Tuesday, July 21, 2009

१० बजिया स्कूल और नौकरी !

सुबह सुबह "झड़प" शुरू हो जाता है ! ६ बजे से ही चिल्ल पों , आधा नींद में रहते हैं - श्रीमती जी का श्लोक शुरू   ! बच्चा लोग को स्कूल के लिए तैयार करो - अभी एक का टाई नहीं मिला रहा है  तो दूसरे का बेल्ट खो गया :( मतलब की अजीब हाल रहता है  ! बस्ता चेक करो - लंच देखो ! नहाओ - धुलाओ , फिर बस पर् चढाओ - चार बार बस में झाँक के देखो बच्चा लोग बढ़िया से बैठ गया है की नहीं  ! सकून  से किसी दिन 'अखबार' नहीं पढ़ पाते हैं ! ऊपर से रोज पत्नी का श्लोक - अखबार नहीं पढते हैं तो इतना सारा अखबार क्यों लेते हैं - मजबूरन रोज रात सोने के पहले सभी अखबार को पढ़ना पड़ता है ! आजकल नया ताना शुरू है - इतना रात तक फेसबुक पर् आप क्या करते हैं ..अब हमको इस् वक्त सिर्फ मुस्कुराना है ..वर्ना 'बम्ब' किसी दिन फटा फिर ..लैपटॉप चौथे मंजिल से सीधे निचे नज़र आएगा ! हा हा हा ...
बच्चा लोग को स्कूल बस में चढाओ के आओ तो खुद भी तैयार होना है - उम्र हो गयी - रोज शेविंग करो फिर आठ बजे तक तैयार भी होना है - जब तक हम तैयार होकर ब्रेकफास्ट टेबल पर् बैठ नहीं गए - तब तक 'झिक झिक' ! सड़ा - गला जो मिल गया चुप चाप खा लीजिए ! 


हम लोग १० बजिया स्कूल में पढ़ते थे ! सुबह आराम से उठा - नास्ता वैगरह किया और चटाई / चौकी पर पालथी मार के - २ दूना २ हिसाब बनाया ! आराम से 'हर - हर गंगे' कहते हुए नहाये ! तब तक 'कूकर' वाला गरम गरम भात तैयार हो गया ! आराम से पालथी मार् के खाये - बाबु जी के साथ - वो उधर निकले - हम इधर साइकिल पर् पैडल / या अधिकतर दिन पैदल ! रास्ता भर - राष्ट्रपति से लेकर गावस्कर - कपिलदेव का डिस्कशन ! राजेन्द्र नगर 'गुमटी' को पार किये ! कहीं कोई मदारी मिल गया तो थोडा देर उसको देखे - कहीं कोई ठेला पर् 'ताश' का जुआ दिखा रहा तो उसको देखे - फिर 'वैशाली' सिनेमा हौल को निहारते - पहुँच गए 'स्कूल' ! भर दम पढ़े - गप्प किये - खेले फिर शाम चार बजे वापस ! चार बजे - फटा हुआ ग्लव्स / टूटा हुआ बैट लेकर खेल के मैदान में ! नौवा - दसमा में गए तो शाम को 'मोहल्ला' में घूम 'छत - बालकोनी' भी देखने लगे ! :) फिर शाम को सात बजे से नौ बजे तक बाकी का सब्जेक्ट या फिर कोई चाचा - मामा टाइप आईटम आया हुआ हो तो उसका गप्प सुनना ! पौने नौ बजे उधर टीवी / रेडियो पर् समाचार शुरू हुआ - इधर जोर से भूख लगा - किचेन में जाकर खडा हुए ! रोटी दूध खाए फिर सूत गए ! 



पटना में दस बजिया नौकरी भी मस्त होता है ! दस बजे आराम से खा कर - वेस्पा स्कूटर से निकल जाईये ! रास्ता में दो खिल्ली पान खाईये और चार खिल्ली पैक करवा लीजिए - टकधूम - टकधूम करते ओफ्फिस !  अब तो बाबु जी पटना के मशहूर एक प्रोफेशनल कॉलेज में पिछले नौ साल से एच ओ डी हैं - मैंने पूछा - बाबु जी , जो लोग लेट आते हैं या जल्द जाते हैं - उनको कैसे इजाजत मिल जाती है - बाबु जी बोले - कुछ नहीं - जैसे वो डिपार्टमेंट में घुसा - मेरे सूट की बडाई करने लगेगा - हम समझ जाते हैं - आज ये लेट आया है या फिर जल्दी भागेगा ! बिहार सरकार का दस बजिया नौकरी मस्त है - आप इसी नौकरी में बेटा के परीक्षा के बाद 'कॉपी' के पैरवी कर सकते हैं - सगे सम्बन्धी के बाल बच्चा के बियाह का  बरतुहारी  कर सकते हैं  - ये सब यहाँ 'मेट्रो' में पोस्स्बिल नहीं है - जमाना हो गया - किसी का 'बारात' गए हुए - सारे सगे सम्बन्धी से लगभग दुश्मनी हो चुकी है - मालूम नहीं कौन आएगा ..मेरे बाल बच्चा के बियाह में ! :(

खैर ..मेट्रो में बियाह - शादी में ज्यादा हेडक नहीं है - किराया पर् 'मामा - फूफा' लोग मिल जाते हैं ! कुछ साल पहले प्रगति मैदान में एक बियाह में गए - बहुत देर तक बारात नहीं लगा तो मैंने पूछा - क्या हुआ भाई - पता चला - 'फूफा-मामा' के लिये जिस टेंट हाउस वाला को बोला गया था ..उसका मोबाईल स्विच ओफ्फ है और किराया पर् बढ़िया 'मामा-फूफा' लाने के लिये पैसा एडवांश में दे दिया गया था - थोड़ी देर बाद - एक बढ़िया फोर्ड कार में मामा - फूफा आये - धीरे से बोला 'एक दूसरी बारात' अटैंड कर रहा था - पटना का सुल्तानगंज का बैंड बाजा वाला सब याद आ गया - एक लगन में तीन बारात वो सब अटैंड करता था - वही हाल मेट्रो में 'मामा-फूफा' लोग का है  ! ये एकदम सच घटना है ! हम उस पूरी रात सो नहीं सके - लगा जैसे अब मेरे 'अस्तित्व' पर् डाका पड़ने को है !

और क्या लिखूं ..परेशान हूँ ..!


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

9 comments:

अजय कुमार झा said...

एक दम ठीक कह रहे हैं ऋतुराज बाबु..हमही लोगन का ज़माना ठीक था..अब ता बेचारा बच्चा सब भोरे भोरे उठने वाला चौकीदार होकर रह गया है..पढाई को पता नहीं क्या बना कर रख दिया है ..

Udan Tashtari said...

हमारा बचपन याद आया. आजकल वाकई बोझ बढ़ गया है.

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

कहिए मत !! जो आनंद उस दस बजिया स्कूल में था ऊ आनंद अब कहाँ. सच मुच अब का पढाई तो अभिभावकों का टेस्ट हो गया है. बस स्टाप पर बच्चो को छोड़ना लाना और फिर उनका होम वर्क करना. कोई कोई होम वर्क तो ऐसा होता है मानो बच्चे के लिए नहीं उनके माता-पीटा के लिए हो.
खैर समय का शायद यही मांग हो. जो अंग्रेजी पाचवा-छठवा कलस से शुरू होता था ऊ अब पहिला क्लास से ही शुरू हो गया है.

Fighter Jet said...

16 ane sach! :(

Jivitesh said...

Pranam Sir..10 bajiya school ki baat uthi to ek aur baat yaad aaya . Theek 10 baje school jaane se pahle ....Daal Bhaat Bhujia acchar ....woh bhi Garma garam. Ab kitna bhi five-star me kha lijiye..us khaane ka majaa kahaan.

ashok sharma said...

rituraj baboo,tumne bachpan ki yaad dila di.hamara to brunch hota tha bhaat,paani jaisi daal aur aaloo ka bhujiya ya bhurta,jaldi-2 khao aur basta utha kar lapak lo.fir shaam ko school se aate waqt race lagti thi,bade bachche tej chalte the to mujhe kai bar daudna hota tha ki kahin pichad na jaaoon.
fir jeb mein bhooja aur khelna football ya badminton.fir padho khane ka intjaar kart hue aur jaise khana mila ,khao aur so jao.
kya din the wo bhi.
tumne bahut najdeek se chua hai un purane yaadon ko,ya kaho ki ghao kured kar hare kar diye.
but still i love it and appreciate
your precise collection of our olden golden bachpan,jo lagta hai abhi yahin fir dubara aa khada hua hai,kahta hai main to yahin hoon,gaya hi kahan tha,wo to tumne hi aankhen band kar li thi.
my wife appreciates you,tumne uska bachpan bhi dubara replay kar dia
bhagwan aapko khush rakhen
keep writing

ashok sharma said...

rituraj baboo,tumne bachpan ki yaad dila di.hamara to brunch hota tha bhaat,paani jaisi daal aur aaloo ka bhujiya ya bhurta,jaldi-2 khao aur basta utha kar lapak lo.fir shaam ko school se aate waqt race lagti thi,bade bachche tej chalte the to mujhe kai bar daudna hota tha ki kahin pichad na jaaoon.
fir jeb mein bhooja aur khelna football ya badminton.fir padho khane ka intjaar kart hue aur jaise khana mila ,khao aur so jao.
kya din the wo bhi.
tumne bahut najdeek se chua hai un purane yaadon ko,ya kaho ki ghao kured kar hare kar diye.
but still i love it and appreciate
your precise collection of our olden golden bachpan,jo lagta hai abhi yahin fir dubara aa khada hua hai,kahta hai main to yahin hoon,gaya hi kahan tha,wo to tumne hi aankhen band kar li thi.
my wife appreciates you,tumne uska bachpan bhi dubara replay kar dia
bhagwan aapko khush rakhen
keep writing

केशव कुमार पाण्डेय said...

उस वक्त का स्कूलिंग टाइम बहुत ही अच्छा था | कम किताब --- टेंशन मुक्त विद्यार्थी | मैं तो खाली सरकारी स्कूल में ही पढ़ा हूँ | मिडिल हकाम से और हाई रेवतिथ से कॉलेज गोपालगंज से और उसके बाद इग्नू से | हकाम कभी रोड पकड़ कर यानि पक्की सड़क से चौबे जी का घर होकर नहीं गया| जब भी गया डीह (खेत होकर गया) और मुल्की या अलीशेर मियां के घर के सामने निकला | | कभी विक्रमा पाण्डेय का चन्ना उखाड़ा तो कभी गौतम सिंह का गन्ना तोडा| हमजोलियो के साथ उन्नुकता डगर पर चलकर टेंशन मुक्त विधार्थी जीवन जिया |

Unknown said...

kya baat hai rituraj babu school ke dino ki yaad dile diye bhai.humlog undino jitna enjoy karte the wo sab aaj ka pirhi kya karega.wo narayan ka chaat ka swad,10 paisa aur 20 pisa me jo aalucut becheta tha uska swad,glaas me jo barf bechata tha uska test,gatta ka test aaj ki pirhi ko kaha nashib hai.aap ke lekh ko jab bhi padhta hu to purani yado me kho jata hu.ishi tarh likhte raha karo bhai.