Monday, October 18, 2010

मेरी पटना यात्रा - भाग एक :)

दशहरा में पटना गया था ! कल ही लौटा हूँ ! कॉमनवेल्थ के कारण बच्चों की  छुट्टी हो गयी थी ! मेरी भी ९ अक्टूबर से होने वाली थी ! बाबु जी हलके से बोले कि 'पटना ही - आ जाओ ' ! पहले सोचा था 'मैसूर-बंगलौर' जाऊंगा ! ८ साल से नॉएडा - इंदिरापुरम  इलाके में हूँ ! सारा पैसा पटना आने जाने में खत्म ! पहले 'पटना में टी ए - डी ए बिल भंज जाता था - अब वो भी नहीं :( 

पत्नी और बच्चे ४ अक्टूबर को यहाँ से निकल पड़े ! साइड वाला सीट उनको मिला - गलती रेलवे रिजर्वेशन की थी -  पत्नी कि गाली मुझे मिली कि पहले से क्यों नहीं टिकट कटाया :( खैर , अब आदत हो गया है ! आलसी हूँ ! आज का काम कल करने कि आदत है ! वो लोग पटना पहुंचते ही पहला शिकायत किये कि - लाईन नहीं है :( अब बिहार बिजली बोर्ड के लिए मै कैसे जिम्मेदार हो सकता हूँ :(  पत्नी के नहीं रहने पर् यहाँ 'इंदिरापुरम' में मुझे सबसे बड़ी दिक्कत होती है - सुबह उठने कि - खैर दोस्तों को बोल दिया था - वो लोग फोन कर के उठा दिए :) तीन दिन मस्त से गुजरे ;) 

८ अक्टूबर को मै भी निकल पड़ा ! स्टेशन थोडा लेट पहुंचा ! वैसे आदत है - गाड़ी खुलने से एक घंटा पहले ही स्टेशन पहुँच जाना ! फिर स्टेशन को निहारना - गौर से यात्रीओं के चेहरे के भाव को पढ़ना ! मैग्जीन के दुकान से अमिताव घोष कि एक नोवल ख़रीदा ! ट्रेन में ढेर सारे 'कॉंग्रेसी; चढ़े हुए थे ! मेरे डिब्बा में ही ! धनी - मनी दिख रहे थे ! सीट बदल के मै उनके पास पहुँच गया ;) नोवल को बंद किया और 'राजनीति' पर् एक बहस छेड दिया :) कुछ लोजपा के भी धनी मनी उम्मेदवार बैठे थे ! हुआ हंगामा ! फिर एक उम्मीदवार था - जो शायद मेरी बातों से सहमत था - वो मेरा हाथ दबाया और बोला - अब आप चुप रहिये - वरना मार पीट हो जाएगा ! बड़ा मजा आया ! 

९ अक्टूबर को सुबह सुबह पटना पहुँच गया ! राजू गाड़ी लेकर आया था ! करीब १५ साल से हम लोगों के साथ है ! नालंदा जिला का नितीश जी का स्वजातीय है और उनसे ज्यादा खानदानी है ! पहले साथ में ही आऊट हॉउस में रहता था ! रास्ता में बोले कि तनी पान खाने दो ! मुह लाल लाल कर के डेरा पहुंचे ! बाबु जी सभी भाई का फ़्लैट एक साथ ही है ! आज तक इसको हमलोग 'डेरा' ही कहते हैं :) चाचा नीचे मिले ! प्रणाम किया और मुजफ्फरपुर से कौन कौन खड़ा है - पता किया ! वो बोले - रंजू , जितना पोलिटिक्स में तुमको इंटरेस्ट है - उतना हमको नहीं :(  ऊपर गए ! बाबा - बाबु जी जैसे इंतज़ार ही कर रहे हों ! सबको प्रणाम किया ! माँ ने चाय बना के दिया ! तीन दिन का पुराना सभी हिंदी अखबार उठा के टैरेस पर् झुलुआ पर् चला गया ! 

पत्नी के साथ ही सेम ट्रेन में 'देव' भी अपने परिवार के साथ पटना आया था ! बेहद ही संजीदा और संस्कारी ! बचपन का दोस्त है ! एक दो साल छोटा होगा ! अब वो खुद ही इतना फेमस है कि - उसके बारे में क्या लिखूं ! मै उसकी बहुत इज्जत करता हूँ ! वादा था - पटना में मिलेंगे ! सो उसको फोन लगाया ! लगा उसका फोन काम नहीं कर रहा ! खैर ! बाबा के साथ बैठ कर पूरा गोपालगंज जिला का राजनीति चर्चा किया ! तब तक पत्नी हाथ में तौलिया थमा गयीं - ऑर्डर के साथ - जल्द नहाईये - गरम गरम भात - दाल - आलू कि भुजिया - चटनी तैयार है ! ह्म्म्म .... काका से बोला एक कप और चाय :) 

बाबु जी अपने गठिया के दर्द से थोडा परेशान दिखे - उनके कमरे में गया ! धीरे से पूछे - 'नौकरी , मन लगा के कर रहे हो ..न ' ! पुराना सवाल - मेरा पुराना जबाब - पटना में बहुत स्कोप है ;) फिर वो लोन सोन का स्टेटस पूछे :( मैंने फिर बताया - फलाना - फलाना दोस्त लोग बी एम डब्लू इत्यादी खरीद लिया है - मौका मिला तो हम भी एक ... :) बाबु जी थोडा झिडके ...हमेशा फैंटसी में रहते हो ! पहले घर और पुरानी गाड़ी का क़र्ज़ समाप्त करो :( 

फिर पुरंदर भैया को फोन लगाया और बोला कि मेरे ससुराल वाले मार्केट में पहुंचिए ! मै भी नहा धो खा पी के निकल पडा ! बाबा कि नयी गाड़ी थी - टंकी फूल करवाया ! बाबा पैसा दे रहे थे - लेकिन मैंने मना कर दिया ! खुद के कमाई से बाबा कि गाड़ी में पेट्रोल डलवाना अच्छा लगा ! 

  कृष्ण सर के पास गया - रईस हैं ! मगही पान - ग्रीन टी और गप :) नितीश के पार्टी के कुछ महासचिव लोग भी मिले ! कुछ मत्री लोग कि भी शिकायत रहती है कि मै पटना आकर उनसे नहीं मिलता - पर् मैंने सन २००२ के बाद से ये प्रण लिया कि किसी राजनेता और बयूरोक्रेत से नहीं मिलूँगा - अगर जब तक यह विश्वास न हो जाए कि हमदोनो एक दूसरे को आदर करते हैं ! 

क्रमशः ..

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

4 comments:

abhishek said...

wonderfully written.. the humour which is conveyed through your blog is simply awesome..

Purander Sawarnya said...

Aisi yatra vritant kafi dino ke baad padhane ko mila hai.Aapne aap mein adwitiya hai.

Unknown said...

I am normally into the habit of receiving a number of comments on my blog and mails for my blog. Being an activist myself, I am also no stranger to hate mails. However, it would be an honest confession on my part that I don't read very many blogs of other writers. However, your blog is somehing that I am regularly reading nowadays. You have the reflex of Munshi Premchand in your writing. Though I don't know whether this is by default or by design.

Sharad said...

Rituraj, your style of writing is very down to earth and typical bihari touch (read heavy on rural and urban mix)Keep it up..
-Sharad