Friday, September 28, 2007

बुद्धिमान और विद्वान्

"विद्वान्" कोई भी बन सकता है लेकिन "बुद्धिमान " होना आपके लिए आसान नही है ! कुछ अध् कचरे "विद्वान्" दोस्तो को अक्सर यही लगता है कि वोह बहुत "बुद्धिमान" हैं और यहीं वोह मात खा जाते हैं ! कई लोगों को देखा है - "विद्वता" तो आ जाती है लेकिन "बुद्धि" नही आती ! तभी तो देश मे कई "बुद्धिमान" लोग राज करते हैं ! जैसे - " धीरूभाई " , "लालू प्रसाद " ! मुझे नही लगता है कि यह लोग "विद्वान्" हैं लेकिन कोई शक नही कि यह "बुद्धिमान " हैं !
मैंने देखा है "बुद्धिमान" लोग "विद्वानों" को क़द्र करते हैं ! लेकिन वक़्त वक़्त पर "विद्वानों" को उनका औकात भी बता देते हैं ! यह गलत है ! लेकिन इससे भी ज्यादा दिक्कत तब होती है जब अध् कचरे "विद्वान्" खुद को बुद्धिमान समझने लगते हैं !
अभी हाल मे ही उत्तर प्रदेश मे कुछ "विद्वान" चुनाव लड़ने चले गए ! हार ही नही गए - बुरी तरह हारे ! यह एक सबक है और संदेश भी ! आप बहुत विद्वान् है - आप अपने "मालिक" के लिए २४ घंटा काम करते हैं - मालिक को कमा कर देते हैं - मालिक खुश होता है - पगार कुछ बढ़ा देता है ! लेकिन इसका मतलब यह नही कि बाकी का समाज भी आपको स्वीकार करे ! पुरा बिहार आपकी कंपनी तो नही , है ना ? सामाजिक स्तर पर कुछ करने के लिए प्राकृतिक "बुद्धिमान" कि जरूरत है ना कि क्रितिम रुप से बनाए हुये "विद्वान्" कि ! यह समझ आपको होनी चाहिऐ ! वर्ना विद्वान् लीडर बनने के चक्कर मे समाज कि दुलत्ती भी लग सकती है !
विद्वता दिखाने के कई अवसर और जगह मिलेंगे ! उन अवसरों और मौकों को खोजिए - जहाँ आपकी "विद्वता" का आदर हो !
खुद को आंकिये और तीर सही निशाने पर लगायीये ! "विद्वान्" हैं - विद्वान् कि तरह रहिये , बेवजह  बुद्धिमान मत बनिए !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

जिन्हे थोडी सी भी अक्ल हो गी,वो आदमी कभी भी उसी डाल को क्भी नही काटे गा जिस पर वो बेठा होगा,ओर हमारे नेता यही सब कर रहे हे,