Wednesday, October 29, 2014

छठ - २०१४


प्लस टू के बाद से ही घर से दूर था - बीच में एक दो साल पटना ! दक्षिण भारत में पढ़ते वक़्त - नौकरी करते वक़्त .... छठ आया - गया - बहुत नहीं अखरता था ! पर जब से "नॉएडा" गया - छठ अखरने लगा ! कई वजहें थी - कई बिहारी परिवार का आस पास होना - और खुद के घर छठ नहीं होना - और टीवी पर सीधा प्रसारण - खुद को एकदम 'बिलल्ला' - जिसका कोई वजूद नहीं - वाला फीलिंग एकदम से जकड लेता था ! 
आज 'खरना' के दिन ..ऐसा लगता था ..पड़ोस में किसी के दरवाजे पर संकुचा के खड़े होना - फिर आज के परसाद को हाथों में लेकर वापस अपने घर - बस यही कुछ रह गया था ! फिर एक स्कूल के दोस्त और साथ में काम करने वाले - अभय के घर जाने लगा - वहां उनकी माँ छठ करती थी - वहीँ शरीक होने लगा - तिरहुत के महीन हैं - कभी यह फील नहीं होने दिए - मै गैर हूँ ! कई बार ऐसा लगा - जैसे मै खुद के परिवार में हूँ ! पर जब उनके यहाँ से अपने घर लौटता - बिहार / पटना / गाँव / दादी सब जोर से याद आने लगते ! थक हार कर यही लैपटॉप और ब्लॉग ! घर से दूर - यह पर्व बहुत अखर जाता है - खासकर संझिया अरग वाले दिन ! हर घर - परिवार में मनाया जाने वाला पर्व - जब खुद के घर में - किसी कारणवश नहीं मनाया जा रहा हो - बहुत अखरता है ! 
बड़ा ही शुद्ध और पवित्र पर्व है - और जहाँ शुद्धता और पवित्रता होती हैं वहीं भावनाओं का सैलाब भी आता है - शायद इसीलिए इस पर्व में हर एक बिहारी और खासकर मेरी पीढी - एकदम से भावनाओं में घुस गोते लगाना शुरू कर देती है !

आज संझिया अरग है ! पूरा का पूरा बिहार 'छठमय' हो चुका है ! 'आस्था' अपने चरम सीमा पर है ! क्या मिश्र जी तो क्या राम जी - क्या अफसर तो क्या चपरासी - क्या डाक्टर तो क्या कंपाऊंडर - क्या मालिक तो क्या नौकर - सबके सब एक साथ उस डूबते सूर्य को अपना प्रणाम कहेंगे / अरग देंगे और कल सुबह उस उगते सूरज को - हल्की ठण्ड में ! 
" ना कोई मंत्रोचारण होगा और ना ही कोई पंडित दक्षिणा मांगेगा " - ना कोई छुआछात होगा और ना खुद को बड़ा समझने का घमंड होगा ! ईश्वर / प्रकृती से इंसान का सीधा सपर्क होगा - यही शुद्धता है - यही पवित्रता है ! कोई वाया / मार्फ़त नहीं ! 
धर्म / जाति / उंच - नीच / गरीब - अमीर ...न जाने कितने बंधन एक साथ टूट जाते हैं - जिस समाज ने इन बंधनों को बनाया - ऐसी दीवारें खड़ी की - वही समाज आज के दिन इन दीवारों को तोड़ता है - समाज के सबसे निर्बल के यहाँ से आये 'सूप' में ही हम अपनी पवित्रता सौंप उस सूर्य को नमन करते है - जिसे शक्ती का सबसे बड़ा श्रोत कहा जाता है ! 
आज शाम अजब नज़ारा होगा - गाँव के पगडंडी पर - एक साथ सैकड़ों लोग - उत्साह / उल्लास / श्रधा / शुद्धता / पवित्रता / आस्था और न जाने कितनी अन्य भावनाओं को अपने अन्दर समाहित किये हुए - खाली पैर - महिलायें 'अलता' लगाए हुए :)) - और यह नज़ारा बिहार के हर एक गाँव का होगा - यह नज़ारा बिहार के हर एक शहर का होगा - हर एक मोहल्ला का होगा - हर एक इंसान का होगा ! 
हज़ारों साल से चली आ रही परंपरा को आप/हम क्षणभर में समाप्त नहीं कर सकते और जो संस्कार हमारे खून में है उसे हम आपको पलभर में समझा भी नहीं सकते ...:)) 
विश्व के कोने - कोने में फैले - समस्त बिहारीओं को ....विश्व के सबसे पवित्र पूजा की शुभकामनाएं ....!!! 

चिंकू , मिंकू , पप्पू , गुड्डू , पुत्तु , मिंकी , टिंकी ..सब के सब के तैयार हो चुके हैं ! मिंकी और टिंकी की मम्मी खूब जोर से ललका रिबन बाँध दी है ! पप्पू और गुड्डू बार बार उसका रिबन छू दे रहे हैं और वो रोने लग रही है ! कनिया चाची का सैंडिल भुला गया है - साड़ी के मैचिंग का सैन्डील था - बंगलौर से आया था ! झुल्ला भैया भी आये हैं ! पूरा गाँव उनको झुल्ला ही कहता है - अमरीका गए थे पढने - ओनही से किसी 'मद्रासीन' से बिहाय कर लिए ! तीन दिन से पुरे गाँव की महिलायें झुल्ला भैया के भाभी को देखने आ रहीं है - वो भी बार बार जींस में दुआर /दुरा पर निकल जा रही हैं - झुल्ला भैया - कुछ कुछ अंग्रेज़ी में गिटिर पिटिर बोलते हैं - दिस इज बिहार नोट योर शिकागो ! फिर जब कोई उनकी वाईफ को 'मद्रासीन' कह दे रहा है - वो बार बार एक ही किस्सा - ये लोग बंगलौर का है - रूट बंगलौर में है - मद्रास का नहीं ! बडका चाचा का छोटका - जिसको हम लोग छोटू कहते हैं - धीरे से बोल गया - "झुल्ला भैया पूरा ससुराली हो गए हैं  - तीन दिन से खाली बंगलौर के ससुराल का किस्सा सुना सुना के पका दिए हैं ! " झुल्ला भैया अमरीका से वालमार्ट से डिस्काउंट वाला 'डीओ' खरीद के पूरा गाँव में बाँट दिए हैं - आज पूरा गाँव वही स्प्रे करेगा ! छोटू फिर एक टोंट कस दिया - अमरीका में ई सब 'बिगायील' रहता है - वही 'बिगायील' सामान सबको बाँट रहे हैं ! झुल्ला भैया पूरा फायर हैं . 
कनिया चाची का गोल्डन सैंडिल मिल गया ! भोलू चाचा को चैन आया :D
बाबा गुस्सा गए हैं - कह रहे हैं - टाईम हो रहा है - अब धीरे धीरे घाट पर निकलना चाहिए - माई सूती के साड़ी में एकदम पवित्र लग रही है ....दौरा में सब सामान रखा गया है ....झुल्ला भैया माथा पर दौरा उठाएंगे ....छोटू हाथ लगा दिया ....झुल्ला भैया गमछी से बार बार अपने आंसू पोंछ रहे हैं ...कहने लगे ...पढ़ते थे ...तभी सोचे थे ...जब अपना कंपनी हो जायेगा ...माथा पर दौरा उठाएंगे ...
@RR

1 comment:

शारदा अरोरा said...

interesting ...sare rang uker diye hain...