Friday, September 28, 2007

बुद्धिमान और विद्वान्

"विद्वान्" कोई भी बन सकता है लेकिन "बुद्धिमान " होना आपके लिए आसान नही है ! कुछ अध् कचरे "विद्वान्" दोस्तो को अक्सर यही लगता है कि वोह बहुत "बुद्धिमान" हैं और यहीं वोह मात खा जाते हैं ! कई लोगों को देखा है - "विद्वता" तो आ जाती है लेकिन "बुद्धि" नही आती ! तभी तो देश मे कई "बुद्धिमान" लोग राज करते हैं ! जैसे - " धीरूभाई " , "लालू प्रसाद " ! मुझे नही लगता है कि यह लोग "विद्वान्" हैं लेकिन कोई शक नही कि यह "बुद्धिमान " हैं !
मैंने देखा है "बुद्धिमान" लोग "विद्वानों" को क़द्र करते हैं ! लेकिन वक़्त वक़्त पर "विद्वानों" को उनका औकात भी बता देते हैं ! यह गलत है ! लेकिन इससे भी ज्यादा दिक्कत तब होती है जब अध् कचरे "विद्वान्" खुद को बुद्धिमान समझने लगते हैं !
अभी हाल मे ही उत्तर प्रदेश मे कुछ "विद्वान" चुनाव लड़ने चले गए ! हार ही नही गए - बुरी तरह हारे ! यह एक सबक है और संदेश भी ! आप बहुत विद्वान् है - आप अपने "मालिक" के लिए २४ घंटा काम करते हैं - मालिक को कमा कर देते हैं - मालिक खुश होता है - पगार कुछ बढ़ा देता है ! लेकिन इसका मतलब यह नही कि बाकी का समाज भी आपको स्वीकार करे ! पुरा बिहार आपकी कंपनी तो नही , है ना ? सामाजिक स्तर पर कुछ करने के लिए प्राकृतिक "बुद्धिमान" कि जरूरत है ना कि क्रितिम रुप से बनाए हुये "विद्वान्" कि ! यह समझ आपको होनी चाहिऐ ! वर्ना विद्वान् लीडर बनने के चक्कर मे समाज कि दुलत्ती भी लग सकती है !
विद्वता दिखाने के कई अवसर और जगह मिलेंगे ! उन अवसरों और मौकों को खोजिए - जहाँ आपकी "विद्वता" का आदर हो !
खुद को आंकिये और तीर सही निशाने पर लगायीये ! "विद्वान्" हैं - विद्वान् कि तरह रहिये , बेवजह  बुद्धिमान मत बनिए !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, September 25, 2007

डिप्रेशन

एक दादा जीं पागलों के बहुत बडे डाक्टर हैं - बिहार सरकार के अपने फकुल्टी के सबसे बडे अधिकारी हैं - कहते हैं आज कल "डिप्रेशन" के मरीज बहुत बढ़ गए हैं ! मैंने बातों ही बातों मे पूछ बैठा कि इस तरह के मरीज किस आय वर्ग से आते हैं - वोह मुस्कुरा कर कहते हैं - गरीबों मे 'डिप्रेशन' नही होताहै ! या फिर गरीबों को पता ही नही चलता है ! गरीब पागल हो जायेंगे लेकिन "डिप्रेशन' के शिकार नही होते !
कुछ तो है - अच्छा पढ़ाई लिखाई ! अछ्छी नौकरी ! मस्त वेतन ! बढिया लोकेशन ! सुन्दर पत्नी ! फिर भी डिप्रेशन !
कुछ लोग बिल्कुल "मस्त" होते हैं ! हाथी कि तरह ! "भय" नही होता है !किसी भी चीज़ का "भय" नही होना ! जिन्दगी मे सबको सब कुछ नही मिलता है ! आज कि युवा पीढी को सब कुछ चाहिऐ ! सब कुछ ! यह प्रकृति के विपरीत है ! "त्याग" को भी भंजाने से वोह नही चुक रहे हैं ! शिक्षा का उद्धेश्य - कमाना - कमाना और कमाना है ! ठीक है ! लेकिन "पैसा" का साइड एफ्फेक्त भी होता है ! और सबसे बड़ा साइड एफ्फेक्त होता है - "डिप्रेशन" !
"पैसा" कमाने कि होड़ मे आदमी बिल्कुल अकेला हो गया ! यह अकेलापन बहुत खराब है - "खा" जाता है आदमी को ! "कपिलदेव" या "धोनी" कि टिम ही वर्ल्ड कप जीतती है ! यह सच्चाई है ! इस सच्चाई को कबूल करना सीखें ! "फल कि चिन्ता किये बैगैर कर्म किये जाएँ " ! कहना कितना आसान है ! लेकिन हम सभी को इसके महत्व को समझाना होगा !
एक आदमी सब कुछ कर सकता है ! मेरे मित्र "चंदन जीं : कहते हैं - "गया निवासी 'दशरथ मांझी' एक बहुत ही सरल उदाहरण हो सकते हैं !" एक दिशा मे ही लगातार बढ़ाते रहना ही - सबसे आसान उपाय है ! एक कहावत है " एक साधे - सब सधे " !
कई लोग अपनी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नही कर पाते हैं ! अलूल - जलूल कि चीजों मे फँस जाते हैं ! कई कारण हैं - घातक डिप्रेशन के ! हमे इससे बचना चाहिऐ ! ठंडा दिमाग से सोचना चाहिऐ कि हमे अपने ज़िंदगी से क्या चाहिऐ ? चिन्ता ना करें ! दूसरों को भी अपनी "चिंता" ना थोपें ! व्यक्ति और व्यक्तित्व दोनो का आदर करें ! सामने वाले पर विश्वास करना सीखें ! कोई आपको सिर्फ और सिर्फ एक बार हो धोखा दे सकता है - दुसरी दफा नही !
और हमेशा ईमानदार रहे ! अपने कर्तव्य और संबंधों के प्रति !
और कुछ ??

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Monday, September 24, 2007

पाकिट मे पत्थर और आसमान मे छेद

शायद वफ़ा के खेल से उकता गया था वोह, मंज़िल के पास आके जो रस्ता बदल गया
कौन कहता है , आसमान मे छेद नही होता , एक पत्थर तो 'तबियत' से उछालो ! चलिए पत्थर तो मिल जाएगा लेकिन 'तबियत' कहॉ से बनेगा ? आसान काम है क्या - 'तबियत' बनाना ? अब अगर 'तबियत' बन भी जाएगा तो क्या जरुरी है कि हम 'आसमान' मे पत्थर को उच्छालें ? हो सकता है हम इस पत्थर से किसी का 'कपाड़' फाड़ दें या 'पत्थर' को पाकिट मे ले कर घूमें या किसी के 'आंगन' मे फेंक दें ! मेरी मर्जी !
'बकरी' चराने वालों को 'बाघ' नही पालना चाहिऐ ! हमेशा खतरा रहता है कि कहीँ 'बाघ' बकरी को खा ना जाये ! 'बकरी' को हमेशा घमंड रहता है कि 'मालिक' उसके साथ है - 'बाघ' कुछ नही कर सकता ! यह मालिक कि गलती है कि 'बाघ' और 'बकरी' दोनो को एक साथ एक ही घर मे पालने का शौख रखते हैं ! यह बिल्कुल 'गलत' बात है !
तो मैं कह रहा था - 'तबियत' बनाने कि बात ! धरती है सो तरह तरह के 'प्राणी' मिलेंगे ! लोग अलग अलग ढंग से 'तबियत' बनाते हैं ! 'चाचा' बिहार सरकार मे नौकरी karate हैं ! सेक्रेटेरिएट मे जाते हैं ! पटना का सेक्रेतेरिअत को उद्योग का दर्जा मिल हुआ है ! सभी इस उद्योग पर kabzaa जमाना चाहते हैं ! "पोर्टर' का कोम्पितितिव मोडल यहाँ लागू होता है ! खैर , चाचा सेक्रेतेरिअत पहुंचाते ही शुरू हो जाते हैं - कहते हैं कि जब तक २-४ थो को गरिया नही दें - 'तबियत' नही बनता है ! फिर पाकिट से 'पत्थारवा' निकाल के टेबुल पर रख देते हैं ! हम कितना बार पूछे कि 'ई , पत्थारवा से कहियो 'आसमान' मे छेद भी होगा कि यूं ही रखल रह जाएगा ! 'चाचा' बोले कि - जब तक हाथ मे पत्थर है पब्लिक को आशा है कि आज नही ता कल , कहियो ना कहियो आसमान मे छेद होगा ही !
हम कहे चाचा , हंसिये मत ! पब्लिक बौरा गया है ! आज - kheera चोर को धुन रह है ! कल हीरा चोर को धुनेगा ! सोचिये जरा - पब्लिक ठीक इसी तरह सभी बड़का बड़का चोर लोग को खदेड़ खदेड़ के khet मे ले जाके पिटने लगे ता क्या होगा ? चाचा बोले - बुरबक हो ? ऐसा दिन कभी नही आएगा ! हम सोचे कि चाचा कितना आशावादी हैं , तब ही तो उनके पास तबियत और पत्थर दोनो है !
तबियत बना के , पाकिट मे पत्थर लेकर घुमिये और मौका मिलाते ही आसमान मे छेद कर दीजिये ! काम खतम !
रंजन ऋतुराज सिंह ,
पाठक वर्ग से मेरा अनुरोध है कि कृपया इस लेख को बिहार कि राजनीति से जोड़ कर ना देखें ! आपको कष्ट हो सकता है !

संस्कृति और कुछ तस्वीरें


http://lelongdugange.blogspot.com/

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, September 11, 2007

मन नही लगता है - भाग एक

मन नही लगता है ! मन करता है , बिहार वापस चले जाएँ ! दिल्ली मे पेट भरुआ नौकरी से क्या मिलेगा ? एक रुपईया जमा नही है ! ऊपर से ढ़ेर सारा हेडक , जो बचाता है पटना आने जाने मे खर्चा हो जाता है !
वहीँ पटना मे रहेंगे ! कुछ लोन ले के एक स्कार्पियो गाड़ी ख़रीद लेंगे ! हरा रंग का ! झकास लगेगा ! गाड़ी मे उजाला परदा लगा लेंगे ! सीट पर सफ़ेद तौलिया , फर वाला बिछा देंगे ! २- ४ ठो चेला चपाटी बना लेंगे ! सप्ताह दू सप्ताह पर गांव से घूम आवेंगे !
कभी कभी मन करता है कि कोई बिजिनेस करें ? अब क्या करें , यही नही बुझाता है ! बाबूजी के डर से नौकरी कर रहे हैं ! मेरा नौकरी करना उनके इज्जत से सरोकार रखता है ! अगर हम नौकरी नही किये तो लोग क्या कहेगा ? ई साला लोग के चक्कर मे हम अपना ज़िन्दगी नाश दिए , फेर भी लोग बहुत कुछ कहता है - मेरी सास कहती है कि सबका दामाद बड़का बड़का कम्पनी मे काम करता है - और एक आप हैं !! अब हम अपना सास को कैसे समझायें कि कम्पनी मे गदहा का जरूरत है घोडा का नही ! हमसे बोझा नही उठेगा !
दूर , माथा खराब हो जाएगा - जितना सोचेंगे ! मूड खराब हुआ ता गरीब रथ से वापस लॉट जायेंगे ! हो गया ! लोग जान गया कि फलना बाबु का लईका भी कुछ कर सकता है ! यही कम है , क्या ? एक ही ज़िन्दगी मे क्या क्या करें ? बाप - दादा , ख़ानदानी और रईस बना के रख दिया - संस्कार ऐसा डाल दिया कि किसी के सामने सर झुकता नही है ! पैसा ही सब कुछ का माप दण्ड हो गया ! बचपन मे देखा कि बडे बडे पैसा वाले को हिम्मत नही होती थी हम लोगों के सामने बैठने की  - अब सब कुछ उलटा हो गया ! ऐसा लगता है कि पैसा के खेला मे फंस गए !
लिखा होगा ता पैसा कहीँ भी मिल जाएगा ! क्या जरूरत है मान - सम्मान बेच के पैसा कमाने कि ! थोडा सकून भी होना चाहिऐ - जिन्दगी मे !
ता , कह रहे थे कि पटना चले जायेंगे - वहीँ राम बिलास चाचा का पार्टी जोइन कर लेंगे ! लालू जीं और नितीश जीं के यहाँ बहुत धक्का है ! रोज शाम को अपना स्कार्पियो मे चेला चपाती सब के साथ डाक बंगला चौराहा पर केदार के दुकान पर पान कचरेंगे और उज्जर उज्जर कुरता - पैजामा पहन कर खूब हवा देंगे ! एक रे बन का चश्मा भी ले लेंगे ! कभी कभी जेंस का पैंट और T शर्ट और बाटा का हवाई चप्पल पहन के बोरिंग रोड़ मे घुमेंगे या मौर्या लोक मे टहलेंगे !
मूड हुआ ता "महंगू" के दुकान मे जाके बगेरी या चाहा का मीट खायेंगे ! रिटेल का जमाना है ता - हर शहर मे कोर्ट - कचहरी के सामने "मीट-भात" का दुकान खोलेंगे ! आप देखे होंगे कि बहुत सारा लोग ऐसा होता कि जब तक वोह दू-चार कित्ता केस नही लडेगा उसका जीना बेकार है , ऐसा लोग के लिए ही - कोर्ट - कचहरी के सामने मीट - भात का दुकान होता है ! हर शहर मे आपको ऐसा कोई ना कोई फेमस दुकान मिल जाएगा ! वैसा मीट खाने के बाद पांच सितारा का खाना बेकार लगेगा !
बहुत सारा प्लान है - लेकिन ई पेट भरुआ नौकरी ज्यादा दिन नही होगा ! हमलोग काम करने के लिए पैदा लिए हैं कि करवाने के लिए ... बताईये तो महाराज ....
क्रमशः

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Saturday, September 8, 2007

बिदाई : श्री मदन मोहन Jha



कुछ कह नही सकते ! लेकिन "बिदाई" हमेशा दुखदायी होती है ! "कफ़न मे जेब नही होती " ! बस और बस रह जाते हैं - आपके कर्म !
"झा" जीं , आप कहॉ गएँ हैं ? आप तो हम लोगों के बीच मे ही हैं ! कौन कहता है - आप चले गए ? झूठ बोलता है ! देखिए ना , कल मीटिंग है - नए बहाल शिक्षक गन के पेंशन का ! सिन्हा जीं , आ रहे हैं ! बहुत सारा बेजुबान फ़ाइल आपका इंतज़ार कर रहा है ! बिहार के शिक्षा के बुनियादी ढांचा को संवारना है ! उठिये ना ! आराम - हराम है ! यही ना , आप कहते हैं !
"नितीश जीं " आप रो क्यों रहे हैं ? Brishan पटेल जीं आप फूट फूट कर क्यों रो रहे हैं ! क्या हो गया ? "झा जीं " कुछ बोलते क्यों नही ?
किसी अफसर कि क़ाबलियत कि मिशाल यही है कि उनके जाने के बाद - मंत्री और मुख्य मंत्री फूट फूट कर रो रहे हैं !
आप बहुत याद आएंगे ! सच्ची श्रद्घांजलि यही होगी कि उनके सुरु किये हुये कामो को बिना किसी रुकावट के जारी रहे !
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पटना। मानव संसाधन विकास विभाग के प्रधान सचिव और 1976 बैच के बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी डा. मदन मोहन झा का शुक्रवार को अहले सुबह आकस्मिक निधन हो गया। वे 56 वर्ष के थे। हाजीपुर में गंगा घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। स्व. झा अपने पीछे धर्मपत्नी श्रीमती निशा झा, पुत्र सौरव और पुत्री नेहा को छोड़ गए। डा. झा के निधन की खबर से पूरे सरकारी महकमे और शिक्षा जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है।

मूलत: भागलपुर जिले के भागलपुरा गांव निवासी डा.मदन मोहन झा के निधन के वक्त उनकी धर्मपत्‍‌नी श्रीमती निशा झा मौजूद थीं। उनके करीबी रिश्तेदार बीएन झा ने बताया कि रिश्ते में उनके ममेरे बहनोई डा. झा के माता-पिता श्रीमती भवानी देवी और शकुन लाल झा जीवित हैं। उन्होंने बताया कि रात साढ़े तीन बजे अचानक उन्हें बेचैनी महसूस हुई। तत्काल एम्बुलेंस बुलाई गई और पीएमसीएच के इन्दिरा गांधी हृदय रोग संस्थान ले जाया गया,जहां चिकित्सकों ने रात के करीब साढ़े चार बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया।
डा. झा के निधन की खबर से पूरे सरकारी महकमे और शिक्षा जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है। राज्य सरकार ने इनके निधन पर एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा करते हुए शुक्रवार को सरकारी विभागों में अवकाश घोषित कर दिया। उनकी अंत्येष्टि शुक्रवार की देर शाम पूरे राजकीय सम्मान के साथ हाजीपुर स्थित कौनहरा घाट पर कर दिया गया। घाट पर बिहार सैन्य पुलिस की गोरखा बटालियन के जवानों ने 12 राइफलों की गारद सलामी दी। इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, रामाश्रय प्रसाद सिंह, वृषिण पटेल, अश्विनी चौबे, मुख्य सचिव अशोक कुमार चौधरी, गृह सचिव अफजल अमानुल्लाह, कैबिनेट सचिव गिरीश शंकर, अपर पुलिस महानिदेशक अभ्यानंद, महाधिवक्ता पीके शाही, बिहार राज्य धार्मिक न्याय परिषद के प्रशासक आचार्य किशोर कुणाल, पटना के डीएम डा. बी. राजेन्दर, वरीय आरक्षी अधीक्षक कुन्दन कृष्णन, आईएएस आमीर सुबहानी, डा. दीपक प्रसाद, वैशाली के डीएम लल्लन सिंह, आरक्षी अधीक्षक अनुपमा निलेकर सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

अपने कैरियर का आगाज पटना विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में करने वाले डा.मदन मोहन झा ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि अर्जित की थी। शिक्षा पर उनकी ख्यातिनाम पुस्तक आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेस से प्रकाशित हुई। प्राथमिक शिक्षा और विकलांग शिक्षण पद्धति के राष्ट्रीय विशेषज्ञ माने गए डा.झा भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1976 में आए। डा. झा ने धनबाद और सहरसा समेत कई जिलों के जिलाधिकारी के रूप में महत्वपूर्ण कार्य किया। वे भारत सरकार में संयुक्त सचिव भी रहे। बिहार सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर योगदान दे चुके डा. झा 2011 में सेवानिवृत्त होने वाले थे पर नियति को कौन जानता है..!
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Wednesday, September 5, 2007

श्री राजू नारायणस्वामी , केरल

श्री राजू नारायणस्वामी केरल कैडर के एक आईएस अधिकारी है ! चलिए कुछ इनके बारे मे जानते हैं !
  • केरल राज्य माध्यमिक परीक्षा मे प्रथम
  • +२ परीक्षा मे प्रथम
  • IIT-JEE मे प्रथम दस
  • IIT-मद्रास मे कंप्यूटर इंजीनियरिंग मे प्रथम
  • "मस्सचुसेत्त्स" विश्वविद्यालय से आमंत्रण
  • और सिविल परीक्षा , १९९१ मे प्रथम
  • केरल कैडर के आईएस अधिकारी
  • केरल साहित्य अकादमी से पुरस्कृत

इमानदार छवी के इस अधिकारी के कई बातें मशहूर हैं ! कहते हैं इन्होने ने अपने ससुर को ही कटघरे मे खड़ा कर दिया जब इनके ससुर अपने आईएस दामाद के नाम को भंजाने कि कोशिश कि ! अभी हाल मे ही केरल के एक मंत्री को अपना इस्तीफा देना पड़ा - क्योंकि राजू नारायणस्वामी उनके पीछे पडे थे !

ज्यादा डिटेल मे जानना है तो पढिये :-

http://www.indianexpress.com/story/214374.html

http://think-free.blogspot.com/2005/11/raju-narayanaswamy-ias.html

http://en.wikipedia.org/wiki/Raju_Narayana_Swamy


कुल मिला कर आपको यही लगेगा कि क्या "बिहार-UP " और क्या "केरल" सभी जगह के लोग एक जैसे हैं और सभी जगह SYSTEM मे कुछ ईमानदार अधिकारी है जिनके कारण यह SYSTEM चल रह है ! कुछ ऎसी ही कहानी बिहार के एक IPS अधिकारी कि रही है जिन्होंने अपने ससुर के घर ही vigilence का छापा पड़वा दिया था और मूड खराब हुआ तो राज नेताओं के गरम बिस्तर कि लाश को निकलवा लिया !

समाज को बिना किसी भेद भाव , जात -पात के द्वेष इस तरह के ईमानदार अधिकारीयों को हीरो बनाना चाहिऐ ताकी वोह राज नेताओं को नंगा कर सके !

लेकिन ऐसे अधिकारी सिर्फ और सिर्फ अपने होम कैडर मे ही हीरो बन पाते हैं ! अभी हाल मे ही गुजरात के एक बेहद ईमानदार आईएस अधिकारी जो बिहार के रहने वाले हैं , उन्होने इस्तीफा दे दिया और मुकेश अम्बानी कि team मे सबसे ज्यादा तनखाह पाने वाले अधिकारी बन गए ! दुर्भाग्यवश , मोदी अभी तक उनका इस्तीफा स्वीकार नही किये हैं !

कुछ भी कहिये एक ईमानदार आईएस या IPS के सामने सभी पेशा फीका है !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Sunday, September 2, 2007

असली हीरो !

आज कि शाम छ बज कर बीस मिनट पर इसरो ने अपना rocket दागा और वोह सफल हुआ ! बाकी का समाचार आप लोग पढे होंगे या खबरिया चैनल पर देखे होंगे !
यह वैज्ञानिक हैं ! यह आईआईएम से पढे नही हैं ! इनकी कारें मन्हातन कि गलियों मे खडी नही होती हैं ! "सीताराम येचुरी " कि तरह ये "Color plus" के पैंट शर्ट नही पहनते हैं ! इनके बच्चे "doon school" मे नही पढते हैं ! ये किसी टॉक शो मे नही आते हैं और ना ही प्रभु चावला कोई सवाल दागते हैं ! दिल्ली नौएडा और नवी मुम्बई मे इनके कोई फ़्लैट नही होते हैं !
ये मात्र ८००० बेसिक तनखाह से अपनी जिन्दगी शुरु करते हैं ! शायद यही तनखाह भारतीय प्रशाश्निक सेवा के अधिकारीयों कि होती है !
बात ९२-९३ कि रही होगी , हमारे कालेज मे तत्कालीन इसरो अध्यक्ष उद्दप्पी राम कृष्णन राव आये थे ! उन्होने ने बताया कि उनका टेक्नोलॉजी यह बताता है कि बिहार के गंगा तट के आस पास कि जमीन सबसे उपजाऊ है ! मेरा सीना चौड़ा हो गया था ! हम सभी कितने बेताब थे उनसे हाथ मिलाने को ! ऐसा लगा था कि वही असली हीरो हैं ! बाकी सब बकवास !
"मेसरा" मे पढ़ाई के दौरान वहाँ के Rocketary Department के कई शिक्षक गन को दिन रात काम करते देखा था ! उनमे कई तो ऐसे थे जो "Visual C ++" मे बहुत बडे बडे software बनाते थे और बिना किसी पैसा के इसरो को दे देते थे !
आज शाम NDTV पर पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब का Interview देखा ! इसमे कोई शक नही कि शेखर गुप्ता एक बेहतरीन और सफल पत्रकार हैं सो कलाम साहब को वापस T V पर देख बहुत अछ्छा लगा ! धन्यवाद शेखर गुप्ता जीं और "NDTV" ! अब तो कलाम साहब "नालंदा" मे भी नज़र आएंगे - बिहार विकाश पुरुष नितीश कुमार ने उनको "Visitor" बनाया है !
कुछ दिन पहले NDTV-इंडिया ने एक पोल किया कि कौन असली हीरो है ? 'ओप्शन ' मे बहुत कुछ नही था लेकिन जो था उसमे करीब ९८ % वोट "असली हीरो - सैनिक " को मिला ! मुझे अपना बचपन याद है - हम सभी "सिपाही" बनाना पसंद करते थे क्योंकि सिपाही के हाथ मे बंधूख होती थी !
लेकिन कितने लोग हैं जो "सैनिकों " को "असली हीरो" मानते हुये अपने बच्चों को सेना मे भेजना पसंद करेंगे ???
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Saturday, September 1, 2007

संसद और सांसद

मैं करीब साढे चार - पांच बजे शाम को घर वापस लौटता हूँ ! आते ही चाय - नास्ता वैगरह के साथ साथ अपने "T V "पर लगभग सभी खबरिया चैनल को एक नज़र देखता हूँ ! "मानसून सत्र " चल रह है संसद मे सो "लोकसभा T V " पर आ कर रूक जाता हूँ ! देश के सबसे ताकतवर स्तम्भ को "लाइव" देख अछ्छा लगता है ! लोकसभा मे जो भी व्यक्ति बैठा हुआ है - वोह देश का सबसे ताकतवर है ! यह बात १९७७ और १९८० के आस पास मेरे दिमाग मे बैठ गयी और अभी तक है ! और यही सच्चाई है !
शाम के वक़्त बहुत कम सांसद बैठे होते हैं ! सुना सुना सा संसद अछ्छा नही लगता है ! फिर भी कुछ लोग बैठे होते हैं और कुछ कुछ बोलते हैं ! उन्ही बैठे लोगों मे एक हमारे क्षेत्र के प्रतिनिधी यानी पटना के सांसद "श्री राम कृपाल यादव" जीं भी होते हैं ! मैं उनको हर रोज कुछ ना कुछ बोलते देखता हूँ - सच पूछिये तो मेरे मन मे उनके प्रति बहुत आदर बढ़ गया है ! मैंने उनको अपने ही रेल मंत्री को धावा बोलते देखा है ! "बिहार" का कोई भी मुद्दा हो और वोह मुद्दा राम कृपाल जीं से छुट जाये - यह हो नही सकता ! कई बार तो वोह देश के दुसरे प्रांत से सम्बंधित वाद विवाद मे हिस्सा लेते हैं ! कल परसों उनको ग़ैर बिहार मसलों पर बोलते देखा ! वैसे कभी कभी सभापति बने हुये मधुबनी के सांसद स्री देवेन्द्र यादव जीं - राम कृपाल यादव को ज्यादा समय नही देते हैं ! देवेन्द्र प्रसाद भी एक अच्छे सांसद हैं ! कल श्री नवीन जिंदल के "प्रायवेट बिल " पर इन सबों को खुल के बोलते देखा ! यहाँ भी , राम कृपाल यादव जीं छाये रहे !
अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो उनको किसी ना किसी मंत्रालय का मंत्री बना देता ! लल्लू जीं के साथ है - यह वरदान है या श्राप - यह बात राम कृपाल जीं से ज्यादा कोई नही जानता होगा ! राम कृपाल जीं पटना के बीचों बीच बसें हुये मुहल्ला "गोरिया-टोली " के निवासी है ! "गोरिया टोली " के यादव यह समझते हैं कि "पटना" उनका है और हम ही खांटी 'यादव' है ! यह बात लालू जीं भी अछ्छी तरह से जानते हैं ! जब जय प्रकाश नारायण यादव जीं मंत्री बन सकते हैं फिर राम कृपाल जीं क्यों नही ? क्या "खांटी " और "खानदानी " यादव होना अभिशाप है ?

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा