Saturday, September 27, 2014

छठ .....2012

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सर ...सर ...छुट्टी दे दीजिये ...सर ! बस चार दिन में अपना गाँव से वापस लौट आयेंगे ...माई ( माँ ) इस बार छठ कर रही है ...मामी भी ...छोटकी चाची भी ! सब लोग ! कलकत्ता से बड़का भईया भी आ रहे हैं ...सर ...हम भी जायेंगे ...सर ...टिकट भी कटा लिए हैं ! 
.सर सब कुछ तो आपका ही दिया हुआ है ...ये बुशर्ट ..ये खून में मिला नमक ..मेरा रोम रोम आपका कर्ज़दार है ...बिहारी हैं..न ..पेट भरने अपने घर से मीलों दूर ...आपकी फैक्ट्री में ...पर ...सर ...छठ पूजा हमारे रूह में बसता है ...
अब हम आपको कैसे बताएं ....छठ क्या है - हमारे लिये ! हम नहीं बता सकते...और ना आप समझ सकते हैं .... ! 
३६० दिन तो आपका ही है ...बस ये चार दिन ..जो मेरा है ..हमको दे दीजिये ...
सर...चलिए ..मेरे बिहार ..मेरे पटना ...आपको दिखायेंगे ...सुल्तानगंज ....जिस रास्ता से ...छठव्रती लोग गुजरता है ...रात भर में मुस्लिम लोग पूरा सड़क को अपने से धो देता है ..गांधी मैदान सुने हैं ..न ...संझिया अरग के समय ....क्या कलक्टर - क्या चपरासी - क्या डाक्टर - क्या कमपाऊँडर - क्या नेता - क्या जनता - क्या साधू - क्या शैतान - सब के सब - उस डूबते और उगते सूरज के लिए बराबर ! 
सर....आप ऐसा नज़ारा जीवन में नहीं देखे होंगे ....
सर....संझिया अरग के समय तो छुट्टी दे दीजिये ...जीवनभर क़र्ज़दार रहूँगा ...
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~ 16 नवम्बर - 2012 

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