Friday, October 18, 2013

चाँद है ....तुम हो ....ये धरती है ...और मै हूँ ...:))

सोलह कलाओं से परिपूर्ण ...चाँद ...आज की रात ...अपने धरती से बेहद करीब ...और चांदनी इस कदर ....धरती पर बिखरे ..जैसे 'अमृत वर्षा' ....:)) और श्री कृष्ण ...अपनी राधा के संग ...आधी रात ...यमुना तट पर ....रास ....गोपियाँ घेर लें ...और तमन्ना करें....हर रात ...ऐसी हो हो ....पर हर रात ऐसी कहाँ आती है ...बरस में सिर्फ एक बार ही तो आती है ....जब चाँद अपनी घूँघट से बाहर निकल ...खुद को परिपूर्ण बताये ...और कल्पना कीजिए ...धरती की ...चांदनी में नहाई ...वो चांदनी अमृत ही तो है ....तभी तो ..दोनों ने इस अमृत प्रेम को चख ...अमर हैं ...श्रीकृष्ण और राधा की तरह ...:)) 



रंजन ऋतुराज - पटना 

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