फाईनल सेमेस्टर का परीक्षा के बाद हम 'पटना' में जम गए थे ! दोस्त लोग नौकरी में जाने लगे - फोन आने लगे ! हम सोचे जब सब 'नौकरी' कर रहे हैं - फिर हमें भी कर लेना चाहिए ! :)
'अमित' को बंगलौर में नौकरी लगी थी ! फोन किया - बोला 'आ जाओ' ! हम भी ट्रेन पकड़ लिए ! उनदिनो 'मोबाईल' नहीं होता था ! बंगलौर पहुंचा तो पता चला की वो 'दूसरे शहर ' गया हुआ है दीदी से मिलने ! अब मै क्या करूँ ? सोचा "नौकरी" करने आया हूँ - अंदाज़ फ़िल्मी होना चाहिए ! पूरी रात 'मजेस्टिक बस स्टेशन' पर् गुजार दिया ! अगली सुबह 'अमित' से मुलाकात हुई ! उसको कंपनी वालों ने 'मल्लेश्वरम' चौक पर् एक कमरा दिया हुआ था ! जम गए 'कमरा' में ! 'अमित' को हमारे बैच वाले 'दादा' कहते हैं ! 'दादा' को मेरी नौकरी की टेंशन थी - मैंने उसको समझाया - नौकरी बड़ी चीज़ नहीं है - नौकरी में मन लगना बड़ी चीज़ है ! पटना से चलते वक्त - बाबु जी ने बाटा का किंगस्ट्रीट जूता खरीद कर दिया था - १० ही दिन में वो बेचारा दम तोड़ दिया ! खैर अगले एक दो सप्ताह में ही नौकरी लग गयी ! एक आई आई एम अलुम्नी की छोटी सी कंपनी थी !
हर सुबह 'नहाने' का झंझट होता था ! जब तक मै सो कर उठता - 'दादा' नहा धो कर 'तैयार' :) अब जब वो अपने ओफ्फिस की तरफ निकलता तब मै 'अखबार' पढता - फिर चाय - फिर नहा धो कर लेट लतीफ़ ! शाम को लगभग हम दोनों एक ही समय में पहुँचते ! फिर साथ में 'दूकान' में एक कप चाय को दो भाग में करके पीते ! जिस जगह हम रहते थे - वहाँ काफी व्यस्त सड़क थी ! उसको 'मल्लेश्वरम सर्किल' कहते थे ! देर रात तक भीड़ भाड़ ! एक मैग्जीन की दूकान होती थी - वहाँ से आठ आना में मैग्जीन को रात भर पढने के लिए लाते थे ! :) The Week की लत वहीँ लगी थी !
रात को खाने का हमलोगों ने बढ़िया ट्रिक निकाला था ! एक अंडा के दूकान से चार उबला अंडा खरीद , फिर एक रेस्तरां से छह रुपईया में एक प्लेट चावल और चिकन की करी :) कुल १२ -१३ रुपईया में दम भर खाना :) दरअसल 'दादा' ने रेस्तरां के किचेन वाले को 'फिट' कर रखा था :) वो एक प्लेट चावल की जगह दो प्लेट दे देता था और चिकन करी मुफ्त में :) हम इतने बेचारा शक्ल में होते की - कोई भी कुछ भी दे सकता था :) एक शनीवार दादा 'ब्रिगेड' लेकर गया - बोला 'देखो' यही है "दुनिया" ! फिर क्या 'दादा' के "विजय सुपर " पर् चढ हम रोज "दुनिया" देखने जाने लगे ! :) फिर , शनीवार देर रात ! क्या 'दुनिया थी' :) "जन्नत लगता था" ! कई दोस्त जो वहाँ विदेशी कंपनी में काम करते थे - वहीँ मिलते ! जो जितना 'कमाता' वो उतना ही बड़ा 'कंजूस' :)
मेरे लिए 'अन्जान' लोगों से दोस्ती थोड़ी मुश्किल थी - पर् 'दादा' सब से कर लेता था ! हम जिस मकान में रहते थे - उसका नाम था "रतन महल" ! हम जैसे ही वहाँ रहते थे ! दादा वहाँ बहुतों से दोस्ती कर लिया ! एक और टीम था - उडिया का - "सुबुध्धी" - ISRO में वैज्ञानिक था ! अब टीम बड़ी हो गयी - रात में साथ खाना खाने वालों का ! हम और दादा अब 'चावल और अंडा' वाला धंधा बंद कर दिए थे - हम सभी अब नए ठीकाने खोज लिए - "आन्ध्र स्टाईल" रेस्तरां ! इसी बीच हम भी एक 'बजाज चेतक स्कूटर' खरीद लिए !
तब तक 'तविंदर सिंह' पहुँच गया ! लंबा चौड़ा 'जम्मू का सरदार' ! उसको भी नौकरी लग गयी :) हम तीनो एक साथ "दादा" के कमरे में रहने लगे ! एक दिन 'दादा' बोला - भाई - ये रूम मेरी कंपनी का है - अब तुम दोनों अलग कमरा ले लो ! हम और तविंदर दोनों ने एक कमरा उसी 'रतन महल' में ले लिया ! तविंदर सरदार था - दिल बहुत बड़ा और 'बहस करने में उतना ही माहीर ! रात भर बहस करता था ! और कमरे में मै पलंग पर् सोता और वो नीचे ! कभी शिकायत नहीं किया ! अब वो कंगारू स्टेपलर का इंटरनेशनल हेड है :) नॉएडा आया था तो मिला था :) फेसबुक पर् भी है :)
तविंदर के आने से एक फायदा हुआ - हम सभी अलसूर रोड पर् एक गुरुद्वारा में हर रविवार 'लंगर' खाने जाने लगे :) बहुत मजा आता था ! पूरा एक टीम ! तविंदर देर रात अपनी पगड़ी को हम सभी से सीधा करवाता था :) फिर सुबह में उसकी पगड़ी बांधो !
एक छोटी सी घटना याद है - के आर सर्किल के पास बंगलौर का सबसे बढ़िया 'इंजिनिअरिंग कॉलेज' है - वेश्वेश्वरैया जी के नाम पर् ! वहाँ से गुजर रहा था ! पोस्टर देखा - वहाँ 'मिलेनियम ग्रुप' का रॉक शो होने वाला था ! मै कॉलेज के अंदर घुसा गया ! अभी नया नया खुद भी कॉलेज से पास किया था तो झिझक नहीं हुई ! वहाँ के विद्यार्थीओं के कल्चरल सेक्रेटी से मिला और बोला - "मुझे अवसर दोगे , मिल्लेनियम ग्रुप के साथ ? " वो बहुत देर तक हंसा फिर बोला - ओके , आ जाना कल :) अब , कल के लिए कपडे नहीं थे :) जिस कपडे में 'इंटरविउ' देता फिरता था - उसमे ही पहुँच गया - सफ़ेद शर्ट - काला पैंट और लाल टाई ;) "दादा" भी साथ में था ! जबरदस्त स्टेज और क्रावूड ...मस्त !! ;) पचास हज़ार वाट के स्पीकर्स :) बेहद ख़ूबसूरत लड़कियां - हर लिबास में ! दक्षिण भारत के सभी बढ़िया इन्जीनिअरिंग कॉलेज के एक से बढ़कर एक लडके - लडकी आये थे ! "दादा" को किस किया और फांद गया - स्टेज पर् - खुद का लिखा 'गाना' - सब झूम गए ! स्टेज से नीचे उतरा तो 'दादा' बोला - क्या बोला ....आज तक कानो में सुरक्षित हैं :) फिर क्या था ...दादा थोडा दूर खड़ा था और मै जिंदगी में पहली दफा इतनी सारी हसीनाओं के बीच अकेला खडा था :) किसी ने कहा 'दम चलेगा ? " हा हा हा ... ....उफ्फ्फ्फ़ ..वैसे पल फिर कभी नहीं आये ...और सिर्फ 'दादा' ही इसका गवाह बन सका ! दोस्त है - बड़ा भाई जैसा भी ! इंदिरापुरम में ही रहता है :) विप्रो में बहुत बड़ा अधिकारी बन गया है ! मेरी एक डायरी भी उसके पास सुरक्षित है ;) !
कुछ महीनो के बाद दादा कलकत्ता चला गया ! वहीँ उसको नौकरी मिल गयी ! तविंदर अपने ढेर सारे सामान को मेरे पास छोड़ ..जम्मू वापस चला गया ! मै काफी अकेला हो गया ! मै अपनी पुरानी कंपनी छोड़ 'दादा' वाली कंपनी में चला गया ! 'सिंगापूर' की कंप्यूटर नेटवर्किंग कंपनी थी - मालिक 'I I Sc ' से पास था - 'वैज्ञानिक' जैसा ! बहुत पढ़ना पड़ता था - वहाँ ! तनखाह मुहमांगी जैसी थी - पर् 'मन' बिलकुल नहीं लगता था ...बिलकुल भी नहीं ..!
क्रमशः !!!
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !