Monday, October 18, 2010

मेरी पटना यात्रा - भाग दो

पटना में एक दिक्कत है ! रात भी जल्द हो जाती है और सुबह भी :( सुबह सुबह बाबा और बाबु जी बोलना शुरू कर देते - रंजू अब तक उठे नहीं ? लैपटॉप का एडाप्टर इंदिरापुरम में ही छूट गया था सो रात भी जल्द हो जाती :( 

चुनावी बयार था ! सुबह सुबह टी वी के सामने बैठ जाता - लोकल चैनल सब पर् कोई जान पहचान का नेता दिख जाता ! बेंत वाला कुर्सी पर् दोनों पैर ऊपर कर के :) तब तक चाय पर् चाय ! फिर वहीँ से बैठ कर मोबाईल से फेसबुक पर् स्टेटस अपडेट करना और थोडा बहुत इधर उधर का पढ़ना !

पिछले कुछ बार से जैसे ही पटना पहुँचता - प्रभाकर के पास ! बहुत ही हल्की जान पहचान थी पर् फेसबुक ने अजीब सा सम्बन्ध बना दिया ! इस बार मुझे लगा वो बीजी होंगे चुनाव में, सो सोच कर पहला दिन नहीं गया ! अगले दिन फोन कर के उनके दफ्तर पहुँच गया - आधा कप कॉफी पीने ;) जुन में पुत्र के जनेऊ में सिर्फ दो ही लोग रिश्तेदार नहीं थे उनमे प्रभाकर और कृष्ण सर थे ! तब पता चला कि हमारा परिवार उनके परिवार को कई वर्षों से जानता है ! वो भी काफी दिनों तक कंकडबाग में रह चुके हैं ! वक्त ने उनको समय से पहले परिपक्व कर दिया है ! मुझे नहीं लगता कि वो किसी कि बातों का बुरा भी मानते होंगे ! बेहद मिलनसार और थोड़े इलीट :) पिछली बार भी उनके घर गया था - इस बार सपरिवार गया ! लौटते वक्त अपनी गाड़ी से सूरज दा कि गाड़ी में ठोक दिया :) इस बार जब मूड होता - गाड़ी उनके दफ्तर के तरफ मोड़ देता :) पत्नी ने मजाक भी किया - आपको पटना में मन लगता है - प्रभाकर जी कि ओफ्फिस में नौकरी कर लीजिए :) हा हा हा हा ! विशुद्ध दोस्ती तब कही जाती है जब आप एक दूसरे के स्पेस और विचारधारा को इज्जत देते हुए एक दूसरे से एक खूबसूरत मुस्कान से ज्यादा आशा नहीं करें ! वो भी अब दिल्ली आते हैं तो - जरूर मिलते हैं !  और क्या लिखूं - ज्यादा लिखूंगा तो दोस्ती को नज़र लग सकती है - वैसे मैंने उनके बारे में नहीं लिखने का प्लान किया था :) पर् लिख दिया -कुल मिलाकर उम्र में मुझसे छोटे हैं पर् परिपक्वता में काफी ज्यादा बड़े दिखते हैं !

एक दिन प्रकाश सिंह से भी मिला ! टाईम्स नाऊ के लिए काम करते हैं ! छह फीट के नौजवान ! जब मै पटना से लौट जाता तो वो शिकायत करते - इस बार बिना बोले उनके दफ्तर पहुँच गया ! बेहद शरीफ और बिना किसी लाग लगाव के बोलने वाले ! प्रभाकर,  प्रकाश और मेरे बीच एक कॉमन लिंक हैं - देवब्रत ! अब तक देवब्रत नदारत थे - मौसी के यहाँ गए थे !

एक दिन शाम सोच समझ कर दिवाकर भैया के पास गया ! डॉक्टर हैं ! मेरे स्कूल के सीनिअर ! २२ -२३ साल से उनको जानता हूँ - कभी मिला नहीं था ! सोचा मिल ही लूँ ! क्लिनिक में मिला ! ढेर सारे पदक - ट्राफी - क्या नहीं था ! बेहद मीठे स्वभाव के ! कॉंग्रेसी हो गए हैं - उनको कुछ पोलिटिक्स समझाया :( मालूम नहीं वो मेरी बातें कितनी गौर से सुने :(  थोड़ा महिनी से राजनीति में प्रवेश करना चाहते हैं - चाय तो लोगों को पिलाना ही पड़ेगा ;) बहुत बड़ा क्लिनिक है ! उनके पिता जी और माता जी दोनों पटना के डॉक्टर समाज के काफी प्रतिष्ठित लोग हैं !

एक दिन शाम हिंदुस्तान दैनिक से प्रशांत जी का फोन आया ! कुछ बोले - सेमीनार के बारे में ! मुझे ज्यादा समझ में नहीं आया ! अगले दिन उनसे फिर बात हुई - हिंदुस्तान दैनिक के ऑफिस में पहुँच गया ! अगरवाल साहब से मुलाकात हुई - शायद अब वो मुझे भूल चुके होंगे - किसी जमाने में बहुत हल्की परिचय थी ! कार्टूनिस्ट पवन जो मेरे स्कूल से ही हैं - और मै उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ - मुलाकात हुई ! प्रशांत जी से भी - पहली दफा मिला ! परिचर्चा हुई ! कौशलेन्द्र जी से मिला - आई आई एम - अहमदाबाद से पास कर पटना में करोड़ों कि सब्जी का व्यापार कर रहे हैं ! इरफ़ान जी मिले - सम्मान फाउन्डेशन वाले ! उनके साथ कई साल पहले मै दिल्ली से पटना सफर कर चूका हूँ - तब जब मेरे पास रिजर्वेशन नहीं था और उन्होंने अपना सीट मेरे साथ शेयर किया था - उन्हें भी याद था :) अमिकर दयाल - जिनको बचपन से हमसभी फैन हुआ करते थे ! और भी कई लोग थे ! कुल मिलाकर एक बहुत ही बढ़िया अनुभव रहा ! 'प्रशांत जी' का शुक्रगुजार हूँ ! मै बुध्धीजीवी नहीं हूँ ! ना तो मुझे भाषा आती है और ना  ही साहित्य ! मुझे आज तक याद है - एक वरिष्ठ पत्रकार बोले थे - मेरे जैसे लोग हजारों सड़क पर् होते हैं - किसी बिल्डर के यहाँ छत ढल्वाते हैं कौन जानता है ! मै कहीं से भी 'बुध्धिजीवी नहीं हूँ ! बस जोश में फेसबुक पर् अखबार कि कटिंग डाल दिया और कुछ नहीं ! बस यह एक संयोग था और प्रशांत जी - पवन जी का मेरे प्रती स्नेह !

आने के एक दिन पहले 'देवब्रत' को फिर रिंग किया - परिवार के साथ कहीं घूम रहा था ! देर रात फोन किया फिर अगले दिन मुलाक़ात हुई - बहुत दिनों बाद हम दोनों सड़क पर् खड़े होकर घंटो बात किये ! अपनी अपनी कहानी ! नॉएडा में ही रहता है - यहाँ भी मुलाक़ात होती है पर् पटना जैसी नहीं ! देव के माता जी और पिता जी दोनों से मिला ! अच्छा लगा !

अपने सास - ससुर अब नहीं रहे ! सो चचेरे साला और सास लोग के यहाँ भी गया ! पाटलिपुत्र कॉलोनी में ! कंकडबाग से पाटलीपुत्र कॉलनी जाना आसान काम नहीं है :( और किसी के यहाँ नहीं गया ! वहाँ भी बहुत स्वागत हुआ ! चचेरे साला लोग रईस हैं ! पूरा बिहार का राजनीति समझा कर आ गया ;) हंस रहे होंगे :) दबंग लोग हैं :)

मूड हुआ गिरिराज बाबु से मिलता ! कई सम्बन्ध हैं और आदर भाव से फोन पर् बात होती है ! पर् चुनाव के कारण वो व्यस्त दिखे ! मैंने भी थोड़ा महटीआ दिया ! अगली बार मिलूँगा !

हर बार कोशिश यही रहती है कि एक बार बिहारटाईम्स वाले अजय भैया से जरूर मिलूं ! इस बार मौर्यालोक के बसंत बिहार में मिला ! साथ साथ डोसा खाया और उनके बिहार कन्क्लेव प्रोग्राम पर् चर्चा हुई ! मालूम नहीं मेरी बातों को वो कितना गंभीर रूप से लेते हैं - पर् गौर से सुनते हैं - ऐसा मुझे लगता है ! १२ साल से बिहारटाईम्स चला रहे हैं ! अब आज कल चुनाव चर्चा में वो सभी बिहार न्यूज चैनल पर् आते हैं !

दिल में पटना बसता है !

 मै राजनीतिक बिलकुल नहीं हूँ - थोडा 'इन्फो -हंग्री' हूँ - जिसके कारण बहुत लोगों को दिक्कत भी होती है :( सॉरी ! पटना थोड़ा साफ़ दिखा ! 

क्रमशः

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

3 comments:

Vibha Rani said...

हम भी पटना गए. अब पटना में रात जल्दी नहीं होती. नाइट शो में 'दबंग' देखे. रात 12.30 बजे लौटे, बिखौफ, बेफिक्र. अपना बचपन याद आ गया. मधुबनी में भी इंद्र पूजा का मेला चल रहा था. लोग सपरिवार आधी रात तक घूम कर लौट रहे थे. ऐसी ही अलमस्त जिंदगी चाहिए हमें. न जाने वे कौन से लोग हैं और क्या चाहते हैं कि उन्हें बिहार का यह सबसे बडा सकून नहीं दिखता.

Purander Sawarnya said...

Patna Pravas ki aapne etna jivant banaya ki kuchh raha hi nahi.Jo nahi aaye, nishchit Diwali ka ticket le liye honge.

अमित said...

और मैं जब पिछले अक्टूबर में पटना गया था. तो चुनाव के कारण बसें बंद थीं तब तीन-चार दिन पटने में रहा.पहले जाना था मधुबनी फिर देवघर लेकिन सीधे देवघर गया. जानते हैं-इन दो तीन दिन में मैंने पटना को पैदल खंलाना शुरू किया. एक दिन साढ़े चार घंटा पैदल चला. लोहानीपुर भी गया जहां कभी छात्रजीवन में रहता था. काफी गंदा इलाका हो गया है अब. खासक कठपुलवा के पास. उससे पहले गांधीमैदान. मोना सिनेमा होते हुए क्या नाम है उस रोड का जिसमें चश्मे की दुकान है. वहां गया. पुरानी याद को ताजा करता रहा. जानते हैं मुझे लगता है वहां बार बार जाना पड़ेगा. मैं भी कंकड़बाग में रहता था अपने दोस्त उल्लास के साथ. उल्लास जो अब एनडीटीवी मुंबई में है. अब पूछूंगा कभी साथ चलना चाहे तो.