Friday, August 19, 2011

अन्ना का आंदोलन - भाग एक

बचपन याद है ! बुढा बाबा ( बाबा के बड़े चाचा ) ओसारा के एक कोना में एक पलंगनुमा काफी ऊँचा 'नेवारी'  के  खटिया पर् लेटे रहते थे ! बहुत गुस्से वाले थे और कंजूस भी - जो कुछ भी हम लोग हैं - उनके त्याग का ही फल है - खुद उनको अपनी कोई संतान नहीं थी ! छोटे मोटे ज़मींदार थे ! 

जब उनका मूड ठीक होता हम बच्चे उनके बगल में बैठ जाते ! वो दौर था - जब हम मिडिल स्कूल में पढते थे !  वीर कुंवर सिंह का नाटक हमारे किताब में था ! 'खूब लड़ी मर्दानी- झांसी की रानी' कविता कंठस्थ था ! चेतक :) और 'हार की जीत' ! बुढा बाबा से एक प्रश्न किया था - बाबा , देश आज़ाद हुआ तो आप कितने वर्ष के थे - वो बोले पचपन ! गांधी जी - हमारे गाँव आये थे ? वो बोले - हाँ , बगल वाले गाँव में 'कार' पर् ! गाँधी जी और कार :( मूड ऑफ हो गया था :( 'वामपंथी किताबों' में कार का जिक्र ही नहीं होता था ! 

बाबा राजनीति में थे ! बाबा से प्रश्न होता था - राजेन बाबु ( डा० राजेंद्र प्रसाद ) से आप मिले हैं ? वो बोले - हाँ ! संतोष होता था ! मेरा परिवार भी आजादी की लड़ाई में शामिल था ! राजेन बाबु की सादगी की कल्पना ही अपने आप में रोमांचित करती थी ! वामपंथी इतिहास की किताबें ! बाद में पता चला - राजेन बाबु का हमारे छपरा जिला के सबसे बड़े 'ज़मींदार' 'हथुआ' से काफी गहरे सम्बन्ध थे ! 

एक याद है - एक मामा के बियाह में १९८२ में पटना आये थे ! कदमकुआं से 'बिहार विधानसभा' निकल गए  - यह देखने की वो कौन सात विद्यार्थी थे जिन्होंने देश के लिये गोली खाया ! फिर उन नामो में 'खुद के जिले' का कोई है या नहीं - उसको खोजना ! मुजफ्फरपुर में थे तो 'खुद्दी राम बोंस' की मूर्ती के पास से जब भी गुजरे - एक नमन तो जरुर ही किया ! बचपन में सोचता था - जब भी बड़ा होऊंगा - भगत सिंह - चंद्रशेखर आज़ाद जैसा मुछ रखूँगा ! चंद्रशेखर आज़ाद के किस्से हर वक्त जुबान पर् होता था ! कई चाचा - मामा टाईप आईटम लोग वैसा ही मुछ रखता था ! 

थोडा बड़ा हुए तो - पटना आये ! यहाँ हर कोई 'छात्र आंदोलन ' का नाम लेता ! छात्र आंदोलन में हई हुआ - हउ हुआ ! लालू - नितीश - पासवान - यशवंत सिन्हा - फलना - ठेकाना - झेलाना - जिसको देखो - सब के सब 'छात्र आंदोलन' की उपज ! कुछ लोग इमरजेंसी की प्रशंषा भी करते - कहते ट्रेन समय से चलने लगे थे ! समाज में बकवास बंद हो गया था - पर् घुटन थी ! 

इस् तरह की कई कहानीयां कानों में गूंजती रही ! जब कोई बोलता - आंदोलन - तो हमारे जेनेरेशन के पास कहने को था - 'आई टी आंदोलन' ! मेरा जेनेरेशन सबसे ज्यादा बदलाव देखा है ! मंडल - कमंडल आया लेकिन वो समाज को विभाजीत ही कर के गया :( शर्म से उसको 'आंदोलन' नहीं कह सकते थे :( आई टी - आंदोलन में सब कुछ था - पर् वो नहीं था - जो आजादी और छात्र आंदोलन में था ! आई टी - आंदोलन कुछ फीका जैसा लगता था :( 

'अन्ना' आये ! क्या आये ! जबरदस्त आये ! वो सभी इतिहास की किताबों को सच करने का मौका आ गया ! कानो में गुजती उन कहानीओं को जुबान पर् लाने को दिल मचलने लगा ! टी वी पर् सीरीयल बंद हो गया - रवीश कुमार की खनकती आवाज़ गूंजने लगी ! मस्त ! दिन भर ओफ्फिस में बॉस से अन्ना को डिस्कस  करने के बाद 'होंडा सीटी' को घर के पड़ोस वाले पार्क के नज़दीक पार्क कर के - मोमबत्ती मार्च में शामिल होना - फिर खुद के घर के बालकोनी की तरफ - अपनी ही बीवी को गर्व से देखना - देखो ..देखो ..न..मै   भी कुछ कर सकता हूँ ! मै विदेशी कंपनी' का गुलाम नहीं - एक भारतीय भी हूँ - तुम भी आओ न ..हर्ष और खुशी को भी लेकर आओ ...रुको आती हूँ ..जींस मिल नहीं रहा !  ऐसा लगा - हम भी इतिहास में शामिल हो गए ! 

थैंक यू - अन्ना ! 

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !