एक घटना सुनाता हूँ - बहुत पहले की बात है ! गाँव में एक अपवाह थी की मेरे बड़े परबाबा के पास बहुत पैसा है और वो पैसों को घर में ही रखते हैं - गाँव के एक थोड़े बदमाश व्यक्ती को यह पता चला तो उसने चोरी करने की कोशिश की - रात में वो 'दालान' में चोरी करने आये - मेरे बाबा ने उनको पकड़ लिया ! सुबह गाँव के लोग आये और एक छोटी सी पंचायत और मेरे परबाबा के कारण उनको छोड़ दिया गया ! पुलिस - केस - मुकदमा नहीं हुआ ! इस घटना को हुए करीब चालीस साल हो चुके होंगे ! जिन्होंने चोरी करने की कोशिश की - वो गाँव छोड़ कर चले गए फिर कभी वापस नहीं आये ! लोग कहते हैं - कुछ दूरी पर् किसी गाँव में बस गए और जब कभी अपने गाँव का कोई मिलता तो मुह गमछी से ढक लेते थे ! चोर थे - चोरी किया पर् एक शर्म भी - आँखों में ! वो शर्म उन्हें गाँव के समाज ने दिया था !
इस घटना पर् मै ज्यादा कुछ और नहीं बोलूँगा पर् वर्तमान में ऐसा नहीं है ! अभी हाल में गाँव गया था - पता चला की 'फलाना बाबु' का बेटा बदमाश हो गया - कुछ 'केस - मुक़दमे' भी चल रहे हैं ! रात - दिन 'कट्टा' साथ में ही रखता है ! जब मूड आया किसी को 'गरिया' दिया ! कोई उसको टोकने - बोलने वाला नहीं है ! गाँव के ही एक शिक्षक को उसने कुछ गाली दे दी ! फिर अगले दिन 'शिक्षक' के ही काफी करीबी 'पट्टीदार / गोतिया' के दरवाजे पर् लंबी - चौड़ी बातें कर रहा था ! मैंने कुछ लोगों से बोला - आप सभी उसे समझाते क्यों नहीं हैं ? जबाब आया - 'गुंडा - मवाली' को कौन समझाए और दोस्ती है तो कभी काम ही आएगा !
समाज महत्वहीन हो गया है !मुझे बिलकुल याद है - गाँव के किसी लडके के यहाँ कोई बरतुहार आया तो सभी बुजुर्ग लडके के दरवाजे पर् पहुँच कर - लडके के पिता जी को समझा बुझा कर 'फैसला' हमेशा से 'लडकी' वाले के ही फेवर में देते थे - उस फैसले को 'लड़का वाला' मानने को विवश होता था ! अब ऐसा नहीं है - शादी और लेन - देन बंद कमरे में होने लगी है ! बिहार लोक सेवा आयोग के एक मेंबर परिचित थे - कहते थे - मैंने कई जान पहचान वाले लड़को को - डिप्टी कलक्टर - डीएसपी - बनने में मदद की ! आशा के अनुसार - वो वैसे लड़कों के यहाँ 'बरतुहार' ( लडकी वाला ) को भेजा करते थे - लड़का वाला का जबाब - फलाना बाबु का 'पैरवी' लेकर नहीं आईये !
कभी कभी लगता है - लोगों के आँखों में शर्म खत्म हो गयी है ! "लिहाज" भी समाप्त है ! बचपन में देखता था - गाँव के कई छोटे चाचा लोग 'खैनी' खाते थे - बाबु जी या बाबा के सामने नहीं ! गलती से "चुनौटी" दिख गया तो आँख नीची कर के 'निकल' पड़ते थे ! अब शायद ऐसा नहीं है !
बड़े बाबा मुजफ्फरपुर में रहते थे - मेरे बाबु जी - मेरे चाचा - फुआ लोगों के शिक्षा का "कर्तव्य" उनके ही सर पर् था ! यूँ कहिये - एक जमाने में - पुरे इलाके का ! इस आधार पर् ही जब हम लोग पटना आये तो चाचा की बेटी को साथ रखने लगे क्योंकि चाचा बैंक में थे और ग्रामीण पोस्टिंग थी - एक बहुत बड़े खानदान के - एक बहुत ही बड़े डॉक्टर ने 'कमेन्ट' किया हमलोगों पर् - "आप लोग पिछड़े हैं" :))
"लोग क्या कहेंगे ? " जबरदस्त ताकत वाला वाक्य है ! पर् अब किसी को इसका ख्याल नहीं है ! लोग हर बंधन से आज़ाद होना चाहते हैं ! इस आज़ादी में ही 'सामाजिक बंधन' कमज़ोर हो रहे हैं ! कोई भी किसी भी और के लिये - अपनी छोटी सी भी 'खुशीओं' का बलिदान नहीं देना चाहता है ! कल तक गाँव पराया था - आज भाई पराया है - कल माता पिता पराये हो जायेंगे और परसों आपके बच्चे आपको 'पराये' घोषित कर देंगे !
तथाकथित "समाज शास्त्र" के विद्वानों के कमेन्ट की आशा में ....
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !