घुमड़ने लगीं. खैर, देर रात उसका फोन आया. इस वार्तालाप को अक्षरशः प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
मैं : “क्या बात है, इतने परेशान क्यों थे?”
राजा : “भारी मुसीबत हो गयी थी यार. यह पांच साल का छोटुआ सुबह सुबह मोहल्ले के अपने 10-12 दोस्तों को बुला लाया और अन्ना टोपी पहन, डाइनिंग टेबल को मंच बना कर अनशन पर बैठ गया. उसके दोस्त डाइनिंग टेबल को घेर कर बैठ गए और भजन गाने लगे. बीच बीच में वे ‘वंदे मातरम’ और ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे भी लगाते.
मैं और तुम्हारी भाभी समझा समझा कर थक गए लेकिन वह माने तब तो !! काफी देर तक समझाने बुझाने के बाद मैंने खीझ कर डांट दिया तो उसके दोस्त भड़क गए. कहने लगे कि हम अन्ना की तरह अहिंसक और शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं और आप हमें धमकी दे रहे हैं??? एक दो बच्चे गए और मोहल्ले के ढेर सारे बच्चों-बच्चियों को इकठ्ठा कर लाये. बगल के पार्क में एक टेबल लगा दिया और छोटुआ को कंधे पर बिठा कर नारे लगाते हुए वहाँ लेते गए. तीन से तेईस साल के बच्चे-बच्चियां इकठ्ठे होने लगे. कुछ गिटार और ड्रम ले आये और लड़कियों के साथ मिल कर ‘मितवा ... ओ मितवा’ गाने लगे. एस.एम.एस और इंटरनेट के माध्यम से अपने सभी दोस्तों को खबर कर दी और थोड़ी ही देर में मोटरसाइकिलों / गाड़ियों पर सवार हो हो कर बच्चे पहुँचने लगे. पार्क के अगल बगल की सारी सड़कें खचाखच भर गयीं. मोहल्ले के बाज़ार में खबर हो गयी तो चाट/आइसक्रीम/भूंजा/नूडल बेचने वाले भी अपना अपना ठेला ले कर चले आये. अन्ना जी के अनशन के चक्कर में दिल्ली के हर बाज़ार में तिरंगे झंडों और अन्ना टोपी / अन्ना तख्ती की दुकानें तो खुल ही चुकी थीं ... वे सब भी अपना अपना बचा खुचा माल ले कर आ गए और ‘एक पर एक फ्री’ चिल्लाने लगे. तुम तो जानते ही हो कि फ्री की हर चीज़ हम भारतीयों को कितनी अच्छी लगती है, सो देखते ही देखते पूरा पार्क रामलीला मैदान की तरह तिरंगों / अन्ना टोपियों / अन्ना तख्तियों से पट गया. बाल हितों की रक्षा करने वाले कुछ गैर सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.) को भी खबर हो गयी. तुरंत फैब इंडिया के डिजाइनर कपड़ों में सजे धजे एन.जी.ओ. वाले भी कंधे पर झोला टाँगे पहुँच गए. उनलोगों ने तुरंत मंच बने उस टेबल के ऊपर एक शामियाना टंगवा दिया, लाउडस्पीकर लगवा दिया, बिजली बत्ती का इंतजाम कर दिया और छोटुआ के लिए एक पेडस्टल पंखा भी मंगवा दिया. बाल हितों की रक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने के उद्देश्य से उन्होंने टी वी वालों को फोन करके खबर कर दी कि आज़ादी के बाद देश का महानतम बाल संघर्ष इस मोहल्ले में चल रहा है और इस संघर्ष को वे अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं. बस, पलक झपकते टी वी वाले भी कैमरा और माइक लिए धमक गए. थोड़ी ही देर में पार्क में बच्चों से कहीं ज्यादा संख्या एन.जी.ओ. और टी.वी. वालों की हो गयी. बस यही समझो यार, कि रामलीला मैदान की तरह पूरा पिकनिक का माहौल बन गया मेरे मोहल्ले के पार्क में. अब बच्चे माइक के सामने ‘मितवा ... ओ मितवा’ के साथ साथ यह भी गाने लगे, ‘सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं”, “कर चले हम फ़िदा जान ओ तन साथियों ... अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों”, “मेरा रंग दे, मेरा रंग दे बासंती चोला ...”, “मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास ... हम होंगे कामयाब एक दिन” !!
      टी वी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आने लगा “आज़ादी के बाद का सबसे व्यापक बालाक्रोश”, “अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मासूम बच्चों ने बाँधे सर पर कफ़न”, “माता-पिता द्वारा अपने बच्चों के लोमहर्षक उत्पीड़न का पर्दाफाश”, “दिल्ली में माँ-बाप ने ही घोंट दिया ममता का गला” आदि आदि. कुछ टी वी चैनलों ने सेवानिवृत्त समाजशास्त्रियों, बेरोजगार मनोवैज्ञानिकों, बूढ़े पत्रकारों और निठल्ले नेताओं को बुला कर चर्चा प्रारम्भ कर दी और छोटुआ के अनशन का गहन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, मनोवज्ञानिक और भौगोलिक विश्लेषण होने लगा. एक दो टी वी चैनलों ने अन्य महानगरों में स्थापित अपने संवाददाताओं को निर्देश दिया कि दिल्ली में चल रहे इस बाल संघर्ष पर देश के बच्चों की प्रतिक्रियाएं दें. धड़ा-धड़ हर महानगर से बच्चों की प्रतिक्रियाएं आने लगीं कि वे इस संघर्ष में छोटुआ के साथ हैं और अपने माता-पिता के ज़ुल्म अब वे बर्दाश्त नहीं करेंगे. टी वी वालों ने छोटुआ के अनशन को “बाल आज़ादी का प्रथम भारतीय संग्राम” घोषित कर दिया.
      देखते ही देखते तीन-चार पुलिस जिप्सियां सायरन बजाती हुई मेरे घर के सामने आ गयीं. क्या बताऊँ भाई, पहली बार घर में पुलिस वालों को देख कर मेरे तो रोंगटे ही खड़े हो गए. थानेदार ने गुर्राते हुए कहा, “यह क्या बवंडर खड़ा कर दिया है आपके बच्चे ने? क्या मांग है उसकी??” मैंने कहा, “अभी तक तो मुझे बताया ही नहीं है कि उसकी मांग आखिर है क्या!!” इतना सुनते ही थानेदार हत्थे से उखड़ गया और बोला, “इतना बड़ा बवंडर खड़ा हो गया है और आप को पता तक नहीं है कि आपके बेटे की मांग क्या है?? तुरंत जाइए और इस मामले को फौरन निपटाइए, वर्ना आप दोनों पति-पत्नी को बाल उत्पीडन के जुर्म में गिरफ्तार करना पड़ जाएगा !” 
      मैंने थानेदार को समझाने की बहुत कोशिश की कि हमने कोई बाल उत्पीडन नहीं किया है. अपने दोनों बच्चों पर हाथ उठाना तो दूर हमने कभी उनके कान तक नहीं ऐंठे हैं. लेकिन वह मानने को तैयार ही नहीं हुआ और बोला, “इतना व्यापक जनाक्रोश क्या बिना बात के ही है? अरे, जरूर आप दोनों नियमित रूप से अपने बच्चों को उत्पीड़ित करते रहे होंगे जिसका परिणाम इस व्यापक जन आंदोलन में नज़र आ रहा है मुझे. आप अभी तुरंत जाइए और अपने बच्चे से बात करिये.” अपने छोटे दारोगा को उसने हिदायत दी, “साथ जाओ इसके ... और ध्यान रखना कहीं भाग ना जाए!”
      मुंह लटकाए मैं छोटे दारोगा और एक दो सिपाहियों से घिरा हुआ मंच के पास पहुंचा. मुझे पुलिस वालों के साथ देखते ही एन.जी.ओ. वाले उत्तेजित हो गए और नारे लगाने लगे. “हर जोर ज़ुल्म के टक्कर में ... संघर्ष हमारा नारा है”, “जो हमसे टकराएगा ... चूर चूर हो जाएगा”, और “वापस जाओ ... वापस जाओ” के नारों से पूरा मोहल्ला गूंजने लगा. मैं अवाक खड़ा हो कर टेबल नुमा मंच पर आसीन अपने बच्चे को देखता रहा ... वह मसनदों के सहारे अधलेटा हुआ था और उसकी दो सहपाठिनें उसे पंखा झल रही थीं. उधर भीड़ की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. वह तो भला हो उस छोटे दरोगा का जिसने समय रहते मुझे वहाँ से निकाल लिया नहीं तो मुझे अस्पताल ही पहुंचा देते ये एन.जी.ओ. वाले.
      थानेदार ने सुना तो उसने छोटे दारोगा को कहा, “फौरन दो तीन लोगों को सादे कपड़ों में भेजो और प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए प्रेरित करो”. कुछ ही देर में तीन एन.जी.ओ. वाले छोटुआ के प्रतिनिधिमंडल के रूप में वार्ता के लिए आ गए. मैंने उनसे पूछा, “क्या मांग है छोटुआ की?” वे बोले, “आप पहले यह बताइये कि उसकी सभी मांगें मानने के लिए आप तैयार हैं या नहीं?” मैंने कहा, “अरे पहले मांगें तो बताइये!” मेरे यह कहते ही वे तैश में आ गए और तमतमाते हुए बाहर चले गए. टी वी वालों ने उनको घेर लिया और सवालों की बौछार कर दी. प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने जवाब दिया, ”हमारे लाख प्रयास करने के बावजूद, छोटुआ जी के पिता के अड़ियल रवैये के कारण ... वार्ता विफल हो गयी है. वे बालमानस की मांग तक सुनने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसा लगता है कि छोटुआ जी उनके सगे नहीं सौतेले बेटे हैं.”
      टी वी चैनलों में हमारी भर्त्सना करने की होड़ लग गयी. मेरा घर पड़ोसियों, पुलिसवालों और नेताओं से खचाखच भर गया. इन सबकी सलाह और डांट सुनते सुनते मेरे कान पक गए. उधर तुम्हारी भाभी का रो रो कर बुरा हाल हो गया. उसे चुप कराने जाऊं तो वह बार बार यही कहती, “दोपहर हो गयी और मेरे छोटुआ ने अभी तक कुछ खाया नहीं है. आप कुछ भी करिये लेकिन उसके  अनशन को समाप्त करवाइए नहीं तो मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी.”
      मैंने कुछ पड़ोसियों को कहा कि कृपया छोटुआ के प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए पुनः बुलाने का प्रयास करिये क्योंकि यदि मैं उस पार्क में गया तो भीड़ को एन.जी.ओ. वाले फिर उत्तेजित कर देंगे. मैं छोटुआ की हर मांग बिना शर्त मानने के लिए तैयार हूँ.
      पड़ोसियों ने लौट कर सूचना दी कि एन.जी.ओ. के नेतागण बगल के पांच सितारा होटल में लंच करने चले गए हैं. वे जब लौटेंगे तब ही वार्ता संभव है. मैंने माथा पीट लिया. उधर मेरा मासूम छोटुआ सुबह से भूखा प्यासा बैठा है और इधर ये एन.जी.ओ. वाले, जो खुद को उसका हमदर्द बताते हैं, पांच सितारा भोजन का लुत्फ़ उठा रहे हैं. मन में तो आया कि दुबारा आयें तो इन एन.जी.ओ. वालों का गला ही घोंट दूँ. पर क्या करता, खून का घूँट पीकर रह गया.
      शाम के चार बज गए तब जा कर कहीं छोटुआ का एन.जी.ओ. प्रतिनिधिमंडल प्रगट हुआ. पता चला कि लंच के बाद वे आराम करने चले गए थे. आते के साथ उन्होंने पूछा, “हाँ तो छोटुआ की सारी मांगें मानने के लिए आप तैयार हैं या नहीं?” मैंने दांत पीसते हुए कहा, “हाँ, मैं तैयार हूँ. क्या मांगें हैं उसकी?” वे बोले, ”अपनी मांगें तो वही बताएगा क्योंकि उसकी मांग से हमें कोई लेना देना नहीं है. हाँ, आज आपके छोटुआ के संघर्ष ने हमें पूरे भारत में विख्यात कर दिया है.” मारे गुस्से के मैं कांपने लगा. ये लोग मेरे छोटुआ को मोहरा बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं ... एक निरीह और अबोध बालक की जान से खेल रहे हैं ... ये इंसान हैं या हैवान??? क्या विदेशी धन के लालच में ये किसी को भी बलि का बकरा बना दे सकते हैं? तरह तरह के प्रश्न कौंध रहे थे मेरे मन में, पर मौके की नजाकत तो समझ कर मैं चुप ही रहा.
        एन.जी.ओ. प्रतिनिधिमंडल ने बाहर निकल कर घोषणा की, “छोटुआ जी  के पिता के रुख में कुछ बदलाव आया है लेकिन वे अभी भी सभी मांगें मानने के लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए छोटुआ जी का अनशन अभी जारी रहेगा.”
      मैं, पडोसी, पुलिस वाले सभी अवाक रह गए ... यह क्या कह रहे हैं ये एन.जी.ओ. वाले??? मैंने तो बिना शर्त सभी मांगें मानने की बात कही थी और ये बिलकुल उल्टी बात बता रहे हैं टी वी वालों को !! गुस्से में मैं घर के बाहर निकला तो थानेदार ने मुझे रोक लिया. उसे अब मेरी हालत पर तरस आ रहा था. मुझसे उसने पूछा, “कहाँ है आपका बड़ा बेटा? उसे बुलवाइए.” कुछ पडोसी पार्क की तरफ भागे और थोड़ी देर में मेरे बड़े बेटे बड़कू को साथ लिए लौटे.
      थानेदार ने बड़कू को अपने पास बिठाया और प्यार से पुचकारते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारा छोटा भाई सुबह से भूखा है, तुम्हारी माँ का रो रो कर बुरा हाल हो गया है, तुम्हारे पिता दिन भर परेशान रहे हैं. क्या तुम्हें अपने भाई के लिए बुरा नहीं लग रहा है?” बड़कू रुआंसा हो गया और बोला, “अंकल, छोटुआ तो कब से अनशन तोड़ने को तैयार बैठा है लेकिन ये एन.जी.ओ. वाले उसे मंच से हटने ही नहीं दे रहे हैं.” थानेदार ने कहा, “बेटा, जाओ और छोटुआ को बोलो कि वह मंच से घोषणा कर दे कि उसकी सभी मांगें मान ली गयी हैं और इसलिए वह अब अपना अनशन समाप्त कर रहा है ... लेकिन ध्यान रहे कि यह बात कोई एन.जी.ओ. वाला नहीं सुने.” बड़कू चुपचाप उठा और बाहर चला गया. कुछ पडोसी भी उसके साथ चल पड़े पीछे पीछे.
      कुछ समय बाद पड़ोसियों ने लौट कर बताया कि बहुत समझदारी का परिचय देते हुए बड़कू छोटुआ को ले कर टेबल के एक कोने में चला गया है और कान में फुसफुसा रहा है. थानेदार मुस्कुराया और बोला कि बस अब कुछ ही देर में सारा मामला शांत हो जाएगा ... आप लोग चिंता मत करिये बस टी वी देखिये.
      और थोड़ी ही देर में सचमुच टी वी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आने लगा “छोटुआ जी की मांगे बिना शर्त मानी” ... “छोटुआ जी ने अपना अनशन समाप्त करने की घोषणा की”, “छोटुआ जी की जीत पूरे राष्ट्र के बच्चों के हक की जीत है” ... !!
      आधे घंटे में ही बड़कू और छोटुआ के अन्य दोस्त उसे कंधे पर बिठाए हुए घर आ गए. पीछे पीछे एन.जी.ओ. वाले भी जीत के नारे लगाते हुए चल रहे थे.  छोटुआ दौड कर अपनी माँ से चिपट गया. मैंने एन.जी.ओ. वालों को कहा, “सालों, यदि घर के अंदर पैर रखा तो पैर तोड़ कर हाथ में दे दूंगा ... उसके बाद बच्चों नहीं अपाहिजों के हितों की रक्षा करते रहना.” थानेदार भी उनपर गुर्राया तो वे अपना अपना झोला संभालते हुए भागे.
      घर के अंदर पहुंचा तो छोटुआ रोते रोते अपनी माँ से कह रह था कि मैं तो बस मैगी नूडल खाना चाहता था. उस दिन पापा के साथ रामलीला मैदान में अन्ना का अनशन देखा था तो मुझे लगा कि यह काम बहुत अच्छा होता होगा इसीलिए अनशन करने लगा था. अब कभी नहीं करूँगा मम्मी!!
      बस यार इसी परेशानी में दिन भर उलझा रहा था ... अभी मैगी नूडल खा कर छोटुआ सो गया है, तुम्हारी भाभी को भी काम्पोज खिला कर सुला दिया है और तुम्हें फोन करके अपनी आपबीती सुना रहा हूँ यार.”
मैं : “ अरे यार, यह तो लेने के देने पड़ गए तुम्हें.”
राजा : “हाँ यार, दूसरी आज़ादी का साइड इफेक्ट है यह.”



रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

5 comments:

सतीश said...

मस्त.........

Anonymous said...

Great fforumm! Thanx guys!

Ajit Singh said...

‘राजा’ की मैं बहुत कद्र करता हूँ क्योंकि तीन दशक से दिल्ली में रहने के बावजूद वह अब तक बुद्धिजीवी है.......best line....mast hai ye lekh

Unknown said...

Good One.

Cheers,
Abhay
New Delhi
URL - www.lifegoeasy.com

Unknown said...

Good One.

Cheers,
Abhay
New Delhi
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