Tuesday, May 17, 2016

प्रेम और प्रकृति - एक कहानी ...इंटरवल के बाद !


दोनों गहरी नींद में थे और करीब दो बजे प्रकृति की नींद खुली - उसे जोर की भूख लगी - उसने प्रेम को जगाया ! प्रेम थोड़ी देर और सोने के मूड में थे ! उठ उस बीएड पर बैठ गया और बोला - खुद ही कुछ खाने का ऑर्डर कर दो ! प्रकृति ने कहा - नहीं , तुम ऑर्डर करो ! प्रेम ने इंटरकॉम लगाया और 'चिकेन फ्राईड राईस' बोला ! प्रकृति बोली - यहाँ पेरिस में भी चाईनीज खाओगे ? प्रेम मुस्कुरा दिया ! 
चिकेन फ़्राइड राईस आ चूका था ! प्रकृति को जोरो की भूख - उसने चम्मच को प्लेट की तरफ बढ़ाया ! प्रेम ने रोक दिया ! प्रेम खुद से चम्मच में चिकेन राईस डाला और प्रकृति के मुह में डालने लगा ! प्रकृति ने आँखें बंद कर मुह खोल ली ! प्रेम उसको निहारने लगा ! प्रकृति का पहला कौर ख़त्म हुआ और बोली - कब तक यूँ ही प्रेम करोगे ? प्रेम मुस्कुरा दिया और बोला - सातों जनम ! प्रकृति हंस दी और बोली - और ..कल ही लड़ने लगोगे ! प्रेम बोला - वो लड़ने का हक भी तुम्ही ने दिया है ! प्रकृति मुस्कुरा दी और बोली - कोई हक वक मैंने नहीं दिया है , अपनी सीमा में रहो और फिलहाल मुझे अपने चम्मच से खिलाओ - बहुत बढ़िया लग रहा है ...बहुत ही बढ़िया :) प्रेम पूछा - चिकेन फ्राइड राईस बढ़िया लग रहा है या मेरे खिलाने का अंदाज़ ? प्रकृति ने अपना हाथ अपने सर में रखते हुए बोला - हे भगवान् , तुम तो बिलकुल डम्ब हो ..! प्रेम बोला - यह बात तुम्हे पहले दिन ही समझ लेनी थी की मै कितना डम्ब हूँ ! प्रकृति बोली - तब मै भी डम्ब थी ! दोनों जोर से हंसने लगे ! प्रेम ने पानी का ग्लास प्रकृति की ओर बढ़ा दिया !
प्रेम बोला - जानती हो ? प्रकृति बोली - क्या ? प्रेम बोला - लडके बिना प्यार के भी यह जता देते हैं की वो प्यार कर रहे हैं और लड़कियाँ प्यार कर के भी ऐसे बोलेंगी जैसे वो प्यार नहीं कर रही ! प्रकृति बोली - यह किस बात पर ऐसा बोले ? प्रेम बोला - बिलकुल डम्ब हो ! फिर दोनों जोर से हंसने लगे !
प्रेम बोला - एक सिगरेट जला लूँ ? प्रकृति बोली - कब छोड़ेगे , सिगरेट ? प्रेम बोला - पता नहीं ! प्रेम सिगरेट के साथ कमरे के बालकोनी में चला गया ! प्रकृति भी पीछे - उसने प्रेम को पीछे से जोर से पकड़ लिया ! प्रकृति ने पूछा - तुम मुझे कब कब मिस करते हो ? प्रेम बोला - हर वक़्त , जब पास नहीं होती ! प्रकृति बोली - सच बोलो ..न ! प्रेम बोला - सच ही बोल रहा हूँ ! प्रकृति बोली - जोर से कब कब मिस करते हो ? प्रेम बोला - चार बार , सुबह जागने के समय - , तुम्हारे नाश्ते के समय , तुम्हारा लंच टाईम और रात सोने के समय ! प्रकृति बोली - बस ..चार बार ? प्रेम बोला - अभी बोला ..हर वक़्त मिस करता हूँ तो तुमको विश्वास नहीं हुआ , फिर जोर से चार बार की बात की तो ..अब शिकायत ...तुम भी ..न ...गजब हो :) प्रेम ने प्रकृति को जोर से पकड़ किस किया ! प्रकृति ने बोला - आज शाम हम कहाँ चलेंगे ? प्रेम बोला - सेन नदी के किनारे एक नौका है  उसपर एक रेस्त्रां है - वहीँ डिनर करेंगे ! प्रकृति बोली - सच ? प्रेम मुस्कुराते हुए बोला - हाँ ..बिलकुल सच ...तुम्हारी तरह सच :) प्रकृति ने प्रेम को जोर से पकड़ लिया और पूछा - कब चलेंगे ? प्रेम बोला - शाम सात बजे और मैंने टेबल रिजर्व कर रखा है ! प्रकृति बोली - तब तक हम क्या करेंगे , अभी बहुत समय है ! प्रेम बोला - एक नींद और मारेंगे :) प्रकृति बोली - अब और नहीं सोना .:)
दोनों एक दूसरे की आँखों में हैं  ! दोनों बिलकुल खोये हुए  ! दोनों वर्तमान में हैं  ! दोनों एक ही पल में हैं  ! 
प्रेम और प्रकृति थे - प्रकृति से उपजा प्रेम .....

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तुम्हें मुझमें क्या अच्छा लगता है - प्रकृति बिछावन पर लेटे हुए पूछी । बग़ल में ही प्रेम भी था - दोनो एक ही तकिया पर सर रखे छत को देख रहे थे । 
प्रेम बोला - तुम गुलाबी हो । प्रकृति बोली - और ? प्रेम बोला - बहुत कुछ । प्रकृति बोली - जैसे ? 
प्रेम बोला - ज्ञान , शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिसपर मैंने तुमसे चर्चा की हो और तुम्हें उसका ज्ञान न हो , ये बात बहुत अच्छी लगती है । प्रकृति बोली - और ? प्रेम बोला - तुम्हारे चेहरे की चमक , क़ुदरती है , भव्यता है , दुर्गापूजा  के अष्टमी के दिन वाले मूर्ति की भव्यता , भव्यता मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी है । प्रकृति बोली - और ? प्रेम बोला - मासूम हो । प्रकृति बोली - रुको मत , बोलते जाओ । प्रेम बोला - बेहद ख़ूबसूरत हो , मैंने कभी गुलाबी रंग वाली इंडियन नहीं देखी , कोई भी पुरुष तुम्हारे साथ ख़ुद के ग़ुरूर को नहीं रोक नहीं पाएगा । प्रेम चुप हो गया । प्रकृति भी थोड़ी देर चुप हो गयी फिर बोली - रुको मत ...बोलते जाओ । 
प्रेम बोला - तुम्हारी ख़ूबसूरती में अबोधता है - एक चुटकी नटखट अन्दाज़ के साथ :) कभी कभी सोचता हूँ - ईश्वर ने किसी चीज़ की कमी नहीं की है - दिमाग़ भी बेहतरीन है । सबसे अच्छी बात तुम एक सच हो :)) प्रकृति बोली - मतलब ? प्रेम बोला - मालूम नहीं , कई बातें महसूस की जाती है लेकिन बोली नहीं जाती लेकिन एक बात आज तक समझ में नहीं आयी । प्रकृति बोली - क्या ? प्रेम बोला - तुमसे ज़्यादा नेचुरल इंसान नहीं देखा , पर तुम्हें फ़ेक चीज़ें कैसे आकर्षित करती हैं ? प्रकृति बोली - जैसी मैं हूँ वैसा ही किसी ग़ैर को समझती हूँ - शायद वही धोखा है । प्रेम बोला - हां , हो सकता है । 
प्रेम ने प्रकृति को एक चुम्बन किया और बोला - आज मैं तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ :) प्रकृति बोली - परम आनंद ...:)) प्रेम बोला - तुम्हारी ख़ूबसूरती के कई रूप हैं , मुझे एक रूप बेहद पसंद - जब तुम चाय के मग को दोनो हाथों से पकड़ मुझे देखती हो - बेहद लुभाती हो । 
प्रकृति हंस दी और बोली - तुम भी न जाने क्या क्या ग़ौर करते हो और क्या क्या बोलते हो :) प्रेम बोला - ठीक है ...अब नहीं बोलूँगा । प्रकृति ने अपनी भौं तानी और बोली - अरे ...मैंने कब ऐसा कहा । प्रेम हंस दिया । प्रकृति बाथरूम के तरफ़ निकल पड़ी । प्रेम चिल्लाया - कौन सी चाय लोगी , दार्जिलिंग या आसाम ? प्रकृति बाथरूम से ही ज़ोर से बोली - मुझे चाय नहीं पीना है । फिर बुदबुदाने लगी - जब देखो ...चाय ...एकदम देहाती । प्रेम सुन लिया और ज़ोर से हँसने लगा और बोला - तुम्हारे मुँह से देहाती सुनना बढ़िया लगता है - एक ऐसे इंसान को देहाती बोलती हो जो दुनिया का सारा कोना छान रखा  हो । प्रकृति बोली - चाँद पर भी चले जाओगे , रहोगे देहाती । प्रेम और ज़ोर से हँसने लगा । 
चाय की इलेक्ट्रिक केटली ऑन थी । पानी और  प्रकृति दोनो उबल रहे थे - प्रेम ने दोनो मग में चाय रख दी - टीवी ऑन कर दिया । प्रकृति स्नान कर के बाहर निकली ...
प्रेम हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ - गुलाबी रंग के बाथरॉब में गुलाबी गुलाब की सुगंध और ख़ूबसूरती के साथ भिंगे बाल ....
प्रेम बोला - अद्भुत ...प्रेम बोला - तुम्हे पता है ...दुनिया की सबसे शक्तिशाली चीज़ ? प्रकृति बोली - शायद एक पुरुष का दिमाग ! प्रेम बोला - नहीं , एक अत्यंत खुबसूरत स्त्री ! प्रकृति बोली - कैसे ? प्रेम बोला - एक बेहद शक्तिशाली दिमाग भी एक बेहद खुबसूरत स्त्री के सामने काम करना बंद कर देता है ..:)) दोनों जोर से हंसने लगे !
प्रकृति सचमुच बेहद खुबसूरत दिख रही थी - नहाने के बाद उसकी खूबसूरती और निखर से सुगन्धित हो रही थी ! प्रेम बस निहार रहा था - चुप था ...बस देखे ही जा रहा था ! मन ही मन सोच रहा था - खूबसूरती तो बस महसूस करने की चीज़ है ...शब्दों में बयाँ बेईमानी है ...पर अगर बयां नहीं हो फिर भी दिक्कत है ...वो मेरी आँखों में ही खुद क्यों नहीं अपने पसंद के शब्द चुन लेती है ...मेरे शब्द पुष्प बन चुके हैं ...कौन सा पुष्प उसे अर्पित करूँ ...मेरे वश का नहीं ...
यही कुछ सोचते सोचते उसने चाय के मग को ...प्रकृति की तरफ बढ़ा दिया ...इस आशा के साथ की ...प्रकृति अपनी खूबसूरती प्रेम की आँखों में देख सके ...
प्रकृति ने अपने अंदाज़ में ...चाय के मग को दोनों हाथों से पकड़ बोला - सच्चे आशिक हो ..मेरी पसंद की चाय तक बनाना सिख लिए ...
प्रेम मुस्कुरा दिया ...प्रकृति हंस दी ...फिर बड़े आराम से प्रकृति ने पूछा - तुमने चिकेन फ़्राईड राईस ही क्यों मंगवाया ? प्रेम बेहद सहज अंदाज में बोल गया - मेनू में सबसे सस्ता वही था ...और हंस दिया ! दोनों फिर हंस दिए ! 
दोनों हंसते बहुत है  ...शायद यही है  उनका प्यार ....:))

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प्रेम ने प्रकृति को उस कमरे में रखे ख़ुद के सामने के सोफे पर बैठने को कहा ! प्रकृति बोली - अरे , बालों को तो सुलझा लेने दो ! प्रेम बोला - रहने दो , ऐसी ही बेहद खुबसूरत दिख रही हो ! प्रकृति मुस्कुरा दी ! प्रेम बोला - मुझे बहुत कहना है ! प्रकृति बोली - इतनी तो बातें करते हैं , फिर भी क्या बाकी रहता है , कहने को ? प्रेम बोला - बहुत कुछ :) 
प्रेम बोला - मुझे भी दर्द होता है , तुम्हारी बातों ! प्रकृति बोली - मैंने ऐसा क्या कहा जिससे तुम्हे दर्द होता है ! प्रकृति हलके मजाक अंदाज़ में थी ! प्रेम बोला - मजाक मत करो , मुझे जो कुछ कहना हो , कह लो , जितना गाली देना है , दे लो लेकिन मेरे अन्दर तुम्हारे लिए जो भावना है , उसपर कभी सवाल मत उठाना ! प्रकृति बोली - सच बोलूं ? प्रेमा बोला - बोलो ! प्रकृति बोली - अगर सवाल ही होता तो शायद मै इस जगह इस वक़्त तुम्हारे साथ नहीं होती !
प्रेम बोला - तुम मुझसे बहुत ज्यादा प्योर हो , कहो तो मै सामने के एफिल टावर से ऊँची आवाज़ से कह दूँ , लेकिन हमेशा याद रखना की मै एक पुरुष हूँ , तुम्हारी तरह प्योर बना तो ख़त्म हो जाऊंगा ! प्रकृति मुस्कुरा दी और बोली - लेकिन तुमने खुद में जान लगा दी , मेरे ह्रदय को पता है , मेरी जुबान पर मत जाओ ! प्रेम बोला - तुम भी मेरी जुबान पर मत जाओ ! प्रकृति बोली - पास आओ , किस करना है :) प्रेम बोला - तुम पास आओ ! प्रकृति बोली - फिर रहने दो , वहीँ सामने बैठे रहो ! प्रेम हंस दिया - ओखल में जैसे अदरक को कुंचते हैं , ठीक वैसे ही तुम मेरे अहंकार को कुंच देती हो ! प्रकृति जोर जोर से हंसने लगी ! प्रेम सामने था - प्रकृति ने उसे बेहतरीन किस किया ! प्रेम बोला - तुम्हे किस करने में हिचकिचाहट नहीं होती ? प्रकृति बोली - तुम्हारे होठ इतने खुबसूरत है , खुद को रोक पाना मुश्किल है ! प्रेम को मजाक सुझा और बोला - क्या मेरे होठों को देख अन्य महिलाओं को भी ऐसा ही लगता होगा ? प्रकृति बोली - जाओ , सड़क पर खड़ा होकर पूछ लो !
प्रेम बोला - तुम्हे हमारी पहली मुलाकात याद है ? प्रकृति बोली - नहीं :) पर ये बताओ तुम्हे कभी मुझसे उब नहीं हुई ? प्रेम बोला - प्रेम समर्पण खोजता है - आत्मा और शरीर का , वह समर्पण मैंने देखा था उस मुलाकात में - अन्दर से बाहर तक का समर्पण ! प्रकृति बोली - शायद , तुम उस मुलाकात में तुम चारों तरफ से मुझे परास्त कर दिए थे , उस कॉफ़ी शॉप पर , तुम्हारे हाथ में सिगरेट और होठों पर कॉफ़ी - मै एकटक तुमको निहार रही थी ! प्रेम बोला - और तुम्हारा वह समर्पण मुझे हमेशा के लिए परास्त कर दिया :))
प्रेम बोला - सबसे मुश्किल है समर्पित अहंकार को फिर से जगाना । प्रकृति बोली - इसकी क्या ज़रूरत है , चुपचाप यहीं रहो - समर्पित :)) प्रेम बोला - पुरुष  अहंकार जिसे तुम महिलाएँ मेल ईगो कहती हो , अजीब होता है , शायद तीन जगह ही झुकता है । प्रकृति बोली - कहाँ - कहाँ ? प्रेम बोला - माँ के सामने , बेटी के सामने और तीसरी महिला जिससे वो बेपनाह मुहब्बत करता है , पर तीसरी जगह सबसे ज़्यादा ख़तरा रहता है । प्रकृति बोली - तुम ठीक हो ..न । प्रेम बोला - हां , मैं बिलकुल ठीक हूँ पर यह सवाल क्यों ? प्रकृति बोली - अजीब अजीब सी बातें कर रहे हो । प्रेम बोला - मन में यही सब चलता रहता है , कभी किसी स्त्री से इतना नज़दीक नहीं हुआ । प्रकृति बोली - मुझे भी देखना था , एक पुरुष कैसे डूब कर प्रेम करता है । प्रेम बोला - ओह , तुम बस देखने के लिए ही मुझे इतना डूबा दी । प्रकृति बोली - ओह माई गॉड , तुम हर बात पकड़ते हो , बहुत निगेटिव इंसान हो । प्रेम बोला - मेरे बारे में चार साल बाद पता चला ? प्रकृति - ओह नो , फिर तुम बात पकड़ लिए । 
प्रेम बोला - चलो कोई बात नहीं , हम एक दूसरे की बात नहीं पकड़ेंगे । प्रकृति बोली - नहीं नहीं , तुम मेरी बात को माईँड नहीं करोगे लेकिन तुमको कोई भी इजाज़त नहीं । 
प्रेम हंस दिया - जो हुक्म मेरे आका , बेवफ़ाई करो तो रो रो के जान दे देते हैं , वफ़ा करो तो रुला रुला कर जान ले लेते हैं - शायद इसी को मुहब्बत कहते हैं ...:)) 
प्रकृति मुस्कुरा दी । प्रेम सिगरेट और लाइटर के साथ बाल्कोनी में था - एफ़िल टावर को नीचे से ऊपर और ऊपर देखने लगा । शांत था । 
प्रकृति बेचैन हो गयी - वो प्रेम को देखने लगी ।
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प्रेम बालकोनी में खड़ा सिगरेट के धुएं के छल्ले बना रहा था ! प्रकृति वहीँ पास थी - शांत थी ! प्रकृति ने पूछा - तुम्हे मुझसे क्या मिला ? प्रेम थोडा हैरान हुआ फिर बोला - धैर्य , मैंने धैर्य रखना सिखा ! प्रकृति बोली - और ? प्रेम बोला - प्रेम एक कल्पना होती है , उसे हकीकत में जिया ! प्रकृति बोली - और ? प्रेम बोला - सबसे बड़ी बात , एक औरत का मन देखा ! प्रकृति बोली - उस मन में क्या देखा ? प्रेम बोला - सच बोलूं ? प्रकृति बोली - ओफ़्कौर्से ! प्रेम मुस्कुरा दिया और बोला - उस मन में एक संदूक देखा ! प्रकृति बोली - फिर ? प्रेम बोला - उस संदूक में एक ताला था ! प्रकृति बोली - बोलते जाओ ! प्रेम बोला - उस ताले को पल भर में खोल दिया , लेकिन उस संदूक में सबकुछ था ! प्रकृति बोली - सबकुछ मतलब ? प्रेम जोर से हंसने लगा ! प्रकृति बोली - हंसो मत , मै अभी सीरियस हूँ ! प्रेम बोला - उस संदूक में ढेर सारे सांप बिच्छू थे - और उनके बीच एक मोती था ! प्रकृति बोली - तुम्हे सांप बिच्छू ने काटा नहीं ? प्रेम बोला - बहुत काटा ..बहुत ..कभी मेरे संदूक को खोलोगी तब पता चलेगा ! प्रकृति बोली - मुझे तुम्हारा संदूक नहीं खोलना , फिलहाल तुम मेरे संदूक के बारे में बोलो ! प्रेम बोला - जिद थी , इस बार किसी सांप बिच्छु से नहीं डरना है ! प्रकृति बोली - फिर ? प्रेम बोला - क्या फिर ? अब तुम सामने हो :)
प्रकृति बोली - हिम्मत वाले हो ! प्रेम बोला - प्रेम ने हिम्मत दे दिया !
प्रेम बोला - प्रेम की कल्पना कितनी आसान होती है और प्रेम करना कितना मुश्किल होता है ! प्रकृति मुस्कुरा दी ! प्रेम बोला - तुम्हे मुझसे क्या मिला ? प्रकृति हंस दी ! प्रेम बोला - जो भी है सच बोलो ! प्रकृति हंस दी और बालकोनी से कमरे की तरफ मुड़ते हुए बोली - मुझे कुछ नहीं मिला :) प्रेम बोला - यह जबाब मेरी आशा के अनुरूप था ! प्रकृति कमरे के सोफे पर बैठ जोर जोर से हंसने लगी ! प्रेम चुप था ! प्रकृति बोली - बाबु के मेल इगो को ठेस पहुंची क्या ? प्रेम बोली - अब इगो बचा ही कहाँ है जो ठेस पहुंचेगी ! प्रकृति और जोर से हंसने लगी - पास आओ तुम्हारा इगो जिन्दा कर देती हूँ ! प्रेम बोला - कैसे ? प्रकृति बोली - पहले पास तो आओ ! प्रेम प्रकृति के पास चला गया ! प्रकृति बोली - तुमने सब कुछ पवित्र दिया , सकरात्मक या नकरात्मक ! प्रेम बोला - मतलब ! प्रकृति बोली - तुम्हारे प्रेम ने ताकत दी है , मेरा ये हँसता हुआ चेहरा दिया है , मुझे चहकने को खुला आसमां दिया है ! प्रेम बोला - तो क्या इस बात को लॉक कर दिया जाए ? प्रकृति - हाँ बाबु ...लॉक कर दो और अपने मन के समुन्दर में फेंक दो ! प्रेम बोला - मन का समुन्दर तो स्त्री के पास होता है , हम पुरुष तो सूखे तालाब की तरह होते हैं , जिसमे तुम जैसी रूपवती स्त्री अपने बारिश से उसको लबालब भर देती हो ! प्रकृति बोली - समुन्दर में मिल जाओ ! प्रेम बोला - दुबारा ? फिर दोनों जोर से हंसने लगे !
प्रेम बोला - तुम बेहद खुबसूरत हो ! प्रकृति बोली - तुम्हारे आँखों में मुहब्बत का चश्मा लगा है इसलिए मेरी खूबसूरती दिख रही है , जिस दिन यह चश्मा उतर जाएगा , तुम्हारे शब्द गायब हो जायेंगे ! प्रेम थोडा उदास हो गया और बोला - प्लीज़ , ऐसा मत बोलो , क्या मेरे लिए जब तुम्हारा आकर्षण ख़त्म हो जाएगा - क्या उस दिन मै गलत इंसान हो जाऊंगा ! प्रकृति बोली - शायद कभी नहीं , तुम मेरी जिंदगी में रहो या नहीं रहो लेकिन तुम मेरे लिए हमेशा एक बेहद खुबसूरत दिल के राजकुमार ही रहोगे - जो मुझसे खूब डरता है और जिससे मै बिलकुल नहीं डरती ! प्रकृति फिर जोर से हंसने लगी ! प्रेम बोला - डरना गुनाह है , क्या ? प्रकृति बोली - यह एक प्रेमिका के सर पर प्रेमी द्वारा पहनाया हुआ ताज है ! प्रेम बोला - डर वो भी ताज के रूप में - वाह रे फिलोसोफी , तुम इतनी बड़ी कब हो गयी ? प्रकृति बोली - मतलब ? प्रेम बोला - कुछ नहीं !
घडी में पांच बजने वाले थे ! प्रकृति अपने मेकअप के सामान के साथ और बोली - कल रात फिर तुमने मेरी बैग में कुछ खोजा है - सारा सामान अस्त व्यस्त है - तुम्हारी जासूसी की आदत गयी नहीं ! प्रेम बोला - अजीब इंसान हो , जिसके शरीर में कितने तिल हैं वो बता सकता हूँ लेकिन उसका बैग नहीं टटोल सकता ! प्रकृति बोली - गलत आदत ! प्रेम बोला - हद हाल है , बाई द वे - बैग में मुझे मिलेगा क्या ? प्रकृति बोली - जैसे चुपके से मेरे मन को टटोलते हो वैसे सब कुछ देखने की आदत है ! प्रेम बोला - हाँ , वही सांप बिच्छु वाला मन पर मोती मेरे पास है ! प्रकृति ने बिछावन पर पड़े तकिये को उठा प्रेम पर चला दिया ! प्रेम जोर जोर से हंसने लगा फिर बोला - कल रात जब मै सो गया गया था तो मेरे मोबाईल में क्या खोज रही थी ? प्रकृति बोली - मैंने तुम्हारा मोबाइल टच भी नहीं किया - वो बस फ़ालतू का अलार्म बजने लगा तो मैंने अलार्म बंद कर दिया - मै तुम्हारी तरह घटिया , चिप और देहाती नहीं हूँ , दूसरों का बैग टटोलने वाला ! प्रेम हंसने लगा - घटिया , चिप और देहाती ...कुछ नए एडजेक्टीव जुड़ने चाहिए , वैसे अंग्रेजी भी चलेगा , वैसे मुझे गाली बढ़िया लगती है ! प्रकृति बोली - तुम्हे क्या नहीं पसंद ? प्रेम सीरियस हो गया ! प्रकृति अपने आँखों में आईलाइनर लगाने लगी ! प्रेम उसके पीछे खड़ा हो गया - जोर से पकड़ लिया और धीरे से बोला - मुझे इग्नोर होना नहीं पसंद !
प्रकृति की आँखें भर गयी ...आईलाइनर के संग भरी आँखें ...धीरे से बोली ...तुमने मुझे कभी इग्नोर नहीं किया है ...हमेशा स्पेशल बना के रखे ...सारी ताकत वहीँ से मिली ...यही सुनना चाहते थे ..न ! दोनों बिल्कुल एक दुसरे से चिपके हुए थे ...इस बार जिस्म के बगैर ...दोनों की रूहें चहचहा रही थी ...बालकोनी से एफिल टावर कमरे के अन्दर तक झाँक रहा था ...

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सुनो ...मुझके झुमके बेहद पसंद है - प्रेम थोडा जोर से बोला - मैंने तुम्हारे बैग में देखा है ! प्रकृति बोली - तो ..? 'आज शाम तुम फिरोजी रंग वाली साड़ी और झुमके में डिनर के लिए चलोगी' - प्रेम अपने बैग से सूट को निकालते हुए बोला ! 'बहुत डिमांडिंग हो...तुम्हारा वश चले तो ....' - प्रकृति बोली !
प्रेम बोला - हाँ ..मेरा वश चले तो ..तुम्हे एक बेहतरीन महल में क़ैद कर के रखूं ...जहाँ एक परिंदा भी नहीं पहुंचे ...और तुम्हारा वश चले तो ? ' प्रकृति बोली - प्रेम , खूबसूरती , नजाकत , निगाहें , अपनी अदा ..सबसे बाँध और ढेर सारी बंदिशों में रख ...खुद आज़ाद हो जाऊं ! प्रेम बोला - बेहद ज़ालिम हो ! प्रकृति बोली - ऐसी ही हूँ , अब क्या करोगे ? कोई उपाय नहीं है तुम्हारे पास ! प्रेम बोला - मेरे अहंकार को चुनौती मत दो ! प्रकृति बोली - ओह ...वही अहंकार जो मेरे मेरे इशारे पर नाचता है ? प्रेम बोला - वो मेरा इश्क तेरे इशारे पर नाचता है ...मेरा अहंकार तो तुम्हारे कदमों में हमेशा के लिए समर्पित है :) प्रकृति बोली - प्रकृति खुश हुई ...वत्स ..बोलो ..क्या मांगते हो ? प्रेम बोला - "तुम" ! प्रकृति बोली - अजीब मर्द हो ..अब भी विश्वास नहीं की मै तुम्हारी हूँ ? प्रेम बोला - वो मर्द ही क्या जो औरत की जुबान पर भरोसा करे ! प्रकृति बोली - पास आओ ...तुम्हारे विशाल मस्तक को चूम लूँ ! प्रेम बोला - प्रेम में डूबा पुरुष एक ही स्त्री से प्रेम के सारे रस पाना चाहता है ...जब तुम मेरे फोरहेड को चूमती हो ..ऐसा लगता है जैसे तुम पूरी दुनिया की बुरी नज़र से बचा रही हो ! प्रकृति बोली - हाँ , जब तुम पास होते हो ...गजब की सुरक्षा लेकर आते हो ...बेफिक्र वाली ...ऐसी चीज़ें बहुत कम पुरुष कर पाते हैं ...!
प्रेम बोला - ठीक है , हर पुरुष से एक सी अपेक्षा रखना ...महिलाओं की मुर्खता है ...और यही ट्रैप है ! प्रकृति बोली - वार्डरोब से मेरा सैंडिल निकाल कर लाओ ! प्रेम हंसने लगा और बोला - एक पल में सारा घमंड और फिलोसोफी ख़त्म हो जाता है , जब तुम कुछ ऑर्डर के लहजे में बोलती हो ! दोनों जोर से हंसने लगे ! प्रेम बोला - पता है ...सबसे अच्छा क्या लगता है ? प्रकृति बोली - क्या ? प्रेम बोला - जब तुम मुझे बिलकुल ही भाव नहीं देती हो , अपनापन लगता है लेकिन कभी कभी अचानक से तुम्हारे सारे भाव खुद के लिए चाहने लगता हूँ ! प्रकृति बोली - ह्म्म्म....इश्क का बुखार ज्यादा चढ़ गया है ...इलाज़ करवाओ ! प्रेम बोला - कहाँ ? फिर दोनों हंसने लगे !

प्रेम ने पूछा - होटल लौट कर एअरपोर्ट जायेंगे या वहीँ डिनर से सीधे निकल जायेंगे ? प्रकृति बोली - वहीँ से सीधे निकल जायेंगे ! थोडा मूड भी ठीक रहेगा और शहर में टैक्सी से घुमने में मजा भी आएगा ! प्रेम बोला - ठीक है , मै होटल से चेकआउट कर लेता हूँ !

दोनों शाम की डिनर के लिए सजने लगे ! फिरोजी रंग की साड़ी में प्रकृति बेहद खुबसूरत दिख रही थी ! प्रेम ने भी ग्रे कलर का सूट पहन रखा था ! टैक्सी होटल के बाहर इंतज़ार कर रही थी ! दोनों कमरे से बाहर निकल लिफ्ट में आ चुके थे - लिफ्ट में लगे आईने में एक दूसरे को देख रहे थे ! प्रकृति बोली - तुम्हे दुनिया के किसी भी कोने में ले जाया जाए - वहीँ फिट बैठेगो ! प्रेम बोला - मतलब ? प्रकृति बोली - कुछ नहीं ! प्रेम बोला - अब मै भी तुम्हारी बातों को समझने का प्रयास नहीं करता ! प्रकृति बोली - वो तो मै तुम्हारे साथ पहले दिन से ही कर रही हूँ ! फिर दोनों हंसने लगे !

टैक्सी में थे ! दोनों के हाथ और उँगलियाँ एक दुसरे से उलझी और जकड़ी हुई थी ! प्रेम बोला - पेरिस से मन भर गया ! प्रकृति बोली - इतनी जल्दी ? प्रेम बोला - लेकिन तुम्हारे साथ से आज तक मन नहीं भरा ...तुम्हे मुझसे मिल / बात कर पहला एहसास क्या हुआ था ? प्रकृति बोली - जैसे कोई बचपन का दोस्त ...एक ही थाली में खाने वाला ...एक सुबह से शाम पल पल साथ रहने वाला ...शायद वहीँ इस मुहब्बत की जड़ें मजबूत हुई होंगी ! प्रेम बोला - वो देखो ...एक बाईक पर खुबसूरत जोड़ा ! प्रकृति बोली - जोड़े बहुत देखते हो ...! प्रेम बोला ...हाँ ...इंसान जिस भाव में होता है ...उन्ही चीज़ों पर ज्यादा गौर फरमाता है ...वैसे तुम्हारा कत्थक का नया शो कब होने वाला है ? प्रकृति बोली - तुम्हे याद नहीं ..कई बार तो बताया ! प्रेम बोला - सच में भूल गया ..एक बार और बता दो ! प्रकृति बोली - तुम आओगे ..न ! प्रेम बोला - हर बार आता हूँ ...बिलकुल पीछे वाले सीट पर बैठ ...तुमको मंत्रमुग्ध होकर नृत्य करते देखता हूँ ...खो जाता हूँ ...मै भी ज्वाइन कर लूँ ...तुम्हारे गुरु जी का क्लास ? प्रकृति बोली - रहने दो ...कथक कम सीखोगे ...मुझे डिस्टर्ब ज्यादा करोगे ...जितनी दूर हो ...उतना ही बढ़िया !

पेरिस की खुबसूरत नदी ...सेन का किनारा ! टैक्सी वाले ने गेट खोला ...दोनों किस भारतीय राजपरिवार के युवा दम्पति की मुद्रा में उतरे ! प्रेम ने पचास यूरो टिप्स में टैक्सी वाले को दिया और प्रकृति को एक किस किया ! प्रकृति बोली - तुमने उसे पचास यूरो दे डाला ? प्रेम बोला - हाँ , उसने जितनी बढ़िया ढंग से टैक्सी चलाई और जिस अंदाज़ से गेट खोल हमें उतरने को बोला ...उस एहसास की एक कीमत होती है ...!
प्रकृति बड़े गर्व भरे अंदाज़ से प्रेम को निहारने लगी और बोली - तुम सचमुच में प्रिंस हो ...ईश्वर से कामना करुँगी की तुम्हे ढेर सारे पैसों हों ! प्रेम मुस्कुरा दिया और बोला - आगे की ओर बढ़ें ...
इस बार किस की बारी ...प्रकृति की थी ...दोनों उन्मुक्त थे ....पेरिस की गगन में ...हंसो का जोड़ा ...!
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दोनों क्रूज़ पर आ गए थे ! डेक पर एक टेबल और दो चेयर उनके लिए रिजर्व था ! दो घंटों का सफ़र और डिनर ! सांझ ढलने को बेताब थी - पानी को छूती ठंडी हवा दोनों को छू रही थी ! प्रेम बोला - ये शाल बेहद खुबसूरत है ! प्रकृति बोली - ये मेरी नानी की है , तुम्हे पता है - वो अत्यंत खुबसूरत थीं ! प्रेम बोला - तुमसे भी ज्यादा ? प्रकृति बोली - हाँ , कभी उनकी तस्वीर दिखाउंगी ! प्रेम बोला - और ये नाक पर हर वक़्त तैनात गुस्सा ? प्रकृति मुस्कुराते हुए बोली - मेरी दादी का वरदान ! प्रेम बोला - तब तो मै तुम्हारी दादी की तस्वीर देखना ज्यादा पसंद करूँगा ! प्रकृति हंसाने लगी और बोली - मै इन्डियन खाऊँगी ! प्रेम बोला - यहाँ कढी चावल नहीं मिलता है ! दोनों हंसने लगे !
प्रेम बोला - यहाँ आने के पहले बहुत सारी बातें सोच रखा था , ये बोलूँगा , वो बोलूँगा , सब भूल गया ! प्रकृति बोली - इतना सब कुछ तो सुना दिए , अब क्या रह गया था बोलने को ! प्रेम बोला - बहुत कुछ ! प्रकृति बोली - अब इस क्रूज़ का मजा लेने दो !
वाईन आ चूका था ! दोनों ने टोस्ट किया ! क्रूज़ पर बेहतरीन धुन बज रहा था - कोई फ़्रांसिसी ! डेक से दूर एक डांस फ्लोर था ! प्रकृति की नज़र उसी डांस फ्लोर पर थी ! प्रेम समझ गया - चले , क्या ? प्रकृति बोली - चलो ..न ! दोनों उठ खड़ा हुए ! क्रूज़ पर बैठे - अन्य लोग ताली बजाने लगे ! प्रेम ने एक बटलर को इशारा किया - अब डांस फ्लोर में म्यूजिक सिस्टम से हिंदी सिनेमा वक्त के गीत का धुन - आगे भी जाने न ..तू - बजने लगा ! प्रेम ने अपने हाथों में प्रकृति का हाथ ले कर बेहद हल्का वेस्टर्न डांस शुरू किया ! प्रकृति ने प्रेम के कानो में कहा - तुम्हे इतना बढ़िया डांस भी आता है , कभी बताया भी नहीं ! प्रेम बोला - सब कुछ बोला और बताया भी नहीं जाता - वक़्त मिले तो कर के दिखाया भी जाता है ! प्रकृति मुस्कुरा दी ! बैरे को इशारा की - बैरे ने उसक वाइन ग्लास उसके हाथ में बढ़ा दिया - एक घूँट में वो सारा वाईन ख़त्म कर दी !
दोनों उस गीत के धुन पर थिरकने लगे ! प्रकृति का पाँव लडखडाता तो वो प्रेम की बाहों में झूल जाती ! अब कुछ और भी जोड़े आ चुके थे ! अब दूसरे गीत हम्मा... बजने लगा ! कुछ और जोड़े उस डांस फ्लोर पर आ चुके थे ! प्रकृति अब थोडा थकने लगी थी - वो टेबल की ओर निकल पड़ी और बैठ गयी ! एक इटालियन लड़की आई और प्रेम के संग डांस करने लगी - प्रेम प्रकृति की तरफ देखने लगा - प्रकृति नदी की तरफ - क्रूज़ की रफ़्तार तेज़ हो गयी - प्रकृति को यह संगीत शोर सा लगने लगा !
प्रेम समझ गया - वापस टेबल पर आ गया ! प्रकृति अभी भी सेन नदी को देख रही थी ! प्रेम ने बोला - हेलो ! प्रकृति ने बोला - देखो ...यहाँ से पेरिस कितना खुबसूरत दिख रहा है ! प्रेम बोला - तुमसे कम ! प्रकृति चुप रही - वह लगातार नदी की तरफ मुह कर के देख रही थी ! प्रेम ने उसका हाथ माँगा ! प्रकृति ने कुछ जबाब नहीं दिया ! प्रेम बोला - बुरा लगा ? प्रकृति बोली - नहीं , कुछ बुरा नहीं लगा ! प्रेम बोला - झूठ मत बोलो ! प्रकृति चुप रही ! प्रेम बोला - बस ..इतना में इतना गुस्सा , तुमने कभी सोचा है ...मै कितना बर्दाश्त करता हूँ ! 
प्रकृति ने अपना हाथ बढ़ा दिया - प्रेम ने उसकी उनग्लिओं को जोर से पकड़ लिया ! डिनर आ चूका था ! दोनों को पता नहीं था - ये क्या डिनर है ? कुछ है - कह कर दोनों खाना शुरू कर दिए ! क्रूज़ अब तेज हो चूका था !


दो घंटे का सफ़र ख़त्म हो चूका था ! दोनों क्रूज़ से बाहर आ चुके थे - टैक्सीवाला ने उनको अभिवादन किया ! प्रेम मुस्कुराया ! अब दोनों टैक्सी पर सवार एअरपोर्ट की तरफ निकल चले थे ! प्रेम ने प्रकृति का हाथ पकड़ा ! उसे उसका हाथ पकड़ना बहुत अच्छा लगता था ! सड़क पर बेहतरीन गाडीयां ! सन्डे की रात ! प्रकृति ने पूछा - हर बार तुम्हारा फ्लाइट मेरे  बाद ही क्यों होता है ? प्रेम बोला - मै ऐसे ही टिकट कटाता हूँ ! प्रेम ने प्रकृति की हाथों को जोर से पकड़ लिया ! फिर दुसरे हाथ से एक अपने कोट के पौकेट से एक अंगूठी निकाला और चुपके से प्रकृति की उनग्लिओं में पहना दिया ! प्रकृति अवाक रह गयी ! प्रेम दूसरी तरफ देखने लगा और बोला - किसी भी प्रेम का सिर्फ और सिर्फ एक ही गवाह होना चाहिए - ईश्वर और मै उसी ईश्वर को गवाह मान तुमको हमेशा के लिए अपनाता हूँ ! प्रकृति चुप रह गयी ! बिलकुल चुप थी ! 

एअरपोर्ट आ चूका था ! टैक्सी का बिल और टैक्सीवाले को टिप्स देकर प्रेम आगे बढ़ा ! उसने प्रकृति को जोर से अपने बाहों में जकड़ा और बोला - जाओ ...! प्रकृति अन्दर की तरफ निकल पड़ी ! कुछ दूर चल फिर लौटी ! प्रेम को पकड़ कर एक किस की और बोली - मै तुम्हे बहुत तंग करती हूँ ...न ...मेरी किसी बात का बुरा मत मानना और  मुझे कभी छोड़ना मत ...वादा करो ! 
प्रेम चुप रहा ! प्रकृति उससे लिपटी रही ! प्रेम बोला - बगैर वादा कोई इतना लम्बा सफ़र नहीं तय करता है और मुझे तुमसे क्या वादा करना - वादा तो खुद से किया हूँ ....लेकिन अगर तुमने साथ छोड़ दिया तो ....
प्रकृति मुड गयी ...धीरे धीरे एक रानी की चाल में ....प्रेम उसे देख रहा था ...उसके पास उसका दिया कुछ नहीं था ...सिवाय प्रकृति की खुशबू के ....प्रकृति ने दूर से अपना हाथ हिलाया ....अंगूठी चमक रही थी ....प्रकृति प्रेम की नज़रों से ओझल हो रही थी ....




@RR

3 comments:

Bal Yogeshwar(Yogi) said...

अदभुत!
बहुत बारीकी से प्रेम की व्याख्या। दिलो दिमाग पर छा गया।

aprajita said...

बेहतरीन रचना...

Sumant krtiwariJamshedpur said...

Bahut badhiya