Tuesday, July 31, 2007

कि हमारा गांव ही मे रहे के विचार बा !!


कोठिया अमीरिया देखी देखी
भर गयील जियरा हमार
कि हमारा गांव ही मे रहे के विचार बा

नन्ही बूटी ... रहनी त
बकरी चरईनी
नहर मे ...गमछी से
मछरी मुअईनी

हमारा निमन लागे
टुटही मडईया
कि बगले मे पकवा ईनार बा
कि हमारा गांव ही मे रहे के विचार बा
कि हमारा गांव ही मे रहे के विचार बा

सावन मे खेसारी के सतुआ बना के
भौजो खिआवे ली भैया के मना के
बभना  के बनिया - भैया कहे ला
कि कायथा के राजपूत - यार हो
कि हमारा गांव ही मे रहे के विचार बा
कि हमारा गांव ही मे रहे के विचार बा

- एक लोक गीत

करीब १५ साल पहले मैंने ये गीत अपने एक सीनियर से सुना था ! शहर कि बड़ी - बड़ी ईमारत और धनी  लोगों के बीच गीतकार अपनी पहचान खो बैठा है और अपने गांव को याद कर रहा है !

- रंजन ऋतुराज - नॉएडा

Sunday, July 29, 2007

सावन .....

सावन आ गया ! कल पहला सोमवारी है ! बाबा को जल चढाना है ! "बोल बम" का नारा गूंज उठेगा ! पर सावन के झूले भी सजेंगे ! हम दिल्ली के प्रगति मैदान वाले झूले कि बात नही कर रहे  और ना ही कृतिम रुप से बनाए हुये मुम्बई के "एस्सेल वर्ल्ड" की ! मैं तो बात कर रह हूँ , मेरे गांव मे आम के पेड के नीचे लगे हुये झूले की  ! बादल को देख देख सभी झुला पर झुलेंगे ! मोहन भी होगा ! 
सावन मे पीहर / नैहर से सवानिया भी आता है ! कोई तो आएगा , बाबुल का संदेसा लाएगा ! बरस बीत गए , भैया से मिले हुये ! सावन मे ही तो राखी आएगा ! इस बार राखी मे भैया जरुर आएगा ! सफ़ेद कुरता मे सज धज के आएगा ! सावन के हर पल को इंतेज़ार करती हुई अपने पिया के आंगन मे झूले पर झूलती हुयी इस नयी नवेली दुल्हन को कौन समझाए -  "भैया इस बार भी नही आएगा "!
बरस बीत गए ! फ़ोन पर बस बहना कि आवाज सुनायी देती है ,भाभी कि चुडियों कि खन्खार सुने हुये कई महिने हो गए ! अब तो मुनिया भी स्कूल जाने लगी होगी , भैया बोले कि पम्प सेट ख़रीदा गया है ! माँ कह रही थी , भैया इस बार डाक बम्ब बन के कांवर लेकर जायेंगे , मेरे प्रमोशन के लिए ऊन्होने पिछले साल मन्नत रखी थी ! और सावन निकल आये .......

रंजन ऋतुराज / नॉएडा 

दही कि ज़ंग !

दिलली वाले कल वाला अखबार जरुर देखे होंगे ! Times of India का फुल पेज पर निकला हुआ "मदर डेयरी " का ADVERTISEMENT , साथ ही साथ "नेस्त्ले " वाले का भी ! मेरा ता माथा घूम गया ! हम कहे कि दही मे ईतना प्रोफित ?? क्या दिल्ली वाले हर सुबह दही ही खाते हैं ? अच्छा चलिये , आप कभी सोचे होंगे कि दही का ऐसा प्रचार ? भाई , मैंने तो कभी नही सोचा था ! मैंने देखा जरुर था , पटना के कदम कुँआ मे "राय जीं" माथा पर दही का नदिया लिए हुये "दही-दही " बोलते हुये जाते थे ! हम सभी पीछे से कहते "आये दही - रात कहॉ गयी ?" !
अब दही "राय जीं " के नदिया से निकल आईआईएम वालों और BIO टेक्नोलॉजी वालों के पास जा पहुंची है ! पर एतना दिमाग लगाने पर भी वोह वाली दही कि बात कहॉ , कहा जाता है कि दही की क्वालिटी चेक करनी हो तो दही को नदिया से निकाल के , ऊसको हाथ मे ले कर दीवार पर जोर से मारिये , अगर दही दीवार से चिपक गया ता समझिये कि वही असली दही है ! अब मेरा आईआईएम वाला दोस्त समझाने लगा कि ऐसा दही हैल्थ के लिए अछ्छा नही है ! हम बोले , "बेटा , ऐसा ही दही खा कर हमारे ८० साल के बाबा रैलेह साइकिल चला के ब्लॉक जाते हैं " !
अब ईसमे आईआईएम वाले का क्या दोष , अन्गु - मंगू - चंगू सभी के सभी शहर मे ही रहना चाहते हैं ! कोई कह रह था कि २००८ तक भारत कि आधी आबादी शहर मे रहेगी और इस आबादी कि ८० % जनता middle क्लास होगी ! तभी तो यह रिटेल बूम आया है :) Line मे लग के रिलायंस फ्रेश मे ४ दिन बासी सब्जी को पैकेट मे उठा कर लाने का एक अलग ही मजा है , अब यही मजा लेना त सब कुछ ठीक है !
मुखिया जीं भी अजीब है :( बेवजह टेंशन ले लेते हैं !

ranJan rituraJ sinh , NOIDA

Saturday, July 28, 2007

आपका स्वागत है !

२० साल हो गए होंगे मुझे देवनागिरी लिपि मे कोई लेख लिखे हुये ! इस लिए गलतियों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !
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वक़्त बदल रहा है ! भाग दौड़ कि इस जिंदगी मे "खुद" के लिए कुछ पल चुराने कि यह कोशिश "दालान " आप पाठक वर्ग पर बहुत हद तक निर्भर करता है ! संजीव भैया ( सिंगापुर ) , आशीष मिश्र भैया ( अमेरिका) इत्यादी बहुत लोगों कि यह फरमाईश थी कि "मुखिया जी" के विभिन्न मेल्स जो पिछले ४ साल मे बहुत सारे याहू ग्रुप्स पर आये , वोह सब अब एक जगह होने चाहिये ! और साथ मे कुछ नया ताज़ा भी ! फिर चलिये , एक "आम - आदमी" कि भाषा मे , दिल कि कुछ बातें !
यह ब्लोग सब कुछ सहेगा और लिखेगा ! "मुखिया जी " देलही विश्वविद्यालय " से पास और सिविल परीक्षा से मात्र २-४ अंकों से फेल और मज़बूरी मे बने कोई पत्रकार नही हैं और ना ही किसी बहुराष्ट्रिये कम्पनी के सलाहकार , जिसकी नज़र मे सब कुछ एक बाज़ार है ! और ना ही कोई नौकरशाह जो अब खुद को राजा समझ बैठा है !
यहाँ दिल कि बातें होंगी ! बरसात कि फुहार होगी ! जाडे कि ठंडक होगी ! घर कि यादें ताजा होंगी ! लेकिन साथ ही साथ शिल्पा शेट्टी कि पतली क़मर होगी , लल्लू कि साम्राज्यवाद और नितीश कि समाजवाद ! राजमाता सानिया कि राजनीति और सानिया कि टेनिस ! बुश कि डॉलर होगी और फ्रेंच कि किस भी ! जात पात होगा और क्लास स्ट्रगल भी ! बाबा का हाथी भी होगा और अब बचा हुआ उसका सिक्कड़ ! रैलेय कि साइकिल होगी और लुधिअना कि लिमोजिने भी !
चलिये कुछ लिखता हूँ ! हाँ , याद रहे आपके कमेंट्स के इंतज़ार मुझे जरुर होंगे !

ranJan rituraJ sinh , NOIDA

हेल्लो वर्ल्ड

हेल्लो वर्ल्ड !