Thursday, December 27, 2007

लालू और मोदी

राजनेता किसी भी दल के हों - कोई भी विचारधारा हो - लेकिन यह सभी सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए ही 'नेतागिरी' करते हैं ! और इस वोट बैंक को इन नेताओं के लिए मजबूत करने मे दलाल की भूमिका "मीडिया" करता है !
मीडिया का लगातार प्रहार से कहीं न कहीं नरेन्द्र भाई दामोदर मोदी को जबरदस्त फायदा हुआ ! यह प्रयोग पहली दफा नही हुआ था - बिहार मे लालू के समर्थन मे मीडिया ऐसा "महिनी" खेल , खेल चूका है ! निर्दोष की बलि पर अपनी रोटी सेंकना - अघोरी हो गए हैं - ये सब !
क्या मीडिया को यह पता नही था की वह जितना विरोध मोदी का करेंगे मोदी उतना ही मजबूत होंगे ! बिहार मे क्या हुआ था ! जब तक लालू खुलेआम मंडल के बहाने सवर्ण को निशाना बना रहे थे और मीडिया आग उलग रही थी और लालू और मजबूत होते जा रहे थे ! फिर अचानक आप लल्लू के आगे नतमस्तक हो गए क्योंकि कई सवर्ण नेता लालू के साथ हो चले और बिहार के घोर जातिवाद के शिकार मीडिया के नए नायक बन गए - लालू !
क्या पटना मे बैठे पत्रकारों को यह नही पता है की अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण मे जाने वाले "राम शिला" का पहला पूजन कौन और कहाँ करता है ! आप किसको बेवकूफ बनाते हैं ? चंद पैसा खा कर आप अपना जमीर बेचते हैं !
मुझे लालू और मोदी मे कोई भी फरक नज़र नही आता है ! जहाँ बिहार मे लालू ने सरकारी प्रायोजित कार्यक्रम मे भूमिहारों को मरवाया वहीं गुजरात मे मोदी ने दंगा करवाया ! लालू ने भी भूमिहारों को "कश्मीरी आतंकवादी" कहा ! सेनारी मे सहन्भुती के रुप मे जाने से मन कर दिया ! सं १९९२ मे बारा गाँव मे १०० के करीब भूमिहार मारे गए - पुरस्कार फलस्वरूप तत्कालीन पुलिस मुखिया के भाई को राज्यसभा भेज दिया गया !
देखिए , देश की जनता को बेवकूफ बनाना छोड़ दीजिए ! एक तरफ आप मोदी को समाचार पत्र और टेलीविजन मे गाली देते हैं और दूसरी तरफ मोदी के जितने का जश्न भी ! मुकेश भैया और सोनिया बेन के पैसा का लाज रखिये !

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

मीडिया के बारे में लिखे आपके विचार काफी हद तक ठीक हैं।आज मीडिया की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है कि क्या ये मात्र सूचना पहुँचाते हैं या प्रचार करते हैं?...इस बारे में विचार करने की जरूरत है।

Sarvesh said...

आप की बातों से बिलकुल सहमत हैं| जीस प्रकार भूमिहार जाती का लालू जी ने दरकिनार किया वो एक राजनेता के लिए शर्मनाक बात है| मिडिया ने कभी भी इस बात को प्रकाशित नहीं किया. सिख दंगो में मारे गए लोगो की संख्या ज्यादा थी गुजरात दंगो की तुलना में. फिर भी मोदी ज्यादा बदनाम हैं. मीडिया इस तोताल्ली बिअसेद. लेकिन मुझे ऐसा लगता है की बिहार में अभी भी लोग जाती के आधार पर जीते हैं. चाहे वो मीडिया हो अथवा राजनेता. मिडिया को इन सब छुद्र विचार धाराओं से ऊपर उठाना चाहिए.

संजय शर्मा said...

लालू मोदी की कही से तुलना नही हो सकती . एक विकास पुरूष दूसरा विनाश पुरूष ! मिडिया अगर सही तस्वीर
दिखाती तो बिहार मे बहार होता . मिडिया अगर ये समझती है की समाज को देश को उनसे दिशा मिलती है तो उनकी भूल है लोग अब समझदार हो गए हैं सिर्फ़ अपने नाम छपवाने और चेहरा दिखाने का साधन के आलावा
कुछ और नही मानते .ठीक उल्टा सोचना दिखाना आज मीडिया का काम है . कहा जा सकता है
मीडिया आज कार्य पालिका , विधायिका , और न्याय पालिका संभल रही है .२०-२५ साल का लौंडा आज अपनी
बकवास लिए हर टीवी पर मौजूद रहता है .
लालुआ खाली भूमिहार को ही नही बल्कि मेरी जाति का भी गला दबाया है .