सुन्दरम( 85 ) - दिवाकर( 83 ) - रँजन - रँजन पांडे ( 85 )
रँजन - डा० दिवाकर तेजस्वी - तपन झा
रँजन - प्रकाश - दीपक
रँजन - दीपक - उज्जवल नारायण - श्री गौरी शंकर सिन्हा एवं अन्य
अठारह काफी देर रात 'जमशेदपुर' से प्रकाश का फोन आया की वो उन्नीस को रांची में एक मीटिंग अटैंड कर के शाम वाला फ्लाईट से दिल्ली पहुँच जायेगा और शाम साथ बजे मेरे यहाँ ! शनीवार दोपहर रांची से दीपक का फोन आया की - "जेतना के मुर्गी न ..ओतना के मसाला" ! फिर हम दोनों हंस दिए ! शाम पांच बजे - दीपक और प्रकाश दिल्ली लैंड कर गए - फोन से बात हुई और बोले की - वो अपने ससुराल से दस मिनट मिल जुल कर - आ रहे हैं ! आठ बजे के करीब वो लोग पहुँच गए ! इतनी खुशी की उनको रिसीव करने मै खाली पाँव ही निकल पड़ा - करीब दस ग्यारह साल बाद 'प्रकाश' से मिल रहा था ! "कोई बदलाव नहीं" - हम दोनों ने एक दूसरे को यही बोला :)) वो आज भी उतना ही मेहनती - और मै आज भी उतना आलसी :))
मैंने पूछा - नॉन वेज ?? वो दोनों भाई बोले - शनिवार को नहीं ! फिर पत्नी ने शुध् शाकाहारी भोजन बनाया - इसी बीच हम तीनो पैदल एक राउंड 'इंदिरापुरम' का चक्कर लगा लिये ! गप्प - गप्प - पुरानी यादें - कुछ नयी भी - कुछ खट्टे तो कुछ मीठे :))) दीपक अपने स्वभाव के विपरीत चुप था ;) रात तीन चार बजे तक गप्प चलता रहा ! फिर सुबह साथ बजे हम तीनो उठ गए :) फिर गप्प ....दस बजे 'नरेन्द्र जी' का फोन आया - मै निकल रहा हूँ - आप भी पहुंचिए - मेरे मुह से निकला .."लह....."
ड्राइवर 'त्यागी' को बोला - रमेश वाला बी एम डब्लू - सीरीज पांच निकाल लो - चमका दो - आज इसी गाड़ी से जायेंगे :)) दीपक खुश हो गया - उसे महंगी गाडीओं का शौक है - खुद भी 'रांची' में बढ़िया सा रखा है - पिछली दफा आया था तो बोला "औडी" खरीद दो - मैंने मना कर दिया -
हम तीनो बिलकुल हाई स्कूल के विद्यार्थी का मन लिये हुए - स्पोर्ट्स क्लब पहुँच गए ! एक - एक कर के लोग आते गए ! दिवाकर भैया का फोन आया - "लैंड" कर गया हूँ ..बस पहुँच ही रहा हूँ ! मजा आ गया ! खुशी इतनी हो रही थी - कुछ समझ में नहीं आ रहा था - क्या बोले और क्या करें :) 'पंकज तेतरवे' का गोल्ड फ्लेक एक पॉकेट बातों ही बैटन में खाली हो गया ! धीरे से 'नरेन्द्र जी' से पूछा - स्टेज कौन देख रहा है ? बोले विश्वप्रिय के बड़े भैया - 1975 के 'शिवप्रिय वर्मा' ..मेरे मुह से अनायास ही निकल पड़ा - "वाह....." ! थोड़ी देर में 'रँजन पाण्डेय ' भी पहुँच गए - हमने पूछा - 'रँजन ठाकुर ?? ' ( 82 बैच ) ..मुझे थोडा डर था - अगले दिन से चालू होने वाले "लोक सभा" के कारण - हो सकता है - कई अधिकारी नहीं भी आ सकें ...पर् ये ..क्या ...धीरे धीरे ..लाल बत्ती - ब्लू बत्ती - ऑटो - कैब - सभी लोग आने लगे - शम्भू अमिताभ भैया भी ! हर किसी का चेहरा - मुस्कुरा रहा था :)) एक अजीब सी खुशी थी ....अधिकतर "88 बैच" वाले ही नज़र आ रहे थे :)) कमलेश भैया , गौरी शंकर भैया ..कई लोग ..तब तक एक हाथ कंधा पर् टिका - पहचान रहे हो ? हा हा हा ..ये थे "विनय रँजन" भैया करीब आठ साल से हम दोनों इंटरनेट के माध्यम से जुड़े थे - पर् मिल पहली बार रहे थे ...मजा आ गया !
कई भैया लोग जो मुझसे इंटरनेट पर् परिचित थे ..पर् पहली दफा मुझसे मिल रहे थे - अधिकतर का यही " आप बढ़िया ..लिखते हैं " :)) अच्छा लग् रहा था ! तब तक कुछ अनाउंस हुआ - हम कुछ इधर उधर देखते की - देखे की - "दीपक पाटलिपुत्रा स्टाईल में " सबसे आगे वाला सीट लूट लिया :))
एक एक कर के सभी सीनियर लोग बैच वाईज स्टेज पर् आने लगे ...उफ्फ़ शमा बंध गया ...शिक्षकों की याद आने लगी ..कई किस्से निकल कर आये .."पिटाई " के किस्से ...दीपक सबसे आगे बैठ कर ..मजा ले रहा था ..मै उसके पास पहुँच कर पूछा .."मुर्गी महंगी या मसाला ??" वो हंस दिया और बोला - "मुर्गी" :)) हा हा हा !
बहुत सीनियर लोगों की बातें ..यहाँ नहीं लिख सकता ..पर् 1983 और 1984 बैच जब आया तो ..मजा आ गया ...एक से बढ़ कर एक ..."जय हो " के गाने पर् पहले डांस हुआ ..सांस रुका ..फिर यादों का सिलसिला ...दिवाकर भैया बोले - क्या स्कूल था - जिस बेंच पर् शहर के मशहूर डाक्टर का बेटा बैठा हो - उसी बेंच पर् उनके धोबी का भी बेटा - जिस बेंच पर् 'राज्यपाल के पुत्र बैठे हों - उसी बेंच पर् उनके ड्राईवर का भी पुत्र ' ..धन्य है वो शिक्षक गण ...जिनकी नज़र में सभी बराबर ..पिटाई हो रही हो तो सबको एक बराबर ..' क्लास में , स्कूल में ..बोर्ड में ...फर्स्ट करना आपकी पहचान हो सकती है ...पर् कैम्पस के अंदर सब बराबर !
थोड़ी देर ही पहले ..इसी स्टेज से दिवाकर भैया के चाचा ..पी के शरण भैया एक कहानी सुना कर गए थे ..:)) हंसते हंसते लोट पोट हो गए थे हम सभी ...तपन भैया और आनंद द्विवेदी भैया ..ने बहुत ही बढ़िया बात बोली ..कुछ करना चाहिए स्कूल के लिये जिससे हम स्कूल के गौरव को दुबारा स्थापित कर सकें !
अब 1984 बैच के "राज दुबे" भैया शुरू हो गए ...एकदम टिपिकल "पाटलिपुत्र स्कूल स्टाईल" में :) फिर स्कूल के लिये पचास हज़ार का डोनेशन भी अनाउंस किया !
अब आये ..रँजन पांडे भैया ...दिल्ली विश्वविद्यालय से अगर आप पढ़े हैं तो उनके नाम से परिचित होंगे :) मुझसे वो व्यक्तिगत रूप से कुछ कहानी बता चुके थे ...स्टेज पर् कुछ और कहानी सुनाये :)) ये उन लोगों में से थे - जिनके खानदान के कई लोग इस स्कूल से पढ़ चुके हैं ..सो एक भावनात्मक लगाव !
हर एक बैच और हर एक भैया लोग को स्टेज पर् "गुलदस्ता" दिया जा रहा था ...वो क्षण बड़ा ही भावुक होता था ..! एक दर्द और एक खुशी ..हर किसी के चहरे पर् ...बिहार बोर्ड में "नेतरहाट विद्यालय" को टक्कर देने वाला "सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र विद्यालय" का नई दिल्ली में पहला संगठीत पूर्व छात्रों का मिलन ..इससे भी बड़ी कोई खुशी हो सकती है ..भला ?
इसी बीच विश्व प्रसिध्ध कार्टूनिस्ट "पवन" भी आ गए ....यहाँ वो अन्यों की तरह एक सामन्य अलुम्नी की तरह ..
फिर हमारा बैच आया :) मैंने कुछ पहले से सोच नहीं रखा था ..बस यही पता था की ..अंत में 'नरेन्द्र जी के साथ धन्यवाद बोलना है " ..पर् मैंने भी कुछ बोला ....बैच के साथ ..जब सब बोल लिये ...मै थोडा "लंबा" बोल दिया :))
बाद में दिवाकर भैया बोले - गजब के ओरेटर हो और ......फिर वो , तपन भैया ..आनंद भैया ..राकेश भैया ..."कुछ मदद हम लोग भी करना चाहते हैं " ...जिस प्रेम और हक से वो लोग बोले ..आँखों में आंसू आ गए ...नहीं भैया ..."कल शाम ही ...बहुत पैसा दुबे भैया , दिनेश भैया , रँजन भैया , उज्जवल जी इत्यादी का टीम दे चूका है ..." अब आगे जरुरत होगी तो खुद बोलेंगे ...!
फिर आया 88 batch Onwards - जम के डांस किया सब ! "कार्टूनिस्ट" पवन ने जी भर नाचा :))
समय बहुत तेज़ी से खतम हो रहा था .....अंत में हम सभी स्टेज पर् कूद गए :) आप सभी ने फेसबुक पर् सारी तस्वीर देखी होगी .....
ऐसा भावुक माहौल हो गया की ....लौटते वक्त ..कोई किसी से नहीं मिला ..मालूम नहीं ...खुद को रोक पायें या नहीं ...
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कई दिन तक हैन्ग्वोभर रहा ..यही सोचता रहा ...एक स्कूल ..जिसके पास बिहार के अन्य स्कूलों की तरह अपना बहुत बड़ा कैम्पस नहीं ..सिमित संसाधन ..फिर भी कैसे वो स्कूल "नेतरहाट विद्यालय" को टक्कर देता .होगा ....कैसे इसके विद्यार्थी ..भारत वर्ष में फैले हुए हैं ..1967 पास आउट से लेकर 1991 तक के पास आउट तक की बातों को सुन कर लगा ....यह योगदान उन शिक्षकों का है ...खासकर 1972 के पहले इसके प्रिंसिपल "अवधेश बाबु " और फिर "रामाशीष बाबु" का .....
देखिये ....बिहार में "नेतरहाट विद्यालय" के बाद मैंने किसी अन्य विद्यालय को कभी तरजीह नहीं दी ...पटना में कुछ और अन्य स्कूल हैं ..पर् वो समाज के एक खास वर्ग के लिये ही हैं ...वहाँ के अधिकतर विद्यार्थी में वो लचीलापन नहीं है की ..वो सब जगह फिट कर सकें ....! एक घटना याद है ....साईंस कॉलेज की चाहरदीवारी ..एक लाईन से पचास ...मेरे स्कूल वाले बैठे हुए हैं ..क्या मजाल की कोई कुछ बोल दे .....रांची मेसरा में एडमिशन के लिये ...सुबह वाली बस में तीस सीट ..सभी के सभी ...एक ही स्कूल के ....नालंदा मेडिकल कॉलेज ..ओल्ड कैम्पस हॉस्टल ...डा० प्रवीण गरज रहे हैं ....सभी चुप चाप सुन रहे हैं .....दिवाकर भैया ..को गोल्ड मेडल मिल रहा है .....आई आई टी - कानपूर में चुनाव ....कौशल अजिताभ ...गरज रहे हैं ....आई आई टी - जी ई ई में प्रथम सौ का तगमा पहले से ही है - क्या मजाल की कोई कुछ बोल सके ....विश्व प्रसिध्ध ...आई पी एस .."अभय आनन्द " - इस स्कूल के शिक्षकों को साष्टांग दंडवत करते हैं .....
सुब्रतो कप - फूटबाल ...भारतवर्ष में "सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र हाई स्कूल" का नाम ....क्या लिखूं और और क्या न लिखूं ....स्कूल बिल्डिंग और कैम्पस से नहीं होता है .....विद्याथी और शिक्षक ...और अभिभावक का समर्थन ....
फिर कभी यादों को याद किया जायेगा ........
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !