Monday, October 26, 2009

अब डाकिया चिठ्ठी नहीं लाता !

अब चिठ्ठी नहीं आती ! कॉलेज में था - बाबा का चिठ्ठी आता था , माँ और बहन का भी आता था ! चिठ्ठी मिलते ही - कई बार पढ़ता था - घर से दूर था ! फिर चिठ्ठी को तकिया के नीचे या सिरहाने के नीचे रख देता - फिर कभी मौका मिलता तो दुबारा पढ़ लेता ! बाबू जी को चिठ्ठी लिखने की आदत नहीं थी सो वो केवल पैसा ही भेजते थे ! किसी दिन डाकिये ने अगर किसी दोस्त का चिठ्ठी हमें पकडा देता तो हम दोस्त को खोज उसको चिठ्ठी सौंप देते ! बड़ा ही सकून मिलता !




मुझे चिठ्ठी लिखने की आदत हो गयी थी - लम्बा लम्बा और भावनात्मक ! बाबा , दादी , माँ - बाबू जी , बहन सब को लिखा करता था ! और फिर कई सप्ताह तक चिठ्ठी का इंतज़ार ! धीरे धीरे चिठ्ठी की जगह बाबू जी के द्वारा भेजे हुए "ड्राफ्ट" का इंतज़ार होने लगा ! और फोन भी थोडा सस्ता होने लगा ! अब धीरे धीरे बाबू जी को फ़ोन करने लगा - END MONEY - SEND MONEY !



कभी प्रेम पत्र नहीं लिखा - आज तक अफ़सोस है ! पर शादी ठीक होने के बाद - पत्नी को पत्र लिखा - जिन्दगी की कल्पना थी - अब हकीकत कितना दूर है !
 
अब ईमेल आता है - अनजान लोगों का ! जिनसे कभी मिला नहीं - कभी जाना नहीं - जबरदस्ती का एक रिश्ता - जिसमे खुशबू नहीं , कोई इंतज़ार नहीं ! फ़ोन पर कई बार दिल की बात नहीं कह पाते हैं लोग फिर क्यों न चिठ्ठी का सहारा लिया जाए !

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Friday, October 23, 2009

आज खरना है - कल्ह सँझिया अरग !!!

आज खरना है - शाम को खरना का प्रसाद खाने अपने मित्र अभय के घर जाऊँगा ! मदर डेयरी के दुकान में सब्जी नहीं आ रहा है - किराना वाला होम डेलिवरी नहीं कर रहा है - कहता है - सभी वर्कर बिहार चले गए हैं ! मुझे लगता है - अब "छठ पूजा" को राष्ट्रिये अवकाश घोषित कर देना चाहिए ! संजय निरुपम हर साल की तरह इस साल भी मुंबई में पूजा मना रहे हैं ! पटना के अखबार छठ पूजा के समाचार और तैयारियां की खबरों से रंगे पड़े हैं ! पढ़ कर अछ्छा लगता है ! दिल्ली वाले अखबार भी ! न्यूज़ चैनल में बहुत बिहारी भरे पड़े हैं - सो सभी कुछ न कुछ समाचार या रिपोर्ट जरुर डालेंगे ! आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कुछ खबर छपा है - एक सांस में पढ़ डाला - ऐसा लगा - यही अपना है - बाकी सब पराया !




दादी पूजा करती थी ! अब मेरे घर में कोई नहीं करता है ! लेकिन छठ पूजा एकदम से खून में समाया हुआ है ! गाँव , पटना याद आने लगता है और मै भावुक हो जाता हूँ ! हम बिहारी मजदूर होते हैं - एक यही पर्व है जिसमे हम सभी अपने मिटटी को याद कर मिटटी की सुगंध पाने के लिए गाँव जाते हैं ! मालूम नहीं कब मै मजदूर से एलिट बन गया और गाँव जाना बंद हो गया - पर खून को कैसे बदल दूँ ??



बड़ा ही महातम का पर्व है - बच्चों को अपने संस्कृति और सभ्यता से वाकिफ कराने को तत्पर रहता हूँ - डर लगा रहता है -



आज नीतिश भी अपने किसी "नालंदा" वासी मित्र के यहाँ प्रसाद खाने जायेंगे !

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Thursday, July 30, 2009

दलाली - एक राष्ट्रिये पेशा !

पटना याद आ गया ! वहां एक बस स्टेशन होता था - हार्डिंग पार्क ! हम लोग रिक्शा से वहां तक पहुंचते - अभी रिक्शा रुका भी नहीं की "दलाल" चारों तरफ से घेर लेते थे ! कोई "डोलची" उठा लिया तो किसी ने रिक्शा वाला का हाथ पकड़ लिया और किसी ने धकेल के किसी बस में चढा दिया ! "लेडिज" सीट खाली होता - वहां बैठा देता और चटक से टिकट भी काट लेता ! फिर कोई "लेडिज" आती तो हमें सीट से उठा भी देता ! जिंदगी में कई अवसर ऐसे आयेंगे जहाँ आप खुद को "दलालों" के हाथ मजबूर पाएंगे ! दिल्ली का मशहूर पेशा "दलाली" है ! कहते हैं - यहाँ के "दलाल" इतने मजबूत हैं की आपको मंत्री तक बनवा सकते हैं ! ( मुझे विश्वास नहीं होता ) पर बड़े अधिकारी के इर्द गिर्द आपको दलाल जरुर मिल जायेंगे ! इनके अपने फायदे भी हैं - सही "दलाल" मिल गया तो आपका "काम" आसानी से हो सकता है ! ड्राइविंग लाइसेंस बनाने से लेकर हवाई जहाज का टिकट तक - सब कुछ दलाल के हाथों में है ! दिल्ली के स्कूल में एडमिशन में दलालों की बड़ी भूमिका है ! दिल्ली में मकान या फ्लैट आप बिना DALAL के मदद से नहीं ले सकते ! अब तो कई बड़े और इज्जतदार लोग भी "दलाली" के पेशा में आ गए हैं ! मेहनत कम और कमाई ज्यादा !

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Tuesday, July 21, 2009

१० बजिया स्कूल और नौकरी !

सुबह सुबह "झड़प" शुरू हो जाता है ! ६ बजे से ही चिल्ल पों , आधा नींद में रहते हैं - श्रीमती जी का श्लोक शुरू   ! बच्चा लोग को स्कूल के लिए तैयार करो - अभी एक का टाई नहीं मिला रहा है  तो दूसरे का बेल्ट खो गया :( मतलब की अजीब हाल रहता है  ! बस्ता चेक करो - लंच देखो ! नहाओ - धुलाओ , फिर बस पर् चढाओ - चार बार बस में झाँक के देखो बच्चा लोग बढ़िया से बैठ गया है की नहीं  ! सकून  से किसी दिन 'अखबार' नहीं पढ़ पाते हैं ! ऊपर से रोज पत्नी का श्लोक - अखबार नहीं पढते हैं तो इतना सारा अखबार क्यों लेते हैं - मजबूरन रोज रात सोने के पहले सभी अखबार को पढ़ना पड़ता है ! आजकल नया ताना शुरू है - इतना रात तक फेसबुक पर् आप क्या करते हैं ..अब हमको इस् वक्त सिर्फ मुस्कुराना है ..वर्ना 'बम्ब' किसी दिन फटा फिर ..लैपटॉप चौथे मंजिल से सीधे निचे नज़र आएगा ! हा हा हा ...
बच्चा लोग को स्कूल बस में चढाओ के आओ तो खुद भी तैयार होना है - उम्र हो गयी - रोज शेविंग करो फिर आठ बजे तक तैयार भी होना है - जब तक हम तैयार होकर ब्रेकफास्ट टेबल पर् बैठ नहीं गए - तब तक 'झिक झिक' ! सड़ा - गला जो मिल गया चुप चाप खा लीजिए ! 


हम लोग १० बजिया स्कूल में पढ़ते थे ! सुबह आराम से उठा - नास्ता वैगरह किया और चटाई / चौकी पर पालथी मार के - २ दूना २ हिसाब बनाया ! आराम से 'हर - हर गंगे' कहते हुए नहाये ! तब तक 'कूकर' वाला गरम गरम भात तैयार हो गया ! आराम से पालथी मार् के खाये - बाबु जी के साथ - वो उधर निकले - हम इधर साइकिल पर् पैडल / या अधिकतर दिन पैदल ! रास्ता भर - राष्ट्रपति से लेकर गावस्कर - कपिलदेव का डिस्कशन ! राजेन्द्र नगर 'गुमटी' को पार किये ! कहीं कोई मदारी मिल गया तो थोडा देर उसको देखे - कहीं कोई ठेला पर् 'ताश' का जुआ दिखा रहा तो उसको देखे - फिर 'वैशाली' सिनेमा हौल को निहारते - पहुँच गए 'स्कूल' ! भर दम पढ़े - गप्प किये - खेले फिर शाम चार बजे वापस ! चार बजे - फटा हुआ ग्लव्स / टूटा हुआ बैट लेकर खेल के मैदान में ! नौवा - दसमा में गए तो शाम को 'मोहल्ला' में घूम 'छत - बालकोनी' भी देखने लगे ! :) फिर शाम को सात बजे से नौ बजे तक बाकी का सब्जेक्ट या फिर कोई चाचा - मामा टाइप आईटम आया हुआ हो तो उसका गप्प सुनना ! पौने नौ बजे उधर टीवी / रेडियो पर् समाचार शुरू हुआ - इधर जोर से भूख लगा - किचेन में जाकर खडा हुए ! रोटी दूध खाए फिर सूत गए ! 



पटना में दस बजिया नौकरी भी मस्त होता है ! दस बजे आराम से खा कर - वेस्पा स्कूटर से निकल जाईये ! रास्ता में दो खिल्ली पान खाईये और चार खिल्ली पैक करवा लीजिए - टकधूम - टकधूम करते ओफ्फिस !  अब तो बाबु जी पटना के मशहूर एक प्रोफेशनल कॉलेज में पिछले नौ साल से एच ओ डी हैं - मैंने पूछा - बाबु जी , जो लोग लेट आते हैं या जल्द जाते हैं - उनको कैसे इजाजत मिल जाती है - बाबु जी बोले - कुछ नहीं - जैसे वो डिपार्टमेंट में घुसा - मेरे सूट की बडाई करने लगेगा - हम समझ जाते हैं - आज ये लेट आया है या फिर जल्दी भागेगा ! बिहार सरकार का दस बजिया नौकरी मस्त है - आप इसी नौकरी में बेटा के परीक्षा के बाद 'कॉपी' के पैरवी कर सकते हैं - सगे सम्बन्धी के बाल बच्चा के बियाह का  बरतुहारी  कर सकते हैं  - ये सब यहाँ 'मेट्रो' में पोस्स्बिल नहीं है - जमाना हो गया - किसी का 'बारात' गए हुए - सारे सगे सम्बन्धी से लगभग दुश्मनी हो चुकी है - मालूम नहीं कौन आएगा ..मेरे बाल बच्चा के बियाह में ! :(

खैर ..मेट्रो में बियाह - शादी में ज्यादा हेडक नहीं है - किराया पर् 'मामा - फूफा' लोग मिल जाते हैं ! कुछ साल पहले प्रगति मैदान में एक बियाह में गए - बहुत देर तक बारात नहीं लगा तो मैंने पूछा - क्या हुआ भाई - पता चला - 'फूफा-मामा' के लिये जिस टेंट हाउस वाला को बोला गया था ..उसका मोबाईल स्विच ओफ्फ है और किराया पर् बढ़िया 'मामा-फूफा' लाने के लिये पैसा एडवांश में दे दिया गया था - थोड़ी देर बाद - एक बढ़िया फोर्ड कार में मामा - फूफा आये - धीरे से बोला 'एक दूसरी बारात' अटैंड कर रहा था - पटना का सुल्तानगंज का बैंड बाजा वाला सब याद आ गया - एक लगन में तीन बारात वो सब अटैंड करता था - वही हाल मेट्रो में 'मामा-फूफा' लोग का है  ! ये एकदम सच घटना है ! हम उस पूरी रात सो नहीं सके - लगा जैसे अब मेरे 'अस्तित्व' पर् डाका पड़ने को है !

और क्या लिखूं ..परेशान हूँ ..!


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Monday, May 18, 2009

ले लीजिये न , प्लीज !!!

ले लीजिये न , प्लीज !!!
लालू जी : ये मैडम , प्लीज , ले लीजिये न हमारा समर्थन ! देखिये न , हम तीनो भाई लोग एकदम लाईन में खडा हैं ! रात से खाना नहीं खाए हैं - एकदम भूखे हमर पेट फूल के ढोलक हो गया है ! आप समर्थन ले लीजिये गा ता हम कुछ खायेंगे पीयेंगे ! ए , रघुवंश बाबु , जगातानंद बाबु , ए उमाशंकर जी - आप लोग कहे नहीं अपना जात भाई - दिघ्घी राजा को कुछ समझाते हैं ! का दो का दो - कलह से बकर बकर बोले जा रहे हैं ! कहिये ना - लालू जी अब हम तीनो लोग के नेता हैं ! ए अमर भाई - का ई आप इगो धर लिए हैं - जाईये , दिघ्घी रहा के गोर धरिये ! "राजा ता राजा ही नु रहेगा " ! जब हम मैडम का गोर धर सकते हैं ता आप को कहे लाज लगता है ! बुरबक - राजमहल से खाली हाथ लौटेगा ?
दिघ्घी राजा : हा हा हा हा !
मुलायम : ये तो पुरे रावन की तरह हंस रहे हैं !
लालू : ( मुलायम के कान में ) : एकदम आप उत्तर प्रदेश के पक्का अहीर रह गए ! देखिये 5 साल हम दिल्ली में रह कर कितना बदल गए ! आप लोग एकदम से मेरा चांस डूबा दीजिए गा !
मुलायम : लालू जी , आप बहुत फालतू बोलते हैं - इस कारन से ही आपके यहाँ हम सम्बन्ध नहीं किये !
दिघ्घी राजा : अरे आप लोग लड़िये नहीं ! सब बात मैडम के ड्राइंग रूम तक जा रहा है ! अच्चा ये बताएं - आप दो तो नज़र आ रहे हैं - तीसरा कौन है - लाइन में ?
लालू : ए हो , ए हो देवेगौडा भाई ? किधर गए ? धत् , ई जतरा पहर - चाय पीने चले गए का ? बेटा जो न करावे ?:( राजा जी , ई अपना देवेगौडा भाई भी हैं - तीन थो साथ में हैं ! ई भी कर्नाटका के अहीर हैं !
मुलायम : अमर जी , किधर गए ? अरे भाई , जयाप्रदा कहीं भागी नहीं जा रही है - इधर - राजा साहेब से बात फाइनल कीजिए और मैडम से टाइम ले लीजिये , मिलाने का ! ( लालू जी को ड्राप भी किया जा सकता है - कान में )
लालू : हमको सब सुनायी देता है ! राजा बाबु - ई ड्राइंगरूम में मैडम इतना देर से किस से फ़ोन पर बात कररही हैं ?
दिघ्घी राजा : हा हा हा हा हा हा हा हा ! कोई है , आपके प्रदेश से !

Tuesday, May 5, 2009

हमारी बहने और बेटियाँ

कल शाम से ही न्यूज़ चॅनल पर शुभ्रा सक्सेना , शरणदीप कौर और किरण कौशल के चर्चे शुरू हो गए ! आखिर हो भी न , क्यों ? भारत में मध्यम वर्ग के लिए बना बेहतरीन नौकरी "आई ० ए ० यस ०" की परीक्षा में इन तीनो ने प्रथम , द्वितीये और तीसरा स्थान प्राप्त किया है !
दोपहर में भोजन करने गया तो रजत शर्मा वाले न्यूज़ चैनल पर इनके बारे में थोडा डिटेल से दिखाया जा रहा था ! बेटी और बीबी दोनों ध्यान से देख और सुन रहे थे और मै कनखियों से !
कुछ दिन पहले मेरे एक दोस्त ने कहा था - "किसी भी समाज के स्तर को जानना है तो उस समाज में औरत की क्या स्थिति है - वो पता करो " ! कहने का मतलब - किसी भी परिवार , गाँव , जात , शहर , राज्य या देश की सही मायने में उन्नत्ती पता करना चाहते हैं तो हमें यह देखना होगा की - वहां की औरत को कितना सम्मान और अधिकार मिला है !
बचपन दिन याद आ गया - जहाँ कहीं भी अपने अधिकार के लिए कोई महिला पाई गयी - उसको इंदिरा गाँधी की संज्ञान दे दी गयी ! दूर से ही लोग उसे इंदिरा गाँधी बोलने लगते थे ! अब कोई भी इन महिलाओं को इंदिरा गाँधी नहीं कहता - या यूँ कहिये - स्वीकार कर लिया है !
किसी परिवार में किसी महिला का राज चलता था तो उसे "पेटीकोट" राज कहते थे - अब ऐसे शब्द सुनायी नहीं देते हैं - सिवाय भारतीये जनता पार्टी के नेतागण के मुह के अलावा !
अब "इंदिरा गाँधी " और "पेटीकोट राज " की जगह - इंदिरा नूयी , कल्पना चावला और अब शुभ्रा सक्सेना जैसी महिलाओं ने ले लिया है ! लेकिन इस परिवर्तन को आने में काफी वक़्त लग गया ! और अभी बहुत कुछ बाकी है !
आर्थीक रूप से अगडा पंजाब में सब से ज्यादा "भ्रूण" हत्या होती है - यह या इस तरह का समाज कभी भी सही अगड़ा का पहचान नहीं हो सकता ! इससे लाख गुना बेहतर बिहार के गाँव का वोह गरीब है - जिसके यहाँ कन्या पूजा का प्रचलन है !
हमारे हिन्दू समाज में कन्या को हमेशा देवी का अवतार माना गया है - मसलन - शादी के समय - सिन्दूर दान के ठीक पहले - कन्या - वर के दाहिने तरफ बैठती है - मतलब वोह पुजनिये और आदरनिए है !
कुछ लोग समाज में बढ़ते तलाक़ को महिलाओं की प्रगती से जोड़ कर देखते हैं - मै ऐसा नहीं मानता - महिला तो मानसिक रूप से आगे बढ़ गयी - लेकिन में पुरुष अभी भी वहीँ है - फिर खुद अपने पैरों पर खडी महिला - कब तक अत्याचार सहेगी ?
अब अपनी सोच में बदलाव लायें - और बहन - बेटी को समोचित स्थान दें - अभी भी समय है -
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

श्रीमती शुभ्रा सक्सेना इंदिरापुरम में ही रह कर पुरे भारत में सर्वोच्य स्थान प्राप्त किया - उनका प्रारंभिक पढाई - लिखाई - बोकारो के इर्द गिर्द हुयी - जो इनके प्रेरणा श्रोत हैं - और आशा है - वोह भारत की ग्रामीण परिवेश को भली भांती समझते हुए - समाज कल्याण में खुद को समर्पित करेंगी !

Friday, April 24, 2009

देश का बीमा कैसे होगा ?


देश का बीमा कैसे होगा ? किसके हाथ देश सुरक्षित रहेगा ? इतिहास कहता है - किस किस ने लूटा ! जिस जिस ने नहीं लूटा - वोह इतिहास के पन्नों से गायब हो गया ! गाँधी जी , राजेन बाबु , तिलक इत्यादी को अब कौन पढ़ना और अपनाना चाहता है ?
विनोद दुआ मेरे सब से पसंदीदा पत्रकार है ! सन १९८४ से उनको देखता आया हूँ - जब उनकी और कोट वाले प्रणय रोंय दोनों का कद लगभग बराबर होता था ! अब प्रणय रोंय के लिए विनोद दुआ एक बेहतर इमानदार ढंग से काम करते हैं !
विनोद दुआ के कल वाले प्रोग्राम में अपूर्वानंद जी आये थे - कुछ ४-५ वाक्य ही बोल पाए की समय ख़तम हो गया - जो कुछ वो बोले - बहुत सही बोले - नेता अब जनता से दूर हो गए हैं - भारतीय जनता पार्टी और खानदानी कौंग्रेस को छोड़ किसी के पास देश के लिए नीति नहीं है - बाकी के क्षेत्रीय दल बस "सियार" की भूमिका में शेर के शिकार में अपना ज्यादा से ज्यादा हिस्सा मात्र की खोज में हैं , कोई दलगत नीति नहीं है !
अब इस हाल में देश का कौन सोचेगा ? देश को एक रखने में धर्म का बहुत बड़ा रोल है ! देश का विभाजन १९४७ में धरम के आधार पर हुआ क्योंकि एक ख़ास जगह हिन्दू और मुस्लिम का जमावाडा हो गया था ! अब ऐसा लगभग नहीं है - हिन्दू मुस्लिम दोनों देश के हर प्रान्त और हर गाँव में हैं - और यही डोर देश को बंधे रखे हुयी हैं और भारतीय जनता पार्टी को भी अपनी रणनीति बदलने से मजबूर कर दी !
विकास ही हर वक़्त मुद्दा नहीं होता है - ऐसा होता तो "दलालों" से भरपूर पिछली सरकार सन २००४ में नहीं हारती ! विकास का सही मायने में अर्थ चमकता दिल्ली और बंगलुरु नहीं है - जहाँ वहां एक भाई - बड़ी गाडी में घूम रहा है और दूसरा भाई खेतों में भूखा मर रहा है ! इस मामले में सानिया गाँधी बधाई के पात्र हैं !
संजय शर्मा भैया कहते हैं - हम भारतीय भावुक होते हैं - बस , इंतज़ार है - प्रियंका गाँधी के राजनीती के मैदान में कूदने का - फिर देखियेगा ! उनका इशारा बिलकुल ही साफ़ था की कैसे फूंक फूंक के , देश को एक रखने के लिए सानिया गाँधी अपने बच्चों में परिपक्वता ला रही हैं और सही समय का इंतज़ार कररही हैं !
वोह आगे कहते हैं - क्या अडवाणी अगर प्रधान मंत्री नहीं बन पाए तो भारतीय जनता पार्टी का क्या होगा ? क्या नरेन्द्र मोदी जैसे कट्टर हिन्दू पुरे देश को स्वीकार होंगे ? क्या राजनाथ सिंह जैसे लोग बुध्दिमान अरुण जेटली को स्वीकार होंगे ? अगर आडवानी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए तो ??? भारतीय जनता पार्टी का क्या होगा ?
देश के सुरख्सित बीमा के लिए - कौंग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों का जिन्दा रहना बेहद जरूरी है - ताकी - देश को क्षेत्रीय "सियारों" से बचाया जा सके !
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Thursday, April 23, 2009

रेलगाडी का अपहरण

रेलगाडी का अपहरण ! मतलब की सुन के माथा चकरा गया ! आदमी का , हवाई जहाज का पनिया जहाज का , ई सब का अपहरण सुने थे - रेलगाडी के अपहरण का आईडिया जिसके पास आया था - उसको पुरस्कार मिलाना चाहिए !
बच्चा थे त चरी सुने थे , फिर डकैती कैसे होता है सुने और देखे भी ! हम लोग का बाल बच्चा सब त जनम से ही आतंकवाद , नकसलवाद सुन रहा है ! बाबु , जमाना अडवांस हो गया है !
अब कुछ दिन में सुनियेगा की पटना का अपहरण हो गया :( एक पत्रकार बोला , बबुआ लालू जी त १५ साल से पूरा बिहार का ही अपहरण किये हुए थे ! वाह ! भाई वाह ! तले दुसर पत्रकार बोला की - महाराज ई नेता सब त पूरा देश का ही अपहरण कर लिया है ! हो गया शुरू - बहस !
ई सब लोगिक सुन के लगा की रेलगाडी का अपहरण त कुछ नहीं है :( सब कोई लुटने पर लगा हुआ -लगता है बहुत कुछ हाथ से फिसल गया ! दुःख हुआ - टेंशन में नींद आ गया !
सुबह नींद खुला त सुने की शर्मा जी का गाडी चोरी हो गया ! वाइफ बोली की - बीमा से पैसा उनको मिल जायेगा - आप जाईये और कुछ लूट कर लाईये तब घर में कुछ चूल्हा चौकी जलेगा !
बेटा सब बात चित सुन रहा था - हंसने लगा - और गाने लगा -
यह देश है वीर लुटेरों का ,
ड़कैतों का
इस देश का यारों
क्या कहना ?

Wednesday, April 22, 2009

मुसलमानों को भी जीने दो !!

अजीब तमाशा है ! बिहार के चुनाव में मुसलमानों को पेर कर रख दिया है ! नेता और मीडिया ने उनके रातों को नींद ख़राब कर दी है ! क्या किसी का गुनाह सिर्फ इसलिए हैं की वोह मुस्लमान में जनम ले लिया ? क्यों नहीं हम भी उनको अपनी तरह मानते हैं ? कितना थूक का घूँट उनको पीने पर मजबूर करेंगे !
मई ऐसा इसलिए महसूस कर रहा हूँ की ऐसा मेरी जाती के साथ भी पत्रकार और बाकी के नेता करते आ रहे हैं - वैशाली से रघुवंश बाबु खडा है - कोई पत्रकार उनकी जाती नहीं लिखेगा लेकिन उनके खिलाफ लड़ रहे - मुन्ना शुक्ल को भूमिहार बाहुबली जरुर बोला और लिखा जायेगा ! अजीब तमाशा है - भाई ? रविश जैसे पत्रकार भी खुलेआम हमला बोल देते हैं !
ऐसा लगता है की बाहुबली भूमिहारों का और नचनिया बजनिया - कायस्थों का प्रयाय्वाची शब्द बन गए हों ! वैसा ही तो मुसलमानों को भी लगता होगा ! क्या उनका वोट सिर्फ लालू-मुलायम को सता की गाडी तक पहुचने के लिए है ? क्या वोह कभी इस देश के मुख्या धरा में शामिल नहीं होंगे ? क्या हमेशा उनको वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझा जायेगा ?
क्यों नहीं जीने देते उनको - क्यों नहीं उनको बच्चों को यह महसूस करने देते हो की वोह भी एक भारतीये हैं ? क्या गुनाह किया है उन्होंने ?

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Tuesday, April 21, 2009

चुनाव और लगन !!

बिहार में चुनाव और लगन दोनों का जोर है ! छपरा जिला के लौंडा के नाच और पटना के चुनाव - दोनों में कोई फरक नहीं नज़र आता है - मुझे ! अजीब हाल है - पढ़ा लिखा , नौकरी पेशा वाला जात को बस "नचनिया - बजनिया " ही अपना नेता नज़र आता है ! ये चुनाव नहीं जिद है ! दुःख होता है - चुनाव को जिद की तरह लड़ा जाता है !
बचपन का दिन याद है - चुनाव में "खड़ा" कैसे हुआ जाता है - समझ में नहीं आता था - फिर लोग चुनाव में "बैठ" कैसे जाता है ? कौंग्रेस और इंदिरा गाँधी पसंदीदा थी ! अब कभी कभी टी वी वाला सब इंदिरा गाँधी का विजुअल दिखता है तो बचपन याद आ जाता है !
चौधरी चरण सिंह ने एक बार कहा था - देश का प्रधान मंत्री - वही बन सकता है - जो दिल्ली में रहेगा ! बाबु जी हमको दिल्ली भेज दिए ! यहाँ त अजब का हिसाब किताब है - कोई नेता १००-२०० करोड़ से कम का अवकात ही नहीं रखता है ! कल रविश भाई का स्पेशल रिपोर्ट देख रहा था - मंत्र मुग्ध हो गया - रविश भाई पसंदीदा हैं - लेकिन अंत में जब वोह बिहार और अपनी जात का दरद - अपनी लेखनी में लिखते हैं तो दुःख होता है - ऊंचाई के साथ साथ आपको बहुत कुछ छोड़ना होता है ! खैर !
पहला चरण के बाद - लालू जी को पसीना आ गया फिर क्या रातों रात , कल तक उनका जूठा खाने वाले पत्रकार भी बदल गए ! नीतिश भी वैसे पत्रकारों को आँख तरेर दिया ! अब मरता दलाल - क्या न करता :(
लेकिन प्रधान मंत्री कौन बनेगा ? देवेगौडा जैसा प्रधानमंत्री बनाने से अच्छा है की साल भर के अन्दर दूसरा चुनाव ! सवाल और भी हैं ? अडवानी बाबा का क्या होगा ? उनका पार्टी का क्या होगा ? कुकुर के भांती सब लडेगा ! डूब जायेगा ! और भारतीय राजनीती को सियार सब खा जायेगा !


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Saturday, April 4, 2009

चुनाव स्पेशल : - देश का दुर्भाग्य !


चुनाव स्पेशल : देश का दुर्भाग्य !
मालूम नहीं कब और कैसे धीरे धीरे क्षेत्रीय राजनितिक दल दिल्ली की कुर्सी अपने अपने हाथों से हिलाने लगे और कुर्सी दिन बा दिन कमज़ोर होती गयी ! वाजपयी जी तो आंध्र के चन्द्र बाबु नायडू के शिकार बने तो मन मोहन के चारों तरफ लालू - मुलायम और पासवान जैसे लोग थे !
हम वोटर भी अजीब हैं ! लोकसभा का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ता देखना चाहते हैं ! साडी धोती की गठ जोड़ की तरह वोट देते हैं ! जात पात में पूरा देश बटा हुआ है ! कोई भी अछूता नहीं है ! अगर कोई खुद को कहता है की मई इस तरह के जात पात से अलग हूँ - तो वोह सफ़ेद झूठ बोलता है ! भले ही वोह ब्राहमणों के द्वारा चलाया जा रहा इंफोसिस में काम कर रहा हो या किसी न्यूज़ चैनल का खुख्यत या विख्यात पत्रकार !
बिहार में नीतिश कुमार ने ब्राह्मणों को टिकट नहीं दिया - अब देखिये - इसका दर्द रविश जैसे पत्रकार पर भी पड़ने लगा ! भले वोह मुह से नहीं करह रहे हों लेकिन दर्द तो चेहरा पर नज़र आ ही जाता है - जैसे मुहब्बत को आप छुपा नहीं सकते !
कौंग्रेस भी अजीब है - बिहार में भूंजा की तरह टिकट को बांटा है ! कभी कभी लालू की बी टीम की तरह नज़र आता है ! कहीं वोट कटवा तो कहीं परंपरा को ढ़ोने की तरह !
कुछ भी हो - हमें वोट राष्ट्रीय दलों को ही देना चाहिए ! विधान सभा चुनाव में क्षेत्रीय दल ठीक हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल को वोट देने का मतलब - आने वाले समय में देश को बांटना है !
मेरी बात से कई लोग सहमत होंगे और कई नहीं भी ! आशीष मिश्र जो अमेरिका में रहते हैं - कहते हैं - अमेरिका में रह कर मै जात पात से ज्यादा उस सरकार को देखना पसंद करूँगा जो राज्य या देश की इकोनोमी को दिशा और गती प्रदान करे - भले वोह लालू हों या नीतिश या राहुल बाबा !
वहीँ अजीत जो अमेरिका में हैं - जो बिहार के सभी पत्रकारों से हमेशा संपर्क में रहते हैं - कहते हैं - अगर मै चुनाव लडूं - तो मुझे मेरे घर वाले भी वोट नहीं देंगे ! समाज सेवा करने के और भी विकल्प हैं !
बंगुलुरु के रहने वाले श्री सर्वेश उपाध्द्याय कहते हैं - एक साफ़ सुथरी छवी वाले उम्मीदवार और राजनितिक दल ही देश को सही दिशा में ले जा सकता है ! क्षेत्रीय दल को आगे बढ़ने में राष्ट्रीय दलों की ही भूमिका रही है ! राष्ट्रीय दलों की मुध्धा विहीन राजनीती और अडवानी जैसे कमज़ोर नेतृत्व का फल है - क्षेत्रीय दल !
अब आप क्या कहते हैं ?

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Tuesday, February 24, 2009

अमिताभ और जया बच्चन से एक सवाल !


अमिताभ और जया बच्चन से एक सवाल !
जया जी का एक बयान आया है ! स्लाम्डाग विदेशी फ़िल्म है - भारत में इतना शोर क्यों हैं ? बात में दम है ! अमिताभ जी सन १९८४ में एक चुनाव लड़े थे - अलाहाबाद से लोकसभा चुनाव ! पर उनके जितने की खुशी में "मुजफ्फरपुर" में मिठाई बटी थी ! वोह भी खासकर एक जाती विशेष के द्वारा ! पटना में भी बटी थी ! इसमे कोई अजीब बात नही है ! हम हर कोई कहीं न कही एक दुसरे से जुड़े हैं ! मेरी पहचान मेरे घर में "रंजन" व्यक्ति विशेष से है ! घर से बहार मेरी पहचान मेरे परिवार से जुडी है ! दुसरे गाँव में मै फलाना गाँव का कहलाता हूँ ! दिल्ली में बिहारी कहलाता हूँ और बंगलुरु और मुंबई में उत्तर भारतीय ! वहीँ अमरीका में एक एशियन और मंगल ग्रह पर एक पृथ्वी वासी ! और जब अमेरिका में कोई भारतीय मिलेगा तब हम उसका जात नही पूछेंगे जैसा की हम बिहार में कोई बिहारी मिले तो ऐसा कर सकते हैं ! अगर मुजफ्फरपुर के कायस्थ जाती के लोग अमिताभ की १९८४ की अल्लाहबाद की जीत में अपनी खुशी खोज सकते हैं फिर हम सब भारतीय "रहमान , गुलज़ार और पुत्तोकोटी " में अपनी जीत क्यों नही ?
ठीक उसी तरह यह सिनेमा को बनाया तो विदेशी लोग हैं - लेकिन इस सिनेमा में कई कलाकार या सभी सभी के कलाकार भारतीय हैं संगीत भारतीये हैं और अधिकतर तकनिकी लोग भारतीये हैं ! रहमान साहब और बोब्बी जिंदल में फरक है ! रहमान साहब विशुध्ध भारतीय हैं और हम सबको उनको नाज़ है ! वैसे उन्होंने ने कई सिनेमा में बहुत ही बढ़िया संगीत दिया है !
हर कलाकार और तकनिकी लोग अपने आप में सम्पूर्ण हैं - यह सौभाग्य है की सब को एक ऐसे छत के नीचे काम करने का अवसर मिला - जहाँ से एक राह निकली और "ऑस्कर" ..."ऑस्कर" और नई पीढी को प्रेरणा !
जहाँ तक गरीबी को दिखने से लोगों को ऐतराज है फ़िर तो हमारे अधिकतर सिनेमा गरीबी और भ्रष्टाचार के इर्द गिर्द ही घुमते हैं !
चलिए गुलज़ार साहब के गीत से इस लेख को समाप्त करते हैं -
"आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं ...आप से भी ख़ूबसूरत आपके अंदाज़ हैं ....."
और सुभास घई की सलाह "जय हो " शब्द को इस गीत से जोड़ना सचमुच कमाल हो गया !
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Saturday, February 21, 2009

श्री नीतिश कुमार की विकास यात्रा समाप्त हुयी !

दालान पर हुए सर्वे से पता चलता है की करीब ५८ % जनता मानती है की श्री नीतिश कुमार की विकास यात्रा "एक अछ्छी पहल " है ! वहीँ १७ % जनता मानती है की यह आने वाले लोकसभा की तयारी और जनता की नब्ज़ जानने की एक कोशिश है ! कुछ लोग इसे बकवास भी मानते हैं क्योंकि नीतिश अपने विकास यात्रा में काफी लाव लस्कर के साथ गए ! जैसे श्री नीतिश कुमार को अप्रवासी भारतीयों का सम्मलेन एक "पिकनिक" लगता है है ठीक उसी तरह कई लोग इस विकास यात्रा को एक नए राजा की अपने चमचों ke साथ मनाई गयी पिकनिक भी लगाती है ! वैसे कोसी का कहर राजनितिक दलों पर टूटना अभी बाकी है ! चुनाव नजदीक है ! बेचैनी चारों तरफ़ है !
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Friday, February 13, 2009

पप्पू न बने - वोट दें !


हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार आज कल "विकास यात्रा" पर हैं - राष्ट्रीय मीडिया ने ज्यादा तरजीह नही दी ! नीतिश कुमार के साथ साथ मुझे भी काफी दुःख है - ! चलिए , कोई बात नही ! "दालान " ब्लॉग पर नीतिश कुमार की "विकास यात्रा" पर अपने वोट डालें ! वोटिंग मशीन इस पोस्ट के ठीक दाहिने तरफ़ है !

याद रहे !- पप्पू वोट नही देता !

कहीं आप पप्पू तो नही ?


रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Thursday, February 12, 2009

"चलनी हंसली सूप के - तोरा में बड़ा छेद "

"चोरी किया रे ! क्रेजी किया रे ! " कितना अछ्छा लगता है ! एकदम झकास ! ऋतिक रौशन और ऐश्वर्य राय जब चोरी करें तो हम ताली बजाते हैं ! बाबा , ये हैं टी वी पत्रकारिता के बेताज बादशाह ! हर एक टी वी पत्रकारों की चाहत - काश इस चॅनल में नौकरी मिल जाती ! ज्यादा नही , कल के इनके दो प्रमुख रिपोर्ट की चर्चा करें !
एक शाम ८.३० में आता है - विषय था - " भारत में मनोरोग" ! देखा बहुत अछ्छा लगा ! मजा आ गया ! लगा की कितना अच्छा प्रोग्राम बनाते हैं - ये लोग ! तभी तो बिना टीआरपी के भी ये चॅनल सब से अच्छा है ! थोड़ी देर बाद सुबह की बासी अखबार उठाया ! अरे ये क्या ? "भारत में मनोरोग " तो टाईम्स ऑफ़ इंडिया ne सुबह तड़के ही छाप दिया ! धत् तेरे की - मै बेवजह बासी समाचार पर ताली पीट रहा था !
अब चलिए - इनके दुसरे प्रोग्राम पर ! एंकर हैं - भोजपुरी मिक्स बिहारी टोन में हिन्दी बोलने वाले ! वैसे इनकी बोली और घबराहट में बहुत सुधार हुआ है ! रिपोर्ट का विषय था - " कोला वार" ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति ! मजा आ गया ! अपने मनपसंदीदा एंकर को देख मन प्रफुल्लित हो गया ! बेटा को बोला - देखो , ये भी अपने गाँव तरफ़ के ही हैं ! बहुत पैसा मिलता है ! बड़ा गाडी है ! बहुत बड़े सोसाइटी के टॉप पेंट हाउस में रहते हैं ! और मेरी तरह ये भी "ब्लॉग" लिखते हैं ! बेटा भी मन ही मन सोचा होगा की उसके बाबु जी भी 'बड़े लोग" के बारे में कुछ जानते हैं ! प्रोग्राम ख़त्म हुआ और मै फ़िर एक बार अखबार की तरफ़ मुडा ! धत् तेरे की - यह प्रोग्राम तो सुबह की बासी इकनॉमिक टाईम्स के पहले पन्ने पर छापा "कोला वार " की हु बहु कॉपी है !

घर से लंच कर के अभी अभी लौटा हूँ - वहां समाचार चल रहा था और कुछ बेहतर एन डी टी वी - इंडिया देख रहा था - दोपहर के समाचार में "बापू के चश्मे की नीलामी " का रिपोर्ट चल रहा था ! यह रिपोर्ट आज के टाईम्स ऑफ़ इंडिया के पहले पन्ने पर छपा है !


क्या यही आपकी अवकात है ?


रंजन ऋतुराज सिंह !

Thursday, February 5, 2009

कुछ सफ़ेद बाल !

जिंदगी इतनी व्यस्त हो गयी कि समय कैसे गुजर गया पता ही नही चला ! पिछले हफ्ता बालों को रंगने की कोशिश की ! ९ वर्षीय बेटा हंसने लगा ! मुझे भी अपना बचपन याद आ गया - बाबु जी पहली दफा बालों को सलून से रंग के आए थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे - सच पूछिये तो उस वक्त मुझे अच्छा नही लगा था ! मन ही मन कहा था - बाबु जी को ऐसा नही करना चाहिए था ! पत्नी का जोर था सो मैंने भी बालों को रंग लिया ! कान के आस पास के बाल थोड़े उजले नज़र आ रहे थे - कई बार तो दिल को तसल्ली  दिया कि आइना झूठ बोल रहा है ! पर बकरे कि अम्मा कब तक खैर मनाती ! जब भी आईने अपने सफ़ेद को बालों को देखता और सोचता अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है ! कई शौक तो अभी छूछे ही हैं ! दिल अभी भी जवान है ! यूँ कहिये तो दिल अभी भी २४ वर्ष का ही है ! कई सालों से दिल कि उम्र बढ़ी ही नही ! पर शरीर ने तो अजब कि रफ़्तार पकड़ ली है ! दुःख होता है - भगवान् के नियम पर ! ऐसा नही होना चाहिए ! दिल और शरीर दोनों कि रफ़्तार एक होनी चाहिए ! हर वक्त कुछ सिखने का मौका मिलता है - अछ्छा लगता है ! सोचता हूँ - अगली बार गलती नही करूँगा ! पर , अब ऐसा लगता है कि अब अवसर नही आयेंगे ! जो हो गया सो गया ! यह सोच घबरा जाता हूँ ! अपने कई सपने और उम्मीदों को अपने बच्चों में देखने लगता हूँ ! शायद , बाबु जी भी यही सोचते थे ! कुछ लोग कहते हैं - बच्चों को आजाद कर दीजिए , उनको अपनी जिंदगी जीने दीजिए ! ऐसा कैसे हो सकता है ? मेरे कई सपने अभी अधूरे हैं - इनको कौन पुरा करेगा ? अपना खून ही , न ! क्या गुनाह है अगर अपने सपने को अपने खून कि नज़र से देखना चाहता हूँ ? बच्चे भी तो मेरे अपने ही हैं , न ! और सपने भी मेरे ही हैं !

@RR 

Friday, January 23, 2009

तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?

हमें जो कुछ कहना था आम जनता की तरफ़ से उसका एक पार्ट लिख दिया .बुरा लगा उनको जो सबकी बुराई करने की अच्छी-खासी दरमाहा [वेतन] लेते हैं. आप ग़लत हैं बन्धु ! मुझे टी.वी.की समझ नही है ये आपने लिख तो दिया .आपको आज़ादी का मतलब पता है ? समाचार का मतलब पता है ? अपने अधिकार और कर्तव्य का मतलब पता है ? नही पता है तो पांचवी का किताब पढ़े ,क्योंकि आप पांचवी पास से तेज नही है. पर घबराने की जरुरत नही है पदमश्री की उपाधि आप जैसे को मिल ही जाती है . आप हमारे राष्ट्राधिकारी तक को अंगुली दिखा सकते है लेकिन जिलाधिकारी की अंगुली पकड़कर चलने में परेशानी महसूस करते हैं . बताता हूँ जिलाधिकारी वह चीज है जिसके लिए आप स्नातक करते ही तीन बार पूरे जोर से तैयारी के उपरांत परीक्षा दिए और असफलता हाथ लिए पत्रकारिता में हाथ आजमाने लगे .सेंसरशिप का स्वरुप क्या था ? बैचैन कर देनेवाला था क्या ? मेरे ख़्याल से अभी विचार होना था . जिस प्रकार बच्चे छत से खेलते हुए निचे लुढ़क न जाए इसके लिए सुरक्षा घेरा दिया जाता है बस वही घेरा आपके इलाके में सेंसरशिप कहा जाता है .मेरे ख्याल से किसी की भी हद तो तय होनी ही चाहिए .आप खड़े कहाँ है इसकी समझ रहती तो बाउंड्री वाल की चर्चा ही न होती. आप अतिवादी से घिरे अपने आपको नही पाते ?नेताओं से पीटने ,गाली मिलने के अवसर का बार बार प्रसारण क्यों नही होता . जनता तो साथ होना चाहती है आपके साथ ऐसे मुद्दे पर .टी.वी जो है उसे समझने की समझ है हमें .आप जिनको आदर्श मानते है क्या कर पाये बोफोर्स का सोर्स लगाकर राज्य सभा पहुंचे तो गंभीरता की चादर ओढ़ बैठे .टी .वी. को क्या समझूं १०० चैनल में ५०% का आरक्षण आप न्यूज वालों ने ले लिया है .जिस पर न्यूज कम व्यूज ज्यादा होता है ,और अपने पास भी व्यूज खूब है . ५० के ५० पर कभी कसाब को कभी ओबामा को एक साथ देखते है .साक्षात्कार के लिए जिसे बुलाया जाता है उसे बोलने नही दिया जाता ,उसे तो माफ़ी मांगने के साथ समय का अभाव बताया जाता है फ़िर बार बार एक ही ख़बर दिखने दिखाने की क्या मजबूरी है .क्या कसाब , आरुशी ,प्रिंस ,ओबामा टाइप खबरे ही क्यों दिन रात चले . भारत विशाल देश है ,और क्या खबरों की अकाल नही किए हुए हैं आप लोग . आपकी चालाकी से आम जनता भी अब चालाक हो गई है . आपकी ख़बर पर एतवार कौन करता है ,आपका लाईव टेलेकास्ट पर से भी भरोसा उठ जाना साधारण बात तो है नही .इसलिए हे ख़बरदाता ख़बर की आंधी नही बयार चलाओ .पब्लिक रिमोट से ख़बर लेता रहेगा .आप खबरों को मल्टीप्लाई करते हो .हम पब्लिक तुंरत डिवाइड करने के बाद स्वीकारते हैं. आप जिसको डिवाइड करते हो हम मल्टीप्लाई करते है .अब बताइये आपने अपना विश्वास खोया है या पाया है ? आलोचना झेलिये ,झेलना होगा ! बिलबिलाइये नही .हम नेता नही है की आपसे सचेत रहे. जनता जो सोंचती है वो लिखा था ,लिखूंगा ."तुम नही होते तो हम मर जाते !" वाला गाना तो जनता कभी नही गाएगी. इसलिए हम केवल ये ही कहेंगे"तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?"

Thursday, January 15, 2009

मेरी मर्ज़ी !

आप भी दूध के धुले तो हो नही ! बड़ा चिल पों मचा रहे हैं आजकल आप लोग .थोड़ा सा प्रतिबन्ध क्या लगा ,लगे अपने आपको लोकतंत्र का सबसे सजग प्रहरी बताने . अरे आप सजग रहते तो सरकार सजग नही रहती क्या ? आपके प्रसारण पर रोक लगाने वाला सरकार कहाँ से हो गया .ये काम तो आपके चैनल के मालिक के जिम्मे था . अच्छा किया विरोध करके . भला एक आई एस अफसर को क्या समझ हो सकती है ख़बर के असर का .ख़बर का असर कैसे ,कहाँ ,और कब डालना है ,कोई आप मिडिया से सीखे .कड़ी मेहनत सच्चे लगन से अर्जित पत्रकारिता का डीग्री डिप्लोमा से भला ,झटके में पाई जिला समाहर्ता के पद से कैसी तुलना .दिखाइए न जो जो दिखाना है , जो हो रहा है उसी को तो दिखाते है आप . प्रिन्स को गढे में आपने नही डाला था . सैफ अली के हाथ पर करीना आपने नही लिखा था .अभिषेक की ऐश्वर्या से शादी आपने तो कराई नही .मुंबई हमले पर लगातार आपकी देशहित नजरें थी ही . पर कैमरा उधर मुंह घुमा ही लेता है जहाँ देश हित नजर आए .राजनीतिक विचार धारा में डुबकी लगाने वाले पंडूबी पक्षी आप भी है .तभी तो गुजरात और दिल्ली से जीतते हुए को हार के कगार पर खड़ा बताते रहे . हरवक्त केवल शिवराज पाटिल ही नही कोट बदलते थे ,आप भी चोला बदलते रहते हैं . लोकतंत्र के चारो प्रहरी में से कोई एक भी सजग नही है .एक सोया आदमी दुसरे सोये को कैसे जगा सकता है ? अपनी जोरदार खर्राटे से ? चौबीस मिनट के लायक जिसके पास समाग्री न हो वो चौबीस घंटे चैनल बजा रहा है . आप तो माध्यम हो सरकार बनाने गिराने का आप पर प्रतिबन्ध सर्वथा अनुचित है .एक दुसरे के लिए सिद्ध खतरे की घंटी को बजने देना चाहिए . देश हित में जरूरी है अधिकार अपनी मर्ज़ी का .कर्तव्य भी अपनी मर्ज़ी का . मैं चाहे ये करू मैं चाहे वो करूँ मेरी मर्ज़ी . है कि नही ?