Sunday, September 28, 2014

पटना ....तुम मेरी हो ....


कुछ दिन पहले एंडीटीवी - इण्डिया के प्रख्यात पत्रकार रवीश कुमार ने 'लप्रेक' ( लघु प्रेम कहानी) लिखना शुरू किया था - पढ़ कर मजा आया - उनकी कहानी में नायक - नायिका दुनियावालों से नज़र बचा - शहर में एक छोर से दूसरे छोर तक घुमते हुए एक दूसरे से वार्तालाप करते हैं ! इस तरह की कहानी लिखने की कोशिश मैंने भी की - पर लिख नहीं पाया ! मेरी कल्पना में 'नायक - नायिका' एक दूसरे से बड़ी मुश्किल से नज़र भी मिला पाते हैं - फिर साथ घुमने की तो कल्पना नहीं की जा सकती - मैं लिख नहीं पाया ! 
हाँ , कोई मुझसे पूछे - किसी शहर से बेइंतहा मुहब्बत कैसे किया जाता है - कैसे किसी गली की याद को जिया जाता है - मै इतिहास नहीं लिखता हूँ - मै यादों से इश्क करता हूँ ! बड़ी मुद्दत बाद इस बार काफी दिन 'बिहार' में रह गया ! "नफ़रत मुहब्बत में तब्दील हो जाती है - पर एक बार आप किसी से मुहब्बत कर बैठें - लाख बेवफाई के बाद भी आप उससे नफ़रत नहीं कर सकते" ! जब कभी पटना आता हूँ - लौटने वाले दिन - यही सवाल यह शहर मुझसे पूछ बैठता है - क्या कमी रह गयी थी - जो मै बेवफा हो गया ! हर एक उस गली में जाता हूँ - उस याद को दोहराता हूँ ! क्या गाँव , क्या गोपालगंज , क्या मुजफ्फरपुर और क्या पटना ! 
मेहदी हसन साहब की गयी एक गीत - जो मुझे बेहद पसंद है - 
"उसने जब मेरी तरफ प्यार से देखा होगा ..
मेरे बारे में बड़े गौर से सोचा होगा ....
वादा कर के ..अगर आप नहीं आयेंगे ..
नाम बदनाम ज़माने में वफ़ा का होगा ...
सुबह को जिसने सज़ा रखी है..हसीं होठों पर ..
रात भर उसको किसी गम ने सताया होगा " 
[ फुर्सत हो तो यूटिउब पर इस गीत को सुन सकते हैं ] 
बस ..इसी गम और वफ़ा के साथ....पटना ..तुम मेरी हो ...बस यूँ गया ..यूँ आया


@RR - १३ जनवरी - २०१२ 

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