Tuesday, June 17, 2008

एक अस्पताल दिल से। अभयानंद की पहल !



एक अस्पताल दिल से। न कोई सरकारी मदद और न कोई ग्रांट की व्यवस्था, एक शख्स बस दिल से लग गया तो वैसे लोग भी मिलते गये, कारवां बढ़ता गया। एक उपेक्षित अस्पताल इस तरह अब आधुनिक नर्सिग होम की शक्ल में आ चुका है। यहां अल्ट्रासाउंड व एक्स-रे से लेकर अत्याधुनिक ओटी भी है। इसे सुंदर और सुविधाजनक बनाने के लिए जवान अपने परिजनों की स्मृति में रिसेप्शन पर टीवी व एक्वागार्ड लगवा रहे हैं। राजधानी के समीप फुलवारीशरीफ में बीएमपी-5 के परिसर में स्थापित यह अस्पताल अब नए लुक में है। झाड़ू देने वाले बुजुर्ग गणेश राम ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके हाथों कभी किसी अस्पताल का उद्घाटन भी होगा, पर यह सच हुआ। माह भर के भीतर रिटायर होने वाले गणेश राम ने अस्पताल के नये स्वरूप का उद्घाटन किया है। उन्होंने सोमवार को बीएमपी कमांड हास्पिटल को एक दर्जन बटालियन के जवानों की सेवा में समर्पित कर दिया। 13 पुरुष और चार महिला बेड वाले इस अस्पताल की सज्जा अब एक नर्सिग होम से कम नहीं है। अब इसका अतीत जानिये- यह वही अस्पताल है, जहां देर शाम लोग फटकते तक नहीं थे। वहां कुत्ते बड़ी संख्या में दरवाजे के पास ही रहते थे। अस्पताल का भवन था और पटना में रहने को ख्वाहिशमंद चार चिकित्सक भी यहां पदस्थापित थे पर इलाज कम और फर्जी सर्टिफिकेट बनाने का काम ज्यादा होता था। सिपाहियों के लिए सिक लीव यानी बीमारी की छुट्टी के लिए सर्टिफिकेट बनाने के अलावा यहां कुछ खास नहीं होता था। बीएमपी के एडीजी अभयानंद ने बताया कि जब वह यहां पहुंचे तो तय किया कि जवानों के इलाज की कुछ व्यवस्था करें। इसी क्रम में उन्होंने बीएमपी जवानों के एसोसिएशन के पदाधिकारियों से बात की। वे अस्पताल के नाम पर तैयार हो गए। तय हो गया कि एक-एक बटालियन से पचास-पचास हजार रुपए तो चंदे के रूप में आएंगे। इस तरह से बारह बटालियन के हिसाब से छह लाख का इंतजाम पंद्रह दिनों के भीतर हो गया। इस पैसे को लेकर हमें अस्पताल शुरू करना था सो हम उन लोगों के पास गए जो अस्पताल के क्षेत्र में अनुभव रखते हैं। लोगों में सहयोग की भावना क्या है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि लायंस क्लब आफ फेमिना की महिलाएं इस बात को आगे आ गई कि वह अस्पताल के जर्जर हो चुके बेड को ठीक कराकर उनके लिए गद्दे वाले बिस्तर की व्यवस्था कर देंगी। इसके बाद लायंस क्लब आफ पटना फेवरिट को जब यह पता चला कि गैर सरकारी सहयोग से अस्पताल बनाया जा रहा है, तो उन्होंने अपनी ओर से अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था कर दी। इसके बाद रुबन मेमोरियल अस्पताल ने बीएमपी कमांड अस्पताल को एक्स-रे मशीन गिफ्ट कर दी। इसके बाद स्टेट बैंक के स्थानीय मुख्यालय के अधिकारी आगे आ गए। दरअसल बीएमपी के जवानों को वेतन स्टेट बैंक से ही मिलता है। स्टेट बैंक ने अपने पैसे से अस्पताल के ओटी को नया शक्ल दे दिया। इस तरह सहयोग का कारवां बढ़ता गया। एक उपेक्षित अस्पताल अत्याधुनिक उपकरणों और वातानुकूलित ओटी से लैस हो गया। एडीजी ने बताया कि अपने चंदे के पैसे से हमलोगों ने अस्पताल के पैथालाजी विभाग के लिए उपकरण व फ्रिज खरीद लिए। अस्पताल नये रूप में शुरू हो गया। यहां बाजार से आधी से भी कम दर पर सिपाहियों को पैथालाजिकल जांच की सुविधा होगी। पूरी तरह से मोर्बोनाइट फर्श और ग्रेनाइट के खंभे वाले इस साफ-सुथरे हास्पिटल में अब सिर्फ एंबुलेंस की कमी है। बीएमपी के पास चार बटालियनों में एंबुलेंस हैं। एक-एक दिन के लिए उसे यहां लाने की योजना पर काम हो रहा है। अस्पताल में अपनी दवाई की दुकान भी हो, इसकी व्यवस्था भी कर ली गई। सरकार से लाइसेंस लेकर अपनी आउटलेट भी शुरू कर दी गई है। अभयानंद के मुताबिक अस्पताल के संचालन के लिए जवानों का एक ट्रस्ट बना दिया जाएगा और वही ट्रस्ट इस अस्पताल को चलाएगा। मामूली शुल्क पर इलाज और जांच की व्यवस्था रहेगी। हर साल ट्रस्ट का चुनाव होगा। अस्पताल को लेकर जवानों में इतना उत्साह है कि वे अपने परिजनों की स्मृति में रिसेप्शन पर टीवी व एक्वेरियम आदि लगवा रहे हैं। बाहर के विशेषज्ञ डाक्टरों की पेड-सर्विस भी शुरू किए जाने की योजना है।

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Friday, June 6, 2008

मेरे मन के तार !

सन् १९८४ मे मेरे मन की बात कागज़ पर उतर आई थी .आज अचानक, न जाने क्यों ब्लॉग पर उतरने को बेताब दिखी . पर मैंने इसे ब्लॉग पर उतारा नही चढाया है .
कुछ तार मेरे मन के उलझे हुए है /
कुछ सार इस बात के सुलझे हुए हैं //

रोशनी मिली तो उठाई न नज़र /
अब तो सारे चिराग बुझे हुए हैं //
कुछ तार मेरे मन के .........

दुखाया है बड़ी बेरहमी से तेरा दिल /
एहसास इस बात के अब मुझे हुए है //
कुछ तार मेरे मन के .........

किस कदर दूं उस जख्म पे मरहम /
जो जख्म मेरे घात के तुझे हुए है //
कुछ तार मेरे मन के .........