Sunday, September 28, 2014

आप अपने 'जुबान' के कितने पक्के है......


किसी भी 'व्यक्तित्व' का पहला पहचान है - आप अपने 'जुबान' के कितने पक्के है ! मन किसका नहीं भटकता है - अपनी जुबान की रक्षा के लिए - मन को कंट्रोल में रखा जाता है - वहीं से व्यक्तित्व में गंभीरता आती है - दुनिया जो कहे इंसान अपनी नज़रों में ऊँचा रहता है - बशर्ते उसका दिमाग उसकी गलती को सही न साबित करे - जो ऐसा अक्सर होता है - दिमाग सभी गलत दलीलों को सही बनाता है ! 
जो अपनी 'जुबान' को इज्ज़त / आदर नहीं दे सकता - वो दुसरे को क्या इज्ज़त / आदर देगा ! लोग अपने बच्चों को सब शिक्षा दे देते हैं - बढ़िया नौकरी तक पहुंचा देते हैं - अपने अवकात से बड़ी जगह पहुंचा देते है - पर कहाँ गलती हो जाती है - कहाँ चुक हो जाती है - सबकुछ होते हुए भी व्यक्तित्व में हल्कापन सबकुछ गंवा देता है ! 
जो वश में नहीं - जिसका मन नहीं - जिसका अवकात नहीं - वो जुबान ही मत दो - जब दो फिर जान की बाजी लगा दो - अपनी जुबान की रक्षा के लिए ! 
उससे भी बड़ी बात - जब तुम्हारे इज्ज़त के साथ किसी और की भी इज्ज़त लगी हो ! 
आज से पचास वर्ष पहले की बात है - मेरे परिवार में फुआ दादी की शादी तय - बरात के ठीक एक दिन पहले लडके वाले मना कर दिए - सारे सगे संबंधी आ चुके - सभी तैयारी हो चुकी - सोचिये वो ज़माना - क्या गुजरा होगा परिवार पर ...उस वक़्त मेरी फुआ दादी पर - मेरे अपने परबाबा / परदादी जिन्दा नहीं - बाबा ही गार्जियन - ठेहुना पर गिर रोने लगे ! फुआदादी घर में बंद ! 
पर वो भी लोग थे - एक संबंधी उसी वक़्त अपने भांजे से ..जो बिहार के उस जमाने के बहुत इज्ज़तदार परिवार से थे - तुरंत शादी तय कर दिए ! खुशी तो बहाल हो गयी - पर फुआदादी के आत्मा से जो श्राप निकला - जरुर वो लड़का वाला भोगा होगा ! 
यह लिखने का एक ही मकसद ..संभवतः आप लोग समझ गए होंगे ...

@RR - 7 December - 2013 

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