Sunday, October 5, 2014

चौराहा .....

कभी कभी जिन्दगी की राहों पर एक चौराहा नज़र आ जाता है - जहाँ से कई रास्ते निकलते हैं - कोई पूरब , कोई दक्षिण , कोई उत्तर , कोई दायें , कोई बाएं , कोई आरे तो कोई तिरछे - एक राह वो भी होती है - जिस से चल के आप उस चौराहे तक पहुँचते हैं - वही जो सीधी चली जाती है - शायद आप उस पर आप आगे नहीं बढ़ना चाहें ! चौराहे से किसी दूसरी दिशा में निकलने को बड़ी हिम्मत चाहिए - फिर आप क्या करते हैं - थके पाँव वही चौराहे के उस फुव्वारे के चबूतरे के पास थोड़ी देर रुक जाते हैं - आप अपना परिचय नहीं देते - लोग समझ जाते हैं - एक मुसाफिर है - प्यासा है ! फिर एक हल्की नींद में शाम हो जाती है - लोग मना करते हैं - रात के पहर नए अनजान रास्तों पर नहीं निकला करते - भोर का इंतज़ार कीजिए - एक रात यहीं रुक जाईये :))

@RR - 9 July 2013 

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