Monday, September 29, 2014

गप्प - शप्प .....


एक साल ठीक होली के दिन हम पटना पहुंचे - एकदम सुबह का बेला था - स्टेशन से बाहर निकले तो देखे - ना एक ऑटो / टेम्पू ना एक रिक्शा - भारी फेरा - घर कैसे जायेंगे ! एक टमटम वाला नज़र आया - किसी तरह उसको मनाये - भाई ..डेरा / घर पहुंचा दो - जो मांगोगे दे देंगे - सड़क भी सूना था - वो तैयार हो गया ! टमटम पर अटैची रख कर - पैर / गोर लटका के बैठ गए - टमटम आगे बढ़ा - पांच कदम के बाद रुक गया - देखे की टमटमवाला टमटम के निचे से एक बाल्टी निकाला फिर उस बाल्टी को चाबुक वाली छडी से घोडी के आगे ढम - ढम कर के बजाया - फिर वो घोडी अगला पांच कदम आगे बढी - फिर से वो बाल्टी निकाला - ढम - ढम कर के बजाया - हमसे बर्दास्त नहीं हुआ - हम पूछे - आएं जी ...ये क्या कर रहे हो ...वो बोला ..." क्या करें मालिक ...ये घोडी बारात की है ..बैंड बाजा वाला के आवाज़ पर चलती है ...बारात हर पांच कदम पर रुक जाती है ..सो इसको भी पांच कदम पर रुकने का आदत है ..बाल्टी को बजाता हूँ..यह वैसा आवाज़ सुन के आगे बढ़ती है .." हा हा हा हा हा...तब हमको जोर से हंसी भी आयी और गुस्सा भी ...हा हा हा हा ...
ये कहानी सुनाने का बहुत सारा मतलब है ...एक मतलब यह है की ...फेसबुक पर डाईरेक्ट लिखते लिखते ...आदत ऐसी हो गयी हो ...अब किसी डायरी / कॉपी पर कोई कहानी / कविता लिखना मुश्किल है ..हा हा हा हा ...मेरे सामने फेसबुक खोल दीजिये ...देखिये ..दुनिया का गंभीर से गंभीर विषय पर ...बिना सोचे समझे लिख दूंगा ...बिना संपादन ...हा हा हा हा हा ....
पढ़ते रहिये ... रंजन ऋतुराज को ...  
थैंक्स ...:))

@RR - २४ मार्च - २०१३ 

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