Thursday, October 7, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा त्यौहार - दशहरा - भाग बारह


हर जगह का 'दशहरा' देखा हूँ :) मुज़फ्फ्फरपुर -  रांची - पटना - गाँव - कर्नाटका - मैसूर - नॉएडा -गाज़ियाबाद :)

गाँव में बाबा कलश स्थापन करेंगे ! हर रोज पाठ होगा ! बाबा इस बीच दाढ़ी नहीं बनायेंगे ! पंडित जी हर रोज सुबह सुबह आयेंगे ! नवमी को 'हवन' होगा ! दशमी को मेला ! दशमी को हम सभी बच्चे मेला देखने जाते थे - हाथी पर् सवार होकर ;) ( सौरी , मेरी हाथी वाली किस्से पर् कई भाई लोग नाक - भों सिकोड़ लेते हैं )...महावत को विशेष हिदायत ...गान के सबसे बड़े ज़मींदार के दरवाजे के सामने से ले चलो ...जब तक मेरा हाथी उनका पुआल खाया नहीं ...तब तक मन में संतोष कहाँ ...:P  गाँव से दूर ब्लोक में मेला लगता था ! जिलेबी - लाल लाल :) मल मल के कुरता में ! फलाना बाबु का पोता ! कितना प्यार मिलता था ! कोई झुक कर सलाम किया तो कोई गोद में उठा कर प्यार किया ! किसी ने खिलौने खरीद दिए तो किसी ने 'बर्फी मिठाई' ! तीर - धनुष स्पेशल बन कर आता था ! लगता था - हम ही राम हैं :) पर् किस सीता के लिए 'राम' हैं - पता नहीं होता ! 

रांची में याद है  नाना जी के एक पट्टीदार वाले भतीजा होते थे - एच ई सी में - हमको मूड हुआ - रावणवध देखने का - ट्रक भेजवाये थे ! ट्रक पर् सवार होकर हम 'रावण वध' देखने गए थे ! ननिहाल से लेकर अपने घर तक - दुश्मन से लेकर - दोस्त तक - 'भाई ..बात साफ़ है ....मेरा ट्रीटमेंट एकदम 'स्पेशल' होना चाहिए ...अभी भी वही आदत है ...जहाँ हम हैं ..वहां कोई नहीं .. :P

मुजफ्फरपुर में 'देवी स्थान' ! बच्चा बाबु बनवाए थे - सिन्धी थे - पर नाम 'बिहारी' ! अति सुन्दर - दुर्गा की प्रतिमा  ! वहाँ से लेकर कल्याणी तक मेला ! पैदल चलते चलते पैर थक जाता था :( चाचा जैसा आइटम लोग पीठईयाँ कर लेता :) फिर बाबू जी एक आर्मी वाला सेकण्ड हैंड जीप ले लिए ! पूरा मोहल्ला उसमे ठूंसा जाता ! फिर रात भर घूमना :) झुलुआ झुलना ! कुछ खिलोने - चिटपुटिया बन्दूक  !  उस ज़माने में दुर्गा पूजा के अवसर पर् - ओर्केस्ट्रा आता था ! शाम से ही आगे की कुर्सी पर् बैठ जाना और प्रोग्राम शुरू होने के पहले ही सो जाना :) पापा मोतीझील के पूजा मार्किट से एक हरे रंग का 'एक्रिलिक' का टी शर्ट खरीद दिए थे - तब वो पी जी ही कर रहे थे - मोहल्ला के सीनियर भईया लोग के साथ घुमने गए थे - बहुत साल तक उस हरे रंग के टी शर्ट को 'लमार - लमार' के पहिने ..:)) 

पटना आ गया ! विशाल जगह था ! बड़ा ! माँ - बाबु जी घूमने नहीं जाते ! कोई स्टाफ साथ में ! भीड़ ही भीड़ ! मछुआटोली आते आते - लगता कहाँ आ गए ! तब तक आवाज़ आती - अमूल स्पेय की दुर्गा जी - पूरा भीड़ उधर ! ठेलम ठेल ! ये लेडिस के लाईन में घुसता है ? हा हा हा हा ! उफ्फ्फ ...बंगाली अखाड़ा ! नवमी को दोस्त लोग मिलता - कोई बोलता - फलाना जगह का मूर्ती कमाल का है - फिर नवमी को ..वही हाल ! 

 गाँधी मैदान और पटना कौलेजीयट में तरह तरह का प्रोग्राम होता - पास कैसे मिलता है - पता ही नहीं था ! गाँधी मैदान गया था - महेंद्र कपूर आये थे ! देख ही लिए :) एक बार मूड हुआ 'गाँधी मैदान' का रावण वध देखने का ! एक दोस्त मेरे क्लास का ही - हनुमान बना था - राम जी के साथ जीप पर् सवार था ! इधर से बहुत चिल्लाये - नहीं सुना :) एक बार गए - फिर दुबारा नहीं गए ! बाद में छत पर् पानी के टंकी पर् चढ  कर देखने का एहसास करते थे :)

थोडा जवानी की रवानी आयी तो सुबह में - सुबह चार बजे ..:)) जींस के जैकेट में ....बाल में जेल वेल लगा के ...जूता शुता टाईट पहिन के ...:)) आईक - बाईक पर ट्रिपल सवारी ...पूरा पटना रौंद देते थे ...

नॉएडा आ गए ! बंगाली लोग का एक मंदिर है - कालीबाड़ी ! वहाँ जरुर जाते ! नवमी को मोहल्ले में ही 'बंगाली दादा' लोग पूजा करता था ! जबरदस्त ! अब यहाँ एकदम एलीट की तरह ! मल मल का कुरता ! बेटा भी ! दुर्गा माँ को साष्टांग ! हे माँ - इतनी शक्ति देना की ..........! फिर प्रोग्राम ! रविन्द्र संगीत और नृत्य ! ये लोग बड़े - बड़े कलाकार बुलाते हैं - कभी कुमान शानू तो कभी उषा उथप ! गाना साना सुने ! ढेर बंगाली दादा लोग हमको 'बिहारी बाहुबली' ही समझता था - सो इज्जत भी उसी तरह ! पर् अच्छा लगता था !


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

4 comments:

Shwetank's WebBlog said...

very touching .. it was like I am rewinding my old days

राजेश सिंह said...

Really rewinding

Zero said...

Tadka lagaya hain ya sab kuchh sahi hain...lekin achha hain... yaad aa gaya sab kuchh. hamare bachpan haathi ke sath nahi beeta..

Ranjan said...

तड़का क्यों लगाऊँगा :)) अगर तड़का ही है तो वही समझ के पढ़ लीजिए :))