Thursday, July 30, 2009

दलाली - एक राष्ट्रिये पेशा !

पटना याद आ गया ! वहां एक बस स्टेशन होता था - हार्डिंग पार्क ! हम लोग रिक्शा से वहां तक पहुंचते - अभी रिक्शा रुका भी नहीं की "दलाल" चारों तरफ से घेर लेते थे ! कोई "डोलची" उठा लिया तो किसी ने रिक्शा वाला का हाथ पकड़ लिया और किसी ने धकेल के किसी बस में चढा दिया ! "लेडिज" सीट खाली होता - वहां बैठा देता और चटक से टिकट भी काट लेता ! फिर कोई "लेडिज" आती तो हमें सीट से उठा भी देता ! जिंदगी में कई अवसर ऐसे आयेंगे जहाँ आप खुद को "दलालों" के हाथ मजबूर पाएंगे ! दिल्ली का मशहूर पेशा "दलाली" है ! कहते हैं - यहाँ के "दलाल" इतने मजबूत हैं की आपको मंत्री तक बनवा सकते हैं ! ( मुझे विश्वास नहीं होता ) पर बड़े अधिकारी के इर्द गिर्द आपको दलाल जरुर मिल जायेंगे ! इनके अपने फायदे भी हैं - सही "दलाल" मिल गया तो आपका "काम" आसानी से हो सकता है ! ड्राइविंग लाइसेंस बनाने से लेकर हवाई जहाज का टिकट तक - सब कुछ दलाल के हाथों में है ! दिल्ली के स्कूल में एडमिशन में दलालों की बड़ी भूमिका है ! दिल्ली में मकान या फ्लैट आप बिना DALAL के मदद से नहीं ले सकते ! अब तो कई बड़े और इज्जतदार लोग भी "दलाली" के पेशा में आ गए हैं ! मेहनत कम और कमाई ज्यादा !

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Tuesday, July 21, 2009

१० बजिया स्कूल और नौकरी !

सुबह सुबह "झड़प" शुरू हो जाता है ! ६ बजे से ही चिल्ल पों , आधा नींद में रहते हैं - श्रीमती जी का श्लोक शुरू   ! बच्चा लोग को स्कूल के लिए तैयार करो - अभी एक का टाई नहीं मिला रहा है  तो दूसरे का बेल्ट खो गया :( मतलब की अजीब हाल रहता है  ! बस्ता चेक करो - लंच देखो ! नहाओ - धुलाओ , फिर बस पर् चढाओ - चार बार बस में झाँक के देखो बच्चा लोग बढ़िया से बैठ गया है की नहीं  ! सकून  से किसी दिन 'अखबार' नहीं पढ़ पाते हैं ! ऊपर से रोज पत्नी का श्लोक - अखबार नहीं पढते हैं तो इतना सारा अखबार क्यों लेते हैं - मजबूरन रोज रात सोने के पहले सभी अखबार को पढ़ना पड़ता है ! आजकल नया ताना शुरू है - इतना रात तक फेसबुक पर् आप क्या करते हैं ..अब हमको इस् वक्त सिर्फ मुस्कुराना है ..वर्ना 'बम्ब' किसी दिन फटा फिर ..लैपटॉप चौथे मंजिल से सीधे निचे नज़र आएगा ! हा हा हा ...
बच्चा लोग को स्कूल बस में चढाओ के आओ तो खुद भी तैयार होना है - उम्र हो गयी - रोज शेविंग करो फिर आठ बजे तक तैयार भी होना है - जब तक हम तैयार होकर ब्रेकफास्ट टेबल पर् बैठ नहीं गए - तब तक 'झिक झिक' ! सड़ा - गला जो मिल गया चुप चाप खा लीजिए ! 


हम लोग १० बजिया स्कूल में पढ़ते थे ! सुबह आराम से उठा - नास्ता वैगरह किया और चटाई / चौकी पर पालथी मार के - २ दूना २ हिसाब बनाया ! आराम से 'हर - हर गंगे' कहते हुए नहाये ! तब तक 'कूकर' वाला गरम गरम भात तैयार हो गया ! आराम से पालथी मार् के खाये - बाबु जी के साथ - वो उधर निकले - हम इधर साइकिल पर् पैडल / या अधिकतर दिन पैदल ! रास्ता भर - राष्ट्रपति से लेकर गावस्कर - कपिलदेव का डिस्कशन ! राजेन्द्र नगर 'गुमटी' को पार किये ! कहीं कोई मदारी मिल गया तो थोडा देर उसको देखे - कहीं कोई ठेला पर् 'ताश' का जुआ दिखा रहा तो उसको देखे - फिर 'वैशाली' सिनेमा हौल को निहारते - पहुँच गए 'स्कूल' ! भर दम पढ़े - गप्प किये - खेले फिर शाम चार बजे वापस ! चार बजे - फटा हुआ ग्लव्स / टूटा हुआ बैट लेकर खेल के मैदान में ! नौवा - दसमा में गए तो शाम को 'मोहल्ला' में घूम 'छत - बालकोनी' भी देखने लगे ! :) फिर शाम को सात बजे से नौ बजे तक बाकी का सब्जेक्ट या फिर कोई चाचा - मामा टाइप आईटम आया हुआ हो तो उसका गप्प सुनना ! पौने नौ बजे उधर टीवी / रेडियो पर् समाचार शुरू हुआ - इधर जोर से भूख लगा - किचेन में जाकर खडा हुए ! रोटी दूध खाए फिर सूत गए ! 



पटना में दस बजिया नौकरी भी मस्त होता है ! दस बजे आराम से खा कर - वेस्पा स्कूटर से निकल जाईये ! रास्ता में दो खिल्ली पान खाईये और चार खिल्ली पैक करवा लीजिए - टकधूम - टकधूम करते ओफ्फिस !  अब तो बाबु जी पटना के मशहूर एक प्रोफेशनल कॉलेज में पिछले नौ साल से एच ओ डी हैं - मैंने पूछा - बाबु जी , जो लोग लेट आते हैं या जल्द जाते हैं - उनको कैसे इजाजत मिल जाती है - बाबु जी बोले - कुछ नहीं - जैसे वो डिपार्टमेंट में घुसा - मेरे सूट की बडाई करने लगेगा - हम समझ जाते हैं - आज ये लेट आया है या फिर जल्दी भागेगा ! बिहार सरकार का दस बजिया नौकरी मस्त है - आप इसी नौकरी में बेटा के परीक्षा के बाद 'कॉपी' के पैरवी कर सकते हैं - सगे सम्बन्धी के बाल बच्चा के बियाह का  बरतुहारी  कर सकते हैं  - ये सब यहाँ 'मेट्रो' में पोस्स्बिल नहीं है - जमाना हो गया - किसी का 'बारात' गए हुए - सारे सगे सम्बन्धी से लगभग दुश्मनी हो चुकी है - मालूम नहीं कौन आएगा ..मेरे बाल बच्चा के बियाह में ! :(

खैर ..मेट्रो में बियाह - शादी में ज्यादा हेडक नहीं है - किराया पर् 'मामा - फूफा' लोग मिल जाते हैं ! कुछ साल पहले प्रगति मैदान में एक बियाह में गए - बहुत देर तक बारात नहीं लगा तो मैंने पूछा - क्या हुआ भाई - पता चला - 'फूफा-मामा' के लिये जिस टेंट हाउस वाला को बोला गया था ..उसका मोबाईल स्विच ओफ्फ है और किराया पर् बढ़िया 'मामा-फूफा' लाने के लिये पैसा एडवांश में दे दिया गया था - थोड़ी देर बाद - एक बढ़िया फोर्ड कार में मामा - फूफा आये - धीरे से बोला 'एक दूसरी बारात' अटैंड कर रहा था - पटना का सुल्तानगंज का बैंड बाजा वाला सब याद आ गया - एक लगन में तीन बारात वो सब अटैंड करता था - वही हाल मेट्रो में 'मामा-फूफा' लोग का है  ! ये एकदम सच घटना है ! हम उस पूरी रात सो नहीं सके - लगा जैसे अब मेरे 'अस्तित्व' पर् डाका पड़ने को है !

और क्या लिखूं ..परेशान हूँ ..!


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !