Thursday, August 30, 2007

कुछ खास पत्रकार !

बात २००५ के जून महीना कि है पटना मे अचानक से मेरी जरुरत आ पडी और मैंने सुब्रतो रोय के जहाज से पटना के लिए निकल पड़ा ! बगल वाली सीट पर एक खबरिया चैनल के पटना प्रमुख बैठे हुये थे - मैंने पुछा कि आप तो फलना न्यूज़ चॅनल के लिए काम करते हैं - वोह मुसकुरा दिए ! मैंने बातों ही बातों मे पूछ लिया कि - कंपनी के काम से आये थे , क्या ? वोह बोले नही एक नेता जीं के बेटी के बियाह मे आये थे ! हम बोले बेटी के बियाह मे आये हैं सो खुद के पैसा से हवाई जहाज का खर्चा वहन किये होंगे ! वोह बोले - 'नही , नही - सब ARRANGE हो जाता है ' !
कुछ दिनों के बाद - वही नेता जीं जो केंद्रिये मंत्रिमंडल के सदस्य भी हैं , उनको हार्ट अटैक आया ! हार्ट हॉस्पिटल मेरे घर के पास ही था - पटना मे ! सो 'ब्रेकिंग न्यूज़' देख मैं भी एक आम जनता और थोडा जागरूक होने के कारण , पैजामा कुर्ता मे हॉस्पिटल कि तरफ दौड़ पड़ा ! वहाँ देखा तो वही न्यूज़ चैनल वाले 'पत्रकार' महोदय अपने केमरा मैन के साथ हॉस्पिटल के गेट के सामने खडे थे ! केमरा ऑफ़ था ! और पत्रकार महोदय - मंत्री जीं के एक खास करीबी दुसरे नेता के साथ - ही - ही- आ रहे थे ! मैं उनको 'ही-ही-आते ' देख दंग रह गया ! पत्रकार महोदय के चारों तरफ राज्य स्तर के नेता थे ! कोई पूर्व मंत्री तो कोई वर्तमान विधायक ! इन सबों के बीच पत्रकार महोदय का STATUS देख मेरा कई भ्रम एक साथ चकनाचूर हो गया ! जिसको मैं एक आम जनता का पत्रकार समझाता था - वोह "खास' लोगों का "खास" पत्रकार निकला !
यही सच्चाई है और इस दुनिया मे सब कुछ बिकाऊ है ! अगर मैं नही बिक पता हूँ तो इसमे उस पत्रकार कि क्या दोष है ?
क्या मैं भी कुंठित हो गया हूँ ?

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

आज के पत्रकार : कुछ सवाल

बात सन १९८९ कि होगी ! मैं +२ मे था ! अखबार मे एक खबर आयी कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित रोजगार मे 'चिकित्सा' प्रथम स्थान पर और 'पत्रकारिता' दुसरे स्थान पर ! मेरे मानस पटल पर यह बात अंकित हो गयी ! 'पत्रकारों' को मैं एक विशेष नज़र से देखता था ! पर भ्रम टूटते ज्यादा देर नही लगी ! दिल्ली के डाक्टर समाज को मरीजों को लुटते देखा था पर पत्रकार तो पुरे देश को ही दावं पर लगा देते हैं ! अधिकतर तो वैसे लोग है - जिनके अन्दर 'कलक्टर ' नही बन पाने कि कुंठा है ! और उनके अन्दर कि यह 'कुंठा' हमारे लिए 'अभिशाप' बन जाती है ! 'कलम' कि ताकत को आतंकवादी कि राइफल के बराबर खड़ा कर दिए हैं !

अभी हाल मे ही एक 'पत्रकार' महोदय का 'ब्लोग' पढ़ रह था ! अजीब लगा ! देखा कैसे वोह कहानी के द्वारा 'बिहारी' समाज को गाली दे रहे हैं ! उनको 'बिहारीयों' को गाली देने मे एक अलग आनंद मिलता है ! खुद को 'दिल्ली वाला' कहलाने मे और राजदीप जैसे "बिहार विरोधीओं' के साथ फोटो खिंचवाने के उनकी आदर बढती है !

"चक दे इंडिया' मे और भी बहुत कुछ है ! मुस्लिम के अलावा और भी बहुत सारे संदेश हैं ! पर पत्रकारों को 'कबीर खान' का मुस्लिम होना जैसे एक तोहफा है - जिसमे वोह अपना एक 'पाठक-वर्ग' और 'बाज़ार' देखते हैं ! और पत्रकारों का यह बाज़ार , भारत को बाँट रहा है !

इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो और 'बरबाद' है ! बिल्कुल सडे और गले हुये टमाटर कि तरह ! एक दो को छोड़ - किसी मे भी मेरिट नही है ! 'बिहारी पत्रकारों' के बीच एक होड़ है - कौन कितना बिहार को और गंदा दिखा सकता है ! आप एक सवाल puchhiye तो - खुद को समाज का आईना बताने लगेंगे ! यह कौन सा आईना है जिसमे सिर्फ और सिर्फ गंदी तस्वीर दिखाई देती है ! अब मेरे जैसे कई लोग हैं जिनको लगने लगा है कि यह आईना ही गन्दा है ! और गंदे आईने मे कौन अपनी तस्वीर dekhana पसंद करेगा ? शायद मैं तो नही !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Thursday, August 23, 2007

गुनाहों का देवता !

आज "संजू बाबा" रिहा हो गए ! एक प्रसंशक होने के नाते मुझे अच्छा लगा ! यूं कहिये बहुत अच्छा लगा ! लेकिन सजा बहुत है ! वोह खुद करीब १४ साल पहले १६ महीने के लिए सजा काट चुके हैं ! बिहार के बेगुसराय और पूर्वांचल के गाजीपुर मे आपको कई ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनके पास बिना लाईसेन्स का ही हथियार होता है ! यह पकडे नही जाते ! पकडे भी गए तो थानेदार साहब कुछ ले देकर मामला राफ़ साफ कर देते हैं !
लेकिन यहाँ मामला कुछ अजीब है ! किसी ने कहा कि अपराधी तो संसद मे भी है ! कोई कुछ क्यों नही कर लेता है ! खैर , मेरी क्या awakaat कुछ बोलने कि !
लेकिन एक सवाल आप सभी लोगों से - "सजा का क्या मतलब है ? " सजा क्यों दीं जाती है ? क्या , समाज को संदेश दी जाती है ? या मुजरिम को सुधरने का एक मौका ? अगर समाज को संदेश देना है तब तो ठीक है ! लेकिन अगर मुजरिम को सुधारना ही "सजा" का मकसद है और अगर मुजरिम खुद से सुधर जाये और समाज उसको अपना ले फिर भी सजा जरुरी है , क्या ?
कुछ लोग कहेंगे कि Bomb बिस्फोट मे मरे हुये लोगों के परिवार के आंसू कौन पोछेगा ?
मेरे भी कुछ सवाल है :-
#। घटिया राजनीति के कारन मेरा बड़ा भाई अब तक बेरोजगार है ! ४० बरस कि उमर मे वोह हर रोज मरता है !
#। पूर्वांचल और बिहार मे बाढ़ आ गया ! केंद्र के नेता , हाथ पर हाथ धरे बैठे हुये हैं ! क्या इन नेताओं को सजा नही मिलनी चाहिऐ !
#। जब देश के सभी राज्यों के लोगों को घर मे ही नौकरी मिल रही है और हम लोग "second citizen" बनने को मजबूर हैं ! इस घुटन के लिए किसको सजा मिलनी चाहिऐ !
कई सवाल हैं - मज़बूरी वाले 'जबाब' भी हैं ! तब ही तो ज़िन्दगी चल रही है या हम जिंदगी काट रहे हैं ! जैसे , एक मुजरिम अपनी 'सजा' काटता है !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Wednesday, August 22, 2007

चौंकिए मत ! यह "पटना" है !


Drishya aabhaar : www.patnadaily.com

यह विहंगम दृश्य देश कि आर्थिक राजधानी मुम्बई कि नही है और ना ही दलालों का शहर दिल्ली कि है ! यह पटना है ! विश्वास नही होता है , ना ! विश्वास क्यों होगा ? इसी बिहार के दुसरे रुप को बेच कर आपके परिवार के लिए दो वक़्त कि रोती आती है ! कौन सा गुनाह किया था "बिहार" ने आपको जनम देकर ? आये थे दिल्ली मे कलक्टर बनने के लिए ! अब "दलाल" बन गए हैं ! हाथ मे "कलम" क्या मिला , छुरी समझ कर चलाने लगे ? "



रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, August 21, 2007

कडी मेहनत और सुकून : श्री अजीत चौहान

श्री नारायण मुर्ति से "Infosys अवार्ड ऑफ़ Excellence" लेते हुये श्री अजीत चौहान

अजीत को मैं WBF के द्वारा ही जानता हूँ ! फिर बाद मे पता चला कि वोह खुद का भी एक ग्रुप चलाते हैं और कई ब्लोग्स भी लिखते हैं ! वोह अक्सर मेरे mails कि तारीफ किया करते थे ! सो नजदीकी और दोस्ती होनी वाजिब थी ! 'प्रशंशा और पैसा सबको अछ्छा लगता है " !
पिछली दीपावली मे जब हम सभी पटना मे थे मुझे अजीत जीं से मुलाक़ात का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! उनके साथ थे , चंदन जीं , अतुल और मयंक जीं ! काफी लोग मेरे प्रति थोडा पूर्वाग्रह से ग्रसित थे लेकिन मुलाक़ात के बाद हम सभी एक अछ्छे दोस्त बन गए ! फिर अगले दिन मुझे वापस नौएडा आना था पर अजीत जीं के निमंत्रण को अस्वीकार नही कर पाया और उनके द्वारा आयोजीत कैरीअर सेमिनार मे पिछली seat पर बैठ कर सभी का भाषण सुना ! बहुत अछ्छा लगा !

अजीत जीं मे असीम उर्जा है ! साथ ही साथ धारातल पर रह कर खुद अपने पैरों पर खडे एक सच्चे बिहारी हैं ! हाल मे ही इनके team द्वारा गौरवशाली बिहार नमक किताब छापी गयी थी ! अजीत जीं के दोस्त और मेरे हमउम्र श्री चंदन जीं का काफी योगदान था इस किताब को प्रकाशित कराने मे ! इन सबों मे प्रथम और एक मजबूत कडी हैं - अजीत जीं !
मिडिया के द्वारा बिहार कि प्रतिष्ठा को धूमिल कराने कि कोशिश को भी इन सबों ने भरपूर विरोध किया ! आज जब बिहार बाढ़ से पीड़ित हैं , अजीत जीं और चंदन जीं काफी कुछ कर रहे हैं ! चंदन जीं तो मुज़फ़्फ़रपुर मे बाढ़ पीडितों के बीच ही हैं ! समाज के लिए कुछ करना है पर वोह समाज हित के लिए हो - खुद के प्रचार और आत्म संतुस्थी के लिए नही ! अजीत जीं का यही मूल-मंत्र है !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Sunday, August 19, 2007

वाह रे हिंदुस्तान - लेफ्ट - लेफ्ट -लेफ्ट !

हमको त राजनीति समझ मे नही आता है ! लेकिन बहुत कुछ बुझाता है ! शरद भाई कह रहे थे - " मुखिया जीं , बुझ के ही क्या कर लीजिये गा ? " १९९० से लेकर आज तक पुरा हिंदुस्तान "लेफ्ट-राईट-लेफ्ट " कर रहा है !अब आदमी का क्या ठिकाना , एक तो आदमी ऊपर से सरदार जीं , हो गया सब घोर मट्ठा :( , बर्दास्त नही हुआ , मुह से कुछ निकल गया , फिर पुरा हिंदुस्तान "लेफ्ट-राईट-लेफ्ट " करने लगा :) न्यूज़ चैनल वाला सब को त कोई धंधा है नही , कल ऐसा कर दिया कि लगा कि अब सरकार गिरा त तब गिरा ! राजदीप भाई त इतना चिल्लाते हैं कि पूछो मत ! रविश भाई को सब जगह "कविता" ही नज़र आता है - "खिड़की बंध है त दरवाजा खुला है " !
अरे भाई लोग हमसे पूछिये - ई सब को बिहारी भाषा मे कहते हैं - " मुह-फुल्लौवल" ! १२ बज रहा होगा सरदार जीं कहीँ भाषण दे दिए कि लेफ्ट क्या कबाड़ लेगा , हमारा ! फिर क्या ? ब्रिन्दा कारत ने प्रकाश कारत को रात भर सोने नही दिया होगा -" कैसा मरद हो जीं ? " ! बस अगला दिन सुबह "मरद" जाग गया और पुरा देश -"लेफ्ट-राईट-लेफ्ट " करने लगा ! जिसको नही करने का मन था उसको ई न्यूज़ चैनल वाला सब करा दिया ! सबसे दुःखी "सीताराम" भैया नज़र आये :( , जुबान कुछ और , और चेहरा कुछ और ही कह रहा था ! हमको पता था - बेचारे का दरद !
देखिए महाराज , सभी जगह बाढ़ आया हुआ है - कई राज्य इसके चपेट मे हैं लेकिन किसी कोई चिन्ता नही - किसी न्यूज़ चैनल वाला ने बाढ़ का सही कवरेज नही किया ! मूड त उखदा हुआ है ! लेकिन कर भी क्या सकते हैं ?
ठीक हुआ कि आप लोग विदेश चले गए ! कोई स्कोप हो तो बतायीयेगा ! दूर्र ,,,,,,, यहाँ कौन रहेगा !
"लेफ्ट-राईट-लेफ्ट"
१-२-३
"लेफ्ट-राईट-लेफ्ट"
१-२-३


रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Saturday, August 18, 2007

हिम्मत, नेक इरादे और साहस कि अंतिम बिदाई



पत्नी के प्रेम में 22 वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद गया जिले में गहलौर पहाड़ को काटकर गिराने वाले दशरथ मांझी (78) का लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार की शाम निधन हो गया। लिम्का बुक आफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में शामिल बाबा मांझी एम्स में भर्ती थे। उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ होगी। ऐसा निर्देश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिया है। मूलरूप से गया जिले के अतरी के रहने वाले दशरथ मांझी गांव में ही रहकर खेती करते थे। करीब 47 वर्ष पूर्व एक दिन उनकी पत्नी खेत में उनके लिए खाना लेकर आ रही थी कि गांव के निकट गहलौर पहाड़ पर उनका पैर फिसल गया और कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गई। पत्नी की मौत के लिए पहाड़ को जिम्मेवार मानते हुए उन्होंने पहाड़ को गिराने की ठान ली। करीब 22 साल तक वह छेनी हथौड़ी लेकर इस काम में जुटे रहे और आखिरकार 1982 में सफल हुए। वह गया से पैदल चलकर दिल्ली आए। इस अद्भुत कार्य के लिए 1999 में उनका नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हुआ था। पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक वह लंबे समय से बीमार थे। कई अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी स्वस्थ न होने पर उन्हें दिल्ली लाया गया। वह विगत 24 जुलाई से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे, जहां शुक्रवार शाम उनका निधन हो गया। उनके इलाज का खर्च राज्य सरकार वहन कर रही थी। पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से उनका शव गया लाया जा रहा है। मांझी की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ होगी। उन्होंने पहाड़ को काटकर जिस सड़क का निर्माण किया था अब उसे सरकार बनाएगी। कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिल चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि वे कर्मठता की जीवंत मिसाल थे। गहलौर पहाड़ी को काटकर जिस सड़क का निर्माण उन्होंने किया उस पथ का नाम दशरथ मांझी पथ कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने गांव में एक अस्पताल भी शुरू किया था। उक्त अस्पताल का नाम भी अब दशरथ मांझी अस्पताल होगा। भू-राजस्व मंत्री रामनाथ ठाकुर ने भी दशरथ मांझी के निधन पर शोक जताया है।



रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Friday, August 17, 2007

करियेगा खेला ?


करिएगा खेला ? धर लिए , उनका कालर ! अब , केने जईयेगा भाई जीं ? बुझौवल बुझाते हैं ? सोझ रहिए ना ता पब्लिक कपार फाड़ देगा ! अंग्रेज़ी पढाते हैं ? जहाँ के आप विद्यार्थी है नु, हमनी वोही जा के प्रिंसिपल है ! रे मुन्ना वा , पप्पुआ , गुद्दुआ - लो ता रे , लाओ - लाठी , ई ससुरा जिनगी नासे हुये है ! हे , बाबा , हेने आईये , हेने ! देखिए ई का बतिया रहा है ! तनी , आप ही पुछीये येकरा से ! का दो - का दो बक रहा है ! ये चाची - चाची हो , तनी येकर jhontawa धरे रहिए ता ! रे गुद्दुआ - गुद्दुआ , केने गया रे ? सुन हेने ! तनी बुलाओ तो पुत्तन चाचा के - उहे येकरा ठीक करेंगे ! आवे दे , पुत्तन चाचा के - उहे तोर बुखार छुद्वायेंगे !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Thursday, August 16, 2007

श्रद्घांजलि : श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा

१४ अगस्त २००७ को इनका देहांत हो गया ! बचपन से घर-परिवार मे राजनीतिक लोगों का आना जाना था ! बहुत सुना था इनके बारे मे ! बडे बुजुर्ग कहते हैं - जब यह बोलती थी तो लोकसभा रूक सा जाता था ! किसी ने इनको लोकसभा कि बुलबुल कहा तो किसी ने हंटरवार्ली ! भाषण ऐसा कि सुनाने वाला मंत्रमुग्ध हो जाये ! जिस किसी ने इनका भाषण सुना वोह हमेशा के लिए इनका दीवाना हो गया ! हिम्मत इतना कि कॉंग्रेस मे रहते हुये भी इंदिरा गाँधी के खिलाफ आवाज़ कि बिगुल उठा देना ! दिल्ली के राजनीतिक गलिआरों मे इनके कदम इतने मजबूती से बढ़ने लगे थे कि देश के नेताओं को इनके कदम को कटना पड़ा और लगातार ४ बार लोकसभा को प्रतिनिधित्व कराने बाद दुबारा नही जा सकीं ! किसी ने कहा -आप राज्यसभा से क्यों नही संसद चली जाती हैं ? कई प्रस्ताव आये , सबको ठुकरा दिया ! "बाढ़-मोकामा" कि बेटी को अपने स्वाभिमान पर बहुत ही गर्व था ! जीवन के अन्तिम क्षण तक "जनता-जनार्दन" के बीच जाने से नही हिचकती थीं !
वोह कहती हैं :-
तुम हो जहाँ , बेशक वहाँ ऊंचाई है
मगर सागर कि कोख मे
गहरी खाई है
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, August 14, 2007

धन्नो का देश प्रेम !

यह एक लोक गीत है जिसको मैंने पहली दफा अपने एक सीनियर श्री राजन श्रीवास्तव जीं से सुना था !

यहाँ पति और पत्नी के बीच तकरार चल रह है ! पत्नी अपने पति से "सोना के अंगूठी " का आग्रह कर रही है और पति उसको प्रेम्वार्तालाप मे ही कुछ और ला कर देने कि बात कह रहा है !

लीजिये :-

पत्नी : अरे , ये हो पिया , हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !
पति : अरे , ना हो ! धन्नो , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !

पत्नी : अरे , ना हो पिया , हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !
पति : अरे , ना हो धन्नो , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !
लाली रे चुनरिया , पहिन के चलबू तू डगरिया !
लागी स्वर्ग से उतरल हो कठपुतली !
से , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !

( अब थक हार के पत्नी कुछ और बोलती है , जरा ध्यान से सुनिये )

पत्नी : 'ननदी' के अंगूरी के सोना , कईलक हमारा मन पर 'टोना' !
पिया , सोना ना मंगाइब त घर मे कलह पडी !
हो , पिया ! हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !


( पत्नी के इस तर्क के सामने अब पति थक हार जाता है और जो बोलता है , उसे देखिए )

पति : अरे धन्नो , सोनवा विदेश जाई , जा के "मिग -जेट " लाई !
तब तहरा " सिन्दूर के रक्षा " होई !
से , धन्नो , तोहके मंगाइब 'पटना' के चुनरी !

( पति कि बात सुन के पत्नी भव भिह्वाल हो जाती है , सोना विदेश जाएगा , तब तो हमारे देश मे "मिग-जेट" आएगा और "सिन्दूर कि रक्षा" होगी ! अब सुनिये , कितनी सरलता से पत्नी बोलती है )

पत्नी : अरे , हाँ हो पिया , हमके मंगा द पटना के चुनरी !!!

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दोस्तों ! काल्ह १५ अगस्त है ! १९६२ , १९६५ , १९७१ और कारगिल मे कई माँ ने अपने सपूत खोये होंगे , कई बहन के भाई कि कलाई राखी के बिना ही चिता पर सजी होगी ! कितने बच्चे अपने पिता को खोये होंगे !कई औरतों के सुहाग सुने हुये होंगे !

प्रदीप जीं कि कविता याद आ रही है :-

ए मेरे वतन के लोगों
जरा , आंख मे भर लो पानी
शहीद हुये हैं , उनकी

जरा याद करो कुर्बानी

जय हिंद ! जय हिंद ! जय हिंद !

रंजन ऋतुराज सिंह ,नौएडा

Monday, August 13, 2007

रविश जीं का ब्लोग !

NDTV के रिपोर्टर के रुप मे हम सभी ने इनको देखा और परखा है ! बिहार के चम्पारण जिला के रहने वाले हैं ! इस साल इनको रामनाथ गोएंका अवार्ड भी मिला है ! दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास मे स्नाकोत्तर हैं ! जनसत्ता के माध्यम से पत्रकारिता शुरू कि ! खुद भी सावर्ण होते हुये भी सावर्ण को गरिआते देर नही लगती है ! सामाजिक न्याय मे विस्वास रखते हैं ! मंडल - कमंडल के दौर से गुजरे हैं ! अल्प्संखयोंकों के प्रति खास स्नेह हैं ! मेरी नज़र मे पत्रकार नही होते तो शायद लालू -राबरी के मंत्रिमंडल मे होते !
भाषा पर इनकी जबर्दस्त पकड़ है ! अगर आप ने इनकी रिपोर्टिंग देखी हो तो मेरा यह मनाना है कि मेरी तरह आप भी मंत्रमुग्ध हो गए होंगे ! लीजिये , इनकी एक रचना
पिता- कितना मिलता है?
पुत्र- काम चल जाता है।
पिता- कितना?
पुत्र- खर्चा इतना कि बचता नहीं।
पिता- कितना?
पुत्र- स्कूल, दवा और किराया।
पिता- कितना?
पुत्र- साल भर से नया कपड़ा नहीं खरीदे।
पिता- कितना?
पुत्र- बैंक में एक रुपया नहीं।
पिता- कितना?
पुत्र- दिल्ली में रहना महंगा है।
पिता- कितना?
पुत्र- टैक्स भी भरना है।
पिता- कितना?
पुत्र- आपके पास कुछ है?
पिता- है। चाहिए।
पुत्र- कितना?
पिता- उतना तो नहीं।
पुत्र- कितना?
पिता- रिटायरमेंट के बाद मकान में लग गया।
पुत्र- कितना?
पिता-चुप...
पुत्र- चुप
नोट-( कहानी ख़त्म नहीं हुई। खत्म नहीं हो सकती। चलती रहेगी। बस आप बता दीजिए। किस किस घर में इस सवाल का जवाब बाप और बेटे ने ईमानदारी से दिया है)

रंजन ऋतुराज सिंह
, नौएडा

Sunday, August 12, 2007

स्टेटस सिम्बल पार्ट-३

५ . लव मैरिज :- रात मे बाबु जीं को फ़ोन लगा रहा था , लग ही नही रहा था , काफी परेशान हो गया ! देर रात फिर लगाया तो लग गया ! पूछा -कहां थे ? फ़ोन नही लग रह था ! बाबु जीं बोले - शर्मा जीं के बेटी के बियाह मे गया था , सिग्नल नही धर रह होगा ! अचानक मेरे सामने शर्मा अंकल का चेहरा आ गया और उनकी बेटी का भी ! हाल फिलहाल तक तो वोह +२ मे थी , और अब शादी भी हो गयी , मेरे चहरे पर एक आशीर्वाद से भरपूर मुस्कान आ गयी ! स्वभावानुसार , मैंने बाबु जीं पूछा - लडके वाले कहां के हैं ? बाबु जीं बोले - वोह लोग मराठी हैं ! मैं चौंका और पुछा " मराठी हैं ? मतलब ? " , बाबु जीं बोले - वहीँ मुम्बई मे नौकरी लगी थी , लड़का भी साथ मे ही काम करता था ! हम बोले - " ओह , हो , तो यह बात है " !
यह बात कोई नई नही है ! पहले भी होता आया है ! लेकिन आज कल फैशन मे है ! मैं ही क्यों , आप भी जरा अपने आस पास देख लीजिये - हर साल आपको यह संख्या बढाती नज़र आवेगी ! कसूर किसी का नही है ! बदलाव यह आया है कि - परिवार और समाज दोनो ने इसको स्वीकारा है !
अच्छा , एक बात ! मान लीजिये कि आप भी "मुखिया जीं " कि तरह "अर्रंज मैरिज " किये हैं ! और आपका एक दोस्त " लव मैरिज " ! आपका दोस्त आपके घर आता है अपनी बीबी के साथ ! उन दोनो को देख आपके मन मे क्या विचार आते हैं ?
मैं तो हीन भावना से ग्रसित हो जाता हूँ ! खुद को एक कमजोर देहाती पाता हूँ ! जिसको " I love You " बोलने कि हिम्मत नही , उससे आप लव मैरिज कि आशा कैसे करते हैं !
क्रमशः

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Friday, August 10, 2007

स्टेटस सिम्बल पार्ट-२

४। लोन :- गाँव का दिन याद है ! बैंक का जीप आते ही गाँव के कई बाबा और चाचा लोग खेत मे छुप जाते थे , जो पकडा जाता था , उसके क़मर ( डांड ) मे रस्सी बाँध के सिपाही ले जाते थे ! बाद मे हमे पता चलता था कि बैंक का कर्जा नही लौटाया है ! कर्ज़ लेकर घी पीने वालों को बहुत ही बुरी नज़र से हम सभी देखते थे ! बाबा कहते हैं कि कई जमींदार कर्ज़ के चक्कर मे रोड़ पर आ गए ! अब सब कुछ उलटा हो गया है ! आज कल कोई अपना तनखाह नही बताता है लेकिन यह जरूर बताता है कि उसने ३० लाख लोन लेकर दिल्ली मे एक फ़्लैट लिया है ! आप समझदार हैं तो समझ लीजिये कि "लोन" ही उसकी हैशियत है ! क्या गाडी क्या मकान , सब कुछ लोन पर मिल जायेगा , एश कीजिये और अपना भाव उंचा रखिये ! "यही पल है , कर ले तू , पुरी आरजू " !

राकेश वा के घर गए थे ! घर कि सजावट देख दंग रह गए ! क्या नही था घर मे ! बस ३० के उमर मे सब कुछ था उसके पास ! हम ता दीन हीन कि तरह थोडा संकुचाये हुये उसके बडे वाले सोफा कि बड़ी seat पर ठीक से बैठ भी नही पाए ! हम ता सिर्फ अपना थूक पर थूक घोंट रहे थे ! घर लौते वक़्त रास्ता भर हम डिप्रेशन मे थे ! मुझे क्या मालूम कि एक लोन सामाजिक स्तर मे ईतना बदलाव ला सकता है !
कई रात नींद नही आये ! बीबी सलाह दी कि हम लोग भी कुछ लोन ले ही लें ! कब तक इस डिप्रेशन के शिकार रहेंगे ! बहुत सोच समझ के लोन से एक कार ले ही लिया ! फिर हम सभी राकेश वा के घर गए ! इस बार उसके सोफा मे धम्म से जा कर बैठे ! राकेश वा कि बीबी भी हमको एक आदर भरी नज़र से देख रही थी , जो पिछली बार नही था ! मेरी बीबी और बच्चे भी अब कोन्फिदेंस मे बात चीत कर रहे थे ! ऐसा लगा कि सब कुछ बदल गया है ! ससुराल के चचेरे - ममरे साला-साली भी अब हमको दू पैसा का आदमी समझाने लगे !

क्रमशः

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Thursday, August 9, 2007

सानिया , तुम कमाल हो !


सानीया , तुम कमाल हो ! कल तुमने मार्टिना हिंगिस को हराया ! मजा आ गया ! अब २-४ दिनों मे ही तुम्हारी रंकिंग आयेगी और पुरे भारत को यह आशा है कि बस कुछ ही दिनों मे तुम टॉप -२० और फिर टॉप १० मे आ जाऊगी ! यह लिखना बहुत ही आसान है ! पर हमे यह पता है कि इस मुकाम के लिए तुम्हे एक कडी मेहनत और ऊपर वाले कि आशीर्वाद को अपनाया है ! खुदा तुम्हे दुनिया कि हर एक ख़ुशी दे !
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अछ्छा , एक बात -आप लोगों से ! सानिया को देख , आपको कभी यह एह्शाश हुआ है कि वोह उत्तर भारतीय है या दक्षिण भारतीय ! वो , हिंदु है या मुस्लिम ? वो बिहारी है या telagu ! नही , कभी नही यह एहसास आया और ऐसा होगा भी नही !
लेकिन हम सभी हर वक़्त ऐसा नही सोचते हैं !


ranJan rituraJ sinh , NOIDA

Wednesday, August 8, 2007

दोहरा मापदंड

भारत का संविधान क्या कहता है ? सभी "नागरिक " समान है ! क्या यह सचमुच सही है ? हमको त नही लगता है ! दुःख होता है , ना ? स्वाभाविक है !
राहुल "दहेज़ प्रथा" के खिलाफ बहुत बोलता है ! उसको यह बिल्कुल पसंद नही है ! जिस कम्पनी ने उसको पहली दफा नौकरी पर रखा , राहुल उसको छोड़ कर अब दुसरी कम्पनी मे चला गया ! हम पूछे कि पहली वाली कम्पनी के "प्रोजेक्ट" का क्या हुआ ? थोडा झल्ला के बोला - " ठेका थोड़े ही लिए हुये हैं ? " ! हम चुप रह गए ! क्या बोलते ? बड़ा कम्पनी मे बहुत पैसा कमाता है ! यही राहुल है जो मेल मे नेता लोग को जीं भर के गाली देता है ! उसको सभी बेईमान लगते हैं ! खुद को शायद कभी नही देखा है !
रामाखेलावान को अपना नाम पसंद नही है ! कहता है , नाम से देहाती होने कि बू आती है ! सो वोह खुद को "R.K।" कहलवाना ज्यादा पसंद करता है ! कूदते -फान्दते वोह अब किसी कम्पनी मे बड़ा मेनेजर भी बन गया है ! अचानक "बिहार" प्रेम जाग उठा है ! कहता है - "बिहार को जात-पात खा गया है ! " बात तो बहुत ही बढ़िया कहता है ! कहता है "class" कि बात कीजिये - "caste " कि नही ! फिर कहता है - गंदे लोग जिसके गंजी से बदबू आती है -वोह "caste" कि बात करते हैं ! फिर हम बोले - आप जिस class कि बात करते हैं - वोह भी तो एक caste है ! मुझे जबाब दिया - मुखिया जीं , आपके धोती से गाँव कि बदबू आती है ! आप IIT से पढे लिखे नही हो ! आप आईटी सेक्टर मे काम नही करते हो ! कभी आईआईएम का मुह नही देखा , फिर कैसे - आप मेरे ड्राइंग रूम मे बैठ सकते हैं ! हम कहे - आप ठीक ही कह रहे हैं , बिहार को जात पात ही ले डूबा ! अब हम चलते हैं !
मनोहर पण्डे हमसे पूछ बैठे , आप कौन caste के हैं ? हम कहे , अब लीजिये - मनोहर दा , virtual बिहारी दुनिया का बच्चा बच्चा मेरा जात और class दोनो जानता है , आपको नही पता ! मनोहर पांडे बोले - तब त आप कहीँ के नही रहिएगा , ना त जात के और ना ही class के , future class का है ! class को ज्वाइन कर लीजिये !
मेरा मूड खराब हो गया , मन ही मन सोचे - ई मनोहरवा बहुत भचर भचर करता है , ईसका कोई उपाय करना ही होगा !
ranJan rituraJ sinh , नौएडा

प्रमोद भाई जीं का ब्लोग

शायद वोह मुम्बई मे बसें हुये हैं ! शायद वोह भी एक पत्रकार है ! शायद वोह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हैं ! कुछ भी हो लेकिन लिखते एकदम मस्त हैं !
वोह लिखते हैं :-
" जन्‍मस्‍थान के प्रति प्रेम के स्‍तर पर भी आदमी और कुत्‍ते के बीच कोई मुक़ाबला नहीं। कुत्‍ते का अपनी ज़मीन से जो ममत्‍वपूर्ण लगाव है, आदमी क्‍या उसके घुटने तक भी पहुंचने की सोच सकता है? नहीं सोच सकता. बिलासपुर या पटना के किसी कुत्‍ते के बारे में आपने कभी सुना है कि वह अपनी धरती छोड़कर पैरिस या न्‍यूऑर्क जा बसा? नहीं सुना होगा. क्‍योंकि कुत्‍ते जिस ज़मीन की नमक खाते हैं, उसी का कर्ज़ अदा करते-करते इस नाशवान जीवन का होम कर देते हैं. जबकि आदमी इस नाशवान जीवन का होम करने उसे कितने सैकड़ा व हज़ार किलोमीटर दूर, कहां-कहां नहीं ले जाता? मुहावरे में भी आदमी को ही नमक हराम बताया गया है. कुत्‍ते को नमक हराम बताने की घटना प्रकाश में आई है? नहीं, अभी तक अंधेरे में है.
ranJan rituraJ sinh , NOIDA

Tuesday, August 7, 2007

अभागा बिहार ?

बिहार मे बाढ़ है ! कौन सी नयी बात है ? हर साल आता है , इस साल भी आया है ! हाँ ! पिछला बार आईएस गौतम गोस्वामी धराये थे ! इस बार नितीश जीं मारीशस गए थे ! नितीश जीं को क्यों दोष दें ? कौन सा गुनाह उन्होने किया है ? नाव पलट रही है , सैकड़ों कि तादाद मे लोग मर रहे हैं , गांव के गांव जलमग्न हो गए ! १, अन्ने मार्ग मे अब प्रदेश का सिपाही नही , एक नया राजा आया है !

"राजा" को क्यों दोष दें ? जैसी प्रजा वैसी राजा ! या फिर जैसी राजा वैसी प्रजा ! दरिद्रनारायण के भूखे पेट से निकली "आह" बहुत जहरीली होती है ! "कफ़न" से लिपटी लाश क्या "आह" निकालेगी ?

लालू जीं ने बिहार के राजा को "नेरो" कह ही दिया तो कौन सा पाप कर दिया ? लोकतांत्रिक वयवस्था मे जब नौकरशाह राजा बनेगा और जनप्रतिनिधि सड़क पर ख़ाक छानेगा फिर उस राज्य का अर्थ ही महत्वहीन है !

अजीब राज्य है :( अभिमन्यु कि तरह यहाँ का हर बालक राजनीति अपनी माँ के कोख से ही सीख के आता है ! लेकिन चक्रव्य्हू तो जनता जनार्दन बनाती है , ना ?

क्या लालू , क्या नितीश और क्या पासवान और क्या मुखिया जीं ? किसको दोष दें ? महाराज , हमारा जीन ही ऐसा है ! क्या हिंदु और क्या मुसलमान ? क्या भूमिहार और क्या गोवार ? सब के सब , वैसे ही हैं !

किसी ने पूछा " अकेला , नितीश क्या करेगा ? " क्या नही कर सकता है ? थोडा सोचना होगा ! मुख्य सचिव कि भूमिका से बदल कर मुख्यमंत्री बनाना होगा ! क्या मज़बूरी है - नौकरशाह के इशारे पर चलाने कि ? क्या मज़बूरी है सभी जगह सिर्फ और सिर्फ जगह "नालंदा" को ठुसने कि ! " नेता" जात का नही जमात का होता है ! अब आप सिर्फ नालंदा के मुखिया नही हैं , पुरा बिहार आपका है !
हुज़ूर , माई - बाप , जनता कराह रही है ! कुछ कीजिये ! यही वक़्त है कुछ कराने का ! गाडी को "नालंदा" से थोडा घुमा के "दरभंगा" "मधुबनी " के तरफ भी ! बहुत दुआ मिलेगा !

मेरी दुआ कबूल कीजिये !

रंजन रितुराज सिंह , नौएडा

Friday, August 3, 2007

कुछ यादें "दालान" की !

अपने गांव वाले "दालान" कि याद आ रही है ! बहुत बच्चा थे त "दालान" मे रखी हुयी कुर्सीयों को रेलगाड़ी बना कर खेलते थे ! बड़ा मजा आता था ! शाम को दादी , भुन्जा दे देती थी और हम लोग गमछी या पाकिट मे भुन्जा भर लेते थे , मकई और चना का भुन्जा घोंसार से आ जाता था ! "चाचा " टाईप आइटम लोग भुन्जा और "पोठिया मछली" खाता था !

थोडा बड़ा हुये त गरमी के दिन मे ही गांव जाना होता था , सो दोपहर को हम सभी भाई बहन लोग "दालान" मे इकट्ठा हो कर ,"वीर कुंवर सिंह" वाला नाटक खेलते थे ! खूब मजा आता था !
गरमी के शाम को बाबा और गोतीया / पट्टीदार के बडे बुजुर्ग सभी "दालान" के सामने खटिया और कुर्सी बिछा कर पुरा ईलाका का राजनीति बतियाते थे ! साढे सात बजे प्रादेशिक समाचार होता था , फिर कुछ लोग जो तनी ज्यादा अदवांस होता था वोह बीबीसी सुनाता था ! सबके घर मे देल्ही वाला "संतोष" रेडियो होता था ! और अन्दर यानी "दालान" के अन्दर चाचा टाईप आइटम लोग ताश मे busy होता था - २९ वाला खेल , जिसमे गुलाम का सबसे ज्यादा प्वाइंट होता है ! हम लोग का भी जीं ललचाता था कि देखें कैसे २९ या ताश खेला जाता है ! हिम्मत नही होती थी उस वक्त दालान के अन्दर जाने कि , फिर भी कभी कभी चले जाते थे , कभी यह बोल कर कि "लालटेन कि जरुरत है - चप्पल भुला गयील बा " तो कभी यह कह कर कि "चाची , बुला रही है " ! ताश जब पुराना हो गया तो चाचा लोग ऊसको फेंक देते थे , और उस फेंके हुये ताश से अगले दिन हम लोग खेल सीखने का कोशिश करते थे ! गांव मे और भी "दालान" होते थे ! कहीँ - कहीँ "दम-मरो दम" का प्रोग्राम होता था !
थोडा और बड़ा हुये त , दालान मे गरमी के दिन मे एक खटिया और उस पर सफ़ेद जजीम और मसनद लेकर , दोपहर मे चाचा के आल्मिराह से "मनोहर कहानियाँ " निकल कर खूब आराम से पढ़ते थे ! खास कर प्रेम अपराध विशेषांक ! बहुत गरमी हुआ त "पूरब वाला " जंगला ( खिड़की) खोल देते थे ! वहाँ से जो ठण्डा हवा आती थी उसके आगे आज का "एसी " फेल है !
दालान का बहुत महत्व है ! घर से थोडा हट के बनाया जाता है ताकी आप "नारी" श्राप से कुछ दूर ही रहे ! अब ता जमाना बदल गया है - दालान कि जगह "ड्राइंग रूम" ले लिया है , बड़ा वाला रेडिओ कि जगह टीवी और कम्पूटर ! दोस्तों कि जगह बीबी कि बकवास :(
मुह मारी अइसन ज़िंदगी के !
ranJan rituraJ sinh , NOIDA