Sunday, September 28, 2014

पद्मश्री कलीम आजिज़....


दामन पे कोई छींट, न खंजर पे कोई दाग़,
तुम क़त्ल करो हो, के करामात करो हो...:)) 
कल यह शेर पढ़ा पटना के मशहूर शायर पद्मश्री कलीम आजिज़ ..मुख्यमंत्री के अनुरोध पर ! जी ..पटना अपने मिजाज़ में लौटने लगा है ! आपको हर महीने कुछ न कुछ ऐसे प्रोग्राम के खबर अखबारों से मिल जायेंगे ! पहले पटना लिटरेचर फेस्टिवल और अब यहाँ की कला संस्कृति विभाग की तरफ से - कुछ न कुछ - खुद मुख्यमंत्री भी इसमे भाग ले रहे हैं ! यहाँ के मशहूर ह्रदय रोग शल्य चिकित्सक डॉ अजीत प्रधान भी अपने ख़ास मित्रों के सहयोग से'नवरस' नाम से कुछ न कुछ कला संस्कृति की झलक पटनावालों तक पहुंचा रहे हैं ! 
यहाँ की पेज थ्री भी धीरे धीरे चमक रही है - दिल्ली / मुंबई की आबो हवा यहाँ तक भी पहुँच रही है ! समाज का हर वर्ग अपने लिए कुछ न कुछ जगह खोज लेता है - ज़माने के हिसाब से अपना रंग चुन लेता है - अब यह रंग कितना चोखा है - यह उसके मिजाज़ पर निर्भर करता है ! 
पर एक दिक्कत है - यहाँ सडकों पर असल युवा वर्ग नहीं है - वो युवा वर्ग जिसके आँखों में एक सपना होता है - बीस की आयु में जो शहर छोड़ जा रहा है - वो फिर कभी लौट नहीं रहा है - बीस से पचास की जो बैंडविथ है - वो गायब है - शहर इन्ही शायर के हवाले है ...जो अपनी जवानी को याद कर कुछ न कुछ गर्म हवा छोड़ रहे हैं ...राख के अन्दर कोई शोला नहीं छुपा है ...समय गुजारने को उन राखों को टटोलना एक बढ़िया ख्याल है ...वक़्त कैसे गुजर जाता है ..पता ही नहीं चलता ....
शहर के अन्दर अब कोई शहर नहीं बचा है ...
बेवजह ही शोलों को हवा देते हो ...
तुम्हारे अन्दर भी कोई शहर नहीं बचा है ..
बेवजह ही सर ऊँचा करते हो ....
कांपते हाथों से शहर नहीं पैदा होते ...
बेवजह ही समय बर्बाद करते हो ...
......:))

@RR

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