Sunday, September 28, 2014

इश्क - ए - दिल्ली


दिल्ली लगभग नहीं जाता हूँ ! बस जब पटना के लिये ट्रेन पकड़ना हो ! दस साल हो गए - अभी भी इंडिया गेट को सही ढंग से नहीं देख पाया हूँ ! अकबर रोड से गुजरते वक्त धडकन बढ़ जाती है ! अशोक रोड में तो पसीना छूट जाता है ! पहली दफा 1984 फरवरी में आया था - मुहब्बत हो गयी थी - दिल्ली से - फिर नफरत ! कल भी ऐसा ही हुआ - तीन मूर्ती मार्ग से निकल कर फिर तीन मूर्ती मार्ग में ही वापस लौट जा रहा था ! लुटियन बंगला के आस पास जाते ही ..मुझे क्या हो जाता है ..पता नहीं ..जैसे आप किसी से बेपनाह मुहब्बत करते हों और सामने आते ही जुबान बंद हो जाती हो ! बहुत सारे जान पहचान के राजनेता - अधिकारी दिल्ली में ही रहते हैं ! कभी कोई यह नहीं कह सकता - रँजन जी , आये थे ! रिश्ते कमज़ोर हो गए - कमज़ोर होकर टूट भी गए ! पर् एक जिद बनी रही ! कनाट प्लेस में विंडो शौपिंग मेरे उपन्यास में ही नज़र आयेगी ! क्या कोई इस् तरह किसी शहर से मुहब्बत कर के ...उससे इस् कदर घबराता होगा !
~ दालान , १७ दिसंबर - २०११ 

@RR 

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