Wednesday, August 6, 2008

ग़ज़ल की यादें

" मोहे आयी न जग की लाज - मै इतना जोर से नाची आज - की घुँघरू टूट गए " ! पंकज उधास की गज़ल्नुमा गीत मेरी पहली ग़ज़ल थी ! "ग़ज़ल" का क्या अर्थ होता है तब नही पता था ! उनका एक और ग़ज़ल था " बिस्तर की सिलवटों से महसूस हो रहा है - तोडा है दम किसी ने करवट बदल बदल के " ! कुछ दिनों के बाद जगजीत सिंह और चित्रा सिंह के ग़ज़ल के दीवाने हम हो गए - ख़ास कर अर्थ सिनेमा के ग़ज़ल्स - " एक जरा हाथ बढ़ा दे तो , पकड़ लें दामन - usake sine me sama जाए - हमारी dhadkan " ! कितने ख़ूबसूरत पंक्तियाँ है यह सब ! फिर थोडा बड़ा हुआ तो gulaam अली साहब को सुनने लगा - ख़ास कर निकाह का वोह ग़ज़ल - " चुपके चुपके तेरा वोह कोठे पे nange पावं आना याद है " ! इनका ही गया हुआ एक और ग़ज़ल मुझे बेहद पसंद है - " इतने मुद्दत बाद मिले हो - किन सोंचों में gum रहते हो -- हमसे न पूछो हिज्र के किस्से - अपनी कहो , अब तुम कैसे हो " " तेज़ हवा ने मुझसे पूछा - रेत पर क्या लिखते रहते हो " .......
अभी हाल में गुलाम अली साहब नॉएडा आए थे - एक महिला मित्र के अनुरोध और गुलाम अली साहब को सामने से गाते हुए देखने की इच्छा मुझे उनके काफी कैरीब ले गयी ! उनकी आवाज़ को आंखों से सुन कई गुजरे बरस याद आ गए !
पर मेरे पसंदीदा मेंहदी हसन साहब है ! गला में बीमारी की वजह से शायद अब वोह नही गाते हैं - " उसने जब मेरी तरफ़ प्यार से देखा होगा - मेरे बारे में बड़े गौर से सोचा होगा " मेरी पसंदीदा है ! फ़िर से वोह वाला ग़ज़ल - " मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो - मुझे तुम कभी न भुला पाओगे "
और अंत में
"वादा कर के अगर आप नही आयेंगे - नाम बदनाम ज़माने में वफ़ा का होगा "
इन्तेज़ार में

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Saturday, August 2, 2008

सावन से सावन, एक साल हो गए !

पिछले सावन में ही "दालान" का निर्माण हुआ था ! सोचा था - दिल की बातें होगी ! हमजोली और बेफिक्र इन्सान एक जगह बैठेंगे ! चाय चलेगा - शरबत चलेगा ! खटिया होगा ! वैभवशाली चंपारण कुर्सी होगी ! सभी विषयों पर गप्प होगीं ! थोडा प्यार और थोड़ा तकरार ! भाग दौड़ की इस जिंदगी से मुक्त - दो चार कुछ फुर्सत के क्षण भी होंगे !
जिंदगी इतनी आसान नही है ! सब कुछ पा लेने की तमन्ना में , बहुत कुछ हाथ से निकल जाता है ! जिंदगी एक सफर है - रास्तों में मिले भटकाव , मंजिल से बहुत दूर ले जाते हैं और अंत में जो मिलाता है वही पा कर आदमी संतोष कर लेता है !
मजबूत इरादा साधारण से साधारण व्यक्तित्व को असाधारण बना देता है ! छोटी छोटी खुबिओं को इकठ्ठा कर कोई भी महान बन सकता है ! पर , सब से जरुरी यह है की हमें जानना होगा की हमारे लिए क्या महतवपूर्ण है ! किस कार्य को पहले करना जरुरी है ! हम में से कई लोग भटकाव को ही मंजिल मान लेते हैं ! फ़िर दर्द से बेचैन हो जाते हैं ! अपने कदमों की दिशा को दोषहीन बताते हुए रास्तों और राहगीरों पर इल्जाम लगा देते हैं ! वर्तमान में हमारे लिए सबसे जरुरी क्या है - यह समझना सबसे जरुरी है ! बेवजह बेचैन होने से कुछ नही होगा !
हाल में ही एक ८० वर्षीय वैज्ञानिक से मिला - इस उम्र में भी वोह बड़े ही आराम से अपने विद्यार्थों को पढ़ते हैं ! वोह कहते हैं - जिंदगी में कई उतार चदाव देखे पर विचलित नही हुए !
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Friday, August 1, 2008

स्वावलंबी बनने की राह पर बिक्रम की महिलाएं

साभार : दैनिक जागरण
पटना। बिहार के पटना जिले के बिक्रम क्षेत्र की महिलाओं ने स्वावलंबी बनने का नया जरिया खोज निकाला है। सावन महीने में बिक्रम क्षेत्र के कई गांवों की महिलाएं हल-बैल और कुदाल लेकर खेतों की ओर चल पड़ी है।
गौरतलब बात है कि ये महिलाएं खुद हल भी चला रही हैं। बिक्रम के विभिन्न गांवों में महिलाओं ने समूह बनाकर किसानों से पट्टे पर जमीन ली और स्वयं मेहनत कर फसल उगाना शुरू कर दिया। बिक्रम प्रखंड के उदचरक गांव की मीना देवी ने बताया कि महिलाओं ने पहले महिला एकता मंच का गठन किया और फिर 20-20 महिलाओं का समूह बनाकर खेती शुरू की। उन्होंने बताया कि सामूहिक खेती से लाभ होने का अनुमान है। वे कहती है कि इस प्रकार की खेती के गुर आसपास की महिलाओं को भी सिखाए जाएंगे। सुंदरपुर गांव की हीरामनी देवी का कहना है कि इस कार्य से वे स्वावलंबी हो सकती है। यदि उन्हें बैंकों द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की गई तो वे उन्नत खेती करने में भी सक्षम हो सकती है। वे कहती है कि हम महिलाएं किसी से कम नहीं है। हम सिर्फ घर का काम ही नहीं खेतों का काम भी कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकती है।
सामूहिक खेती के लिए इन महिलाओं को प्रेरणा देने का काम प्रगति विकास समिति द्वारा किया गया है। समिति के सह संयोजक उमेश कुमार बताते है कि उनकी योजना सभी गांवों को जोड़ने की है, जिससे आसानी से महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जा सके। इच्छाशक्ति और उत्साह से परिपूर्ण मनेर गांव की धर्मशीला का कहना है कि सरकार बड़े किसानों को तो बीज उपलब्ध कराती है, लेकिन जमीन नहीं होने के कारण वह इस योजना से दूर ही है। यदि उन्हे खेती का प्रशिक्षण, उचित साधन एवं बढि़या बीज उपलब्ध कराए जाएं, तो एक एकड़ में 45 क्विंटल तक धान का उत्पादन किया जा सकता है। बताया जाता है कि बिहटा प्रखंड के बारा, सुंदरपुर, चिहटा, पड़रियांवा, शिवगढ़, महजपुरा, मनेर और तेलपा जैसे गांवों में महिलाएं सामूहिक खेती कर रही है।


रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा