Saturday, September 27, 2014

छठ - संझिया अरग


#. छठ - संझिया अरग 
गजब का नज़ारा होगा - पुरे पटना का ! घर से अब लोग धीरे धीरे निकल रहे होंगे - गंगा घात के लिए ! पुतुल भी जिद कर रहा होगा - माथा पर दउरा उठाने के लिए - रिमझिम का लाल रिबन - एकदम झक झक - कनिया भौजी के अंचरा को पकड़ - पीछे पीछे ! सब लोग खाली गोर ! चिम्पू अपना नयका फुल पेंट को ठेहुना तक मोड़ लिया होगा ! खाले गोर - माथा पर 'दउरा' ! लाल कपडा से ढका ! 
कहीं कोई मेला नहीं - कोई ठेला वाला नहीं ! सिर्फ और सिर्फ 'श्रद्धा' से वातावरण शांत ! अब से कुछ देर में - गांधी मैदान भरा पड़ा ! 
फिर से कह रहा हूँ - क्या झा जी - क्या राम जी - क्या मिश्र जी - क्या पासवान जी - क्या सिंह जी - क्या महतो जी - क्या सिन्हा जी - क्या यादव जी ! जिस रास्ते से 'छठ व्रती' गुजर रहे - कोई उनका पद / प्रतिष्ठा / जात / रंग / धन / ज्ञान / बुद्धि / विवेक - कुछ भी तो नहीं पूछ रहा ! बस सब लोग उनको श्रद्धा से देख रहे - किस ज्ञान की जरुरत है - मन में श्रद्धा लाने के लिए ! 
गाँधी सेतु के किनारे अपना फिएट लगा के - वही श्रद्धा से लोग - जिनके घर पूजा नहीं हो रहा - वो गमगीन होते हुए भी - पूजा में शरीक ! 
धन्य है ..वो माटी ..जिसने इस संस्कार को जन्म दिया ...धन्य है वो लोग ...जो इस संस्कार को पीढी दर पीढी ...आगे बढाते जा रहे हैं ...
घर ..तुम घर ही हो ...तेरे मिटटी के आगे ..मेरा स्वर्णमुकुट फीका है ....
~ १९ नवम्बर - २०१२
@RR

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